Nandgaon

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Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Nandrai Temple, Nandgaon, Located on a hill was built by Maharaja Rup Singh, elder brother of Raja Badan Singh of Bharatpur
Location of Nandgaon (Govardhan) in Mathura district

Nandgaon (नदगांव रूरल) is a village in tahsil Chhata in Mathura district in Uttar Pradesh.

Variants

  • Nandaganva नंदगांव (जिला मथुरा, उ.प्र.) (AS, p.470)
  • Nandagaon नंदगांव

Location

Nandgaon is located at a distance of 30 kms in north-west from Mathura atcoordinates 27.72°N 77.38°E. It has an average elevation of 184 metres (603 feet). Within Nandgaon lies the ancient water body Paawan Sarovar. The ancient site has been restored by the Braj Foundation.

Origin

Jat Gotras

History

yadu vanshi

According to Hindu texts, Nandgaon was the home of Lord Krishna where he resided for nine years and 50 days along with his foster father Nanda Baba and mother Yashoda. Nanda Baba, the village chieftain, built the house atop a large hill to protect Lord Krishna from demons sent by King Kamsa. Nanda Maharaja and other gwalas decided to move here from Gokula because of the turbulence caused by demons that were trying to kill Krishna.

The hill on which the main temple is located is called the Nandishvara Hill. Lord Shiva had prayed to Krishna to be allowed to witness his transcendental pastimes. After Lord Shiva performed penances for many centuries, Lord Krishna asked him his wish. Lord Shiva told him that he wished to be a mountain at Nandgaon, so that the Gopis would step on him, leaving the dust of their feet on him. Krishna granted him this boon and Lord Shiva became the Nandisvara Hill, on which Nandgaon is situated. Nandgaon is a major religious and tourist destination owing to its association with Lord Krishna. Every year thousands flock to the town during Holi.

नंदगांव

विजयेन्द्र कुमार माथुर[1] ने लेख किया है ...नंदगांव (जिला मथुरा, उ.प्र.) (AS, p.470) बरसाना से चार मील दूर कृष्ण के पिता नंदजी का ग्राम है. बरसाना राधा की जन्मभूमि मानी जाती है. नंदगांव बरसाना के निकट ही एक पहाड़ी पर स्थित है. पहाड़ी पर नंदजी का भव्य मंदिर है जो वर्तमान रूप में बहुत पुराना नहीं है. श्रीमद् भागवत के अनुसार (10,11) नंदजी, गोकुल से कंस के अत्याचारों से बचने के लिए वृंदावन आ गए थे. कहा जाता है कि प्राचीन वृंदावन नंदगांव से अधिक दूर नहीं था.

नंदगांव परिचय

नन्दगाँव ब्रजमंडल का प्रसिद्ध तीर्थ है। मथुरा से यह स्थान 30 किलोमीटर दूर है। नंद यहीं पर रहते थे। यहाँ एक पहाड़ी पर नन्द बाबा का मन्दिर है। नीचे पामरीकुण्ड नामक सरोवर है। यात्रियों के ठहरने के लिए धर्मशाला हैं। भगवान कृष्ण के पालक पिता से सम्बद्ध होने के कारण यह स्थान तीर्थ बन गया है। नन्दगाँव में ब्रजराज श्रीनन्दमहाराज जी का राजभवन है। यहाँ श्रीनन्दराय, उपानन्द, अभिनन्द, सुनन्द तथा नन्द ने वास किया है, इसलिए यह नन्दगाँव सुखद स्थान है।

गोवर्धन से 16 मील पश्चिम उत्तर कोण में, कोसी से 8 मील दक्षिण में तथा वृन्दावन से 28 मील पश्चिम में नन्दगाँव स्थित है। नन्दगाँव की प्रदक्षिणा (परिक्रमा) चार मील की है। यहाँ पर कृष्णलीलाओं से सम्बन्धित 56 कुण्ड हैं। जिनके दर्शन में 3–4 दिन लग जाते हैं।

द्वापरयुग के अन्त में देवमीढ़ नाम के एक मुनि थे। उनकी दो पत्नियाँ थीं। एक क्षत्रिय वंश की, दूसरी गोप वंश की थीं। पहली क्षत्रिय पत्नी से शूरसेन तथा दूसरी गोपपत्नी से पर्जन्य गोप पैदा हुये। शूरसेन से वसुदेव आदि क्षत्रिय पुत्र उत्पन्न हुए। पर्जन्य गोप कृषि और गोपालन के द्वारा अपना जीवन निर्वाह करते थे। पर्जन्य गोप अपनी पत्नी वरीयसी गोपी के साथ नन्दीश्वर पर्वत के निकट निवास करते थे। उनके पाँच पुत्र पैदा और दो कन्याएँ पैदा हुई। उनमें से मध्यम पुत्र नन्द था. कुछ दिनों तक नन्दीश्वर पर्वत के निकट रहे, किन्तु कुछ दिनों के बाद केशी दैत्य के उपद्रव से भयभीत होकर वे अपने परिवार के साथ गोकुल महावन में जाकर बस गये। वहीं मध्यमपुत्र नन्दमहाराज के पुत्र के रूप में स्वयं भगवान श्रीकृष्णचन्द्र प्रकट हुए।

