Jhumianwali

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Jhumianwali (झूमियाँवाली) village is in Fazilka tahsil and district in Punjab.

Late Ch. Sohan Lal Siag (Ex.Sarpanch)

Location

Origin

Jat Gotras

History

माता सारां के न रहने से स्वामी केशवानन्द जी का केलनिया गाँव से कोई लगाव न रहा. संवत 1956 (सन 1899) में वे नोहर, सिरसा, भटिंडा, गीदड़बाहा, मलोट, अबोहर, पंजकोषी आदि में भटकते हुए आखिर में झूमियाँवाली गाँव पंजाब में जाकर ठहरे। यह वह समय था जब मरुस्थल के अकाल पीड़ित क्षेत्रों से बीरमा जैसे अनेक अकाल के मारे जवान और बालक पंजाब की तरफ रोटी-पानी की तलास में आ रहे थे. धर्म प्रचारकों के लिए यह स्वर्णिम मौका था. इंसान की भूख का फायदा उठाकर हिन्दू से मुसलमान या ईसाई बनाने के प्रयास हो रहे थे. पंजाब में इस मौके पर धर्मरक्षा का कार्य आर्य-समाज ने किया। बीरमा को झूमियाँवाली के चौधरी टिकूराम जी वैद्य ने पंडित गंगाराम जी के सहारे आर्यसमाज द्वारा फिरोजपुर में संचालित अनाथालय भिजवा दिया। अनाथालय में रोटी के साथ पढ़ाई के सर्व प्रथम दर्शन बीरमा ने किये। ज्ञान की ललक ने बीरमा को और आगे बढ़ने के लिए प्रवृत किया और चार वर्ष बाद ही बीरमा ने अनाथालय छोड़ अपनी मंजिल की राह पकड़ी। पैदल कष्ट साध्य सफ़र करते हुए भटिंडा, अबोहर होते हुए फाजिल्का पहुँच गए. गुरुग्रंथ के पाठी एक सिख सज्जन और भगत राम डाबड़ा के जरिये अध्ययन हेतु उदासी पंथ के महंत कुशलदास जी के डेरे में पहुंचे। बीरमा ने संस्कृत पढ़ने का मंतव्य जाहिर किया तो उन्होंने अमृतसर जाने की सलाह दी. लेकिन साथ ही यह भी नसीहत दी कि जाट को कोई संस्कृत नहीं पढ़ायेगा। इसलिए आपको संस्कृत सीखनी हो तो साधू बनना पड़ेगा। बीरमा के मन में साधुओं के प्रति आशंका थी फिर भी संस्कृत सीखने के लिए सब कुछ त्याग दिया और संत कुशलदास जी के चेले बन कर सन 1904में उदासीन सम्प्रदाय में साधू का रूप धारण किया।[1]

Population

Notable Persons

  • चौ. भगवानदास स्याग पुत्र चौ. गणेषदास स्याग झूंमियांवाली[3]
  • चौ.ओमप्रकाश सियाग (भूतपूर्व सरपंच)
  • Chaudhary Sohan Lal Sihag (Ex.Sarpanch)

External Links

References

  1. स्वामी केशवानंद, लेखक - डॉ. डी. सी. सारण, प्रकाशक - किशनसिंह फौजदार: जयपाल एजेंसीज दहतोरा आगरा-7, सन् 1985,p.9
  2. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.166
  3. http://www.swamikeshwanand.com/Donors%20List.aspx sn 410

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