Panne Singh Kuhad

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Author:Laxman Burdak, IFS (R), Jaipur

Kunwar Panne Singh Deorod

Kunwar Panne Singh Deorod (Kuhar) (1902- 27.4.1933) was a Freedom fighter and pioneer hero of Shekhawati farmers movement. He was born on chaitra krishna ekadashi samvat 1959 (1902 AD) as third son in the family of Chaudhary Jalu Ram Kulhar, at village Deorod in Chirawa tahsil , district Jhunjhunu , Rajasthan.[1]

Genealogy

भुनजी → नयपाल → विनय पाल → राजवीर → रिडमल → मानिकपाल → → → → → जगदीश → कुहाड़ (कुहाड़सर बसाया) → → → कान्हड़ (सागवा आबाद किया) → उदलसिंह (1764 ई. कुहाड़वास आबाद किया) → भनूराम कुहाड़ (1833 ई. नरहड़ में आबाद) → दलसुख → 1. गणेशराम 2. जालूराम

जालूराम (देवरोड़ आ गए) →1. भूरसिंह 2..... 3. पन्नेसिंह (1902-1933 ई.)

पन्नेसिंह (1902-1933 ई.) → 1. विश्वेश्वर सिंह (1924 - 25/12/2011), 2. सत्यदेव (b:22.2.1925), 3. रघुवीर सिंह, 4. रणधीरसिंह, 5. पुत्री मनीदेवी

Pushkar adhiveshan 1925

Kunwar Panne Singh with Pandit Dattu Ram Bhajanopadeshak

Pushkar adhiveshan 1925 organized by All India Jat Mahasabha was presided over by Maharaja Kishan Singh of Bharatpur. Sir Chhotu Ram, Madan Mohan Malviya, Chhajju Ram etc. farmer leaders had also attended. This function was organized with the initiative of Master Bhajan Lal Bijarnia of Ajmer - Merwara. The farmers from all parts of Shekhawati had come namely, Chaudhary Govind Ram, Kunwar Panne Singh Deorod, Ram Singh Bakhtawarpura, Chetram Bhadarwasi, Bhuda Ram Sangasi, and Moti Ram Kotri. 24-year young boy Har Lal Singh also attended it. The Shekhawati farmers took two oaths in Pushkar namely, 1. They would work for the development of the society through elimination of social evils and spreading of education. 2. ‘Do or Die’ in the matters of exploitation of farmers by the Jagirdars.


He started taking part in Shekhawati farmers movement from 1925 with his joining the Pushkar Sammelan of Jats. He along with Master Ratan Singh and Ram Singh Kunwarpura formed Jat Sabha at Bagar to accelerate the farmers movement.

In March 1931 he took part in All India Jat Mahasabha.

In 1932 he made all afforts to make the Jhunjhunu Sammalan a grand success and he was elected as President of Jaipur Prantiya Sabha.

Mridula, Kunwar Panne Singh's great grand daughter, has informed that Kunwar Panne Singh was survived by four sons and one daughter named Mani Devi. His eldest son Comrade Vishweshwar Singh (1924 - 25/12/2011) was cremated in Deorod village and continued his father's legacy as a prominent Jat leader. Vishweshwar Singh's daughter is Sumitra, Sumitras's daughter is Mridula. Kunwar Panne Singh's second son is named Satya Deo Singh (b. 22.2.1925), who is still surviving.

Panne Singh Deorod died in 1933.

कुंवर पन्ने सिंह देवरोड़ का जीवन परिचय

पन्ने सिंह का जन्म वि.स. 1559 (1902 ई.) के चैत्र कृष्ण एकादशी को चिड़ावा तहसील जिला झुंझुनू के गाँव देवरोड़ में हुआ. आप अपने पिता चौधरी जालू राम के तीसरे पुत्र थे. पन्ने सिंह की माता का नाम मोहरीदेवी था तथा वह ओजटू गाँव के रडमल डांगी की बेटी थी . यह संयोग था कि पन्नेसिंह का परिवार एवं ससुराल पक्ष आर्थिक रूप से संपन्न थे. दोनों ही पक्ष ब्याज पर रकम उधार देते थे. दोनों के घरों में महंगे सोने के जेवरात थे. मूल रूप से पन्ने सिंह का गाँव कुहाड़वास था. इनके परदादा नरहड़ में बसे थे. देवरोड गाँव में दिलसुख की ससुराल थी. कालांतर में वह देवरोड में ही बस गए. [2]

