P.N. Oak

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P.N. Oak
Taj Mahal a Temple Palace.jpg
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Purushottam Nagesh Oak (2 March 1917 – 4 December 2007), commonly referred to as P. N. Oak, was an Indian writer, notable for his historical revisionism. Oak's "Institute for Rewriting Indian History" issued a quarterly periodical called Itihas Patrika in the 1980s.

Oak's claims that several historical buildings in India, including Kutub Minar and the Taj Mahal were once Hindu temples and their reception in Indian popular culture have been noted by observers of contemporary Indian society. He wrote books in three languages - English, Hindi, Marathi.

Taj Mahal Theory

In his book Taj Mahal: The True Story, Oak claims that the Taj Mahal was originally a Shiva temple named Tejo Mahalaya seized by Shah Jahan and adopted as a tomb. He argues that maybe this temple was built by Indian King, Jai Singh-I. He says that Mahal is a word to describe a royal palace and not a tomb and after seizure by Shah Jahan, the name was changed to Taj Mahal.

Books written

  • Taj Mahal: The True Story — Publisher: A Ghosh (May 1989)
  • Some Missing Chapters of World History – Publisher: Hindi Sahitya Sadan (2010).
  • World Vedic Heritage: A History of Histories – Publisher: New Delhi: Hindi Sahitya Sadan (2003)
  • Vaidik Vishva Rashtra Ka Itihas – Publisher: New Delhi: Hindi Sahitya Sadan
  • Bharat Mein Muslim Sultan
  • Who Says Akbar was Great
  • Some Blunders Of Indian Historical Research
  • Agra red Fort is a Hindu Building
  • Learning Vedic Astrology

राष्ट्रवादी इतिहासकार पुरुषोत्तम नागेश ओक

Oak's Book on Akbar.jpg
Muslim Rulers in India - book by P.N. Oak.jpg

श्री पुरुषोत्तम नागेश ओक का नाम राष्ट्रवादी इतिहासकारों में बहुत सम्मानित है। यद्यपि डिग्रीधारी इतिहासकार उन्हें मान्यता नहीं देते थे; क्योंकि उन्होंने इतिहास का विधिवत शिक्षण या अध्यापन नहीं किया था; पर उन्हें ऐसी दृष्टि प्राप्त थी, जिससे उन्होंने विश्व के इतिहास में खलबली मचा दी।

उनका जन्म 2 मार्च, 1917 को मध्य प्रदेश के इन्दौर नगर में श्री नागेश ओक एवं श्रीमती जानकी बाई के घर में हुआ था। तीन भाइयों में मंझले पुरुषोत्तम ओक की प्रतिभा के लक्षण बचपन से ही प्रकट होने लगे थे। उन्होंने 1933 में मैट्रिक, 1937 में बी.ए., 1939 में एम.ए. तथा 1940 में कानून की परीक्षा मुम्बई विश्वविद्यालय से उत्तीर्ण की।

1939 में द्वितीय विश्व युद्ध प्रारम्भ होने पर श्री ओक खड़की स्थित सैन्य प्रतिष्ठान में भर्ती हो गये। वहाँ आठ मास के प्रशिक्षण के बाद उन्हें सिंगापुर भेज दिया गया। वहाँ वे जापानियों द्वारा बन्दी बना लिये गये। पर कुछ समय बाद जब भारतीय सैनिकों ने जापान का सहयोग करने का निश्चय किया, तो सभी 60,000 बन्दियों को छोड़ दिया गया। श्री ओक सेगांव (वियतनाम) रेडियो से भारत की स्वतन्त्रता के लिए प्रचार करते रहे। आगे चलकर वे नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के निकट सहयोगी बन गये।

स्वतन्त्रता के बाद श्री ओक पत्रकारिता के क्षेत्र में उतरे। 1947 से 1953 तक वे हिन्दुस्तान टाइम्स एवं स्टेट्समैन के दिल्ली में संवाददाता रहे। 1954 से 1957 तक उन्होंने सूचना एवं प्रसारण मन्त्रालय में प्रचार अधिकारी के नाते कार्य किया। फिर 1959 से 1974 तक दिल्ली स्थित अमरीकी दूतावास की सूचना सेवा में उप सम्पादक का काम सँभाला। इन सब कामों के बीच श्री ओक अपनी रुचि के अनुकूल इतिहास विषयक लेखन करते रहे।

श्री ओक का मत था कि भारत में जिन भवनों को मुगलकालीन निर्माण बताते हैं, वह सब भारतीय हिन्दू शासकों द्वारा निर्मित हैं। मुस्लिम शासकों ने उन पर कब्जा किया और कुछ फेरबदल कर उसे अपने नाम से प्रचारित कर दिया। स्वतन्त्रता के बाद भारत सरकार ने भी सच को सदा दबा कर रखा; पर श्री ओक ने ऐसे तथ्य प्रस्तुत किये, जिन्हें आज तक कोई काट नहीं सका है।

श्री पुरुषोत्तम नागेश ओक ने दो पुस्तकें मराठी में लिखीं। ‘हिन्दुस्थानाचे दुसरे स्वातन्त्रय युद्ध’ तथा ‘नेताजीच्या सहवासाल’। हिन्दी में उनकी पुस्तकें हैं: भारतीय इतिहास की भयंकर भूलें; विश्व इतिहास के विलुप्त अध्याय; कौन कहता है अकबर महान था; दिल्ली का लाल किला हिन्दू कोट है; लखनऊ के इमामबाड़े हिन्दू राजमहल हैं; फतेहपुर सीकरी एक हिन्दू नगर।

आगरा का लाल किला हिन्दू भवन है; भारत में मुस्लिम सुल्तान (भाग 1 व 2); वैदिक विश्व राष्ट्र का इतिहास (4 भाग); ताजमहल मंदिर भवन है; ताजमहल तेजो महालय शिव मन्दिर है; ग्रेट ब्रिटेन हिन्दू देश था; आंग्ल भाषा (शब्दकोश) हास्यास्पद है; क्रिश्चियनिटी कृष्ण नीति है। इनमें ताजमहल का सच उजागर करने वाली किताबें सर्वाधिक लोकप्रिय हुईं।

इतिहास श्री ओक का प्रिय विषय था। सरकारी सेवा से अवकाश लेने के बाद उन्होंने ‘इन्स्टीट्यूट फॉर रिराइटिंग वर्ल्ड हिस्ट्री’ नामक संस्था की स्थापना की और उसके द्वारा नये शोध सामने लाते रहे। उनके निष्कर्ष थे कि ईसा से पूर्व सारी दुनिया में वैदिक संस्कृति और संस्कृत भाषा का ही चलन था।

4 दिसम्बर, 2007 को पुणे में उनका देहान्त हुआ।[1]

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References


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