कुछ समय बाद वहाँ महावन में भी पूतना, शकटासुर तथा तृणावर्त आदि दैत्यों के उत्पाद को देखकर व्रजेश्वर श्रीनन्दमहाराज अपने पुत्रादि परिवार वर्ग तथा गो, गोप, गोपियों के साथ छटीकरा ग्राम में, फिर वहाँ से काम्यवन, खेलनवन आदि स्थानों से होकर पुन: नन्दीश्वर (नन्दगाँव) में लौटकर यहीं निवास करने लगे। यहीं पर कृष्ण की बाल्य एवं पौगण्ड की बहुत सी लीलाएँ हुई। यहीं से गोपाष्टमी के दिन पहले बछड़ों और बछड़ियों को तथा दो–चार वर्षों के बाद गोपाष्टमी के दिन से ही कृष्ण और बलदेव सखाओं के साथ गायों को लेकर गोचारण के लिए जाने लगे। यहाँ नन्दगाँव में कृष्ण की बहुत सी दर्शनीय लीलास्थलियाँ है।

लट्ठामार होली: बरसाना और नंदगाँव की लठमार होली तो जगप्रसिद्ध है। "नंदगाँव के कुँवर कन्हैया, बरसाने की गोरी रे रसिया" और ‘बरसाने में आई जइयो बुलाए गई राधा प्यारी’ गीतों के साथ ही ब्रज की होली की मस्ती शुरू होती है। वैसे तो होली पूरे भारत में मनाई जाती है लेकिन ब्रज की होली ख़ास मस्ती भरी होती है. उत्तर भारत के बृज क्षेत्र में बसंत पंचमी से ही होली का चालीस दिवसीय उत्सव आरंभ हो जाता है। नंदगाँव एवं बरसाने से ही होली की विशेष उमंग जागृत होती है। जब नंदगाँव के गोप गोपियों पर रंग डालते, तो नंदगांवकी गोपियां उन्हें ऐसा करनेसे रोकती थीं और न माननेपर लाठी मारना शुरू करती थीं। होली की टोलियों में नंदगाँव के पुरुष होते हैं क्योंकि कृष्ण यहीं के थे और बरसाने की महिलाएं क्योंकि राधा बरसाने की थीं। दिलचस्प बात ये होती है कि ये होली बाकी भारत में खेली जाने वाली होली से पहले खेली जाती है। दिन शुरू होते ही नंदगाँव के हुरियारों की टोलियाँ बरसाने पहुँचने लगती हैं. साथ ही पहुँचने लगती हैं कीर्तन मंडलियाँ। इस दौरान भाँग-ठंढई का ख़ूब इंतज़ाम होता है। ब्रजवासी लोगों की चिरौंटा जैसी आखों को देखकर भाँग ठंढई की व्यवस्था का अंदाज़ लगा लेते हैं। बरसाने में टेसू के फूलों के भगोने तैयार रहते हैं। दोपहर तक घमासान लठमार होली का समाँ बंध चुका होता है। नंदगाँव के लोगों के हाथ में पिचकारियाँ होती हैं और बरसाने की महिलाओं के हाथ में लाठियाँ, और शुरू हो जाती है होली।

नन्दभवन: नन्दीश्वर पर्वत से संलग्न दक्षिण की ओर नन्दभवन की पौढ़ी का भग्नावशेष नाममात्र अवशिष्ट है। यहीं पर विशाल नन्दभवन था। इसमें नन्दबाबा, माँ यशोदा, माँ रोहिणी, कृष्ण और बलदेव सबके अलग–अलग शयनघर, रसोईघर, भाण्डारघर, भोजनस्थल, राधिका एवं कृष्ण के विश्रामस्थल आदि कक्ष विराजमान थे। यहीं पर कृष्ण और बलदेव ने अपनी बाल्य, पौगण्ड और किशोर अवस्था तक की बहुत सी लीलाएँ की हैं। यहीं पर माँ यशोदा के अत्यन्त आग्रह और प्रीतिपूर्वक अनुरोध से सखियों के साथ राधिका प्रतिदिन पूर्वाह्व में जावट ग्राम से आकर परम उल्लासपूर्वक माँ रोहिणी के साथ कृष्ण के लिए रुचिकर द्रव्यों का पाक करती थीं। कृष्ण पास के बृहत भोजनागार में सखाओं के साथ भोजन करते थे। भोजन के पश्चात् एक सौ पग चलकर शयनागार में विश्राम करते थे।

