Pandit Tadakeshwar Sharma

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Pandit Tadakeshwar Sharma

Pandit Tadakeshwar Sharma (पंडित ताड़केश्वर शर्मा), from Pacheri, Buhana, Jhunjhunu (Rajasthan), was a social worker, a Freedom fighter and hero of Shekhawati farmers movement.

इतर जाट जन सेवक

ठाकुर देशराज[1] ने लिखा है ...पंडित ताड़केश्वर जी शर्मा: [पृ.533]: शेखावाटी में पचेरी एक छोटा सा ठिकाना है। ठिकाना छोटा था किंतु उसका आधीश्वर धोकलसिंह अपने रोब-दाब और आतंक के लिए शेखावाटी के बड़े से बड़े ठिकानेदारों में प्रमुख था।

पचेरी के उसी ठिकानेदार धोकलसिंह के रौब की कुछ भी परवाह न करने वाला एक तपस्वी ब्राह्मण उसी गांव में पंडित लेखराम के नाम से मशहूर था। उन्ही पंडित लेखराम के पुत्रों में एक ताड़केश्वर जी हैं। ताड़केश्वर जी सर्वप्रथम सन 1911 में बधाला की ढाणी के अध्यापक की हैसियत से जाट सेवा में प्रविष्ट हुए। इसके बाद शेखावाटी जाट किसान पंचायत के प्रकृति के सेक्रेटरी रूप में आगे


[पृ.534]: जाट कौम के महान ग्रंथ जाट इतिहास के लिखने में ठाकुर देशराज जी को आपने पूर्ण सहयोग दिया।

सन 1933-34 में उन्होंने सीकर के आंदोलन में पब्लिसिटी सेक्रेटरी का काम किया। जितना प्रकाशन उस समय इन आंदोलनों को मिला उस का अधिकांश श्रेय आपको है।

सन 1935 के आरंभ में आप आगरा से प्रकाशित होने वाले तेजस्वी साप्ताहिक ‘गणेश’ के संपादक बने और उस जमाने में आप खूब चमके। सारे पत्रकार जगत से आपका परिचय हो गया। गणेश के बंद होने पर आपन शेखावाटी चले गए और कुछ दिन के लिए आप पर उदासी वृत्ति छा गई। किंतु पुनः आपका औज चमक उठा।

आप शेखावाटी के आंदोलन में एक प्रमुख योद्धा साबित हुए जो सेठ जमनालाल बजाज के नेतृत्व में प्रजा मंडल की ओर से लड़ा गया था।

जेल आप एक बार नहीं कई बार गए। सबसे पहले आप सन 1932 में नमक सत्याग्रह में जेल गए थे। उसके बाद जयपुर जेल के अभ्यस्त कैदी रह चुके हैं।

सन 1946 में आपने किसान सभा का झंडा उठाया किंतु यहां आपने अपने को परिस्थितियों के सामने विवश होने वाला सैनिक सिद्ध किया।

बुद्धि आपकी प्रखर और दिमाग उपजाऊ है। काफी मेहनत कर सकते हैं। त्याग का तो आपका जीवन ही है। इस समय आप जयपुर की असेंबली में कांग्रेस पार्टी के उपलीडर हैं। आपके बड़े भाई केदारनाथ जी अच्छे विचारक हैं।

पंडित ताड़केश्वर शर्मा का जीवन परिचय

शहीद करणीराम जी पर उनका लेख

ताड़केश्वर शर्मा[2] ने लिखा है....स्वर्गीय शहीद करणीराम जी का नाम सुनते ही एक टीस सी उठती है किन्तु फिर उनकी शहादत को याद कर एक महान गौरव की अनुभूति भी होती है कि ऐसे पवित्रात्मा से मेरा अति निकट का पारिवारिक संबंध रहा। वास्तव में वह एक संयोग ही था जो उनके बलिदान दिवस के दिन मैं उनके साथ नहीं था क्योंकि कुछ दिन पहले ही हम जयपुर से साथ-साथ आये थे और तय हुआ था कि मैं उदयपुरवाटी में उनके साथ 15 दिन का भ्रमण करूँ।

