Lavanasura
Author:Laxman Burdak, IFS (R) |
Lavanasura (लवणासुर) was King of Lavanapura or Mathura and son of Asura named Madhu, mentioned in Ramayana. He was killed by Shatrughna, the youngest brother of Lord Rama. Shatrughna cut the forests of Madhuvana and founded a new city called Madhura or Mathura.
Variants
- Lavanasura (लवणासुर): दे. मथुरा (AS, p.698), मधुवन (AS, p.707), मधुपघ्न (AS, p.708), महोली (AS, p.731),
- Lavana (लवण)
Jat clans
- Lun (लुण): It is a prakrat form of Sanskrit word Lavana (लवण). Lavana (लवण) was king of Lavanapura or Mathura
History
Lavanasura was king of Mathura. Shatrughna was crowned as the king of Madhupuri. Shatrughna left with a huge army to fight with Lavanasura. Rama warned Shatrughna to find a way to fight with Lavana without his holding the invincible trident. Shatrughna stood before the gate where Lavana resided and positioned himself alone. As Lavana returned home after hunting animals for eating each day, Shatrughna challenged him to fight. Lavana was very happy to accept the challenge because it was his dessert time. Lavana uprooted many trees and threw them on Shatrughna, and a big battle ensued. Later, Shatrughna removed the special arrow (used for killing Madhu and Kaitabha, given as a gift by Lord Vishnu, that Rama had given him. He struck Lavana right in the heart taking out his life-breath. Rama then appointed Shatrughna as the king of Madhupuri, where he ruled for several years.
लवणासुर
लवणासुर, रामायण के अनुसार, एक दैत्य था, जो दैत्यों के राजा मधु का पुत्र था। इसका वध भगवान श्री राम के छोटे भाई शत्रुघ्न के हाथों हुआ था। मथुरा से लगभग साढ़े तीन मील दक्षिण-पश्चिम की ओर स्थित मधुवन ग्राम वाल्मीकि रामायण में वर्णित मधुपुरी के स्थान पर बसा हुआ था। मधुपुरी को मधु नामक दैत्य ने बसाया था। उसके पुत्र लवणासुर को शत्रुघ्न ने युद्ध में पराजित कर उसका वध कर दिया था। बाद में शत्रुघ्न ने मधुपुरी के स्थान पर नई मथुरा नगरी बसाई। महोली ग्राम को आजकल मधुवन-महोली कहा जाता है। पारंपरिक अनुश्रुति में मधु दैत्य की मथुरा और उसका मधुवन इसी स्थान पर थे। यहाँ लवणासुर की गुफ़ा नामक एक स्थान है, जिसे मधु के पुत्र लवणासुर का निवास स्थान माना जाता है।
मथुरा
विजयेन्द्र कुमार माथुर[1] ने लेख किया है ...मथुरा (AS, p.698) उ.प्र. में स्थित है. यह भगवान कृष्ण की जन्मस्थली और भारत की परम प्राचीन तथा जगत विख्यात नगरी. शूरसेन देश की यहां राजधानी थी. मथुरा का उल्लेख वैदिक साहित्य में नहीं है. वाल्मीकि रामायण में मथुरा को मधुपुर या मधुदानव का नगर कहा गया है तथा यहां लवणासुर की राजधानी बताई गई है—‘एवं भवतु काकुत्स्थ क्रियतां मम शासनम्, राज्ये त्वामभिषेक्ष्यामि मधोस्तु नगरे शुभे । नगरं यमुनाजुष्टम तथा जनपदान्शुभान यो हि वंश समुत्पाद्य पार्थिवस्य निवेशने’ उत्तरकांड 62, 16-18. इस नगरी को इस प्रसंग में मधुदैत्य द्वारा बसाई बताया गया है. लवणासुर जिसको शत्रुघ्न ने युद्ध में हरा कर मारा था इसी मधु दानव का पुत्र था, ‘तं पुत्रं दुर्विनीतं तु दृष्ट्वा क्रोधसमन्वितः । मधुः स शोकमापेदे न चैनं किञ्चिदब्रवीत्’-- उत्तरकांड 61,18. इससे मधुपुरी या मथुरा का रामायण काल में बसाया जाना सूचित होता है. रामायण में इस नगरी की समृद्धि का वर्णन इस प्रकार है—‘ अर्धचन्द्रप्रतीकाशा यमुनातीरशोभिता । शोभिता गृहमुख्यैश्च चत्वरापणवीथिकैः । चातुर्वर्ण्यसमायुक्ता नानावाणिज्यशोभिता’-- उत्तरकांड 70.11
इस नगरी को लवणासुर ने भी सजाया संवारा था—‘ यच्च तेन पुरा शुभ्रं लवणेन कृतं महत्, तच्छोभयति शत्रुघ्नो नानावर्णोपशोभिताम् । आरामैश्च विहारैश्च शोभमानं समन्ततः, शोभितां शोभनीयैश्च तथा ऽन्यैर्दैवमानुषैः उत्तरकांड 70. 12-13. उत्तरकांड 70.5 (‘इयं मधुपुरी रस्या मधुरा देवनिर्मिता’) में इस नगरी को मधुरा नाम से अभिहित किया गया है. लवणासुर [p.699]: के वध के उपरांत शत्रुघ्न ने इस नगरी को पुनः बसाया था. उन्होंने मधुवन को कटवा कर उसके स्थान पर नई नगरी बसाई थी (देखें महोली).
महोली
विजयेन्द्र कुमार माथुर[2] ने लेख किया है ...महोली (AS, p.731), जिला मथुरा, उ.प्र. में मथुरा से लगभग 3-1/2 मील दूर दक्षि-पश्चिम की ओर स्थिति है. यह ग्राम वाल्मीकि रामायण में वर्णित मधुपुरी के स्थान पर बसा हुआ है. मधुपुरी को मधु नामक दैत्य ने बसाया था. उसके पुत्र लवणासुर को शत्रुघ्न ने युद्ध में पराजित कर उसका वध कर दिया था और मधुपुरी के स्थान पर उन्होंने नई मधुरा या मथुरा नगरी बसाई थी. महोली ग्राम को आजकल मधुबन-महोली कहते हैं. महोली मधुपुरी का अपभ्रंश है. लगभग 100 वर्ष पूर्व इस ग्राम से गौतम बुद्ध की एक मूर्ति मिली थी. इस कलाकृति में भगवान को परमकृशावस्था में प्रदर्शित किया गया है. यह उनकी उस समय की अवस्था का अंकन है जब बोधगया में 6 वर्षों तक कठोर तपस्या करने के उपरांत उनके शरीर का केवल शरपंजर मात्र ही अवशिष्ट रह गया था