Kanheri

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Kanheri (कन्हेरी) is place located to the north of Borivali on the western outskirts of Mumbai, the capital city of Maharashtra. It is known for Kanheri Caves, which constitute a group of rock-cut monuments that are located to the north of Borivali on the western outskirts of Mumbai, the capital city of Maharashtra.

Variants

  • Kanheri (कन्हेरी) (उत्तर कोंकण, महा.) (AS, p.132)
  • Krishnagiri (कृष्णगिरि पहाड़ी) (उत्तर कोंकण, महा.) (AS, p.220)
  • Kanheri Caves

Location

Located within the forests of the Sanjay Gandhi National Park, the caves are 6 km from the main gate and 7 km from Borivali Station.

Origin of name

Kanheri comes from the Sanskrit Krishnagiri, which means black mountain.[1] They were chiseled out of a massive basaltic rock outcropping.[1]

History

These caves date from the first century BCE to the 10th century CE. One hundred and nine caves have been carved from the basalt. Unlike the elegant splendor of the adjacent Elephanta Caves, the earlier cells are spartan and unadorned. Each cave has a stone plinth for a bed. A congregation hall with huge stone pillars contains the stupa, a Buddhist shrine. Farther up the hill are canals and cisterns, the remains of an ancient system that channeled rainwater into huge tanks. Once the caves were converted to permanent monasteries, the rock was carved with intricate reliefs of Buddha and the Bodhisattvas. Kanheri had become an important Buddhist settlement on the Konkan coast by the 3rd century CE.[2]

Most of the caves are used as the Buddhist viharas, meant for living, studying, and meditating. The larger caves were chaityas, or halls for congregational worship; are lined with intricately carved Buddhist sculptures, reliefs and pillars; and contain rock-cut stupas for congregational worship. The Avalokiteshwara is the most distinctive figure. The large number of viharas demonstrates the well organized establishment of Buddhist monks.

This establishment was also connected with many trade centers, such as the ports of Sopara, Kalyan, Nasik, Paithan and Ujjain. Kanheri was a University center by the time the area was under the rule of the Mauryan and Kushan empires.[3] In the late 10th century, the Buddhist teacher Atisha (980–1054) came to the Krishnagiri Vihara to study Buddhist meditation under Rahulagupta.[4]

कन्हेरी

विजयेन्द्र कुमार माथुर[5] ने लेख किया है ...कन्हेरी (AS, p.132) उत्तर कोंकण, महाराष्ट्र में स्थित है। पश्चिम रेलवे के बोरीवली स्टेशन से एक मील पर कृष्णगिरि पहाड़ी में तीन प्राचीन गुहा मंदिर है, जिनका सम्बंध शिवोपासना से जान पड़ता है। एक गुफ़ा में अनेक मूर्तियाँ आज भी देखी जा सकती हैं। बोरीवली स्टेशन से पांच मील पर कन्हेरी है, जो कृष्णगिरि पहाड़ी का एक भाग है। 'कन्हेरी' शब्द कृष्णगिरि का अपभ्रंश है। यहां 9वीं शती ई. की बनी हुई लगभग 109 गुफ़ाएं हैं, पर उल्लेखनीय केवल एक ही है जो काली के चैत्य के अनुरूप बनाई गई है। इस चैत्यशाला में बौद्ध महायान सम्प्रदाय की सुंदर मूर्तिकारी है। गुफ़ा की भित्तियों पर अजंता के समान ही चित्रकारी भी थी, जो अब प्रायः नष्ट हो चुकी है।

कृष्णगिरि

विजयेन्द्र कुमार माथुर[6] ने लेख किया है ...

1. कृष्णगिरि पहाड़ी (AS, p.220): उत्तर कोंकण, महाराष्ट्र में स्थित है। पश्चिम रेलवे के बोरीवली स्टेशन से एक मील पर कृष्णगिरि पहाड़ी में तीन प्राचीन गुहा मंदिर है. बोरीवली स्टेशन से पांच मील पर कन्हेरी है, जो कृष्णगिरि पहाड़ी का एक भाग है। 'कन्हेरी' शब्द कृष्णगिरि का अपभ्रंश है।

2. कृष्णगिरि पहाड़ी (AS, p.220) = हिंदुकुश से लगा हुआ काराकोरम पहाड़. कृष्णगिरि का वायु पुराण 36 में वर्णन है.

