Kundina

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Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Location of Kaundinyapur in Amravati district

Kundina (कुंडिन) or Kaundinyapura is an ancient Indian city, named as part of Kanishka's territory in the Rabatak Inscription[1]. Kaundinyapur or Kaundanyapur is a village in Amravati District in the state of Maharashtra, India, thought to be the site of Kundinapuri, ancient capital of the legendary Vidarbha Kingdom.

Location

Kaundinyapura is located on the Wardha River in the Amravati Division of Vidarbha, or Berar in Maharashtra.[2]

Variants

Origin

It is named after the sage Kaundinya, who performed a 'tapasya. [3]

Jat clans

  • Kundu (कुण्डू)

Mention by Panini

Kundina (कुंडिन) is a place name mentioned by Panini in Ashtadhyayi under Kattryadi (कत्र्य्रादि) (4.2.95) group. [5]


Kundya (कुण्ड्या) is a place name mentioned by Panini in Ashtadhyayi under Kattryadi (कत्र्य्रादि) (4.2.95) group. [6]

History

It is an archaeological site identified as a trading city during the Early Historic period (c. 3rd century BCE to 4th century CE).

The state archaeological department conducted excavations at Kaundinyapur to "ascertain its antiquity". The dig revealed traces of the rampart of the ancient city. "The stone, foundation and brick walls of what appeared to be a palatial building, probably of the 14th or 15th century AD, have also been discovered," the report adds.[7]

An information board at the temple also says that remains from the Copper Age and Stone Age are believed to have been at Kaundinyapur. The ancient nature of the site also finds mention in the Hyderabad Gazette.[8]

In Mahabharata

Rukmi, the king of Vidarbha, wanted his sister Rukmini to be married by the Chedi king Shishupala, but she was in love with Vasudeva Krishna. Krishna abducted Rukmini against the will of Rukmi. Then king Rukmi left the capital of Vidarbha, viz Kundinapuri and chased Krishna. He pledged that he will not return to his capital without Rukmini. But he was defeated by Krishna's army.[9] Rukmi kept his promise by constructing another capital for Vidarbha, to the west of Kundinapuri called Bhojakata. Since then he started ruling from this new capital. He never returned to Kundinapuri.

कुंडिन-कुंडिनपुर-कौण्डिन्यपुर

विजयेन्द्र कुमार माथुर[10] ने लेख किया है ...कुंडिन = कुंडिनपुर = कौण्डिन्यपुर (चांडुर तालुका, जिला अमरावती, महा.) (AS, p.194) - [p.194]: यह उत्तर-वैदिक तथा महाभारत के समय का नगर है. बृहदारण्यक उपनिषद् में विदर्भी कौण्डिन्य नामक एक ऋषि का उल्लेख है. कौण्डिन्य, कुंडिनपुर निवासी के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है.

महाभारत में विदर्भ देश के राजा भीम का उल्लेख है जिसकी राजधानी कुंडिनपुर में ही थी-- 'स भीमवचनाद् राजा कुंडिन प्राविशत पुरं, नादयन् रथघोषेण सर्वा: स: विदिशोदिश:' महाभारत वनपर्व 73,2 (नलोपाख्यान). रुक्मिणी विदर्भराज की कन्या थी और कुंडिनपुर से ही कृष्ण उसे उसकी प्रणयाचना के परिणामस्वरुप अपने साथ द्वारका ले गए थे--'आरुह्य स्यन्दनं शौरिर्द्विजमारोप्य तूर्णगै: आनर्तादेक-रात्रेण विदर्भानगमद्वयै:' श्रीमद् भागवत 10,53,6. अर्थात रथ में चढ़कर श्रीकृष्ण तेज घोड़ों के द्वारा आनर्त (द्वारका) से विदर्भ देश एक ही रात में जा पहुंचे. 'राजा स कुंडिनपति: पुत्र-स्नेह वशंगत: शिशुपालाय स्वांकन्यां दास्यन् कर्माण्यकारयत्' श्रीमद्भागवत 10,53,7 अर्थात कुंडिनपति भीम ने अपने पुत्र रुक्मि के प्रेम के वश में होने के कारण उसके कहने के अनुसार रुक्मिणी के शिशुपाल के साथ विवाह की तैयारियां कर ली थी. आगे (10,53,21) भी कुंडिन का उल्लेख है. कालिदास ने रघुवंश, सर्ग 6 में इंदुमती के स्वयंवर का विदर्भ देश की राजधानी कुंडिन ही में होना बताया है. इन्दुमति को कालिदास ने विदर्भराज भोज की बहन और विदर्भ-राज को कुंडिनेश कहा है--

'तिस्त्रस्त्रीलोकप्रथितेन सार्धमजेन मार्गे वसती-रुषित्वा तस्माद्पावर्तत कुंडिनेश: पर्वात्यये सोमइवोष्ण रश्मे:' रघुवंश 7,33. अर्थात कुंडिनेश भोज, इंदुमती के विवाह के पश्चात अपने देश को लौटते हुए त्रिलोक-प्रसिद्ध राजकुमार अज के साथ मार्ग में तीन रात्रि बिताकर अपनी राजधानी-कुंडिनपुर-लौट आए जैसे अमावश्य के पश्चात चंद्रमा सूर्य के पास से लौट आता है.

