Kumaradevi

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Kumara Devi or Kumaradevi (कुमारदेवी) was the princess of Lichhavi Dynasty. She was married to emperor Chandragupta I and was known as Queen Kumaradevi of Patliputra.

Dalip Singh Ahlawat writes -

भगवान् बुद्ध ने लिच्छवियों के अनुग्रह पर भिक्षु संघ का निर्माण किया था। महात्मा बुद्ध का स्वर्गवास (487 ई० पू०) होने पर कुशिनारा (जि० गोरखपुर) के मल्लवंशी जाटों ने बुद्ध के शव को किसी को नहीं लेने दिया। बाद में समझौता होने पर दाहसंस्कार के बाद उनकी अस्थियों के आठ भाग करके मल्ल, मगध, लिच्छिवि, मौर्य, कौली, शाक्य (ये सब जाटवंश) तथा बुली और वैथद्वीप के ब्राह्मणों में बांट दिये। उन लोगों ने उन अस्थियों पर स्तूप बनवा दिये। (जाट इतिहास, पृ० 32-33, लेखक ठा० देशराज)।

लिच्छवियों की राजधानी वैशाली से राजा कनिष्क ने महान् विद्वान् अश्वघोष को अपनी राजधानी गांधार देश में बुलाया था।

लिच्छवियों ने ही पाटलिपुत्र मगध से कुषाणों का शासन समाप्त किया था। 50 वर्ष पहले पाटलिपुत्र में कुषाण क्षत्रप (राज्यपाल) रहा करते थे।

डाक्टर काशीप्रसाद जायसवाल के “अन्धकारयुगीन भारत” के लेख अनुसार जो नागरी प्रचारिणी सभा वाराणसी ने प्रकाशित किया, उसमें भूगर्भ से मिले शिलालेखों जिन पर मत्स्य पुराण, वायुपुराण और ब्रह्मांड पुराण आदि की कथाओं के लेख हैं, पाटलिपुत्र, मगध आदि राजधानियों पर पंजाबी मद्र (जाट) वंशज लिच्छिवि गण ने और भारशिववंश ने राज्य किया। राजा जयदेव द्वितीय के नेपाल में मिले शिलालेख अनुसार उनके पूर्वज लिच्छिवि मद्रक (जाट) वंशज ने पंजाब से आकर पाटलिपुत्र को राजधानी बनाया। इस लिच्छिविवंश का शासन यहां मगध क्षेत्र में 300 ईस्वी तक रहा। चौथी शताब्दी के आरम्भ में पाटलिपुत्र की गद्दी पर राष्ट्रकूट (राठी जाटवंश) वंशज राजा सुन्दरबर्मन विराजमान हो गया। लिच्छिविवंश की राजकुमारी कुमार देवी का विवाह चन्द्रगुप्त प्रथम के साथ हुआ। इस विवाह के कारण लिच्छिवि राज्य का भी उत्तराधिकारी चन्द्रगुप्त प्रथम बन गया और इसकी शक्ति के बल पर उसने मगध के शासक सुन्दरबर्मन का वध करके बलपूर्वक पाटलिपुत्र पर भी अधिकार कर लिया और फिर गुप्त साम्राज्य का यहां पर शासन चालू हो गया।[1]

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