Mali
Mali (माली) gotra Jats are found in Rajasthan and Madhya Pradesh. Mali (मली) or Mal is found in Afghanistan.[1]They are same as Malii Jats in India and Pakistan.
Contents
Origin
- This gotra is said to be originated from ancient tribe Malava of Mahabharata which are same as Mallians of Arrian[2], the historian of Alexander the Great.
Mention by Panini
Mala (माल) is a place name mentioned by Panini in Ashtadhyayi under Sankaladi (संकलादि) (4.2.75) group[3].
Mala (माला) is mentioned by Panini in Ashtadhyayi. [4]
History
Dr Pema Ram writes that after the invasion of Alexander in 326 BC, the Jats of Sindh and Punjab migrated to Rajasthan. They built tanks, wells and Bawadis near their habitations. The tribes migrated were: Shivis, Yaudheyas, Malavas, Madras etc. The Shivi tribe which came from Ravi and Beas Rivers founded towns like Sheo, Sojat, Siwana, Shergarh, Shivganj etc. This area was adjoining to Sindh and mainly inhabited by Jats. The descendants of Malavas are: Mal, Madra, Mandal, Male, Malloi etc. [5]
मल्ल: ठाकुर देशराज
ठाकुर देशराज[6] ने लिखा है.... मल्ल - [पृ.100]: सिकंदर के साथियों ने इन्हें मल्लोई ही लिखा है। हिंदुस्तान के कई इतिहासकारों को उनके संबंध में बड़ा भ्रम हुआ है। वह इन्हें कहीं उज्जैन के आसपास मानते हैं। वास्तव में यह लोग पंजाब में रावी नदी के किनारे पर मुल्तान तक फैले हुए थे। फिरोजपुर और बठिंडा के बीच के लोग अपने प्रदेश को मालवा कहते हैं। बौद्ध काल में हम लोगों को चार स्थानों
[पृ.101]: पर राज्य करते पाते हैं-- पावा, कुशीनारा, काशी और मुल्तान। इनमें सिकंदर को मुल्तान के पास के मल्लों से पाला पड़ा था। इनके पास 90000 पैदल 10000 सवार और 900 हाथी थे। पाणिनी ने इन्हें आयुध जीवी क्षत्रिय माना है। हमें तो अयोधन और आयुध इन्हीं के साथी जान पड़ते हैं। जाटों में यह आज भी मल, माली और मालवन के नाम से मशहूर हैं। एक समय इनका इतना बड़ा प्रभाव हो गया था इन्हीं के नाम पर संवत चल निकला था। इनके कहीं सिक्के मिले जिन पर 'मालवानाम् जय' लिखा रहता है। ये गणवादी (जाति राष्ट्रवादी) थे। इस बात का सबूत इन के दूसरे प्रकार के उन सिक्कों से भी हो जाता है जिन पर 'मालव गणस्य जय' लिखा हुआ है। जयपुर के नागर नामक कस्बे के पास से एक पुराने स्थान से इनके बहुत से सिक्के मिले थे। जिनमें से कुछ पर मलय, मजुप और मगजस नाम भी लिखे मिले हैं। हमारे मन से यह उन महापुरुषों के नाम हैं जो इनके गण के सरदार रह चुके थे। इन लोगों की एक लड़ाई क्षत्रप नहपान के दामाद से हुई थी। दूसरी लड़ाई समुद्रगुप्त से हुई। इसी लड़ाई में इनका ज्ञाति राष्ट्र छिन्न-भिन्न हो गया और यह समुद्रगुप्त के साम्राज्य में मिला लिया गया इनके सिक्के ईसवी सन के 250-150 वर्ष पूर्व माने जाते हैं।
मल्ल या मालव जाट गोत्र
