Moona Ram Dular

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Moona Ram Dular was from village Jaisinghpura, District Jhunjhunu, Rajasthan. He was attacked by Jagirdar of Dundlod in which his brother Tiku Ram Dular was killed at village Jaisinghpura Jhunjhunu in Jhunjhunu district on 21 June 1934, while they were ploughing the fields.

Family of freedom fighters

Moona Ram Dular was a freedom fighter of Shekhawati farmers movement. Moona Ram Dular was brother of Tiku Ram Dular. His grandson Chandrabhan Chaudhary was ex. Mimister and President Rajasthan Pradesh Congress Committee.


जयसिंहपुरा काण्ड

जयसिंहपुरा काण्ड - अभी हनुमानपुरा अग्निकांड का फैसला भी नहीं हो पाया था की डूण्डलोद के ठाकुर के भाई ईश्वर सिंह ने जयसिंहपुरा में निहत्थे खेतों में काम करते किसानों को घेरकर गोलियां चलादी और उन्हें लाठियों, बरछों आदि से बुरी तरह पीटा. यह दुर्घटना 21 जून 1934 को दोपहर के समय हल चलाते हुए किसानों के साथ हुई. जयसिंहपुरा के जाटों ने खेतों में हल जोते तो ठिकाना डूण्डलोद का भाई ईश्वर सिंह 100 आदमी हथियारबंद घुड़सवार लेकर मौजा जयसिंहपुरा में पहुंचा. दिन के 12 बजे पहले गाँव की सरहद में घोड़ों को घुमाया और बिगुल बजाया. फिर चौधरी टीकू राम के खेत में पहुंचे. उसका लड़का नारायण सिंह हल चला रहाथा. टीकू राम की लडकी और उसकी पत्नी सूड़ काट रही थी. टीकू राम कटे झाड़-बोझों को समेट कर अळसोटी कर रहा था. उस समय ठाकुर ईश्वर सिंह के आदमी उस परिवार पर टूट पड़े. बंदूकों से फायर शुरू कर दिए और बरछे व लाठियां मारी गयी. चौधरी टीकू राम का सर फट गया. कई गोलियां उनके शरीर पर लगीं और उसके प्राण-पखेरू उड़ गए. टीकू के दोनों लड़के भी जख्मी हुए और उसकी स्त्रियों के भी लाठियों की मार पड़ी. उस समय पास के खेत में काम करने वाले दूसरे लोग दौड़ कर आये तो ईश्वर सिंह ने हुक्म दिया - 'इनको भी मारो'. ईश्वर सिंह खुद अपनी बन्दूक से फायर करने लगे. एक सबल सिंह राजपूत ठिकाने का कामदार , तीसरा जमन सिंह राजपूत मुलाजिम ठिकाने का और चौथा सादुलखान क्यामखानी ये चारों बंदूकों के फायर करने लगे और दूसरे लोग लाठियां और भाले चलाने लगे. 8-9 औरतों और लड़कियों को भाले की चोटें आई और 12 -13 पुरुषों के गोलियां और भाले लगे. मुन्ना के 127 छर्रे लगे, दूल्हा के गर्दन में गोली लगी, किसना के बरछे के घाव हुए. ये चारों गंभीर जख्मी हुए. जीवनी नामक स्त्री के गोली जांघ को चीरती निकली. मोहरी और पन्नी नामक स्त्रियों के पीठ और पसलियों पर लाठियां लगी. (डॉ पेमाराम, पृ. 128)

यह सारा वाकया इसलिए हुआ कि ये लोग करीब डेढ़ माह पहिले अपना मकान बनाने के लिए ईंटें बनाना चाहते थे. ठिकाने ने ईंट बनाने से मना किया था. जाटों ने इसके लिए मजिस्ट्रेट के इस्तगासा लगा दिया था. इस बात पर ठिकाने वाले चिड गए और जमीन काश्त करने से रोकना चाहा. तब उन्होंने नाजिम झुंझुनू के दरख्वास्त लगादी. तब नाजिम ने निर्णय दिया कि ठिकाना जमीन काश्त करने से नहीं रोक सकता और किसान अपने खेतों को जोत सकते हैं. जयसिंहपुरा वाले समय पर माल देते हैं, खेत जोतने के लिए अड़ जाना उचित ही था. (ठाकुर देशराज: जनसेवक, पृ. 346 -348), (डॉ पेमाराम, पृ. 128)

