Kolida
Author:Laxman Burdak, IFS (R) |
Kolida or Kolira (कोलिड़ा) or Koleera (कोलीड़ा) is an ancient village in Sikar tahsil of Sikar district in Rajasthan. Pincode: 332031. Its ancient name, mentioned in Harsha Inscription 961 AD (L-38), was (कोलिकूप)/Kelikupaka (केलिकूपक)/ Kolikupaka (कोलिकूपक).
It is main village of Meel gotra Jats. All Meel Jats have migrated from this village.
Jat Gotras in the village
It is main village of Meel gotra Jats. Jat gotras are
Jat Gotras Namesake
- Koli = Colica (Pliny.vi.5). Kolida is an ancient village in Sikar tahsil of Sikar district in Rajasthan.
Population
As per Census-2011 statistics, Koleera village has the total population of 4467 (of which 2308 are males while 2159 are females).[1]
History
Harshagiri Inscription of 961 AD of Chauhan dynasty mentions Kolira village. The inscription tells us about genealogy of 6 princes of the same distinguished family whose head then held the neighbouring kingdom of Ajmer - the family of the Chauhan dynasty is continued from regularly from father to son starting from Guvaka and terminated in Sinharaja, in whose reign this work appears to have been commenced in AD 961.
The Harsha inscription tells us names of villages which were donated by nearby Chauhan rulers or chieftains from their controlled area to the temple of Shiva at Harsh. Koli Kupakā donated by Jaya-Sri-raja has been identified with Kolida. We reproduce relevant line from verse XLVIII of this inscription:
- "Likewise, the young prince, the blessed Jaya-Sri-raja, religiously bestowed on Harsha-deva, the village of Koli-kūpaka, whose revenues were received by himself."
भोजासर का इतिहास
रामेश्वरसिंह[2] ने लेख किया है.... शहीद करणीराम जी का जन्म माघ शुक्ला सप्तमी संवत 1970 तदनुसार 2 फरवरी सन 1914 को झुंझुनू जिले के ग्राम भोजासर में एक गरीब किसान परिवार में हुआ था।
भोजासर गांव के बसने की निश्चित तिथि असाढ़ बदी 1 संवत 1632 (=1575 ई.) बताई जाती है।
इस गांव को बसाने वाला भोजा नाम का व्यक्ति था जो जाट जाति के मील गोत्र का था। उसके नाम पर इस गांव का नाम भोजासर पड़ा। भोजासर बसाने से पहले भोजा व उनके पूर्वज रोहिली ग्राम में रहते थे । रोहिली गांव झुंझुनू व सीकर के लगभग बीच में स्थित था। सामरिक दृष्टि से इसकी स्थिति बहुत महत्वपूर्ण थी। राजा नवल सिंह ने अपने शासनकाल में यहां एक गढ़ का निर्माण कराया तथा इस गांव का नाम बदलकर नवलगढ़ रख दिया जो कालांतर में झुंझुनू जिले का प्रमुख व्यवसायिक एवं शैक्षणिक केंद्र बन गया । रोहिली गांव में भोजा के पूर्वजों ने एक बावड़ी का निर्माण करवाया था जो कुछ समय पूर्व तक नवलगढ़ में मौजूद थी। नवलगढ़ के बावड़ी गेट का नाम भी इस बावड़ी के कारण है।