पन्ने सिंह ने प्रारंभिक शिक्षा उर्दू और अंग्रेजी में नरहड़ के मौलवी से प्राप्त की. खुड़िया के पंडित के पास पढना-लिखना सीखा. पिलानी में पंडित रूपाराम आर्यसमाजी थे. पन्ने सिंह ने उनसे आर्यसमाज की शिक्षा ली एवं जनेऊ धारण किया. पन्ने सिंह के दूसरे बेटे सत्यदेव सिंह का कहना है कि पन्ने सिंह का पंडित रूपाराम, डॉ गुलझारी लाल, हरयाणा के मास्टर रतन सिंह तथा प्रसिद्द उद्योगपति घनस्याम दास बिडला से घनिष्ट संपर्क था. ये सभी लोग हम उम्र थे. [3]

पन्ने सिंह के पूर्वज

पन्ने सिंह के पूर्वजों के बारे में ठाकुर देशराज प्रकाश डालते हैं कि खास भटनेर से भाटी जाटों की हुकूमत यद्यपि अकबर के समय अर्थात् सत्रहवीं सदी में नष्ट हो गई थी, किन्तु फिर भी वे जांगल तथा ढूंढार पंजाब के बहुत से भू-भाग को विभिन्न स्थानों पर दबाये रहे। अठारहवीं सदी में कुहाड़वास और उसके प्रदेश पर कुहाड़सिंह और उसका पुत्र पन्नेसिंह शासक था। हालांकि


जाट इतिहास:ठाकुर देशराज,पृष्ठान्त-602


यह उनकी बहुत ही छोटी रियासत थी। आगे चलकर कुहाड़सर के भाटी कुहाड़ नाम से प्रसिद्ध हुए। शेखावाटी के लोग-सेवक कुंवर पन्नेसिंह जी से कुहाड़ का शासक पन्नेसिंह 15 पीढ़ी पहले हुआ था। कुहाड़ों की भांति पंजाब से सरककर दूलड़ भाटियों ने भी एक छोटा-सा राज्य स्थापित कर रखा था। मालवा में भी वे चुप नहीं बैठे रहे। भूमि पर कब्जा करके अपने प्रभुत्व को जमाने का अधिकार तो उन्होंने अब तक नहीं छोड़ा है। भाट लोगों की शाखा ने गोरीर और सिंधाना के निकट की भूमि पर प्रभुत्व स्थापित किया ऐसा भी भाट-ग्रन्थों में वर्णन मिलता है।

आपका परिवार

ठाकुर देशराज[4] ने लिखा है ....कुंवर भूरसिंह - [पृ.391]: चौधरी जालूराम जी का जन्म नरहड़ कस्बे में संवत 1920 में हुआ था। देवरोड़ में उनकी ननसाल थी। पिता 2 साल के बाद मर चुके थे इसलिए उनकी मां देवरोड में आ गई। संवत 1940 में मां तीर्थाटन के चली गई। गरीब बालक जालू राम ने अत्यंत परिश्रम से अपनी आर्थिक दशा को संभाला। कुछ गुंजाइश हुई तो सारी कमाई को लेन-देन में लगाते रहे। वह लेन देन उन्हें इतना फला कि संतान और पैसे का घाटा न रहा। आपने अनेक तीरथों की यात्रा की और भूखे नंगो को मदद दी। काम करते-करते भी आप राम नाम का जप नहीं भूलते थे। संवत 1999 में आप का देहांत हो गया।


[पृ.392]: चौधरी जालूराम जी के चार पुत्र थे: 1. चेतराम, 2. भूर सिंह, 3. पन्ने सिंह और 4. बेगराज। चेतराम जी का देहांत चौधरी जी की तरुणावस्था में ही हो चुका था। उन्होंने हरदेव सिंह नाम के पुत्र को छोडा। पन्ने सिंह जी उनके ही आगे गुजर गए। भूर सिंह जी और बेगराज जी मौजूद हैं।

भूर सिंह जी का जन्म संवत 1950 (1894 ई.) में माघ सुदी 10 को हुआ था। आपके पिता ने अपने पुत्र को शिक्षा के लिए एक पंडित जी को नियुक्त किया था। जिससे आपने कामचलाऊ शिक्षा प्राप्त कर ली।

जाट जन सेवक

ठाकुर देशराज[5] ने लिखा है .... कुंवर पन्नेसिंहजी - [पृ.374]: शेखावाटी में कुहाड़ जाटों का मशहूर खत्ता है। कहा जाता है कि ब्रिज के यदुवंशियों में से जो लोग गजनी होते हुए जैसलमेर लौटे थे उनमें एक सरदार भुनजी भी थे। उनके खानदान में नयपाल, विनय पाल, राजवीर, रिडमल और मानिकपाल नाम के सरदार हुए। भटनेर के एक हिस्से पर