बात यह थी कि वह मेरे गांव में दो महिने रहे थे। शिव सिंहपुरा गोलीकाण्ड में शहीद हुये "दूत एवं बिरजू" दो किसानों के परिवार व उस ढाणी के किसानों के भूमि-संघर्ष में उन्होंने पैरवी की थी। पचेरी की सीमा में ही यह ढाणी थी और उन दिनों जागीरदार के डेरे में ही विशेष नाजिम द्धारा भूमि विवाद की सुनवाई की व्यवस्था की गई थी। कुछ दिन तो वे भोजन करने, रहने के लिए हमारे घर पर रहे किन्तु बाद में मुकदमें की तैयारी के लिये वह ढाणी में ही रहने लगे।

ढाणी के लोग जो उस समय के है उनके स्वभाव सरला से इतने प्रभावित है कि उन्हें देवता मानते हैं। इस काण्ड के समय ही मैनें एक पुस्तिका जागीरी समस्या राजगुण (पचेरी की पुकार) प्रकाशित कराई थी और उससे जागीरशाही जुल्म काफी उजागर हुए थे। अतः करणीराम जी ने वैसी ही एक पुस्तिका उदयपुरवाटी के बारे में लिख देने का आग्रह किया था। उदयपुरवाटी में भ्रमण के लिए इस पुस्तिका हेतु ही उनका अनुरोध था। मैनें 15 दिन बाद उनसे मिलने का व साथ रहने का


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-II, पृष्ठांत-34

वादा किया था तथा कुछ प्रश्न नोट कराये थे, कि इन बिन्दुओं पर वह पुस्तक की सामग्री तैयार करावें।

इसे सौभाग्य कहूं या दुर्भाग्य कि मैं एक "सामाजिक कार्य" के संगीन मामले में उलझ गया और ईश्वर कृपा से वह तो सुलझ गया किन्तु मैं ऊँट से गिरकर तीन महीने तक अस्पताल में पड़ा रहा और वहीं करणीराम जी व रामदेव जी के बलिदान की रोमांचकारी कथा सुनी। अस्पताल में उपस्थित लोगों ने ईश्वर को धन्यवाद दिया कि यदि मैं अपने वचनानुसार उनके साथ होता तो मेरी भी यही गति होती। पर मैं तो कह उठा "बन्धुओ ! इस सुगति के योग्य ईश्वर की दृष्टि में मैं नहीं था और कूल्हे की हड्डी की अस्पताल की नाटकीयता का अधिकारी था। " "दतूराम बीरजुराम" के बाद (सन 44) आठवें वर्ष में सन 1952 शेखवाटी के किसान आन्दोलन में हुए शहीदों की यह अन्तिम आहुति थी, जिससे युगों से आ रही सामन्ती प्रथा ही समाप्त नहीं हुई, किसान को जमीन का मालिकाना हक भी प्राप्त हो गया।

जाट जागृति में योगदान

ठाकुर देशराज[3] ने लिखा है....खंडेलावाटी इलाके को जगाने के लिए.... जुलाई सन् 1931 में बधाला की ढाणी में जोकि पलसाना से 2 मील के फासले पर अवस्थित है। एक विद्यालय खोला गया जिसके प्रथम अध्यापक पंडित ताड़केश्वर जी शर्मा बनाए गए। उनके विद्यालय में मास्टर लालसिंह और बलवंतसिंह जी मेरठ वालों ने काम किया।

