Mohan Lal Deg

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Author:Laxman Burdak, IFS (R), Jaipur

Mohan Lal Deg (श्री मोहनलाल वर्मा) (देग), from Indali Gaon, Jhunjhunu, was a social worker and Freedom fighter who took part in Shekhawati farmers movement in Rajasthan. [1]

जाट जन सेवक

ठाकुर देशराज[2] ने लिखा है ....श्री मोहनलाल वर्मा - [पृ.436]: दुलाराम जी के दो लड़के और दो लड़कियाँ हुई। सबसे बड़े लड़के कुंवर सांवलराम जी हैं और छोटे लड़के श्री मोहनलाल जी वर्मा। आप देग गोत्र में से हैं। आपका जन्म इण्डाली गांव शेखावाटी प्रांत में सन् 1918 की 25 अक्टूबर को अर्द्धरात्रि में हुआ था।

सन 1928 में आपको बिरला कॉलेज पिलानी में पढ़ने को भेज दिया गया। वहां पर आपने चार-पांच साल विद्या अध्ययन किया मगर फिर आपका मन उधर न लगा क्योंकि उन दिनों शेखावाटी में इंकलाब आया हुआ था। जाट जाति पर तरह-तरह के जुल्म हो रहे थे। आए दिन कितने किसानों को गोलियां और तलवार की भेंट चढ़ाया जाता था। आपको यह सहन न हुआ और स्कूल छोड़कर कार्यक्षेत्र में कूद पड़े। इन्हीं दिनों सेठ जमनालाल जी पर जयपुर राज्य की ओर से प्रतिबंध लगा दिया। जिसके कारण तो जयपुर प्रांत भर में क्रांति की लहर बह चली। आपने उस में पूरा हिस्सा लिया और 14 मार्च सन् 1939 में झुंझुनू शहर में आप कैद कर लिए गए। आप को जयपुर भेज दिया गया और वहां पर झालाना जेल में आप पर मुकदमा चलाकर आपको 6 माह की कठिन कारावास की


[पृ.437]: सजा हुई। आपने वहां पर भी चेन नहीं लिया। जितने सत्याग्रही थे उनको आप सदा उत्साहित करते रहते थे। जयपुर राज्य ने आपको तरह-तरह के लोभ दिए मगर आपको वे न फूसला सके। आप सच्चे जाति सेवक थे।

जेल से बाहर आने पर आपने अपना काम ज्यादा जोश के साथ किया और रातों-रात गांव-गांव में आप घूम कर प्रचार काम करते थे। आपने कुछ दिन खादी आश्रम में भी काम किया मगर वहां के कार्यकर्ताओं से आपकी न बनी। क्योंकि आप गरीबों के दास थे वहां का नकली चोला आपको सहन नहीं था। वहां से आप ने इस्तीफा दे दिया। आपने मुकुंदगढ़, खंडेला और पिलानी में कताई बुनाई के अध्यापक की हैसियत से काम किया। मगर वहां पर भी आपका मन न लगा।

आखिरकार आपने एक किसान जाट होने के नाते अपना समय जाट जाति की उन्नति में ही देना ठीक समझा। जाट महासभा के सदस्य आप ने बनाए। यद्यपि आप प्रजामंडल के मेंबर रहे मगर आपका अधिक ध्यान जाट जाति की ओर रहा। जाट पंचायत को खत्म करने के समय भी आप उस के विरोधी थे। मगर आप का विरोध थोड़ा था इसलिए आप कुछ समय के लिए प्रजामंडल की उस पार्टी से अपना नाता तोड़ लिया जो कि जाट पंचायत को खत्म कर रही थी। मगर आपने फिर भी चैन नहीं लिया और आप स्वतंत्र जाट जाति में करते रहे अब फिर से जाट सभा और किसान सभा कायम हो गई है। आप पहले आदमी थे जिन्होंने इस में अपना जीवन दिया। आज आप किसान सभा में पूर्ण दिल से काम कर रहे हैं। और हमेशा जाट जाति की उन्नति में ही अपनी को लगा समझते हुए काम कर रहे हैं।


[पृ.438]: सन् 1941 से आप बिरला हाउस दिल्ली में काम कर रहे हैं और वहां पर अच्छे अच्छे लीडरों की सौहबत होने से आपके विचार बहुत ही निखर गए हैं। सेठ साहब श्री घनश्याम दास जी बिरला का भी आपसे घनिष्ट प्रेम है। समय समय पर आप उनके विचारों से लाभ उठाते रहते हैं।

आज तक आप जयपुर राज्य किसान सभा की कार्यकारिणी कमेटी के सदस्य हैं। आप एक होनहार उत्साही नवयुवक हैं और साधारण खान पान और वेशभूषा ही आपका ध्येय रहा है। आप समाचार पत्रों के तो बड़े ही प्रेमी हैं और जाट जाति के समाचार-पत्र तो आपको विशेष रुचिकर रहते हैं। समय समय पर आप प्रचारार्थ गांव में जाते हैं और लोगों को विद्या प्रचार और किसान सभा के संगठन के अनुयाई बनाते रहते हैं।

आपका भविष्य उज्जवल है। अभी आप सच्चे दिल से किसान सभा का कार्य कर रहे हैं। इस समय आपकी उम्र 30 साल की है।

आप की धर्मपत्नी श्री जकोरीदेवी है जो कि झाझरिया गोत्र से है। आपके पिता चौधरी चंद्राराम वल्द केशुराम हैं जोकि राणासर के रहने वाले हैं। आपकी जीवन संगिनी ने आपके काम में पूरा हथबटाया है। आपने पुरानी रूढ़ियों को खत्म करके जेवरों को कटाई नहीं अपनाया। आजकल साधारण आभूषणों के सिवाय कोई श्रंगार की चीज नहीं पहनती हैं।

जीवन परिचय

किसान सभा का सदस्य

मोहन सिंह इन्दाली - किसान सभा की और से रींगस में विशाल किसान सम्मलेन 30 जून 1946 को बुलाया गया । इसमें पूरे राज्य के किसान नेता सम्मिलित हुए । यह निर्णय किया गया कि पूरे जयपुर स्टेट में किसान सभा की शाखाएं गठन की जावें । आपको जयपुर स्टेट की किसान सभा का सदस्य चुन लिया गया । (राजेन्द्र कसवा, p. 203)

सन्दर्भ

  1. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.436-438
  2. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.436-438

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