राधिका विश्रामस्थल: रन्धन का कार्य समाप्त होने के पश्चात् राधिका माँ यशोदा के अनुरोध से श्री धनिष्ठा सखी के द्वारा लाये हुए श्रीकृष्ण के भुक्तावशेष के साथ प्रसाद पाकर इसी बगीचे में विश्राम करती थी। उसी समय सखियाँ दूसरों से अलक्षित रूप में कृष्ण का उनके साथ मिलन कराती थी। इस स्थान का नाम राधाबाग़ है।

वनगमन स्थान: माँ यशोदा बलराम और कृष्ण का प्रतिदिन नाना रूप से श्रृंगार कर उन्हें गोचारण के लिए तैयार करती थीं। तथा व्याकुल चित्त से सखाओं के साथ गोचारण के लिए विदा करती थीं।

गोचारण गमन मार्ग: सखाओं के साथ नटवर राम–कृष्ण गोचारण के लिए इसी मार्ग से होकर निकलते थे।

राधिका विदा स्थल: माँ यशोदा राधिका को गोदी में बैठाकर रोती हुई उसे जावट ग्राम के लिए यहीं से विदा करती थी।

दधिमन्थन का स्थान: यशोदा जी यहाँ नित्यप्रति प्रात:काल दधिमन्थन करती थीं। आज भी यहाँ एक बहुत बड़ी दधि की मटकी दर्शनीय है।

पूर्णमासीजी का आगमन पथ: बालकृष्ण का दर्शन करने के लिए योगमाया पौणमासी इसी पथ से नन्दभवन में पधारती थीं। ये सारे स्थान बृहदाकार नन्दभवन में स्थित हैं। श्रीरघुपति उपाध्याय ने नन्दभवन का सरस शब्दों में वर्णन किया है– 'श्रुतिमपरे स्मृतिमितरे भारतमन्ये भजन्तु भवभीता:। अहमिह नन्दं वन्दे यस्यालिन्दे परं ब्रह्म।।' (पद्यावली) अर्थात भवसागर से भयभीत कोई श्रुतियों का, कोई स्मृतियों का और कोई भले ही महाभारत का भजन करता है तो वह वैसा करे, परन्तु मैं नन्दबाबा की अहर्निश वन्दना करता हूँ, जिनके आँगन में परम–ब्रह्म घुटनों से इधर–उधर चलते हैं।

नन्दकुण्ड: नन्दभवन से थोड़ी दूर दक्षिण में नन्दकुण्ड है। महाराज नन्द प्रतिदिन प्रात: काल यहाँ स्नान, सन्ध्या मन्त्र जप आदि करते थे। कभी–कभी कृष्ण और बलराम को भी अपने कन्धों पर बिठाकर लाते थे। और उन्हें भी स्नान कराते थे। कुण्ड के तट पर स्थित मन्दिर में नन्दबाबा और उनकी गोद में बैठे बालस्वरूप कृष्ण एवं दाऊजी की बड़ी मनोहर झाँकी हैं।

नन्द बैठक: ब्रजेश्वर महाराज नन्द यहाँ पर अपने बड़े और छोटे भाईयों, वृद्ध गोपों तथा पुरोहित आदि के साथ समय–समय पर बैठकर कृष्ण के कल्याणार्थ विविध प्रकार के परामर्श आदि करते थे। बैठकर परामर्श करने के कारण इसे बैठक कहा गया है। चौरासी कोस ब्रज में महाराज नन्द की बहुत सी बैठकें हैं। नन्दबाबा गोकुल के साथ जहाँ भी विराजमान होते, वहीं पर समयोचित बैठकें हुआ करती थीं। इसी प्रकार की बैठकें छोटी और बड़ी बैठन तथा अन्य स्थानों में भी हैं। नन्दबाबा , गो, गोप, गोपी आदि के साथ जहाँ भी निवास करते थे। उसे नन्दगोकुल कहा जाता था।