सामरिक केंद्र होने के कारण भोजा के पूर्वजों ने शांतिपूर्वक जीवन यापन के लिए रोहिली गांव छोड़ दिया और वर्तमान सीकर जिले के कोलिडा गांव में बस गए। कोलिंडा ग्राम सीकर के अधीन था। इस गांव में अधिकांश मील गोत्र के जाट परिवार रहते थे। सीकर के राव राजा का वहां के जाटों के साथ सदा ही टकराव रहा। दिन प्रतिदिन के अत्याचारों से तंग आकर भोजा ने कोलिंडा गांव भी छोड़ दिया तथा झुंझुनू के कायमखानियों के अधीन किसी क्षेत्र में आकर बस गए जिसे अब भोजासर कहा जाता है।
शेखावाटी किसान आन्दोलन में
किसान आन्दोलन के प्रमुख नेता पृथ्वीसिंह गोठड़ा का कूदन गाँव में सुंडा गोत्र में ब्याह हुआ था. कूदन की धापी दादी पृथ्वी सिंह का बहुत सम्मान करती थी. कूदन काण्ड के पश्चात् पृथ्वी सिंह को गिरफ्तार कर लिया था. उन्हें जयपुर जेल में बंद कर दिया था. रियासत ने पृथ्वी सिंह को मुख्य षड्यंत्रकारी माना था, जिसने सीकर वाटी के किसानों को रावराजा और रियासत के विरुद्ध भड़काया था. कूदन के दो गवाह यदि बयान दे देते कि पृथ्वी सिंह ने किसी को नहीं भड़काया है तो केस काफी कमजोर हो जाता. लेकिन आश्चर्य कि कूदन उनका ससुराल होने के बावजूद कोई गवाह नहीं मिल रहा था, उस शख्स के लिए जिसने अपना सर्वस्व दांव पर लगा दिया था. किन्तु कुछ किसानों के लिए यह अपमानजनक स्थिति थी. उस दिन दिनारपुरा गाँव के काना राम एवं कोलिड़ा के महादा राम धापी दादी के पास आये. इन दोनों ने धापी दादी का उग्र रूप देखा. उन दोनों ने धापी दादी के समक्ष समस्या राखी, 'कूदन गाँव में पृथ्वी सिंह के पक्ष में कोई गवाह नहीं मिल रहा है. उस घर का भी कोई सदस्य तैयार नहीं है, जहाँ पृथ्वी सिंह ने सात फेरे लिए.' धापी दादी ने पूरे गाँव को धिक्कारा. गुस्सा इस बात का कि पृथ्वी सिंह शिखर नेता ही नहीं , गाँव के दामाद भी थे. उसने कहा, 'गवाह के रूप में मेरा एक बेटा ले जाओ.' वह बुदबुदाई 'ई गाम को राम निकळग्यो.'[3]
एक अन्य किसान ने 25 अप्रेल 1935 की घटना का वर्णन करते बताया कि धापी दादी के झाड़वार को झेलकर जब पेमा दादा धर्मशाला में गया तो पूरा सरकारी अमला चौकन्ना हो उठा. एक सिपाही नंगी तलवार लेकर, धर्मशाला के गेट पर पहरा देने लगा. गाँव के गुवाड़ से बहुत से किसान लाठियां लेकर धर्मशाला की और चल पड़े. सिपाही का ध्यान इस जत्थे की और था. तभी गोरु राम कोलीड़ा ने पीछे से घात लगाकर सिपाही की तलवार छीन ली. सिपाही को जमीन पर गिरा दिया. तहसीलदार भाग कर पंडित जीवनराम की हवेली में छुप गया. कहा जाता है कि धापी दादी ने एक सिपाही के भी लाठी मारी थी. गोलीकांड के बाद पूरे गाँव में चीख-पुकार सुनाई देने लगी थी. पुरुषों में भगदड़ मच गयी थी. कोलीड़ा गाँव का नारायण मील भाग कर एक ऊँचे खेजड़ी के पेड़ पर चढ़ गया. उस पर गोली चलाई परन्तु तने की आड़ में बच गया. (राजेन्द्र कसवा, P. 143)
सीकर के जाटों पर जुल्मों का पहाड़
ठाकुर देशराज[4] ने लिखा है ....गांवों में सीकर ठिकाने द्वारा अन्यायों का तांता बन गया और गांवों में जाटों को पीटा जाने लगा।
लादूराम और बिरम सिंह दो जाट किसी कारणवश सीकर आए थे उन्हें गिरफ्तार करके बुरी तरह पीटा गया। बीरमसिंह की हालत नाजुक कही जाती है। खुड़ी के राजपूतों के घस्सू गांव के 4 जाटों को पकड़कर मनमाना पीटा और पुलिस ने गिरफ्तार करा दिया।