[पृ.375]: राज्य करते रहे। कई पीढ़ी बाद इसी वंश में जगदीश जी नाम के सरदार के कुहाड़ नाम का पुत्र हुआ। उसने मारवाड़ में कुहाड़सर नामक गांव बसाया। इस वंश के तीसरी चौथी पीढ़ी में पैदा होने वाले कान्हड़ ने सागवा को आबाद किया। उसके पुत्र उदलसिंह ने संवत 1821 (1764 ई.) में कुहाड़वास को आबाद किया। कुहाड़वास के भजूराम कुहाड़ ने संवत 1890 (1833 ई.) नरहड़ में आबाद की। भनूराम का दलसुख हुआ। दलसुख के गणेशराम और जालूराम दो पुत्र हुए। जलूराम बचपन में ही अपने भाई के साथ देवरोड़ में आ गए। कुंवर पन्नेसिंह इन्हीं जालूराम के तृतीय पुत्र थे। कुँवर पन्नेसिंह जी का जन्म संवत 1959 विक्रमी (1902 ई.) के चेत्र में कृष्णा एकादशी को हुआ था।

5 वर्ष की उम्र से ही आपको पढ़ने का शौक आरंभ हुआ। उस समय तक शेखावाटी में कहीं भी कोई उच्च शिक्षणालय नहीं था। इसलिए आप हिंदी उर्दू पढ़कर ही रह गए।

20 वर्ष की अवस्था से ही आपको जातीय और सामाजिक सेवा का चाव लगा। सबसे पहले आपने यज्ञोपवीत संस्कार कराया। उसके बाद आर्यसमाजी ग्रंथों का अध्ययन किया। फिर आप को इतिहास से प्रेम हुआ। टॉड राजस्थान जैसे मोटे-मोटे इतिहास ग्रंथों का आपने संग्रह किया। आपके छोटे से पुस्तकालय में पुस्तकों का अच्छा संग्रह रहता था।

सन 1925 के पिलानी के अध्यापक चौधरी रतनसिंह जी b.a. के साथ जत्था बनाकर और केसरिया बाना पहनकर पुष्कर जाट महोत्सव में गए। वहां से आप कौमी सेवा का व्रत लेकर लौटे। आपने चौधरी रतन सिंह और ठाकुर रामसिंह जी बख्तावरपुरा के साथ मिलकर शेखावाटी


[पृ.376]: जाट सभा की स्थापना की। इस सभा द्वारा बहुत कुछ काम किया गया। शेखावाटी के जाटों की पीड़ित अवस्था पर प्रकाश डालने वाली एक पुस्तिका प्रकाशित हुई जिसका संपादन चौधरी रतन सिंह जी ने किया। पिलानी में एक बोर्डिंग हाउस स्थापित किया गया। चौधरी लाल चंद जी एडवोकेट रोहतक जो आगे चलकर जाटों के एक मशहूर नेता हुये हैं के रूप में दुनिया के सामने आए हैं वकील बनाकर शेखावाटी की मांगे जयपुर सरकार के सामने पेश की गई। चौधरी भूदाराम और चौधरी चिमनाराम सांगसी, चौधरी गोविंद राम हनुमानपूरा आदि इस आंदोलन में बराबर आगे रहे। कुँवर पन्ने सिंह उत्साह में पूर्ण थे किंतु अर्जुन जैसे धनुर्धारी को भी कृष्ण की जरूरत पड़ी थी। परमात्मा ने पन्ने सिंह जी की इच्छा को भी पूर्ण किया। उन्हें सन् 1931 मैं ठाकुर देशराज जैसा राजनीति निपुण साथी मिल गया। फिर क्या था 3 वर्ष के अंदर ही अंदर सारे शेखावाटी में कुंवर पन्नेसिंह और सरदार हरलालसिंह के नाम जाग उठे और लोगों ने एक नए उत्साह के साथ आपके साथ आना शुरू किया। झुंझुनू जाट महोत्सव को सफल बनाने के लिए आप ने रात दिन एक कर दिए। रायसाहब चौधरी हरीराम जी करमाली, कुंवर हुकुम सिंह जी आंगई, ठाकुर झम्मन सिंह जी एडवोकेट अलीगढ़ और ठाकुर भोला सिंह, हुकम सिंह जी के साथ एक बार सारे इलाके का आप लोगों ने भ्रमण किया और मुख्य-मुख्य गांवों में सभायें की।

