Kanwar Pal Kaswan

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Kanwar Pal Kaswan (कंवरपाल कस्वां) was a Jat ruler of ancient Jangladesh region in Rajasthan.

Origin

According to Bhat records descendants of Kansu Pal are called Kaswan.

Introduction

The ancestor of Kaswans , Kansu Pal Kaswan won Sidhmukh from Johiyas on 19 August 1068 and Satyun from Chauhans on 18 February 1094.

According to James Todd the republic of Kaswan Jats in Jangladesh, whose chief was Kanwar Pal Kaswan having 360 villages in his state with capital at Sidhmukh . The districts included in his state were Satyun, Lalasar. [1]

राजा खारवेल और कुसवां

किशोरी लाल फौजदार ने जाट समाज पत्रिका आगरा (Jan/Feb-2001. p.6) में कुसवां गोत्र के इतिहास में लिखा है कि इस वंश का नाम कुशन, कुसवान-कुसवां भी मशहूर हुआ है। राजा खारवेल के एक लेख में विक्रम की दूसरी शताब्दी में कुसवांओं का उल्लेख है। जिसको 'हाथीगुंफा एंड थ्री अदर इन्स्क्रिप्शंस' (Hathigumpha and three Other Inscriptions) के पृष्ठ 24 पर इस प्रकार लिखा है- 'कुसवानाम् क्षत्रियानां च सहाय्यतावतां प्राप्त मसिक नगरम्'। इस वंश ने राज्यविहीन होकर पश्चिमोत्तर भारत से राजस्थान में आकर बीकानेर की प्राचीन भूमि पर अपना प्रभुत्व प्रजातंत्री रूप से कायम किया था। बीकानेर स्थापना से पहले इनका राजा कुंवरपाल था।

कंवरपाल कस्वां का इतिहास

चूरू जनपद के जाट इतिहास पर दौलतराम सारण डालमाण[2] ने अनुसन्धान किया है और लिखा है कि पाउलेट तथा अन्य लेखकों ने इस हाकडा नदी के बेल्ट में निम्नानुसार जाटों के जनपदीय शासन का उल्लेख किया है जो बीकानेर रियासत की स्थापना के समय था।

क्र.सं. जनपद क्षेत्रफल राजधानी मुखिया प्रमुख ठिकाने
6. कस्वां पट्टी 360 गाँव सिद्धमुख कंवरपाल कस्वां सात्यूं ,लालासर


सीधमुख राजगढ़ तहसील में चुरू से 45 मील उत्तर-पूर्व में बेणीवालों की राजधानी रायसलाना से 18 मील दक्षिण-पूर्व में स्थित है. कर्नल टाड ने यद्यपि जाटों की कसवा शाखा का उल्लेख जाटों के प्रमुख ठिकानों में नहीं किया है लेकिन दयालदास, पाऊलेट, मुंशी सोहन लाल आदि ने कसवा जाटों को प्रमुख ठिकानों में गिना है. उनके अनुसार कसवां जाटों का प्रमुख ठिकाना सीधमुख था और राठोडों के आगमन के समय कसवां कंवारपल उनका मुखिया था तथा 400 गाँवों पर उसकी सत्ता थी.[3]

कसवां जाटों के भाटों तथा उनके पुरोहित दाहिमा ब्रह्मण की बही से ज्ञात होता है की कंसुपाल पड़िहार संघ में सम्मिलित था। वह 5000 फौज के साथ मंडोर छोड़कर पहले तालछापर पर आए, जहाँ मोहिलों का राज था. कंसुपाल ने मोहिलों को हराकर छापर पर अधिकार कर लिया. इसके बाद वह आसोज बदी 4 संवत 1125 मंगलवार (19 अगस्त 1068) को सीधमुख आया. वहां रणजीत जोहिया राज करता था जिसके अधिकार में 125 गाँव थे. लड़ाई हुई जिसमें 125 जोहिया तथा कंसुपाल के 70 लोग मारे गए. इस लड़ाई में कंसुपाल विजयी हुए. सीधमुख पर कंसुपाल का अधिकार हो गया और वहां पर भी अपने थाने स्थापित किए. सीधमुख विजय के बाद कंसुपाल सात्यूं (चुरू से 12 कोस उत्तर-पूर्व) आया, जहाँ चौहानों के सात भाई (सातू, सूरजमल, भोमानी, नरसी, तेजसी, कीरतसी और प्रतापसी) राज करते थे. कंसुपाल ने यहाँ उनसे लड़ाई की जिसमें सातों चौहान भाई मरे गए. चौहान भाइयों की सात स्त्रियाँ- भाटियाणी, नौरंगदे, पंवार तथा हीरू आदि सती हुई. कंसुपाल की संतान कसवां कहलाई. फाल्गुन सुदी 2 शनिवार, संवत 1150, 18 फरवरी, 1094, के दिन कंसुपाल का सात्यूं पर कब्जा हो गया. फ़िर सात्यूं से कसवां लोग समय-समय पर आस-पास के भिन्न-भिन्न स्थानों पर फ़ैल गए और उनके अपने-अपने ठिकाने स्थापित किए. [4] [5]