दलीप सिंह अहलावत[7] लिखते हैं: मल्ल या मालव चन्द्रवंशी जाट गोत्र है। रामायणकाल में इस वंश का शक्तिशाली राज्य था। सुग्रीव ने वानर सेना को सीता जी की खोज के लिये पूर्व दिशा में जाने का आदेश दिया। उसने इस दिशा के ब्रह्ममाल, विदेह, मालव, काशी, कोसल, मगध आदि देशों में भी छानबीन करने को कहा। (वा० रा० किष्किन्धाकाण्ड सर्ग 40, श्लोक 22वां) भरत जी लक्षमणपुत्र चन्द्रकेतु के साथ मल्ल देश में गए और वहां चन्द्रकेतु के लिए सुन्दर नगरी ‘चन्द्रकान्ता’ नामक बसाई जो कि उसने अपनी राजधानी बनाई। (वा० रा० उत्तरकाण्ड, 102वां सर्ग) इससे ज्ञात होता है कि उस समय मालव वंश का राज्य आज के उत्तरप्रदेश के पूर्वी भाग पर था। महाभारत काल में भी इनका राज्य उन्नति के पथ पर था। महाभारत सभापर्व 51वें अध्याय में लिखा है कि मालवों ने युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में असंख्य रत्न, हीरे, मोती, आभूषण भेंट दिये। इससे इनके वैभवशाली होने का अनुमान लगता है। मालव क्षत्रिय महाभारत युद्ध में पाण्डवों एवं कौरवों दोनों की ओर से लड़े थे। इसके प्रमाण निम्न प्रकार हैं - महाभारत भीष्मपर्व 51वां, 87वां, 106वां के अनुसार मालव क्षत्रिय कौरवों की ओर से पाण्डवों के विरुद्ध लड़े। इससे ज्ञात होता है कि मालव (मल्ल) वंशियों के दो अलग-अलग राज्य थे। पाण्डवों की दिग्विजय में भीमसेन ने पूर्व दिशा में उत्तर कोसल देश को जीतकर मल्लराष्ट्र के अधिपति पार्थिव को अपने अधीन कर लिया। इसके पश्चात् बहुत देशों को जीतकर दक्षिण मल्लदेश को जीत लिया। (सभापर्व, अध्याय 30वां)। कर्णपर्व में मालवों को मद्रक, क्षुद्रक, द्रविड़, यौधेय, ललित्थ आदि क्षत्रियों का साथी बतलाया है। उन दिनों इनके प्रतीच्य (वर्तमान मध्यभारत) और उदीच्य (वर्तमान पंजाबी मालवा) नामक दो राज्य थे। इन दोनों देशों के मालवों ने महाभारत युद्ध में भाग लिया। (जाटों का उत्कर्ष पृ० 311, लेखक योगेन्द्रपाल शास्त्री।)
पाणिनि ऋषि ने इन लोगों को आयुधजीवी क्षत्रिय लिखा है। बौद्ध काल में मालवों (मल्ल लोगों) का राज्य चार स्थानों पर था। उनके नाम हैं - पावा, कुशीनारा, काशी और मुलतान। जयपुर में नागदा नामक स्थान से मिले सिक्कों से राजस्थान में भी इनका राज्य रहना प्रमाणित हुआ है। अन्यत्र भी प्राप्त सिक्कों का समय 205 से 150 ई० पूर्व माना जाता है। उन पर मालवगणस्य जय लिखा मिलता है। सिकन्दर के समय मुलतान में ये लोग विशेष शक्तिसम्पन्न थे। मालव क्षत्रियों ने सिकन्दर की सेना का वीरता से सामना किया और यूनानी सेना के दांत खट्टे कर दिये। सिकन्दर बड़ी कठिनाई से आगे बढ़ सका। उस समय मालव लोगों के पास 90,000 पैदल सैनिक, 10,000 घुड़सवार और 900 हाथी थे। मैगस्थनीज ने इनको ‘मल्लोई’ लिखा है और इनका मालवा मध्यभारत पर राज्य होना लिखा है। मालव लोगों के
जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-254
नाम पर ही उस प्रदेश का नाम मालवा पड़ा था। [8][9]वहां पर आज भी मालव गोत्र के जाटों की बड़ी संख्या है। सिकन्दर के समय पंजाब में भी इनकी अधिकता हो चुकी थी। इन मालवों के कारण ही भटिण्डा, फरीदकोट, फिरोजपुर, लुधियाना के बीच का क्षेत्र (प्रदेश) ‘मालवा’ कहलाने लगा। इस प्रदेश के लगभग सभी मालव गोत्र के लोग सिक्खधर्मी हैं। ये लोग बड़े बहादुर, लम्बे कद के, सुन्दर रूप वाले तथा खुशहाल किसान हैं। सियालकोट, मुलतान, झंग आदि जिलों में मालव जाट मुसलमान हैं। मल्ल लोगों का अस्तित्व इस समय ब्राह्मणों और जाटों में पाया जाता है। ‘कात्यायन’ ने शब्दों के जातिवाची रूप बनाने के जो नियम दिये हैं, उनके अनुसार ब्राह्मणों में ये मालवी और क्षत्रिय जाटों में माली कहलाते