Mera Anubhaw Part-2/Kisan

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रचनाकार: स्वतंत्रता सेनानी एवं प्रसिद्ध भजनोपदेशक स्व0 श्री धर्मपाल सिंह भालोठिया

ए-66 भान नगर, अजमेर रोड़, जयपुर-302021, 9460389546

किसान:भजन क्रमांक:6-10


6. ईश्वर तू है सर्वाधार

देश में विशेषरूप से दुखी इन चार प्राणियों का वर्णन -

भजन- 6

तर्ज : भगत रहे टेर टेर, आओ ना लगाओ देर -----

ईश्वर तू है सर्वाधार, देश में दुखी ये चार ।

ध्यान इनकी ओर दे ।। टेक ।।

प्रथम तो किसान बेचारा, दिन और रात कमाता।

शाम को बच्चों को संग ले, भूखा सोवे अन्नदाता।

ईश्वर इसकी भूख मिटा दे,चाहे पेट में गाँठ लगा दे।

या कोई हड्डी जोड़ दे ।। 1 ।।

नम्बर दो मजदूर करें, जितने कपड़े तैयार।

मोटर, रेल, हवाई जहाज, लड़ाई के हथियार।

कोई बच्चा नहीं सुख से पलता,रोटी और कपड़ा नहीं मिलता।

क्यों फिर इनको खोड़ दे। ।। 2 ।।

नम्बर तीन पिता घर लड़की, अठारह साल कमाती।

अनपढ़ बच्चे बूढ़ों के संग, जबरन ब्याही जाती।

शिक्षा का प्रबंध हो, वर ब्याहें जो पसंद हो।

या पैदा करनी छोड़ दे ।। 3 ।।

नम्बर चार ये तरण-तारणी, गऊ माता कहलाती।

लाखों बेचारी रोजाना, हत्थों में प्राण गंवाती।

कृष्ण जैसा पाली हो, गऊवों की रखवाली हो।

ये बूचड़ खाना तोड़ दे ।। 4 ।।

इनके दुख में दुखी रात दिन, नींद नहीं आती है।

दुखों में ही एक-एक पल, आयु बीती जाती है।

कर मंजूर सुनाई को, इस धर्मपाल सिंह भाई को।

कहीं अमन चैन की ठौड़ दे ।। 5 ।।

7. क्यों फिरे भटकता, भारत के वीर कमाऊ

इस गाने में किसान की दशा का वर्णन है और संगठन बनाने के लिए प्रेरित किया है -

भजन-7
तर्ज : ( पारवा ) चलत

क्यों फिरे भटकता, भारत के वीर कमाऊ ।। टेक ।।

नंगे आसमान के नीचे, दिन और रात कमावे तू।

जेठ साढ की आग पडे़ जब, अपना गात तपावे तू।

तेरा पसीना नहीं सूखे फिर, कपडे़ कहाँ सुखावे तू।

पोह माह का जब चले सींकटा, खेत में पाणी लावे तू।

रात अन्धेरी खड़ा पाणी में, अपनी जाड़ बजावे तू।।

जिससे दुनिया ऐश करे, वह साधन सभी बनावे तू।

गेहूँ चावल मूँग मोठ, जौ, चणे उड़द उपजावे तू।

गुड़ शक्कर चीनी के लिए, जा खेत र्में ईख नुलावे तू।

तेल की खातिर मूँगफली तिल, सिरसम तरा उगावे तू।