कन्हेरी परिचय

कन्हेरी पश्चिमी भारत के दरी मंदिरों में से एक है। कन्हेरी का यह मंदिर मुम्बई से लगभग 25 मील दूर सालसेट द्वीप पर अवस्थित पर्वत की चट्टान काटकर बनाया गया बौद्धों का चैत्य है।

चैत्य गृह: कन्हेरी का चैत्य गृह अपनी कई विशिष्टताओं के कारण प्रसिद्ध है। हीनयान संप्रदाय का यह चैत्य मंदिर आंध्र सत्ता के प्राय: अंतिम युगों में दूसरी शती ई. के अंत में निर्मित हुआ था। यह बना प्राय: कार्ले की परंपरा में ही हैं, उसी का सा इसका चैत्य हाल है, उसी के से स्तंभों पर युगल आकृतियाँ इसमें भी बैठाई गई हैं। दोनों में अतंर मात्र इतना है कि कन्हेरी की कला उतनी प्राणवान और शालीन नहीं, जितनी कार्ले की है।

कार्ले की गुफ़ा से इसकी गुफ़ा कुछ छोटी है। लगभग एक तिहाई छोटी यह गुफ़ा अपूर्ण भी रह गई है। इसकी बाहरी दीवारों पर जो महात्मा बुद्ध की मूर्तियाँ बनी हैं, उनसे स्पष्ट है कि इस पर महायान संप्रदाय का भी बाद में प्रभाव पड़ा और हीनयान उपासना के कुछ काल बाद बौद्ध भिक्षुओं का संबंध इससे टूट गया था, जो गुप्त काल आते-आते फिर जुड़ गया। यद्यपि यह नया संबंध महायान उपासना को अपने साथ लिए आया, जो बुद्ध और बोधिसत्वों की मूर्तियों से प्रभावित है। इन मूर्तियों में बुद्ध की एक मूर्ति 25 फुट ऊँची है।

संरचना: कन्हेरी के चैत्य मंदिर की संरचना प्राय: इस प्रकार है- चतुर्दिक फैली वन संपदा के बीच बहती जलधाराएँ, जिनके ऊपर उठती हुई पर्वत की दीवार और उसमें कटी कन्हेरी की गहरी लंबी गुफ़ा। बाहर एक प्रांगण नीची दीवार से घिरा है, जिस पर मूर्तियाँ बनी हैं और जिससे होकर एक सोपान मार्ग चैत्य द्वार तक जाता है। दोनों ओर द्वारपाल निर्मित हैं और चट्टानी दीवार से निकली स्तंभों की परंपरा बनती चली गई है। कुछ स्तंभ अलंकृत भी हैं। स्तंभों की संख्या 34 है और समूची गुफ़ा की लंबाई 86 फुट, चौड़ाई 40 फुट और ऊँचाई 50 फुट है। स्तंभों के ऊपर की नर-नारी-मूर्तियों को कुछ लोगों ने निर्माता दंपति होने का भी अनुमान किया है, जो संभवत: अनुमान मात्र ही है। कोई प्रमाण नहीं, जिससे इनको इस चैत्य का निर्माता माना जाए। कन्हेरी की गणना पश्चिमी भारत के प्रधान बौद्ध दरी मंदिरों में की जाती है और उसका वास्तु अपने द्वार, खिड़कियों तथा मेहराबों के साथ कार्ले की शिल्प परंपरा का अनुकरण करता है।