कुंडिनपुर वर्धा नदी के तट पर स्थित है (देखें अमरावती गजटियर, जिल्द-ए, पृ.406). इसका वर्तमान नाम कुंडलपुर है. यह स्थान आर्वी (महाराष्ट्र) से 6 मील दूर है. कुंडलपुर के पास ही भगवती अंबिका का प्राचीन मंदिर एक टीले पर अवस्थित है. किंवदंती है कि यह मंदिर उसी प्राचीन मंदिर के स्थान पर है जहां से देवी रुक्मणी श्रीकृष्ण के साथ छिपकर चली गई थी. इस स्थान को जो वर्धा- प्राचीन वरधा- के तट पर स्थित है आज भी तीर्थ रूप में मान्यता प्राप्त है. नगर के बाहर प्राचीन दुर्ग के ध्वंसावशेष हैं जिनमें अनेक मंदिरों के खंडहर भी अवस्थित हैं. दशावतार की एक प्रतिमा पर विक्रम संवत 1496 (1439 ई.) का एक लेख है जिससे ज्ञात होता है कि इस मूर्ति का निर्माण किसी व्यापारी ने विधापुर में करवाया था. कौण्डिन्यपुर में

[p.196] और भी अनेक मूर्तियाँ, विशेषकर कृष्ण लीला से संबंधित, प्राप्त हुई हैं. इन की आकृतियां तथा वेशभूषा की शैली अधिकांश में महाराष्ट्रीय हैं. रुक्मणी के पिता भिष्मक के समय ही में भोजकट नामक एक नया नगर कुंडिनपुर के निकट ही बस गया था. (देखे भोजकट)

भोजकट

विजयेन्द्र कुमार माथुर[11] ने लेख किया है ...भोजकट (AS, p.679): महाभारत में भोजकट विदर्भ देश के राजा भीष्मक की राजधानी बताया गया है। इसे तथा इसके पुत्र रुकमी को सहदेव ने दक्षिण दिशा को दिग्विजय यात्रा में दूत भेजकर मित्र बना लिया था-- 'सुराष्ट्र विषयस्य च प्रेषयाम् आस रुक्मिणे, राज्ञे भॊजकटस्थाय महामात्राय धीमते, भीष्मकाय स धर्मात्मा साक्षाद इन्द्र सखाय वै, स चास्य प्रतिजग्राह ससुत: शासनं तदा'-- महाभारत सभापर्व 31, 62-63-64. इससे पहले (सभा पर्व 31,11) सहदेव द्वारा भोजकट की विजय का वर्णन है--'ततॊ रत्नमादाय पुरं भोजकटं ययौ, तत्र युद्धमूभद् राजन् दिवसंद्वयमच्युत'। श्री कृष्ण की महारानी [Rukmini|रुक्मिणी]] इन्हीं राजा भीष्मक की पुत्री तथा रुक्मी की बहिन थी। उद्योग पर्व 158,14-16 में वर्णित है कि भोजकट [p.680]: (भोजराज के कटक का स्थान) उसी जगह बताया गया था जहां विदर्भ की राजकुमारी रुक्मिणी को हरने के पश्चात श्रीकृष्ण ने उसके भाई की सेनाओं को हराया था--'यत्रैव कृष्णेन् रणे निर्जित: परवीरहा, तत्र भोजकटं नाम कृतं नगरमुत्तम्, सैन्येन् महता तेन प्रभुत गजवाजिना पुरंतद् भूविख्यातं नाम्ना भोजकटं नृप'. विदर्भ की प्राचीन राजधानी कुंडिनपुर में थी। हरिवंश पुराण (विष्णुपर्व 60,32) के अनुसार भी भोजकट की स्थिति विदर्भ देश में थी। यह नगर वाकाटक नरेशों का मूल निवास स्थान भी था. वाकाटक नरेश प्रवरसेन द्वितीय (c.400 - 415) के चम्मक दान-पट्ट लेख से स्पष्ट है कि भोजकट प्रदेश में विदर्भ इलिचपुर जिला सम्मिलित था। (देखें जर्नल ऑफ दी रॉयल एशियाटिक सोसाइटी, 1914, पृष्ठ 329) विंसेंट स्मिथ के अनुसार भोजकट का अर्थ 'भोज का किला' है (डियन एंटिक्वरी, 1923, पृ. 262-263) भोजकट का अभिज्ञान कुछ लोगों ने धार (मध्य प्रदेश) से 24 मील दूर स्थित भोपावर नामक कस्बे से किया है। विदर्भ के शासकों का सामान्य नाम भोज था जैसा कि कालिदास के रघुवंश के सातवें सर्ग के अंतर्गत इंदुमती के स्वयंवर के प्रसंग से भी स्पष्ट है--'इति स्वसुर्भोजकुलप्रदीपः संपाद्य पाणिग्रहणं स राजा' रघुवंश 7,29. अशोक के शिलालेख संख्या 13 में भी दक्षिण के भोज नरेशों का उल्लेख है। (देखें कुंडिनपुर, भोपावर)।

External links

See also

References

  1. "Ancient Indian Inscription", S.R.Goyal, 2005
  2. Amravati Gazetteer, Vol-A, p.406)
  3. 'The rebirth of Kaundinyapur' Times of India, Nagpur, 1.12.2013
  4. Dr Mahendra Singh Arya etc,: Ādhunik Jat Itihas, Agra 1998, p. 231
  5. V. S. Agrawala: India as Known to Panini, 1953, p.508
  6. V. S. Agrawala: India as Known to Panini, 1953, p.508
  7. 'The rebirth of Kaundinyapur' Times of India, Nagpur, 1.12.2013
  8. 'The rebirth of Kaundinyapur' Times of India, Nagpur, 1.12.2013
  9. Gopal, Madan (1990). K.S. Gautam (ed.). India through the ages. Publication Division, Ministry of Information and Broadcasting, Government of India. p. 78.
  10. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.194-196
  11. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.679