इस हत्या काण्ड से न केवल शेखावाटी बल्कि राजस्थान भर के किसान तिलमिला उठे और उनमें भारी आक्रोस पैदा हो गया. ठाकुर देशराज, मंत्री राजस्थान जाट सभा, के आह्वान पर 21 जुलाई 1934 को जयसिंहपुरा गोली काण्ड दिवस मनाया गया. अकेले जयपुर में 125 स्थानों पर रोष सभाएं की गयी. इन सभाओं में बड़ी संख्या में किसान इकट्ठे हुए. कूदन गाँव की शोकसभा चौधरी कालू राम के नेतृत्व में हुई. 2000 का जन समूह था जिसमें 700 स्त्रियाँ थीं. पातूसरी गाँव में सिर्फ जाट स्त्रियों की अलग सभा हुई जिसकी अध्यक्षता बनारसी देवी ने की. गौरीर के किसानों ने तो खतरे की उस स्थिति में जयसिंहपुरा दिवस मनाया जबकि बिसाऊ ठिकानेदार के सशस्त्र आदमी गाँव को घेरे हुए थे. (डॉ पेमाराम, पृ. 129)सब जगह शोक सभाओं में इस बात पर जोर दिया गया कि इस गोली काण्ड के नायक ईश्वर सिंह को गिरफ्तार करके सजा दी जाय. किसानों के प्रांतव्यापी रोष का फल यह हुआ कि जयपुर राज्य के तत्कालीन इन्स्पेक्टर जनरल पुलिस मि. यंग को इस काण्ड की जाँच स्वयं करनी पड़ी और मामले को अदालत में पेश किया. राजस्थान जाट सभा ने इस मामले को हाथ में लिया. कुंवर नेतराम सिंह और सरदार हरलाल सिंह ने पैरवी में बड़ी कुशलता दिखाई. ठाकुर ईश्वर सिंह सहित उसके 9 साथियों के खिलाफ गिरफ़्तारी वारंट जारी हुए. [नवयुग 19 सितम्बर 1934 ] ईश्वर सिंह भाग गया. उसे पकड़ कर लाया गया. उसकी गिरफ़्तारी न हो इसके लिए अकेले जयपुर ठिकानेदारों ने ही नहीं अपितु मारवाड़ के जागीरदारों ने भी कोशिश की. राजस्थान जाट सभा ने पूरी ताकत लगाई और ईश्वर सिंह को डेढ़ साल की सजा दिलाने में सफलता प्राप्त की. यह घटना शेखावाटी के किसानों की बड़ी भारी जीत थी. इसके बाद वे कभी ठिकानेदारों से नहीं दबे. (डॉ पेमाराम, पृ. 130)

शेखावाटी का भीषण गोलीकांड

ठाकुर देशराज [1] ने लिखा है... जयपुर 25 जून 1934: आज जयपुर के सरकारी अस्पताल में जयसिंहपुरा के उन घायल जाट किसानों से ठाकुर देशराज, मंत्री राजस्थान जाट क्षत्रिय सभा ने मुलाकात की, जो 21 जून को डूंडलोद के ठिकानेदार के द्वारा कराए हुए गोलीकांड में जख्मी हुए हैं। घायलों की अवस्था करण-उत्पादक है किंतु बच जाने की आशा है। उनमें से चौधरी मुनारामजी के 127 छर्रों के जख्म है। दोनों जांघें छलनी हो गई हैं। उसी के भाई दुलाराम के 21व छर्रे कनपटी और गर्दन में लगे हैं। पीठ पर दो लाठियों के निशान भी हैं। दयाल चौधरी पर भाले से आक्रमण किया गया था। उसके सिर में एक-एक इंच के दो जख्म हुए हैं। किसना के शरीर के विभिन्न स्थानों पर बरछ के निशान हैं।

टीकूराम लाठियों से उसी समय मर गया। उसकी


[पृ.344]: लाश नाजिम ने जयपुर अस्पताल में पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी थी। टीकूराम के दोनों बच्चे भी जख्मी हुए हैं। छोटा लाठी से जख्मी हुआ है और बड़े पर गोली दागी गई है। जीवनी नाम की स्त्री पर दो गोली चलाई, जो कि उसकी जांघ को छीलती हुई निकल गई। मोहरी और पन्नी नाम की स्त्रियों के पीठ और पसलियों पर लाठियां मारी गई हैं। यह स्त्री और बच्चे झुंझुनू अस्पताल में गए हुए हैं।