बधाला की ढाणी में विशाल आमसभा

पीड़ित किसानों ने बधाला की ढाणी में विशाल आमसभा आयोजित की, जिसमें हजारों व्यक्ति सम्मिलित हुए. इनमें चौधरी घासीराम, पंडित ताड़केश्वर शर्मा, ख्यालीराम भामरवासी, नेतराम सिंह, ताराचंद झारोड़ा, इन्द्राजसिंह घरडाना, हरीसिंह पलथाना, पन्ने सिंह बाटड, लादूराम बिजारनिया, व्यंगटेश पारिक, रूड़ा राम पालडी सहित शेखावाटी के सभी जाने-माने कार्यकर्ता आये. मंच पर बिजोलिया किसान नेता विजय सिंह पथिक, ठाकुर देशराज, चौधरी रतन सिंह, सरदार हरलाल सिंह आदि थे. छोटी सी ढाणी में पूरा शेखावाटी अंचल समा गया. सभी वक्ताओं ने सीकर रावराजा और छोटे ठिकानेदारों द्वारा फैलाये जा रहे आतंक की आलोचना की. एक प्रस्ताव पारित किया गया कि दो सौ किसान जत्थे में जयपुर पैदल यात्रा करेंगे और जयपुर दरबार को ज्ञापन पेश करेंगे. तदानुसार जयपुर कौंसिल के प्रेसिडेंट सर जॉन बीचम को किसानों ने ज्ञापन पेश किया. [4]

इस बैठक में यह तय हुआ कि जागीरदारों की ज्यादतियां रोकने के लिए संघर्ष किया जाय. इस हेतु जाट पंचायतें स्थापित की जावें. किसानों के बच्चों को पढ़ाने के लिए स्कूल खोले जावें. इसी उद्देश्य से 1931 में शेखावाटी किसान जाट पंचायत झुंझुनू में कायम हुई जिसका उद्देश्य किसानों की आर्थिक, सामाजिक, बौद्धिक उन्नति करना और किसानों की जमीन का बंदोबस्त करवा कर उनकी खतौनी पर्चे दिलवाना था. [5]

भूमि बंदोबस्त कार्य संपन्न

शेखावाटी के किसानों की लम्बी लड़ाई के बाद पैमाईस का काम शुरू हुआ. इस समय अनेक नेता जेल में थे. इसी समय सरकार ने लगान की अधिक दर लगाकर खतौनियों का विवरण करवा दिया. किसानों के साथ यह बड़ा विश्वासघात था. जिस समय नेता जेल से झूटकर आये खातौनियाँ बंट चुकी थी. उन्होंने खतौनियों के दुरुस्ती के लिए अभियान चलाया. यह भी तय किया गया कि जब तक खतौनियाँ दुरुस्त होकर नहीं आती तब तक लगान नहीं दिया जाय. इधर सरकार से बात भी जारी थी जिसमें हरलाल सिंह, नेतराम सिंह, विद्याधर कुलहरी, चौधरी घासी राम, पंडित ताड़केश्वर शर्मा आदि शामिल थे. उनके प्रयास से सरकार को झुकना पड़ा और लगान की दर कम कर खतौनियाँ दुरुस्त की गयी. इस प्रकार लगान कम कर खातौनियाँ दुरुस्ती शेखावाटी के किसानों की बड़ी विजय थी. जागीरदार अब मनचाहा लगान वसूल नहीं कर सकते थे और बेदखल भी नहीं कर सकते थे. बंदोबस्त के काम में जागीरदारों ने अड़ंगे डाले और बाधाएँ खड़ी कीं किन्तु सन 1936 से प्रारंभ हुआ यह काम 1942 में पूर्ण हो गया. (डॉ. ज्ञानप्रकाश पिलानिया: पृ. 35)

जागीरदारों में बोखलाहट - जागीरदार राज्य सरकार के इस फैसले से बौखला उठे. वे राज्य सरकार के आदेश के विपरीत मनमाना लगान वसूलने लगे. अन्य प्रकार से किसानों को प्रताड़ित करने लगे. इस प्रकार अराजकता की स्थिति बन गयी. सरदार हरलाल सिंह ने जागीरदारों की मनमानी से खिन्न होकर 12 फ़रवरी 1948 को जयपुर रियासत के प्रधानमंत्री से मिलकर अपनी शिकायतें उनके सामने रखीं. इनमें तीन बातें प्रमुख थी- प्रथम की ठिकानेदारों को खतौनियों से अधिक लगान वसूल करने पर दंड दिया जाय, दूसरी यह कि लगान निजामत में जमा हो तथा अंतिम यह कि पुलिस जागीरदारी जुल्मों को रोकने में किसानों की मदद करे. इस पर शेखावाटी के नाजिम को लगान जमा करने के आदेश दिए गए. पुलिस को भी मदद के लिए कहा गया. इससे स्थिति में कुछ सुधार हुआ. इधर जागीरदार अपने षड्यंत्रों में लगे थे. उन्होंने छोटे जागीरदारों और भूमियों को आगे कर आन्दोलन आरंभ कर दिया. (डॉ. ज्ञानप्रकाश पिलानिया: पृ. 35-36)