सरदार पन्ने सिंह जी जाखड़ ग्राम कोलीड़ा को बहुत पीटा जा रहा है। पुलिस इंचार्ज के नाम पूछने पर उसने अपना नाम पन्नेसिंह बतलाया था। उसको अपना नाम थाने पर लिखाने को कहा जाता है, परंतु वह नहीं लिखाता।
[पृ.284]: कई घायल अस्पताल में भर्ती नहीं किए जाने के कारण ग्रामों की ओर जा रहे हैं। खुड़ी में आए हुए जाटों से बीबीपुर ग्राम का एक और घस्सु ग्राम के 2 जाट का पता नहीं है। जाट जनता में विश्वास है कि वे दोनों खुड़ी में लाठीचार्ज के समय मर गए। उनके घरवाले उन्हें ढूंढ रहे हैं। अभी तक उनका या उनकी लाश का पता नहीं चला है।
जन मानस में कोलीड़ा का झाड़ू जाट
कोलीड़ा गांव में झाड़ूराम नाम का एक जाट रहता था.वह बड़ा दानी और बलशाली था. उसके ईर्द-गिर्द सैंकडों लोग पेट पालते थे. झाड़ू जाट के घर मन्नीर नाम क एक ढाढी थ. झाड़ू का भाई गंगा स्नान के लिये गया तो मन्नीर भी साथ चला गया. वापसी में ढाढी को लालच आ गया और वह रात को दिल्ली बदशाह अकबर के महल के पास रुक गया. झरोखे से बादशह बाहर झांक रहे थे तो ढाढी बदशाह अकबर के महल के पास रुक गया. झरोखे से बादशाह बाहर झांक रहे थे तो ढाढी बोला :
- कोलीड़ा कश्मीर, दिल्ली है खड़खड़ी
- झाड़ू राजा मान, अकबर सा तुरकड़ी ।
- झाड़ू की तलवार भल्लाका मारसी
- बीबी बगड़ भुवार नहीं तो जाखड़ मारसी ।।
अर्थात झाड़ू जाट का कोलीड़ा गांव कश्मीर जैसा सुन्दर व रमणीय है जबकि दिल्ली तो खड़खड़ी है. झाड़ू राजा मान है तो अकबर तो तुरक है. झाडू की तलवार चमकेगी. अकबर की हुर्रम जल्दी झाड़ू लगावो नहीं तो झाड़ू की पत्नी जाखड़ तुम्हें मारेगी.
अकबर ने ढाढी की बात सुनली और सुबह उसे महल में बुलाया.वह डरता-डरता बादशाह के चरणों में गिर पडा. वह मुंहफ़ट होने के कारण कह बैठा:
- धन्य-धन्य अकबर बादशाह नरां हंदो नर
- एक हाथ में खांडो एक हाथ में खर
- मैनें कहणी ही सो कहदी आपूं करणी सो कर ।
अकबर बादशाह बुद्धी का पारखी था और वह समझ गया कि इस ढाढी का स्वामी तो जरूर तगडा आदमी होगा. ढाढी को भोजन करवाकर मालिक झाड़ू को दरबार में बुला भेजा. ढाढी डरता-डरता कोलीड़ा पहुंचा. कोलीड़ा जाकर स्वामी को बोला: "अन्नदाता मैनें बड़ा अनर्थ कर दिया है. मैनें रात को बादशाह के महल में जाकर आपकी प्रशंसा कर दी.उसने मेरी बात सुन ली. वह आपकी खाल में खाखला (भूसा) भरेगा सो आपको दिल्ली बुलाया है."
दबंग जाट समझ गया कि ढाढी ने गलती कर दी. झाड़ू जाट ने एक पोटली में खाखला बांध कर गर्दन के पीछे लटका लिया और दिल्ली के लिये रवाना हो गया. दिल्ली पहुंच कर बादशाह के अर्दली को कहा, "कह दो अपने बादशाह को कि कोलिडा का जाट भूसा भराने आया है."
बादशाह ने झट झाडू जाट को आदर सहित अन्दर बुलाया. झाडू ने झुक कर प्रणाम किया और खाखले की पोटली सामने रख दी.
अकबर बादशाह ने पोटली को देख कर ढाढी की चतुराई व चौधरी की निडरता को परख अति प्रसन्न हुआ. अकबर बादशाह ने कहा, "वाह भाई झाड़ू जाट! धन्य हैं तुम्हारे माता-पिता. मौत की परवाह किये बिना खाखला भी साथ ले आये. बोलो ! तुम्हें मूंह मांगा इनाम दिया जयेगा."
झाड़ू जाट बोला, "बादशह सलामत! आपके दर्शन पाकर सब पालिया.बस आपके राज में अत्याचार ना हो, यही ईनाम चाहिये."
बादशाह ने ईनाम के साथ झाड़ू जाट को कोलीड़ा भेजा.