फल सब्जी और कपास के लिए, बाड़ी बाग लगावे तू।

तेरे खेत में आलू गोभी, भिन्डी मटर बताऊ ।।

क्यों फिरे भटकता.............।। 1 ।।

सच्चा देश भक्त तेरे में, नही कपट और छल देखो।

सादा खान पान सै तेरा, अन्न सब्जी और फल देखो।

उसकी करता मदद हमेशा, जो होता निर्बल देखो।

खेत के अन्दर जाता जब तू, लेकर अपना हल देखो।

सच्चे मायनों में करता है, धरती उथल पुथल देखो।।

काश्मीर के जंग में पहुँचे, जिस दिन तेरे दल देखो।

छम्बजोड़िया में जा मारे, पाकिस्तानी खल देखो।

दर्रा हाजी पीर व बर्की, डोगराई में चल देखो।

खून से लाल बनादी, पाकिस्तान की इच्छोगिल देखो।

दुनिया में भारत माता का, नाम किया उज्ज्वल देखो।

कारगिल की जीती लडा़ई, उसका सीन दिखाऊँ।।

क्यों फिरे भटकता.............।। 2 ।।

अब तो आँखें खोल बावले, होण लगी घुड़दौड़ यहाँ।

कौन रहेगा सबसे आगे, लगी आपस में होड़ यहाँ।

दुनिया आगे निकल रही, तेरे को पीछे छोड़ यहाँ।

शान से जीने के लिए मिलती, है माणस की खोड़ यहाँ।

बेइज्जती से मरना अच्छा, नहीं जीने की लोड़ यहाँ।।

अपनी ताकत समझ लिए, कितनी थी तेरी मरोड़ सुनो।

तेरे दादा अमरीका में , गये बाँध के मोड़ सुनो।

जर्मन वालों का भी एक दिन, आये थे थोबड़ा तोड़ सुनो।

बिना संगठन धरती पर नहीं, दो पैरों को ठौड़ सुनो।

जीना है तो बना संगठन, यह है सौ का जोड़ सुनो।

फिर दिल्ली पर राज करेंगे, तेरे चाचा और ताऊ।।

क्यों फिरे भटकता...........।। 3 ।।

तुमको आशीर्वाद मिले फिर , भारत माँ का देख लिए।

जगह जगह दफ्तर खुलज्यां, हर एक इलाका देख लिए।

अपने हक की लड़ें लड़ाई, तेरे लड़ाका देख लिए।

देश में सबसे ऊँची फरके, तेरी पताका देख लिए।

किसान दिवस पर मनै दिवाली, बजें पटाका देख लिए।।

जिस दिन तेरी बने हुकूमत, नया धमाका देख लिए।

रिश्वतखोर और जमाखोर नहीं, मारें डाका देख लिए।

पूँजीपति के गोदाम में नहीं, मिलेगा फाका देख लिए।

बच्चे भूखे रोवें उनके, ज्यान नै साका देख लिए।

उस दिन तेरे पैर पकड़लें, कहेंगे काका देख लिए।

धर्मपाल सिंह भालोठिया कहे, कोई नहीं तेरा साऊ।।

क्यों फिरे भटकता.........।। 4 ।।

= 8. आरती -- जय जय जय हाली

किसान के कार्यों का वर्णन :

आरती-8 (किसान)

तर्ज : ओउ्म जय जगदीश हरे...........

