Ladhriya

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Ladhriya (लाधड़िया/ लादड़िया) is a village in Dungargarh tahsil of Bikaner district in Rajasthan.

Location

Founders

It was founded by Godara Jats.

लाधडिया (Ladhriya) लाघड़िया (Laghadia) बीकानेर जिले की डूंगरगढ़ तहसील में गाँव है । यह गोदारों की राजधानी थी.

चूरू जनपद के जाट इतिहास पर दौलतराम सारण डालमाण[1] ने अनुसन्धान किया है और लिखा है कि पाउलेट तथा अन्य लेखकों ने इस हाकडा नदी के बेल्ट में निम्नानुसार जाटों के जनपदीय शासन का उल्लेख किया है जो बीकानेर रियासत की स्थापना के समय था।

क्र.सं. जनपद क्षेत्रफल राजधानी मुखिया प्रमुख ठिकाने
1. गोदारा पट्टी 360 गाँव लादड़िया (शेखसर) पाण्डुजी गोदारा पून्दलीसर, गुसाईंसर , शेखसर, रासीसर

लाघड़िया व शेखसर के गोदारा

शेखसरलाघड़िया दोनों ही गोदारों की राजधानियाँ थी. शेखसर चुरू से लगभग 58 मील उत्तर-पश्चिम में है जबकि लाघड़िया डूंगरगढ़ तहसील में है. इनके अधीन 360 से 700 गाँवों का होना लिखा है. अतः जाट राज्यों में गोदारों की शक्ति सबसे अधिक थी. वैसे इन जाटों में फूट और प्रतिस्पर्धा रहती थी. राठोड़ बीका ने जब इस इलाके की और राज्य स्थापित करने की दृष्टी से प्रयाण किया तो उस समय लाघड़िया का शासक पांडू गोदारा था जिसके दान देने की चर्चा चारों और फ़ैली हुई थी. [2][3]

मलकी और लाघड़िया युद्ध

उस समय पूला सारण भाड़ंग का शासक था और उसके अधीन 360 गाँव थे. पूला की पत्नी का नाम मलकी था जो बेनीवाल जाट सरदार रायसल की पुत्री थी. उधर लाघड़िया में पांडू गोदारा राज करता था. वह बड़ा दातार था. एक बार विक्रम संवत 1544 (वर्ष 1487) के लगभग लाघड़िया के सरदार पांडू गोदारा के यहाँ एक ढाढी गया, जिसकी पांडू ने अच्छी आवभगत की तथा खूब दान दिया. उसके बाद जब वही ढाढी भाड़ंग के सरदार पूला सारण के दरबार में गया तो पूला ने भी अच्छा दान दिया. लेकिन जब पूला अपने महल गया तो उसकी स्त्री मलकी ने व्यंग्य में कहा "चौधरी ढाढी को ऐसा दान देना था जिससे गोदारा सरदार पांडू से भी अधिक तुम्हारा यश होता. [4]इस सम्बन्ध में एक लोक प्रचलित दोहा है -

धजा बाँध बरसे गोदारा, छत भाड़ंग की भीजै ।

ज्यूं-ज्यूं पांडू गोदारा बगसे, पूलो मन में छीज ।।[5]

सरदार पूला सारण मद में छका हुआ था. उसने छड़ी से अपनी पत्नी को पीटते हुए कहा यदि तू पांडू पर रीझी है तो उसी के पास चली जा. पति की इस हरकत से मलकी मन में बड़ी नाराज हुई और उसने चौधरी से बोलना बंद कर दिया. मलकी ने अपने अनुचर के मध्यम से पांडू गोदारा को सारी हकीकत कहलवाई और आग्रह किया कि वह आकर उसे ले जाए. इस प्रकार छः माह बीत गए. एक दिन सब सारण जाट चौधरी और चौधराईन के बीच मेल-मिलाप कराने के लिए इकट्ठे हुए जिस पर गोठ हुई. इधर तो गोठ हो रही थी और उधर पांडू गोदारे का पुत्र नकोदर 150 ऊँट सवारों के साथ भाड़ंग आया और मलकी को गुप्त रूप से ले गया. [6] पांडू वृद्ध हो गया था फ़िर भी उसने मलकी को अपने घर रख लिया. परन्तु नकोदर की माँ, पांडू की पहली पत्नी, से उसकी खटपट हो गयी इसलिए वह गाँव गोपलाणा में जाकर रहने लगी. बाद में उसने अपने नाम पर मलकीसर बसाया. [7]

पूला सारण ने सलाह व सहायता करने के लिए अन्य जाट सरदारों को इकठ्ठा किया. इसमें सीधमुख का कुंवरपाल कसवां, घाणसिया का अमरा सोहुआ, सूई का चोखा सियाग, लूद्दी का कान्हा पूनिया और पूला सारण स्वयं उपस्थित हुए. गोदारा जाटों के राठोड़ों के सहायक हो जाने के कारण उनकी हिम्मत उन पर चढाई करने की नहीं हुई. ऐसी स्थिति में वे सब मिलकर सिवानी के तंवर सरदार नरसिंह जाट के पास गए [8] और नजर भेंट करने का लालच देकर उसे अपनी सहायता के लिए चढा लाए. [9]