यशोदा कुण्ड: नन्दभवन के उत्तर में यह कुण्ड अवस्थित है। माँ यशोदा यहाँ प्रतिदिन स्नान करती थीं। कभी–कभी कृष्ण और बलराम को भी साथ लाती थीं। तथा उन दोनों बालकों की बाल क्रीड़ा का दर्शनकर अत्यन्त आनन्दित होती थीं। कुण्ड के तट पर नृसिंह जी का मन्दिर है। माँ यशोदा स्नान करने के यशोदा कुण्ड के पास ही निर्जन स्थल में एक प्राचीन गुफ़ा है। जहाँ अनेक सन्त महानुभावों ने साधनाकर भगवद प्राप्ति की है। सिद्ध महात्माओं की यह भजन स्थली आज तक निरपेक्ष साधकों को भजने के लिए आकर्षित करती है। यशोदाकुण्ड के पास ही कारोहरो कुण्ड है।

हाऊबिलाऊ: यशोदा कुण्ड के पश्चिमी तट पर सखाओं के साथ कृष्ण की बालक्रीड़ा का यह स्थान है। यहाँ सखाओं के साथ कृष्ण बलदेव दोनों भाई बालक्रीड़ा करने में इतने तन्मय हो जाते थे कि उन्हें भोजन करने का भी स्मरण नहीं रहता था। मैया यशोदा कृष्ण बलराम को बुलाने के लिए रोहिणी जी को पहले भेजतीं, किन्तु जब वे बुलाने जातीं तो उनकी पकड़ में ये नहीं आते, इधर उधर जाते थे। इसके पश्चात् यशोदा जी स्वयं जातीं और नाना प्रकार की भंगिमा के द्वारा बड़ी कठिनता से दोनों को पकड़कर घर लाती और उन्हें स्नान आदि कराकर भोजन करातीं। कभी -कभी यहीं पर राम कृष्ण को हाऊओ का भय दिखाकर कृष्ण को गोदी में पकड़कर ले आतीं। उस समय कृष्ण मैया से हाओ दिखाने का हठ करते। मैया ! मैं हऊआ देखूँगा। आज भी हऊआ की प्रस्तरमयी मूर्तियाँ कृष्ण की इस मधुर बाललीला का स्मरण कराती हैं। दूर खेलन मत जाउ लाल यहाँ हाऊ आये हैं। हँस कर पूछत कान्ह मैया यह किनै पठाये हैं।

मधुसूदनकुण्ड: नन्दीश्वर के उत्तर में यशोदाकुण्ड के पास ही नाना प्रकार के पुष्पों से लदे हुए वृक्ष और लताओं के बीच में यह कुण्ड सुशोभित है। यहाँ मत्त हो कर भ्रमरगण सदैव पुष्पों का मकरन्द पान करते हुए सर्वत्रगुञ्जन करते हैं कृष्ण सखाओं के साथ वन में खेलते हुए भ्रमरों के गुञ्जन का अनुकरण करते हैं। भ्रमरों का दूसरा एक नाम मधुसूदन भी है तथा कृष्ण का भी एक नाम मधुसूदन है। दोनों के यहाँ गुञ्जन का स्थान होने के कारण इस स्थान का नाम मधुसूदन कुण्ड है।

पानीहारीकुण्ड: इसका नामान्तर पनघट कुण्ड भी है। ब्रजवासी इसी कुण्ड का विशुद्ध मीठाजल पान करते थे। गोप रमणियाँ इस कुण्ड पर जल भरने के लिए आती थीं। इसलिए इसे पनघट कुण्ड भी कहते हैं। कृष्ण भी गोपियों के साथ मिलने के लिए पनघट पर उपस्थित होते। विशेषकर गोपियाँ कृष्ण से मिलने के लिए ही उत्कण्ठित हो कर यहाँ आती थीं। जल भरते समय कृष्ण का दर्शनकर ऐसी तन्मय हो जातीं कि मटकी ख़ाली है या जल से भरी है इसका भी उन्हें ध्यान नहीं रहता। किन्तु उनकी हृदयरूपी मटकी में प्रियतम अवश्य भर जाते। पनघट का एक निगुढ़ रहस्य यह भी है– गोपियाँ यहाँ कृष्ण का यह पन (प्रतिज्ञ) स्मरण करके आतीं कि 'मैं वहाँ तुमसे अवश्य ही मिलूँगा '। कृष्ण उस पन को निभाने के लिए वहाँ उनकी प्रतीक्षा करते हुए निश्चित रूप में मिलते। अत: कृष्ण और गोपियाँ दोनों का पन यहाँ पूरा होता है, इसलिए इसके पनघट कहते हैं। नन्दगाँव के पश्चिम में चरणपहाड़ी स्थित है।

संदर्भ: भारतकोश-नन्दगाँव

Population

Notable Persons

External Links

References


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