जय जय जय हाली, कमाऊ जय जय जय हाली।

तेरे बिना इस धरती पर, नहीं होती हरियाली ।। 1 ।।

अन्न धन के भंडार रहें, सब तेरे बिना खाली।

तेरे हाथ में दुनिया के, सुख साधन की ताली ।। 2 ।।

कभी खेत में अन्न उपजावे, लेकर हल फाली।

फल सब्जी पैदा करता , कभी बन के माली ।। 3 ।।

दूध दही घी खाते पीते, जो भर-भर थाली।

गऊ भैंस बकरी ले, कभी बन जावे पाली ।। 4 ।।

माह पोह का जब चले सींकटा, छाई रात काली।

खड़ा खेत में पानी लगावे , बना-बना नाली ।। 5 ।।

बचपन और बुढ़ापे में भी, तूं नहीं रहता ठाली।

जवान उमर में, फौज में जा, करे देश की रखवाली।। 6 ।।

तेरी कमाई खा अन्याई, जो तुझको दें गाली।

फिर भी उनकी झोली में, तूने भिक्षा डाली ।। 7 ।।

हर साधन से जिस दिन तू, बनज्या शक्तिशाली ।

भालोठिया कहे उस दिन देश की, मिट जा कंगाली ।। 8 ।।

9. आज हिमालय की चोटी से

भजन-9

तर्ज : चौकलिया/आज हिमालय की चोटी से -----

आज हिमालय की चोटी से, अस्सी ने ललकारा है।

दूर हटो रे बीस लुटेरो, हिन्दुस्तान हमारा है।। टेक ।।

बहुत देर तक देख लिया, रहा फीका रंग आजादी का।

जमाखोर रिश्वततखोरों ने, खोया ढंग आजादी का।

बीस चोर रहे हिला डोर,लिया बना पतंग आजादी का।

मेहनतकस ने छेड़ दिया, अब दूसरा जंग आजादी का।

अस्सी फीसदी लोगों का, आपस में भाई चारा है।।

दूर हटो रे.............।। 1 ।।

कितने रंग बदलता है, इसकी पहचान निराली है।

कहीं फौज में कहीं पुलिस में, कहीं खेत में हाली है।

कहीं सड़क पै कहीं नहर पै, कहीं बाग में माली है।

कहीं मास्टर कहीं पटवारी,कहीं जंगल में पाली है।

कहीं रेल कहीं रोडवेज में, अपना करे गुजारा है।।

दूर हटो रे...........।। 2 ।।

अब तक इसको ज्ञान नहीं था, कितनी शक्ति तेरे में।

अलग-अलग जाति में बंटके, पिटता रहा अंधेरे में।

कभी कहे था जोर चले नहीं, इस कलयुग के फेरे में।

कभी भाग्य के गीत गांवता, बैठा अपने डेरे में।

इसने समझ लिया अपने, नेता का आज इशारा है।।

दूर हटो रे...........।। 3 ।।

बीस लुटेरों ने भारत, अपनी जागीर बनाली है।

अस्सी कमेरे पच पच मरते, इनके घर कंगाली है।

बीस लुटेरे जिनके घर में, मनती रोज दीवाली है।

अस्सी कमेरे भूख में जिनकी, शक्ल हो गई काली है।

भालोठिया कहे इनको अपना, देश प्राणों से प्यारा है।।

दूर हटो रे...........।। 4 ।।

10. तेरे कितने रूप किसान

आरती-10 (किसान)

देश में 80% किसान हैं उनको अपनी शक्ति पहचानने के लिए प्रेरित किया है :-

== दोहा ==

कृषि प्रधान देश का , जब होगा कल्याण।

प्रधानमंत्री देश का, जिस दिन बने किसान ।।

तर्ज :तेरे पूजन को भगवान, बना मन मन्दिर आलीशान........

तेरे कितने रूप किसान, तू अपनी शक्ति को पहचान ।। टेक ।।

गाँव में रहने वाले भाई, ब्राह्मण बनिये चमार नाई।

सिक्ख हिन्दू और मुसलमान, तू अपनी शक्ति को पहचान ।। 1 ।।

गूजर राजपूत और खाती, अहीर जाट की एक ही जाति।

एक ही सबका है खानदान, तू अपनी शक्ति को पहचान ।। 2 ।।

तू ही खेत में अन्न उपजावे, तू ही अन्नदाता कहलाये।

उगावे बाड़ी ईंख और धान , तू अपनी शक्ति को पहचान ।। 3 ।।

कभी नहर की करे खुदाई, कभी सड़कों की करे बन्धाई।

करे तू देश का नव निर्माण, तू अपनी शक्ति को पहचान ।। 4 ।।

तेरे धर्मवीर और प्यारे , कारखानों में खड़े बेचारे।

उनको कहे मजदूर जहान, तू अपनी शक्ति को पहचान ।। 5 ।।

तेरे लेखराम और मौजी, भरती होकर बनगे फौजी।

खड़े सरहद पर सीना तान, तू अपनी शक्ति को पहचान ।। 6 ।।

पंडित ज्ञानी मुल्ला पादरी, मेहनतकस छत्तीस बिरादरी।

सबका एक नफा नुकसान, तू अपनी शक्ति को पहचान ।। 7 ।।

मिलकर एक लगादो नारा, देश में हो फिर राज तुम्हारा।

सुनो फिर भालोठिया का गान, तू अपनी शक्ति को पहचान ।। 8 ।।

10.(I) - भारत माता खुश हो रही

भजन - 10 (I) किसान

भारत माता खुश हो रही, आज खुश हो रहे भगवान ।

दिल्ली के मालिक दिल्ली में, आये वीर किसान ।। टेक ।।

दिल्ली से चलता है हमेशा राज भारत का ।

दिल्ली में बदलेगा नक्शा आज भारत का ।

दिल्ली में बज रहा खुशी का साज भारत का ।

नाज भारत का दिल्ली में और भारत की शान ।। 1 ।।

इन्कलाब की लहर चली दोबारा भारत में ।

धन और धरती का होगा बंटवारा भारत में ।

शास्त्री जी जो करगे ये ईशारा भारत में ।

जय जवान और जय किसान का नारा भारत में ।

न्यारा भारत का दिल्ली में होता है सम्मान ।। 2 ।।



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