संदर्भ: भारतकोश-कन्हेरी

Jat History

दलीप सिंह अहलावत[7] लिखते हैं: शाल्व-शिलाहार-सालार - महाभारतकाल में भारतवर्ष में इस चन्द्रवंशी जाटवंश के दो जनपद थे (भीष्मपर्व, अध्याय 9)। महाभारत युद्ध में शाल्व सैनिक दुर्योधन की ओर होकर पाण्डवों के विरुद्ध लड़े थे (भीष्मपर्व)। महाभारत विराट पर्व 1-9 और वनपर्व 12-33 में शाल्व वंश का वर्णन मिलता है।

इन शाल्वों की राजधानी सौभनगर समुद्रकुक्षि थी। श्रीकृष्ण जी ने दैत्यपुरी के नाम से प्रसिद्ध सौभनगरी के नरेश का दमन किया था। काशिकावृत्ति 4-2-76 के अनुसार एक वैधूमाग्नि नगरी भी इसी वंश की थी जिसका विधूमाग्नि नामक राजा था। सौभपुराधिपति राजा शिशुपाल का किसी नाते का भाई था (वनपर्व 15-13)। द्वापरान्त में यह वंश 6 भागों में बंट गया था (काशिकावृत्ति 4-1-17)। आठवीं शताब्दि तक इनकी प्रगति लुप्त रही।

843 ई० में बम्बई प्रान्त के थाना जिले में कृष्णागिरि से प्राप्त शिलालेख से प्रमाणित होता है कि थाना जिले पर 800 ई० से 1300 ई० तक इस वंश का राज्य रहा। ये महामण्डलेश्वर क्षत्रिय शिखाचूड़ामणि कहलाते थे। मराठों के सुप्रसिद्ध 96 कुलों में और राजस्थान के ऐतिहासिकों ने 36 राजवंशों में इस वंश की गणना करते हुए चन्द्रवंशी यादवकुलीन लिखा है। इस वंश के 11 राजाओं ने गुजरात पर शासन किया। इसके बाद सिद्धराज जयसिंह सोलंकी ने अनहिलवाड़ा पाटन में शासन स्थिर करके इनको गुजरात से निकाल दिया। (जाटों का उत्कर्ष पृ० 339, लेखक कविराज योगेन्द्रपाल शास्त्री)।

गोत्र का विस्तार: ये लोग शाल्व के स्थान पर सालार-सिलार भी भाषा भेद से प्रसिद्ध हुए। वर्तमान क्षत्रियों में इस वंश का अधिकांश भाग जाटों में पाया जाता है।

सहारनपुर में थितकी,

बिजनौर में सुवाहेड़ी, बहोड़वाला, नयागांव, हमीदपुर, जमालपुर आदि सालार जाटों के गांव हैं।

कहीं-कहीं शाल्व से सेल भी अपभ्रंश हुआ जिनमें बिजनौर जिले के सेह और हुसैनपुर गांव हैं। सेल जाट राजस्थान में कई स्थानों में बसे हुए हैं।

Kanheri Cave Inscriptions

Nearly 51 legible inscriptions and 26 epigraphs are found at Kanheri, which include the inscriptions in Brahmi, Devanagari and 3 Pahlavi[8] epigraphs found in Cave 90.[9] One of the significant inscriptions mentions about the marriage of Satavahana ruler Vashishtiputra Satakarni with the daughter of Rudradaman I.[10]

References

  1. Mumbai's Ancient Kanheri Caves
  2. Mumbai : Kanheri Caves
  3. Kanheri Caves
  4. Ray, Niharranjan (1993). Bangalir Itihas: Adiparba in Bengali, Calcutta: Dey's Publishing, ISBN 81-7079-270-3, p.595
  5. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.132
  6. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.220
  7. जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठ-297
  8. West, E.W. (1880). "The Pahlavi Inscriptions at Kaṇheri". The Indian Antiquary 9: 265–268.
  9. Ray, H.P. (2006). Inscribed Pots, Emerging Identities in P. Olivelle ed. Between the Empires: Society in India 300 BCE to 400 CE, New York: Oxford University Press, ISBN 0-19-568935-6, p.127
  10. "A Note on Inscriptions in Bombay". Maharashtra State Gazetteers-Greater Bombay District. Government of Maharashtra. 1986.