तंवर नरसिंह जाट बड़ा वीर था. वह अपनी सेना सहित आया और उसने पांडू के ठिकाने लाघड़िया पर आक्रमण किया. उसके साथ सारण, पूनिया, बेनीवाल, कसवां, सोहुआ और सिहाग सरदार थे. उन्होंने लाघड़िया को जलाकर नष्ट कर दिया. लाघड़िया राजधानी जलने के बाद गोदारों ने अपनी नई राजधानी लूणकरणसर के गाँव शेखसर में बना ली. [10] युद्ध में अनेक गोदारा चौधरी व सैनिक मारे गए, परन्तु पांडू तथा उसका पुत्र नकोदर किसी प्रकार बच निकले. नरसिंह जाट विजय प्राप्त कर वापिस रवाना हो गया. [11]

ढाका का युद्ध (1488) और जाट गणराज्यों का पतन

इधर गोदारों की और से पांडू का बेटा नकोदर राव बीका व कान्धल राठोड़ के पास पुकार लेकर गया जो उस समय सीधमुख को लूटने गए हुए थे. नकोदर ने उनके पास पहुँच कर कहा कि तंवर नरसिह जाट आपके गोदारा जाटों को मारकर निकला जा रहा है. उसने लाघड़िया राजधानी के बरबाद होने की बात कही और रक्षा की प्रार्थना की. इसपर बीका व कान्धल ने सेना सहित आधी रात तक नरसिंह का पीछा किया. नरसिंह उस समय सीधमुख से ६ मील दूर ढाका नमक गाँव में एक तालाब के किनारे अपने आदमियों सहित डेरा डाले सो रहा था. रास्ते में कुछ जाट जो पूला सारण से असंतुष्ट थे, ने कान्धल व बीका से कहा की पूला को हटाकर हमारी इच्छानुसार दूसरा मुखिया बना दे तो हम नरसिंह जाट का स्थान बता देंगे. राव बीका द्वारा उनकी शर्त स्वीकार करने पर उक्त जाट उन्हें सिधमुख से ६ मील दूरी पर उस तालाब के पास ले गए, जहाँ नरसिंह जाट अपने सैनिकों सहित सोया हुआ था.[12] [13]

राव कान्धल ने रात में ही नरसिंह जाट को युद्ध की चुनोती दी. नरसिंह चौंक कर नींद से उठा. उसने तुरंत कान्धल पर वार किया जो खाली गया. कान्धल ने नरसिंह को रोका और और बीका ने उसे मार गिराया. [14] घमासान युद्ध में नरसिंह जाट सहित अन्य जाट सरदारों कि बुरी तरह पराजय हुई. दोनों और के अनेक सैनिक मरे गए. कान्धल ने नरसिह जाट के सहायक किशोर जाट को भी मार गिराया. इस तरह अपने सरदारों के मारे जाने से नरसिह जाट के साथी अन्य जाट सरदार भाग निकले. भागती सेना को राठोड़ों ने खूब लूटा. इस लड़ाई में पराजय होने के बाद इस एरिया के सभी जाट गणराज्यों के मुखियाओं ने बिना आगे युद्ध किए राठोड़ों की अधीनता स्वीकार कर ली और इस तरह अपनी स्वतंत्रता समाप्त करली. फ़िर वहाँ से राव बीका ने सिधमुख में डेरा किया. वहां दासू बेनीवाल राठोड़ बीका के पास आया. सुहरानी खेड़े के सोहर जाट से उसकी शत्रुता थी. दासू ने बीका का आधिपत्य स्वीकार किया और अपने शत्रु को राठोड़ों से मरवा दिया. [15] इस तरह जाटों की आपसी फूट व वैर भाव उनके पतन का कारण बना.[16]

External Links

सन्दर्भ

  1. 'धरती पुत्र : जाट बौधिक एवं प्रतिभा सम्मान समारोह, साहवा, स्मारिका दिनांक 30 दिसंबर 2012', पेज 8-10
  2. मुंशी सोहनलाल, तवारीख राज श्री बीकानेर, पेज 97
  3. Dr Pema Ram, The Jats Vol. 3, ed. Dr Vir Singh,Originals, Delhi, 2007 p. 202
  4. Dr Pema Ram, The Jats Vol. 3, ed. Dr Vir Singh,Originals, Delhi, 2007 p. 208
  5. Dr Pema Ram, The Jats Vol. 3, ed. Dr Vir Singh,Originals, Delhi, 2007 p. 208
  6. नैणसी की ख्यात, भाग 2, पेज 202
  7. Dr Pema Ram, The Jats Vol. 3, ed. Dr Vir Singh,Originals, Delhi, 2007 p. 209
  8. दयालदास री ख्यात , पेज 9
  9. Dr Pema Ram, The Jats Vol. 3, ed. Dr Vir Singh,Originals, Delhi, 2007 p. 209
  10. डॉ दशरथ शर्मा री ख्यात, अनूप संस्कृत पुस्तकालय, बीकानेर, संवत 2005, पेज 7
  11. Dr Pema Ram, The Jats Vol. 3, ed. Dr Vir Singh,Originals, Delhi, 2007 p. 209
  12. नैणसी की ख्यात, भाग 2, पेज 203
  13. Dr Pema Ram, The Jats Vol. 3, ed. Dr Vir Singh,Originals, Delhi, 2007 p. 209
  14. नैणसी की ख्यात, भाग 2, पेज 203
  15. नैणसी की ख्यात, भाग 2, पेज 203
  16. Dr Pema Ram, The Jats Vol. 3, ed. Dr Vir Singh,Originals, Delhi, 2007 p. 210

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