गोलियों की बौछार इस बुरी तरह हुई कि उसमें एक बैल और एक ऊंट भी सख्त घायल हुए हैं। 11 वृक्षों में से नाजिम साहब के आगे गोलियां निकाली गई है।

यह दुर्घटना 21 जून 1934 को दोपहर के समय में हल चलाते हुए निरीह किसानों पर हुई है। घायलों ने बताया कि डूंडलोद के ठाकुर के भाई ईश्वर सिंह ने सैकड़ों आदमियों के साथ, जिन में कई घुड़सवार और कई ऊंट सवार थे, खेतों में काम करते हुए हमको जहां जो मिला गोली बरछे और लाठियों से मारने का हुक्म दे दिया। जंगल में जो स्त्री बच्चे थे उन पर उन के रोने चिल्लाने पर भी कोई दया नहीं की गई।

गोली कांड का कारण किसानों की ओर से यह बताया जाता है कि हमने एक नई लाग को देने से इंकार कर दिया था और वह नई लाग कुआं के पास ही ईंटों के लिए गड्ढे किए हैं उनकी (गड्ढों की मिट्टी) की क्षतिपूर्ति के नाम पर लगाई जा रही थी।

इस गोली कांड से शेखावाटी के तीन लाख जाट किसान तिलमिला उठे हैं। दैनिक अर्जुन 30 जून 1934


[पृ.345]: जयसिंहपुरा गोलीकांड से तमाम शेखावाटी में तिलमिलाहट फैली और लोगों में आवेश की लहर फैल गई, जैसा कि उस समय के लिखे गए निम्न दो पत्रों से प्रकट होता है:

सांगासी

24 जून 1934

प्रिय ठाकुर साहब,

सादर नमस्कार!

अत्याचारों का होना अभी बंद होने के बजाए उन्नति कर रहा है। जयसिंहपुरा गांव में जहां प्रथम तो ईंट रोकी थी वहीं पर अब नाजिम की इजाजत देने से लोग निश्चित होकर अलग-अलग खेतों में हल चला रहे थे और ईश्वरसिंह ठाकुर डूंडलोद ने करीब 50 सवारों और 50-60 पैदलों सहित आकर एक खेत के किसानों पर गोलियां चला दी। ज्यों-ज्यों लोग दौड़ते हुये आए सबको गोलियों, तलवारों बरछों और लाठियों से मार गिराया। चौधरी टीकू राम का अत्यंत चोट लगने से देहांत हो गया है। और बाकी दो आदमी इसी अवस्था में है। कुल 14 स्त्री पुरुष घायल हो गए और एक बैल के गोली लगी है। तहकीकात हो रही है परंतु यहाँ का थानेदार, डिप्टी सुपरिटेंडेंट और सुपरिटेंडेंट जाटों के ही खिलाफ हैं। नाजिम भी मौका देखने आया था और वे सब लोग कहते हैं तुमने अभी माल नहीं दिया है। उनका खेती करना भी अभी रूका हुआ है। यंग साहब पोलिटिकल एजेंट, चीफ़ कोर्ट और वाइस प्रेसिडेंट जयपुर को तार दे दिए हैं। यंग साहब को स्वयं मौका देखने के लिए बुलाया है। समाचार पत्रों को खबर भेज रहा हूं। अब और अधिक से अधिक शक्ति जुटाने की जरूरत है क्योंकि यह बड़ा भारी हत्याकांड हो चुका है।


[पृ.346]: जैसा पहले कभी नहीं हुआ। सीकर संबंधी लेख मिल चुके होंगे। पंडित प्यारेलाल वहां हो तो यही कीजिएगा। आप जैसा उचित समझें अब करें।

आपका
विद्याधर कुलहरी
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हनुमानपुरा

26 मई 1948 (?)

