Mali Ram Burdak

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Author:Laxman Burdak, IFS (R)

माली राम बुरड़क

Mali Ram Burdak (1910-1998) (मालीराम बुरड़क) from village Athuna Mohalla Ratangarh in District Churu was a social worker and a Freedom fighter. He was ex Chairman of Ratangarh Nagarpalika. He was born in the family of Nuna Ram Burdak.

जीवन परिचय

श्री मालीराम जी बुरड़क, आथुना मोहल्ला, रतनगढ़, चुरू, राजस्थान के निवासी थे। वे पूर्व चेयरमेन नगरपालिका रतनगढ़ रहे हैं। ग्रामीण किसान छात्रावास रतनगढ़ के विकास और विस्तार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आप ने दौलतराम सारण, ढाणी पचेरा, सरदारशहर, चुरू, के साथ मिलकर सामाजिक कार्यों विशेषकर शिक्षा के विस्तार के लिए काफी कार्य किया।

मालीराम जी का परिवार

मालीराम जी अपने बड़े पौत्र मुखराम के विवाह 2.6.1996 के अवसर पर पत्नी जैती देवी, पौत्र और पौत्रियों के साथ

आपके पूर्वज चिमनाराम थे जिनके पुत्र मोहनाराम हुये। मोहनाराम का विवाह सुटोट के पिलानिया जाटों में लच्छी पिलानिया के साथ हुआ। उनके दो पुत्र थे: 1. नूनारामजी और 2. खुमाणारामजी। नूनारामजी और खुमानारामजी का जन्म सीकर जिले के मांडेता गाँव में हुआ। नूनारामजी का विवाह डालमास गाँव की धापी ढाका के साथ हुआ। धापी ढाका बहुत समझदार औरत थी। उसको नाड़ी वैद्य का ज्ञान था और अनेक लोग सलाह के लिए उसके पास आते थे। नूनारामजी रतनगढ़ के ओसवाल बनियों के साथ दिसावर (आसाम) चले गए। संवत 1975 (1918 ई.) में प्लेग की भयंकर महामारी फ़ैल गयी उसमें नूनारामजी दिसावर में ही ख़त्म हो गये।

नूनारामजी के चार बेटे हुए मालूजी, लीछमण, नारायण, और सूरजा. ये सभी रतनगढ़ में ही बस गए। मालूजी या मालीराम जी बुरड़क (1910-1998) इनमें उल्लेखनीय रहे हैं। आप रतनगढ़ शहर नगरपालिका के अध्यक्ष रहे है। आपने स्वतंत्रता आन्दोलन में दौलतराम सारण के साथ रहकर समाज सेवा का कार्य किया।

मालीराम जी का विवाह जैती देवी मील के साथ हुआ। माली राम जी का देहांत 7.4.1998 को हो गया। उनकी पत्नी जैती देवी का स्वर्गवास असोज बदी 7 संवत 2066 अर्थात 11.9.2009 को हुआ।

मालीराम जी के कोई संतान नहीं होने से छोटे भाई नारायण के पुत्र रुक्मानन्द को गोद लिया। रुक्मानन्द का विवाह गाँव बाना तहसील डूंगरगढ़ निवासी श्री पूर्वचंद जी बाना की पुत्री भंवरी देवी के साथ हुआ। रुकमानन्द के दो पुत्र और दो पुत्रियाँ है। सबसे बड़े पुत्र मुखराम (मो:8076707120) का विवाह 2.6.1996 को हुआ।

रतनगढ़ के बुरड़क गोत्र का इतिहास

लेखक वर्ष 6 मार्च 1996 में राजस्थान के ठठावता गाँव गए. वहां बुरड़क के कुछ परिवार रहते हैं. उनमें सबसे बुजुर्ग श्री लादूराम जी थे. उनसे जब बुरड़क का इतिहास पूछा तो उन्होंने इस प्रकार वर्णन किया. बुरड़क गोत्र का रेकॉर्ड उनके भड़वा श्री भवानी सिंह राव, गाँव-महेशवास, पोस्ट-बिचून,तहसील-फूलेरा,जिला-जयपुर , फोन 7742353459, के द्वारा रखा जाता है.

बुरड़क का निकास दिल्ली से हुआ है. उस समय वे चौहान थे. दिल्ली से बुरड़क 50 घोड़ों पर सवार होकर सीकर जिले के जीणमाता के पास आकर रुके और सरनाऊ नामक गाँव बसाया. कहते हैं कि वहां सरलो और पालो नामके दो भाई थे. एक ढाका गोत्र की औरत बुरड़कों के यहाँ घड़ा लेकर पानी लेने आ गयी. इस पर ढाका नाराज हो गए और उस औरत को कहा कि तुम तो बुरड़कों के यहीं जाओ. इस बात पर बुरड़क और ढाका जाटों में लड़ाई हुई. बुरड़कों ने अधिकांस ढाकों को ख़त्म कर दिया परन्तु बाद में ढाका जाटों ने बादशाह की मदद से सभी बुरड़कों को खत्म कर दिया. एक खर्रा गोत्र की लड़की बुरड़कों में ब्याही थी. वह उस समय पीहर गयी हुई थी और गर्भवती थी. उसका पीहर गोठड़ा तगालान में था. वह बच गयी. उसके ईस्टदेव गोसाईंजी थे. उसने गोसाईं जी की पूजा की और उनके आशीर्वाद से एक लड़का हुआ. सभी बुरड़क उस लडके से फले फूले हैं. लड़का ननिहाल गोठड़ा तगालान में पैदा हुआ. कहते हैं कि वह बहुत चंचल था और पनिहारिनों के पानी लाते समय मटके फोड़ देता था. तब ताम्बे के मटके बनाए गए. उस लड़के ने लोहे के बाण बनाए और फ़िर मटके फोड़ता था.

