Khyali Singh Godara

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Khyali Ram Godara (चौधरी खयालीसिंह गोदारा), from ----, Bikaner, was a Social worker in Bikaner, Rajasthan. He was the first Jat Minister in Bikaner.[1]

जाट जन सेवक

ठाकुर देशराज[2] ने लिखा है ....चौधरी ख्याली सिंह - [पृ.157]: हमारा उनसे कितना ही मतभेद क्यों न हो किंतु यह मानना पड़ेगा चौधरी ख्यालीसिंह जी एक विशिष्ट व्यक्तित्व के आदमी हैं। उनके ही अनुरूप उनकी द्वितीय धर्मपत्नी हैं।

गोदारों ने सर्वप्रथम जांगल देश में अपनी राजसत्ता खोई थी और खयाली सिंह जी गोदारा को यह अवसर मिला कि वे बीकानेर के प्रथम जाट मिनिस्टर बने और केवल अपने कौशल से।

वे जाट महासभा की कार्यकारिणी के मेंबर रहे हैं। पक्के जाट हैं किंतु समिष्ट की बजाय वह व्यक्तिगत स्वार्थों से ऊंचे नहीं उठ सके। यही उनकी कमजोरी है।

आपने मिनिस्टर होने से पहले रायसिंहनगर में वकालत की थी। उसके बाद बीकानेर की प्रजा परिषद में काम किया।

जीवन परिचय

ठाकुर देशराज[3] ने लिखा है .... कोई आदमी भावनाओं से अपनी कौम की खिदमत करता है। कोई सर्वस्व त्यागकर। चौधरी मुखराम जी की आंतरिक भावना सदैव अपने कौम को ऊंचा देखने की रही है और शिक्षा कार्य में उन्होंने तथा उनके पुत्र भीम सिंह जी ने दान भी दिया किंतु उन्होंने सामने आने की कभी हिम्मत नहीं की। वह सरकारी सर्विस में जब से आए बराबर तरक्की की। कहना चाहिए कि जहां तक एक मुलाजिम अपनी योग्यता से बढ़ सकता है। बड़े तहसीलदार से नाजिम और फिर रेवेन्यू सेक्रेटरी के पद पर पहुंचे। जिन दिनों चौधरी ख्यालीराम गोदारा बीकानेर दरबार ने पॉपुलर मिनिस्ट्री में लिए थे। वे रेवेन्यू सेक्रेटरी थे। एक सच्चे सबार्डिनेट की स्थिति से उन्होंने ड्यूटी पूरी की।

रायसिंहनगर का जलसा

गणेश बेरवाल [4] ने लिखा है ...– रायसिंहनगर के जलसे में बिकानेर डिवीजन के बहुत से आदमी शामिल थे। यह सबसे बड़ा जलसा था। यह इलाका पंजाब से आए सरदारों- सिखों का था। इस जलसे में हजारों आदमियों ने भाग लिया। लोगों में भारी जोश था। सरदार अमर सिंह जलसे के संचालक थे। इस जलसे में मास्टर बेगाराम जी (अबोहर), पंजाब कांग्रेस के प्रधान पंडित जी, रामचन्द्र जैन, चौधरी ख्यालीराम गोदारा, आदि प्रमुख थे। जब मोहर सिंह जलसे में बोल रहे थे तभी जनता बहुत उत्साहित थी कि इतने में दुधवा खारा के किसान नेता हनुमान सिंह के बड़े भाई बेगा राम बीकानेर जेल से रिहा होकर समय पर जलसे में पहुँच गए। हमने उनसे कहा कि दुधवा खारा जाकर अपने बच्चों को संभालो, जलसा तो चलता रहेगा हम संभाल लेंगे। बेगाराम दुधवा खारा जाने की मंशा से रेलवे स्टेशन पर टिकट लेने आए। उनके हाथ में तिरंगा झण्डा था, जो कि महाराजा के आदेश से सभा मंच के सिवाय बाहर लगाना प्रतिबंधित था। पुलिस झंडे सहित बेगा राम पर टूट पड़ी और घसीट कर रेस्ट हाउस ले आए। वहाँ उसे लेटाकर उसकी छाती पर दो लठियाँ रखकर दो पुलिस वाले बैठ गए। इधर सारे घटनाक्रम को एक साधू पैनी नजर से देख रहा था । वह भाग कर स्टेज पर आया और कहा कि आपके एक आदमी को पुलिस रेस्ट हाऊस में बुरी तरह