माननीय ठाकुर साहब, तारीख 21 जून को मौजा जयसिंहपुरा के जाट जमीदारों ने जमीन कास्त करने के लिए हल जोते तो ठिकाना डूंडलोद ने खुद ठाकुर ईश्वरी सिंह 100 आदमी हथियारबंद घुड़सवार लेकर मौजा जयसिंहपुरा में पहुंचा। दिनके 12 बजे पहले गांव की सरहद पर घोड़ों को घुमाया और फिर बिगुल बजाया। फिर चौधरी टीकूराम के खेत में पहुंचे। उसका लड़का नारायण सिंह अपने खेत में हल चला रहा था और चौधरी टीकूराम की धर्मपत्नी और उसकी लड़की खेत में सूड़ काट रही थी और चौधरी टीकूराम जो झाड़-बोझे कटे हुए थे उनको अलग फेंक रहा था। उस समय ठाकुर ईश्वर सिंह और उसके साथी एकदम उस परिवार पर टूट पड़े। बंदूकों के फायर शुरू कर दिए गए और लाठियां मारी गई। चौधरी साहब का सिर यानी भेजी फूट गई और कई गोलियां चौधरी साहब के बदन पर लगी हैं।

चौधरी की स्त्री के भी लठियों की मार पड़ने लगी। उस समय दूसरे लोग जो कि पास ही हल चला रहे थे, दौड़ कर आने लगे। तब उस दुष्ट ईश्वरसिंह ने हुक्म दिया कि सब को गोली मार दो। उस समय ईश्वर सिंह खुद अपनी


[पृ.347]: बंदूक से फायर करने लगा और एक शबलसिंह राजपूत, जोकि ठिकाने का कामदार है, तीसरा जमनसिंह राजपूत मुलाजिम ठिकाने का, चौथा सादुलखां कायमखानी। यह चार मनुष्य बंदूकों के फायर करने लगे और दूसरे लोग लाठियां और भाले चलाने लगे। 8-9 औरतों और लड़कियों के भाले की चोट आई है और 12 या 13 पुरुषों के गोलियां और भालों की चोट आई है। एक हल में चलने वाले बैल के गोली लगी है, जो कि बैल के अंदर ही है बाहर नहीं निकली। इनमें से सख्त चौट तो चौधरी टीकूराम को लगी है जो किसी भी हालत से नहीं बच सकते हैं और चौधरी मून सिंह के बहुत ज्यादा छोटे के कारतूस लगे जिनसे सारा शरीर फूट गया है। दयाल सिंह के 14 भालों की चोट आई है जिससे सारा शरीर घवेल दिया गया है। चौधरी ढुलसिंह के गर्दन के नीचे नसों में गोली लगी। इन 4 की हालत खतरनाक है और शिष लोगों के तो पैर में गोली लगी है, किसी के माथे में, किसी के सीने में और कहिए इतिहास में कई घटना घाटी हैं। यह सारा वाका इसलिए था कि इन लोगों ने करीब डेढ़ महीने पहले अपना मकान बनाने के लिए ईंट करना चाहते थे। ठिकाने ने ईंट बनाने को मना कर दिया इसलिए कि फी मकान ₹5 के टैक्स दें। वे लोग नया टैक्स देने से इंकार हो गए। इसलिए ठिकाने ने जबरन ईंट करने से रोक दिया तो जाटों ने मजिस्ट्रेट के यहां इस्तगासा कर दिया। उस बात पर ठिकाने वाले चिढ़ गए और जमीन कास्त करने से रोकना चाहा तब उन्होंने मजिस्ट्रेट के यहां जाकर दरख्वास्त दी। मजिस्ट्रेट साहब ने हुक्म दिया कि ठिकाने जमीन कास्त करने से नहीं रोक सकते हैं और सुपरिटेंडेंट पर यह हुक्म दिया कि मौके पर जाकर कास्त करवा दो और ठिकाने करवा दो और ठिकाने


[पृ.348]: वालों को हटा दो और जाटों को यह हुक्म दिया कि तुम अपने हल जोतो। उन्होंने हुकुम के अनुकूल हल जोत दिये। सुपरिंटेंडेंट साहब तो दौरे पर थे इस कारण मौके पर नहीं पहुंच सके। इसी समय ठाकुर ईसरी सिंह ने आकर गोलियों की वर्षा कर दी। अब आप जो मुनासिब समझे करें। इधर बड़ी बेचैनी है। .... आपका हरलाल सिंह

सन्दर्भ

  1. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.343-348

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