एक बार इस लडके के खर्रा मामा ने अपने भाईयों को कहा कि जोहड़ का बंधा टूट रहा है इसको ठीक करें. उसके भाईयों ने कहा कि धन तो बुरड़क भांजे को मिलेगा हम क्या करें. वह खर्रा मामा इस बात पर मर गया. उसका चबूतरा अभी भी गोठड़ा गाँव के जोहड़ के ढावे पर है. वहां एक गोसाईंजी का आदि मन्दिर भी है. गोठड़ा तगालान में 400 बुरड़क परिवार रहते हैं. कुछ बुरड़क परिवार वहां से उठकर मांडेता गाँव चले गए. मांडेता में आथुनी चोक की हवेली है जो बुद्धा की है जहाँ से हम निकले हैं. वहां एक पुराना खेजड़ा का पेड़ अभी भी मोजूद है. बुद्धा का परिवार काफी धनवान था और कहते हैं कि वह हाथी पर तोरण मरवाता था.

बुरड़क वंशावली में एक उदाजी थे. उनके वंश में चिमना राम तथा उनके पुत्र मोहनाराम थे. मोहनाराम का विवाह पिलानिया जाटों में हुआ. उनके दो पुत्र थे. नूनारामजी और खुमाणारामजी. नूनारामजी और खुमानारामजी का जन्म सीकर जिले के मांडेता गाँव में हुआ.

रतनगढ़ में वर्तमान में रह रहे बुरड़क नूनारामजी के वंशज हैं तथा ठठावता गाँव मे रह रहे बुरड़क खुमानारामजी के वंसज हैं. खुमाणारामजी का मामा हरुरामजी पिलानिया था वह सुटोट गाँव में रहता था. नूनारामजी और खुमानारामजी मांडेता से आकर मामा हरुरामजी पिलानिया के यहाँ सुटोट गाँव में रहने लगे. दोनों भाईयों का विवाह मामा हरु पिलानिया ने किया. खुमाणारामजी का विवाह खीचड़ जाटों में 'खीचड़ों की ढाणी' में भूरी खीचड़ के साथ हुआ तथा नूनारामजी का विवाह महला जाटों में मैलासी गाँव में हुआ. मामा हरुरामजी पिलानिया के मरने के बाद उसके भाईयों में जमीन का विवाद हुआ तब नूनारामजी और खुमाणारामजी सुटोट से रतनगढ़ आकर बस गए. रतनगढ़ के पश्चिम में 400 बीघा जमीन ली और 'मावलियों का बास' नामक गाँव बसाया. नूनारामजी के चार बेटे हुए मालू, लीछमण, नाराण, और सूरजा. ये सभी रतनगढ़ में ही बस गए.


खुमाणारामजी संवत 1962 (1905 ई.) में ठठावता गाँव आ गए. खुमाणारामजी के 11 बेटे और एक बेटी लाडो नामकी थी. बेटों के नाम पेमा, भींवा, बोदू, ... आदि थे. नूनारामजी और पेमारामजी रतनगढ़ के ओसवाल बनियों के साथ दिसावर (आसाम) चले गए. संवत 1975 (1918 ई.) में भयंकर महामारी फ़ैल गयी. नूनारामजी दिसावर में ही ख़त्म हो गये और पेमारामजी वहां से रतनगढ़ आ गये. पेमारामजी रतनगढ़ में आकर मर गये. संवत 1975 (1918 ई.) की महामारी में खुमाणारामजी के सभी 10 बेटे और बेटी लाडां मर गये. केवल खुमाणारामजी और भींवारामजी बचे. उसकी पत्नी रूकमा की चूड़ी उसके छोटे भाई भींवारामजी ने पहन ली अर्थात पेमारामजी की पत्नी रूकमा (गोत्र पचार) से शादी करली. पेमारामजी के मरने के कुछ माह बाद संवत 1975 में आसोज माह में पुत्र लादूरामजी (यह इतिहास बताने वाले) पैदा हुए. लादूरामजी के तीन साल बाद संवत 1978 (1921 ई.) में भींवारामजी के पुत्र बेगारामजी (लेखक के पिता ) पैदा हुए. भींवारामजी के दो और पुत्र जेसारामजी और मूलारामजी पैदा हुए. इस तरह भींवारामजी के चार पुत्र हुए. उन्होंने ठठावता में वहां के ठाकुर गणपत सिंह से 500 बीघा जमीन मंडवा ली. यह जमीन पहले मेघा ऐचरा की थी. खुमाणारामजी संवत 2001 में ख़त्म हुए और उसके 11 दिन बाद पुत्र भींवारामजी भी ख़त्म हो गये. ऐसी परिस्थिति में दोनों का मौसर एक ही दिन किया. संवत 2011 (वर्ष 1954) में बेगारामजी के पुत्र लक्ष्मण (लेखक) पैदा हुए.

नोट - यह इतिहास बताने वाले श्री लादूरामजी बुरड़क का निधन यह इतिहास बताने के अगले माह अर्थात अप्रेल 1996 में ही हो गया.

विस्तार से बुरडक गोत्र का इतिहास यहाँ पढ़ें - बुरड़क गोत्र का इतिहास

बाहरी कड़ियाँ

पिक्चर गैलरी

संदर्भ


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