पचेरी कांड 1944

16 सितम्बर 1944 को पचेरी गाँव के ठाकुर शिवसिंह व संग्राम सिंह, जो पचेरी की एक-चौथाई जमीन के पानेदर थे, ने ढाणी शिवसिंहपुरा में दतू यादवबिरजू यादव नाम के दो किसानों को गोलियां चलाकर भून दिया तथा अनेक महिलाओं एवं किसानों को घायल कर दिया. सैंकड़ों मुकदमे बेदखली के कर दिए. वकील करणी राम भोजासर, पंडित ताड़केश्वर शर्मा, विद्याधर कुलहरीनरोत्तम लाल जोशी ने बड़ी हिम्मत व दिलेरी से पचेरी के किसानों की मदद की. उन्होंने किसानों को हौसला बंधाया और उनकी निशुल्क पैरवी करने लगे. करणी राम ने पचेरी बड़ी में ही डेरा दाल दिया और अपनी जान की बजी लगाकर पीड़ितों की क़ानूनी सहायता की. (राजेन्द्र कसवा, p. 188)

पचेरी कांड

रामेश्वरसिंह[6] ने लेख किया है.... झुंझुनू के पश्चिम में हरियाणा की सीमा पर स्थित पचेरी गांव के जागीरदार और किसानों का संघर्ष सन 1944 में चरम सीमा पर था। पचेरी के जागीरदार श्री शिव सिंह उसी गांव की 'ढाणी शिव सिंह' के काश्तकारों से मनमाना लगान वसूल करने लगे। शिव सिंह का पिता धोकल सिंह बड़ा अनुदार व्यक्ति था और अत्याचार की साक्षात मूर्ति था। उनका लड़का शिव सिंह भी काश्तकारों को तंग करने में अपने बाप से कम नहीं निकला। काश्तकारों की आर्थिक हालत बड़ी दयनीय थी। इस दयनीय हालत के कारण लगान देने में वे असमर्थ थे। जागीरदार को यह बात कहां बर्दाश्त होती। उसने इस ढाणी पर हथियारबंद हमला कर दिया। सारी ढाणी उजड़ गई--- लोग बेघर बार हो गए। खून खराबी हुई। दतू और बिरजू काश्तकारों को गोलियों से भून दिया गया। काश्तकारों की महिलाओं को भी मारा पीटा गया। इस खून खराबे की रिपोर्ट काश्तकारों की ओर से की गई। उसी ग्राम के कर्मठ नेता श्री ताड़केश्वर शर्मा ने काश्तकारों का पक्ष लिया। वे भी जागीरदारों के कोप भाजन हुए। रिपोर्ट पर पुलिस ने कोई कार्यवाही नहीं की। बाद में न्यायालय में रिपोर्ट की गई पर अदालत में मुलिज्मान को तलब नहीं किया।

काश्तकारों की ओर से श्री नरोत्तम लाल जोशी, श्री विद्याधर कुल्हारी, श्री संत कुमार शर्मा आदि पैरवी कर रहे थे। इस दौरान जागीरदार शिव सिंह ने