ज्ञानाराम ब्रह्मण की बही के अनुसार कंसुपाल के बाद क्रमशः कोहला, घणसूर, महसूर, मला, थिरमल, देवसी, जयसी और गोवल सीधमुख के शासक हुए. गोवल के 9 लडके थे- चोखा , जगा, मलक, महन, ऊहड, रणसी, भोजा और मंगल. इन्होने अलग अलग ठिकाने कायम किए जो इनके थाम्बे कहे जाते थे.

भाटों की बही के अनुसार कंसुपाल के एक वंशज चोखा ने संवत 1485 माघ बदी 9 शुक्रवार (31 दिसम्बर 1428) को दूधवाखारा पर अधिकार कर लिया. [7]

विक्रम की 16 वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में अन्य जाट राज्यों के साथ कसवां जाटों के राज्य को भी राठोडों ने अधिकृत कर लिया. यद्यपि मूल रूप में कसवां जाटों के प्रमुख सीधमुख के कंवरपाल ने राठोडों की अधीनता ढाका युद्ध के बाद ही स्वीकार कर ली थी, लेकिन हो सकता है कि बाकी कस्बों के स्थानीय ठिकानों पर छोटे-मोटे भूस्वामी काबिज बने रहे हों, जिन्हें हराकर राठोडों ने शनैः शनैः उन सब ठिकानों पर अधिकार कर लिया. [8] [9]


ठाकुर देशराज [10] लिखते हैं कि आरम्भ में यह सिन्ध में राज्य करते थे। ईसा की चौथी सदी से पहले जांगल-प्रदेश में आबाद हुए थे। इनके अधिकार में लगभग चार सौ गांव थे। सीधमुख राजधानी थी। राठौरों से जिस समय युद्ध हुआ, उसय समय कंवरपाल नामी सरदार इनका राजा था। इस वंश के लोग धैर्य के साथ लड़ने में बहुत प्रसिद्ध थे। कहा जाता है दो हजार ऊंट और पांच सौ सवार इनके प्रतिक्षण शत्रु से मुकाबला करने के लिए तैयार रहते थे। यह कुल सेना राजधानी में तैयार न रहती थी। वे उत्तम कृषिकार और श्रेष्ठ सैनिक समझे जाते थे। राज उनका भरा-पूरा था। प्रजा पर कोई अत्याचार न था। सत्रहवीं शताब्दी में इनका भी राज राठौंरों द्वारा अपहरण कर लिया गया। इनके पड़ौस में चाहर भी रहते थे। राजा का चुनाव होता था, ऐसा कहा जाता है। चाहरों की ओर से एक बार मालदेव नाम के उपराजा का भी चुनाव हुआ था।

External Links

References

  1. James Todd, Annals of Bikaner, p. 139
  2. 'धरती पुत्र : जाट बौधिक एवं प्रतिभा सम्मान समारोह, साहवा, स्मारिका दिनांक 30 दिसंबर 2012', पेज 8-10
  3. Dr Pema Ram, The Jats Vol. 3, ed. Dr Vir Singh,Originals, Delhi, 2007 p. 203
  4. गोविन्द अग्रवाल, चुरू मंडल का शोधपूर्ण इतिहास, पेज 115-116
  5. Dr Pema Ram, The Jats Vol. 3, ed. Dr Vir Singh,Originals, Delhi, 2007 p. 203-204
  6. सात्यूं के ब्राहमण ज्ञानाराम की बहीहस्तलिखित्) , पेज 10-16 गोविन्द अग्रवाल, चुरू मंडल का शोधपूर्ण इतिहास, पेज 116
  7. Dr Pema Ram, The Jats Vol. 3, ed. Dr Vir Singh,Originals, Delhi, 2007 p. 203
  8. गोविन्द अग्रवाल, चुरू मंडल का शोधपूर्ण इतिहास, पेज 116-117
  9. Dr Pema Ram, The Jats Vol. 3, ed. Dr Vir Singh,Originals, Delhi, 2007 p. 205
  10. जाट इतिहास:ठाकुर देशराज,पृ.-620

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