Mankuwar

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Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Allahabad District Map

Mankuwar (मानकुवर) is a small village on the right bank of the Yamuna. It is in Bara Tehsil of Allahabad district in Uttar Pradesh, India.

Variants

  • Manakuvara मानकुवर (तहसील करछाना, जिला अलाहाबाद) उत्तर प्रदेश (AS, p.733)
  • Mankunwar (मानकुँवर) (AS, p.668)
  • Manakwar

Location

Manakwar village code is 161914. Manakwar village is located in Bara Tehsil of Allahabad district in Uttar Pradesh, India. It is situated 9km away from sub-district headquarter Bara and 20km away from district headquarter Allahabad.[1] It is about nine miles from Arail in Allahabad district in Uttar Pradesh.

History

There is yet another inscription of Kumara Gupta on the Mankuwar stone image, dated in G. E. 129 ( 448 AD). It should he remembered, in this connection, that the Mankuwar stone image inscription gives the latest available date during the reign of Kumara Gupta I. The Bilsad inscription speaks of the worship of Kartikeya Mahasena Swami, while Buddha, Siva and the Sun-god are glorified in the Mankuwar, Karamdande and Mandasor inscriptions respectively.

मानकुवर, अलाहाबाद

विजयेन्द्र कुमार माथुर[2] ने लेख किया है .... मानकुवर (AS, p.733-734) तहसील करछाना, जिला अलाहाबाद, उत्तर प्रदेश में स्थित है. इस स्थान से गुप्त सम्राट कुमार गुप्त के शासनकाल की एक अभिलिखित [p734]: बुद्ध-मूर्ति प्राप्त हूई है. इसकी तिथि 129 गुप्त संवत (=449 ई.) है. अभिलेख में भिक्षु बुद्धमित्र दवारा इस प्रतिमा की प्रतिष्ठापना का उल्लेख है. इस अभिलेख की विशेष बात यह है कि इसमें गुप्तकाल के अन्य अभिलेखों की भांति कुमारगुप्त को महाराजाधिराज न कह कर केवल महराज कहा गया है जो सामान्य सामंतो की उपाधि थी. फ्लीट का मत है कि कुमारगुप्त के शासनकाल के अन्तिम वर्षों मे पुष्यमित्रों तथा हूणों के आक्रमण के कारण गुप्तसाम्राज्य की प्रतिष्ठा कम हो चली थी और इस तथ्य की झलक हमें इस अभिलेख मे प्रयुक्त महाराज शब्द से मिलती है. यह बुद्ध की मूर्ति मथुरा-शैली मे निर्मित है. इसका सिर मुंडित है और अभय मुद्रा मे स्थित है. मूर्ति की बैठक पर सिंह ओर धर्मचक्र अंकित हैं. शरीर के अंगों के अनुपात और मुखमुद्रा के आधार पर मूर्ति कुषाणकाल की मूर्तियों से मिलती-जुलती कही जा सकती है किन्तु उष्णीय की उपस्थिति अवश्य ही इसे गुप्तकालीन प्रमाणित करती है.

भीटा, इलाहाबाद

विजयेन्द्र कुमार माथुर[3] ने लेख किया है ...भीटा (AS, p.668): जिला इलाहाबाद, उ.प्र. में प्रयाग से लगभग बारह मील दक्षिण-पश्चिम की ओर यमुना के तट पर कई विस्तृत खण्डहर हैं, जो एक प्राचीन समृद्धशाली नगर के अवशेष हैं। इन खण्डहरों से प्राप्त अभिलेखों में इस स्थान का प्राचीन नाम सहजाति है। भीटा, सहजाति इलाहाबाद से दस मील पर स्थित है।

उत्खनन: 1909-1910 में भीटा में भारतीय पुरातत्त्व विभाग की ओर से मार्शल ने [p.669]:उत्खनन किया था। विभाग के प्रतिवेदन में कहा गया है कि खुदाई में एक सुन्दर, मिट्टी का बना हुआ वर्तुल पट्ट प्राप्त हुआ था, जिस पर सम्भवतः शकुन्तला-दुष्यन्त की आख्यायिका का एक दृश्य अंकित है। इसमें दुष्यन्त और उनका सारथी कण्व के आश्रम में प्रवेश करते हुए प्रदर्शित हैं और आश्रमवासी उनसे आश्रम के हिरण को न मारने के लिए प्रार्थना कर रहा है। पास ही एक कुटी भी है, जिसके सामने एक कन्या आश्रम के वृक्षों को सींच रही है। यह मृत्खंड शुंगकालीन है (117-72 ई. पू) और इस पर अंकित चित्र यदि वास्तव में दुष्यन्त व शकुन्तला की कथा (जिस प्रकार वह कालिदास के नाटक में वर्णित है) से सम्बन्धित हैं, तो महाकवि कालिदास का समय इस तथ्य के आधार पर, गुप्तकाल (5वीं शती ई.) के बजाए पहली या दूसरी शती से भी काफ़ी पूर्व मानना होगा। किन्तु पुरातत्त्व विभाग के प्रतिवेदन में इस दृश्य की समानता कालिदास द्वारा वर्णित दृश्य से आवश्यक नहीं मानी गई है।

भीटा से, खुदाई में मौर्यकालीन विशाल ईंटें, परवर्तिकाल की मूर्तियाँ, मिट्टी की मुद्राएँ तथा अनेक अभिलेख प्राप्त हुए हैं। जिनसे सिद्ध होता है कि मौर्यकाल से लेकर गुप्त काल तक यह नगर काफ़ी समृद्धशाली था। यहाँ से प्राप्त सामग्री लखनऊ के संग्रहालय में है। भीटा के समीप ही मानकुँवर ग्राम से एक सुन्दर बुद्ध प्रतिमा मिली थी, जिस पर महाराजाधिराज कुमारगुप्त के समय का एक अभिलेख उत्कीर्ण है.(129 गुप्त संवत्=449)

व्यापारिक नगर: सहजाति या भीटा, गुप्त और शुंग काल के पूर्व एक व्यस्त व्यापारिक नगर के रूप में भी प्रख्यात था क्योंकि एक मिट्टी की मुद्रा पर सहजातिये निगमस यह पाली शब्द तीसरी शती ई. पू. की ब्राह्मीलिपि में अंकित पाए गए हैं। इससे प्रमाणित होता है कि इतने प्राचीन काल में भी यह स्थान व्यापारियों के निगम या व्यापारिक संगठन का केन्द्र था। वास्तव में यह नगर मौर्यकाल में भी काफ़ी समुन्नत रहा होगा, जैसा कि उस समय के अवशेषों से सूचित होता है।

Mankuwar Image Inscription of Kumaragupta I (448-449 CE)

  • Ôm! Reverence to the Buddhas! This image of the Divine One, who thoroughly attained perfect knowledge, (and) who was never refuted in respect of his tenets, has been installed by the Bhikshu Buddhamitra,— (in) the year 100 (and) 20 (and) 9; in the reign of the Mahârâja, the glorious Kumâragupta; (in) the month Jyêshtha; (on) the day 10 (and) 8,— with the object of averting all unhappiness.
  • From: Fleet, John F. Corpus Inscriptionum Indicarum: Inscriptions of the Early Guptas. Vol. III. Calcutta: Government of India, Central Publications Branch, 1888, 47.

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