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, पृष्ठांत-43

काश्तकारों पर सैकड़ों मुकदमे जमीन से बेदखली के कर दिए। मुकदमों की संख्या बहुत ज्यादा थी। कानून व व्यवस्था की हालत बिगड़ी हुई थी। जागीरदार पैसे की ताकत से डरा-धमका और खून खराबा करके काश्तकारों से जमीन छुड़ाने पर आमादा थे। इन सभी कारणों से राज्य सरकार ने इन सब दावों को पचेरी गांव में कोर्ट कायम कर निर्मित करने का आदेश दिया। मजिस्ट्रेट साहब ने पचेरी में कोर्ट लगाना आरंभ कर दिया। अब काश्तकारों की ओर से मौके पर उपस्थित रहकर पचेरी गांव में पैरवी करने का प्रश्न उपस्थित हुआ। काश्तकारों की हालत बहुत खराब थी। उनके पास पैरवी के लिए रुपए देने को नहीं थे। मौके पर मुकदमा पचेरी गांव में पैरवी करने को कोई वकील तैयार नहीं था। यह कोर्ट कई महीनों तक चलने को थी। उस समय के वरिष्ठ वकीलों को झुंझुनू छोड़ना न तो संभव था तथा न वे त्याग करने को तैयार थे। श्री नरोत्तम लाल जी जोशी ने जब पूरी बात श्री करणी राम जी को बताई तो उन्हें यह कार्य करना स्वीकार कर लिया। करणी राम जी तो गरीबों के दास थे उन्होंने गरीब काश्तकारों की सेवा का व्रत ले रखा था। सभी कठिनाइयों एवं सुविधाओं के होते हुए भी सहर्ष पचेरी गांव में काश्तकारों से बिना फीस लिए पैरवी करना मंजूर कर लिया। लेकिन उन्होंने जोशी जी को स्पष्ट कह दिया कि वे अभी नए वकील है। उन्हें कानून की पूरी जानकारी नहीं है अतः मुकदमे खराब हो सकते हैं। श्री जोशी जी ने उन्हें आश्वस्त किया कि वे समय-समय पर इन मुकदमों को संभालते रहेंगे।

करणी राम जी को उस समय वकालत करते हुए करीब एक डेढ़ साल का ही समय हुआ था। श्री जोशी जी ने करणी राम जी की मदद के तथा लिखा पढ़ी आदि के लिए अपने चाचा जीवन राम जी को साथ भेज दिया। श्री करणी राम जी पचेरी चले गए और काश्तकारों की ओर से पैरवी करने लगे। अदालत सुबह से शाम तक चलती थी। अदालत में पैरवी करने के अलावा जवाब दावा लिखना, सबूत आदि तैयार कर पेश करना बड़ा कठिन काम था। करणी राम जी को सुबह से ही काम में जुट जाना पड़ता और देर तक मुकदमों की तैयारी करनी पड़ती थी। खाने-पीने नहाने तक के लिए समय नहीं मिल पाता था। जोशी जी समय-समय पर पचेरी आकर मुकदमों की पैरवी का जायजा लेते थे। उन्होंने करणी राम जी की पैरवी देख कर आश्चर्य किया कि इतने कम समय में करणी राम जी ने इतनी अच्छी पैरवी करने की दक्षता हासिल कर ली थी। उन्होंने करणी राम जी से कहा कि आप तो


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, पृष्ठांत-44

मुझसे भी अच्छी पैरवी करते हैं अतः अब उनकी पैरवी को देखने की आवश्यकता नहीं है। काश्तकारों का असीम विश्वास करणी राम जी में जम गया। वे देवता की तरह उनको पूजने लगे। डरे हुए किसानों के मन में करणी राम जी की मौजूदगी से आत्मविश्वास एवं निडरता का भाव उत्पन्न हो गया। काश्तकार इस बात से पूर्ण आश्वस्त थे कि उनके प्रति होने वाले अन्याय का प्रतिकार करने वाले एक ऐसे व्यक्ति आ गए हैं जो एक प्रबल संगठन के प्रतिनिधि है तथा जिसका हृदय किसानों के प्रति प्रेम और ममत्व से भरा हुआ है।

References

  1. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.533-534
  2. Shekhawati Ke Gandhi Amar Shahid Karni Ram/Shekhawati Ke Shahid Shiromani Karni Ram,pp.34-35
  3. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.444
  4. राजेन्द्र कसवा: मेरा गाँव मेरा देश (वाया शेखावाटी), जयपुर, 2012, ISBN 978-81-89681-21-0, P. 123
  5. Dr Pema Ram & Dr Vikramaditya Chaudhary: Jaton ki Gauravgatha, Rajasthani Granthagar, Jodhpur, 2008, p.288
  6. Rameshwar Singh Meel:Shekhawati Ke Gandhi Amar Shahid Karni Ram/Janm, Shaishav Aur Shiksha,pp.43-44

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