[p.58]: पीट रही है। यह सुनकर दसों हजार आदमी खड़े हो गए और सारे जलसे में गुस्से की लहर दौड़ गई। सभी आदमी रेस्ट हाऊस की तरफ दौड़ पड़े। इस मौके पर राजगढ़ तहसील से 84 आदमी जलसे में गए हुये थे।

बीरबल मोची की सहादत: जलसे में श्री गंगानगर का रहने वाला बीरबल जो रायसिंहनगर में ब्याहा था, वो भी जलसे में आया हुआ था। इस सारे घटनाक्रम को देखकर उससे रुका नहीं गया, अतः वह रेस्ट हाऊस में घुस गया तथा कोने में पड़े हुये तिरंगे झंडे को उठाकर पुलिस से धक्का मुक्की करते हुये बाहर आ गया। इधर सादुलसिंह इन्फेंट्री ने, जो रेस्ट हाऊस से पश्चिम की तरफ ठहरी हुई थी, खतरे की सीटी सुनकर दीवार फांद कर रेस्ट हाऊस में आकर मोर्चा ले लिया। जो आदमी जलसे में राजगढ़ से आए उनसे चार कदम पश्चिम की तरफ चौधरी जीवन राम कडवासरा, उनसे पश्चिम की तरफ नोरंगराम (हमीरवास) तथा उनसे पश्चिम तरफ गाड़ी के पास चौधरी भादरा वाले खड़े हो गए। इतने में 17 गोलियां चली और रेस्ट हाऊस से झण्डा लेकर आते हुये बीरबल की जांघ में एक गोली लगी कि तत्काल ही उनका मुंह स्टेशन की तरफ फिर गया, तभी दूसरी गोली दूसरी जांघ में आकार लगी। उस गोली का हमें पता नहीं लगा, इतने में गोलियां चलनी बंद हो गई थी। पहली जांघ में जो गोली लगी थी, उसके ऊपर जीवन राम ने अपनी धोती फाड़ कर मरहमपट्टी कर दी, लेकिन दूसरी गोली का हमें पता नहीं लगा क्योंकि उसके ऊपर कमीज था। खून नीचे की ओर बहने लगा। बीरबल को मंच के पास लाया गया। बिहारी लाल कमिश्नर ने डाक्टरों और दूकानदारों को कह रखा था कि इनको कोई सहायता नहीं दी जावे। इलाज के अभाव में शाम 4.30 बजे बीरबल खत्म हो गया। इस सहादत का पता लगा तो चारों तरफ से आकर 15-20 हजार लोग रायसिंह नगर में उमड़ गए। सवेरे जब बीरबल मोची को दाह-संस्कार के लिए शमशान घाट की तरफ ले जाने लगे तभी बीरबल की पत्नी का गंगानगर से तार आया कि जब तक मैं अंतिम दर्शन न करलूँ दाह-संस्कार नहीं करें। सब लोग सकते में पड़ गए। इतने में बीरबल का मामा तथा उसके मामा का बेटा आगे आए और कहने लगे कि इसका दाह संस्कार कर दो, हम दोनों इसके लिए जिम्मेदार हैं।


[p.59]: बीरबल की बहू पहुंची तो उसका स्टेज पर मास्टर तेजराम ने माला डालकर स्वागत किया। वह बोली – "मेरे पति देश के लिए शहीद हो गए हैं मुझे संतोष है। मेरे लिए जमीन व आसमान मिल गए है"।

बीकानेर महाराज ने अपने राज में धारा 144 लगा दी। हम 84 आदमी जब स्टेशन पर पहुंचे तो जगदीश एस. पी. स्टेशन पर खड़े थे। वे हमारे तिरंगे झंडे को देख रहे थे। उन्होने हाथ जोड़कर कहा – “बेटो मेरी शान रखो, झंडे राजा ने माना कर रखे हैं”। मोहर सिंह ने कहा – झण्डा ज्यादा ऊंचा नहीं रखेंगे, कुछ ऊंचा रखकर ही जुलूस निकाल लेंगे और आपकी शान रख देंगे”। इस जलसे का प्रचार कई प्रान्तों में हुआ।

बाहरी कड़ियां

पिक्चर गैलरी

सन्दर्भ

  1. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.157
  2. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.157
  3. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.131
  4. Ganesh Berwal: 'Jan Jagaran Ke Jan Nayak Kamred Mohar Singh', 2016, ISBN 978.81.926510.7.1, p.57-59

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