संदर्भ: मनसुख रणवां: राजस्थान के संत-शूरमा एवं लोक कथाएं, प्रकाशक: कल्पना पब्लिकेशन, दूसरी मंजिल, दुकान न. 157 , चांदपोल बाजार, जयपुर-302001, 2010, पृ.130
जाट स्मारक
शहीद केशरदेव मील स्मारक: कोलीड़ा गांव जिला सीकर राजस्थान में शहीद केशर देव मील का स्मारक बना हुआ है. दिनांक 25 सितंबर 2023 को किसी सामाजिक कार्य से लेखक (लक्ष्मण बुरड़क) को सीकर जिले में स्थित कोलीड़ा गांव जाने का अवसर मिला. जैसा कि राजस्थान के हर गांव में होता है, आपको शहीद स्मारक अवश्य ही मिल जाएगा. रास्ते में मुझे भी शहीद केशर देव मील का शहीद स्मारक मिला इसके बारे में जानकारी और चित्र यहां शेयर कर रहा हूं. शहीद केशर देव मील के शहीद स्मारक और मूर्ति का अनावरण 9 जुलाई 2017 को मुख्य अतिथि श्री सी आर चौधरी, केंद्र सरकार के राज्य मंत्री द्वारा अनेक गणमान्य लोगों की उपस्थिति में किया गया था. शहीद स्मारक पर शहीद का परिचय और परिवार का परिचय दिखाने वाले शिलालेख अंकित किये गए हैं. शहीद के नाम पर स्थान का नाम केशर नगर किया गया है.
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शहीद केशरदेव मील
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शहीद केशरदेव मील स्मारक
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शहीद केशरदेव मील स्मारक
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शहीद केशरदेव मील प्रतिमा
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शहीद केशरदेव मील - परिचय
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शहीद केशरदेव मील - परिवार परिचय
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शहीद केशरदेव मील मूर्ति और स्मारक अनावरण
Notable persons
- Keshardeo Meel (Sepoy) (15.11.1944 - 10.12.1971) became martyr on 10.12.1971 in Chhamb-Joria sector of Jammu and Kashmir during Indo-Pak War-1971. He was from ancient village Kolida in Sikar tahsil of Sikar district in Rajasthan.
- Unit: 9 Jat Regiment.
- Panne Singh Jakhar - पन्नेसिंह जाखड़, कोलिडा के शाही व्यक्तित्व के थे। वे अनेक बार जागीरदारों से टकराए और फतेह हासिल की।
- महादा राम - शेखावाटी किसान आन्दोलन के नेता
- Lt. Nayak Bhagirath Mal from Kolida, Awarded with Shaurya Chakra in 1984 [5]
- Dr. Birbal Meel - Sr. Scientist ICAR, New Delhi, Date of Birth : 26-January-1971, Village - Kolida, Sikar, Present Address : H-22, Samta Nagar, Bikaner(Raj.), Phone Number : 9413893720, Mob: 9413893720, Email: birbalmeel@yahoo.com
- Dr. Surendra Kumar Moond - Assistant Professor College of Horticulture & Forestry, Date of Birth : 17-September-1975, VPO - Kolida, Via- Kudan, Distt.- Sikar Raj.-332040, Present Address : JR-16, Collector Residence, Civil Lines, Mama-Bhanja Chauraha, Jhalawar-326001, Mob: 9414595605, Email: drskmoond@yahoo.com
- Hoshiyar Singh Moond - Junior Reearch Fellow Physics, Date of Birth : 18-February-1984, VPO- Kolida, Via- Kudan, Distt.- Sikar (Raj.) Pin-332040, Present Address : Deptt. of Physics, Mohan Lal Sukhadiya University, Udaipur, Mob: 9414595620, Email: hmoond@gmail.com
- Phool Singh Jat (LNK) became martyr on 12.04.1989 during Operation Pawan in Srilanka. He was from Koleera village in Sikar tahsil of Sikar district in Rajasthan.
- Unit - 12 Jat Regiment
Gallery
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Martyr Dayachand
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Martyr Keshardeo Meel
External Links
References
- ↑ http://www.census2011.co.in/data/village/81498-koleera-rajasthan.html
- ↑ Rameshwar Singh Meel:Shekhawati Ke Gandhi Amar Shahid Karni Ram/Janm, Shaishav Aur Shiksha,pp.1-2
- ↑ राजेन्द्र कसवा: मेरा गाँव मेरा देश (वाया शेखावाटी), जयपुर, 2012, ISBN 978-81-89681-21-0, P. 147
- ↑ Thakur Deshraj: Jat Jan Sewak, 1949, p.283-84
- ↑ http://sikar.nic.in/Default.asp?stab=person1
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