Matanga

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Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Matanga (मातंग) was a mountain near Rajagriha (Rajgir) in Bihar. Matanga (मातंग) was also a country located south-east of Kamarupa known for diamond mines. [1]

Origin

Variants

History

Matanga was also name of a Naga King. (See List of Naga Rajas, S.N.35). It was also a Janapada in eastern India.

In Mahabharata

Matanga (मातङ्ग) is mentioned in Mahabharata (I.60.64), (III.83.15),

Matanga Ashrama (मतङ्ग आश्रम) (Tirtha) is mentioned in Mahabharata (III.85.19), (XIII.26.31),


Adi Parva, Mahabharata/Book I Chapter 60 gives genealogy of all the principal creatures. Matanga (मातङ्ग) is mentioned in Mahabharata (I.60.64). [2]....And, O king, the offspring of Matangi are all the elephants. And Sweta begat the large elephant known by the name of Sweta, endued with great speed.


Vana Parva, Mahabharata/Book III Chapter 83 mentions names of Pilgrims. Matanga (मातङ्ग) is mentioned in Mahabharata (I.60.64), (III.83.15). [3]....Here is Matanga's tirtha called Kedara (केदार) (III.83.15), O son of the Kuru race! Bathing in it, O foremost of the Kurus, a man obtaineth the merit of giving away a thousand kine.


Vana Parva, Mahabharata/Book III Chapter 85 mentions sacred asylums, tirthas, mountans and regions of eastern country. Matanga Ashrama (मतङ्ग आश्रम) (Tirtha) is mentioned in Mahabharata (III.85.19).[4]..... In that direction also lieth the high-souled Matanga's (मतङ्ग आश्रम) (III.85.19) excellent asylum, called Kedara (केदार) (III.85.19) which is sacred and auspicious and celebrated over the world.


Anusasana Parva/Book XIII Chapter 26 mentions the sacred waters on the earth. Matanga Ashrama (मतङ्ग) (Tirtha) is mentioned in Mahabharata (XIII.26.31).[5].....He that bathes in Analamba or in eternal Andhaka, or in Naimisha, or the tirtha called Swarga, and offers oblations of water to the Pitris, subduing his senses the while, acquires the Merit of a human sacrifice.

मातंग

विजयेन्द्र कुमार माथुर[6] ने लेख किया है ....मातंग (AS, p.733):

1. राजगृह के निकट एक पहाड़ी (दे. राजगृह)

2. कामरूप के दक्षिण-पूर्व में देश जो हीरे की खानों के लिए प्रसिद्ध था (युक्तितकल्पतरु)


मातंग-जातक कथा (Matanga-Jataka Katha:497)

यह बात उस समय की है जब अस्पृश्यता अपने चरम पर थी। एक बार एक धनी सेठ की कन्या अपनी सहेलियों के साथ क्रीड़ा के लिए एक उद्यान जा रही थी। तभी मार्ग में उसे मातंग नाम का एक व्यक्ति दिखा जो जाति से चाण्डाल था। अस्पृश्यता की परंपरा को मानने वाली वह कन्या मातंग को देखते ही उल्टे पाँव लौट गई। उस कन्या के वापिस लौटने से उसकी सहेलियाँ और दासियाँ बहुत क्रुद्ध हुईं और उन्होंने मातंग की खूब पिटाई की। मार खाकर मातंग सड़क पर ही गिर पड़ा। उसका खून बहता रहा मगर कोई भी उसकी मदद को नहीं आया।

मातंग को जब होश आया तो उसने उसी क्षण अस्पृश्यता के विरोध का निश्चय किया। वह उस कन्या के घर के सामने पहुँचा और जहाँ वह भूख-हड़ताल पर बैठ गया। सात दिनों तक उसने न तो कुछ खाया और न ही पिया। बस, वह इसी मांग पर अड़ा रहा कि उसकी शादी उस कन्या से तत्काल करवा दी जाय वरना वह बिना खाये-पिये ही अपने प्राण त्याग देगा।

सात दिनों के बाद मातंग मरणासन्न हो गया तब उस कन्या के पिता को यह भय हुआ कि अगर मातंग वहाँ मरेगा तो उसके मृत शरीर को कौन हाथ लगाएगा, वहाँ से हटाएगा? अत: उस भय के कारण पिता ने अपनी ही कन्या को जबरदस्ती मातंग के पास ढकेल अपना दरवाज़ा बन्द कर लिया । मातंग ने तब अपनी हड़ताल तोड़ी और उस कन्या के साथ विवाह रचाया।

फिर उसने अपने गुणों और कर्मों से पहले अपनी पत्नी को विश्वास दिलाया कि वह किसी भी जाति के व्यक्ति से कम गुणवान् नहीं था। पत्नी को विश्वास दिलाने के बाद उसने अपने नगरवासियों को भी यह विश्वास दिलाया कि वह एक महान् गुणवान् व्यक्ति था।

एक बार उस नगर के किसी ब्राह्मण ने उसका अपमान किया तो लोगों ने उस ब्राह्मण को पकड़ उसके पैरों पर गिर माफी मांगने पर विवश किया। माफी मांगने के बाद वह ब्राह्मण किसी दूसरे राज्य में चला गया।

संयोग से मातंग भी एक बार उसी राज्य में पहुँचा, जहाँ उस ब्राह्मण ने शरण ली थी। मातंग को वहाँ देख उस ब्राह्मण ने उस देश के राजा के कान भरे। उसने राजा को बताया कि मातंग एक खतरनाक जादूगर है, जो उसके राज्य का नाश करा देगा । तब राजा ने अपने सिपाहियों को बुला तुरंत ही मातंग का वध करने की आज्ञा दी । ब्राह्मण के षड्यन्त्र से अनभिज्ञ मातंग जब भोजन कर रहा था, तभी सिपाहियों ने अचानक उस पर हमला बोला और उसकी जान ले ली।

मातंग के संहार से प्रकृति बहुत कुपित हुई । कहा जाता है, उसी समय आसमान से अंगारों की वृष्टि हुई जिससे वह देश पूरी तरह से जलकर ध्वस्त हो गया । इस प्रकार बोधिसत्व मातंग की हत्या का प्रतिशोध प्रकृति ने लिया।

External links

References

  1. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.733
  2. मातङ्ग्यास तव अथ मातङ्गा अपत्यानि नराधिप, दिशागजं तु शवेताख्यं शवेताजनयद आशुगम (I.60.64)
  3. मतङ्गस्य तु केदारस तत्रैव कुरुनन्दन, तत्र सनात्वा नरॊ राजन गॊसहस्रफलं लभेत (III.83.15)
  4. पवित्रॊ मङ्गलीयश च खयातॊ लॊके सनातनः, केदारश च मतङ्गस्य महान आश्रम उत्तमः (III.85.19)
  5. मतङ्ग वाप्यां यः सनायाद एकरात्रेण सिध्यति, विगाहति हय अनालम्बम अन्धकं वै सनातनम (XIII.26.31)
  6. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.733