हैं, जो कि मालव शब्द से बने हैं। पंजाब और सिंध की भांति मालवा प्रदेश को भी जाटों की निवासभूमि एवं साम्राज्य होने का सौभाग्य प्राप्त है। (जाट इतिहास पृ० 702, लेखक ठा० देशराज)। महात्मा बुद्ध के स्वर्गीय (487 ई० पू०) होने पर कुशिनारा (जि० गोरखपुर) के मल्ल लोगों ने उनके शव को किसी दूसरे को नहीं लेने दिया। अन्त में समझौता होने पर दाहसंस्कार के बाद उनके अस्थि-समूह के आठ भाग करके मल्ल, मगध, लिच्छवि, मौर्य ये चारों जाट वंश, तथा बुली, कोली (जाट वंश), शाक्य (जाट वंश) और वेथद्वीप के ब्राह्मणों में बांट दिये। उन लोगों ने अस्थियों पर स्तूप बनवा दिये (जाट इतिहास पृ० 32-33, लेखक ठाकुर देशराज।) मध्यप्रदेश में मालवा भी इन्हीं के नाम पर है।
मालव वंश के शाखा गोत्र - 1. सिद्धू 2. बराड़
Villages founded by Mali clan
- Rulyana Mali (रुल्याणा माली) - village in Laxmangarh tahsil in Sikar district in Rajasthan.
Distribution in Rajasthan
Villages in Churu district
Chhapar (22), Bhimsar (Sujangarh)
Villages in Hanumangarh district
Dhaban (Sangaria), Hanumangarh,
Villages in Nagaur district
Villages in Sikar district
Fakirpura, Ringas, Rulyanamali, Sangalia, Sewad Badi, Sikar,
Distribution in Madhya Pradesh
Villages in Bhopal district
Villages in Hoshangabad district
Villages in Harda district
Notable persons
- Late Magharam Jat Mali: Former member of Nagarpalika Chhapar Churu three times,
- Prakash Mali: From Chhapar Churu Deputy Executive Engineer in Neyveli Lignite Corporation("NAVRATNA" Govt. of India Enterprises) posted at Barsingsar Thermal Power Plant, Bikaner,Rajasthan,Mo. No.-9001780042
- Har Narain Jat Mali: Ex. President Madhya Pradesh Jat Sabha, Bhopal, Mob: 9926900294
- Ram Niwas Jat Mali - From Khirkiya. Amature Kabbadi Federation of India appointed him as national Empire. [10]
- Rajvir Singh Chaudhari (Mali): Soil Scientist, Krishi Vigyan Kendra, Chandgothi, Churu, Swami Keshwanand Rajasthan Agricultural University, Bikaner
Gallery of Mali people
Har Narain Jat Mali: Ex. President Madhya Pradesh Jat Sabha, Bhopal
External links
See also
References
- ↑ An Inquiry Into the Ethnography of Afghanistan By H. W. Bellew, The Oriental University Institute, Woking, 1891, p.14,28,104,108,111,117,121,125,126,137,164
- ↑ Arrian (The Anabasis of Alexander, Ch-5.22,6.4,6.5,6.6,6.7,6.8,6.9,6.11,6.12,6.14)
- ↑ V. S. Agrawala: India as Known to Panini, 1953, p.507
- ↑ V. S. Agrawala: India as Known to Panini, 1953, p.247
- ↑ Dr Pema Ram:Rajasthan Ke Jaton Ka Itihas, First Edition 2010, ISBN:81-86103-96-1,p.14
- ↑ Jat Itihas (Utpatti Aur Gaurav Khand)/Pancham Parichhed,p.100-101
- ↑ जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठ.254-255
- ↑ ठा० देशराज जाट इतिहास पृ० 702, इस मालवा नाम से पहले इस प्रदेश का नाम अवन्ति था।
- ↑ Jat History Thakur Deshraj/Chapter XI, p.706
- ↑ Jat Samaj, March 2009, p.32
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