झुंझुनू जाट महोत्सव सफल हुआ और खूब हुआ। उसके सभापति रायसाहब चौधरी रिसाल सिंह जी रईस पहाड़ी धीरज का हाथी पर जुलूस निकाला गया। साठ हजार के करीब जाट लोग इस उत्सव में शामिल हुए।


[पृ.377]: इसी अवसर पर जयपुर प्रांतीय विधानसभा का संगठन हुआ जिस के प्रधान कुंवर पन्नेसिंह जी ही चुने गए।

उनकी लिखी हुई वीर जुझारसिंह पुस्तिका भी इसी अवसर पर प्रकाशित हुई।

इस उत्सव के बाद कुंवर पन्ने सिंह जी का सितारा खूब चमका। कौम में उनकी इज्जत बढी। राज्य में भी वे गिनती के आदमी समझे जाने लगे। एक प्रकार से आप दुखियों के आशा केंद्र से बन गए। इन दिनों ठाकुर देशराज जी अजमेर में राजस्थान का संपादन करते थे। उन्होंने दिसंबर सन् 1932 में सराधना अजमेर में राजस्थान जाटसभा का प्रथम उत्सव मनाने का आयोजन किया। कुंवर सिंह जी भी मय सरदार हर लाल सिंह जी के उसमें शामिल हुए। 2 दिन पहले पहुंचकर उसकी तमाम व्यवस्था अपने हाथ में ले ली।

अखिल भारतवर्षीय जाट महासभा जनवरी सन् 1933 में भरतपुर में महाराजा सूरजमल की द्वितीय शताब्दी बनाने का निश्चय कर चुकी थी, किंतु उस समय के अंग्रेजी दीवार मिस्टर हेनकाफ ने उस पर पाबंदी लगा दी। जाट महासभा का नेतृत्व उच्च वर्ग के लोगों के हाथ होने से कोई बड़ा कदम उसकी ओर से उठाने की गुंजाइश नहीं थी। अतः ठाकुर देशराज को ‘सूरजमल शताब्दी समिति’ नाम की एक स्वतंत्र संस्था का अस्थाई संगठन करना पड़ा और कानून तोड़कर शताब्दी बनाने का निश्चय किया गया। उसमें भी कुंवर पन्ने सिंह का सहयोग ठाकुर देशराज जी को मिला और शेखावाटी से पन्ने सिंह, सरदार हरलाल सिंह, ठाकुर रामसिंह, चौधरी गोविंदराम, चौधरी दलेल सिंह, चौधरी सूरत सिंह हनुमानपुरा मय दलबल के


[पृ.378]: साथ सत्याग्रह में योग देने पहुंचे और वह शुभ कृत्य सम्पन्न कराया। इसके बाद ठाकुर देशराज जी ने जाट इतिहास प्रकाशित करने का आयोजन किया। उसमें कुंवर पन्ने सिंह उसके साहस को बराबर बढ़ाते रहे। खेद है कि वह जाट इतिहास का प्रकाशन न देख सके। हां जब उनके बड़े भाई कुंवर भूर सिंह जी ने जाट इतिहास को पहले-पहल सीकर यज्ञ में देखा तो वह उसे सिर पर रख कर मारे खुशी के नाच उठे।

कभी-कभी मनुष्य जो चाहता है वह नहीं होता। यही पन्ने सिंह जी के साथ भी हुआ। शेखावाटी के जाट को जितना उन्नत देखना चाहते थे न देख सके और तमाम अभिलाषाओं को साथ लेकर वे इस दुनिया से सन् 1933 के मध्य में चल बसे।

अगर आज वे होते तो शेखावाटी का दर्जा बहुत ऊंचा होता। वह एक आश्चर्यजनक गति के और दृढ़ निश्चय तथा त्यागी व्यक्ति थे और शेखावाटी उनके लिए आज भी रोता है।

उन्होंने अपने पीछे एक मर्दानी और साहसी पत्नी एक पुत्री और 4 पुत्र- कुंवर विश्वेश्वर सिंह, सत्यदेव, रघुवीर सिंह और रणधीरसिंह छोड़े हैं जो होनहार और लायक लड़के हैं। आपकी पत्नी का नाम मोहदी देवी है जो झुंझुनू के चौधरी रिड़मल जी की सुपुत्री है।

कुंवर पन्ने सिंह के परिजन: ठाकुर देशराज[6] ने लिखा है ....

1. हरदेव सिंह जी': कुंवर पन्ने सिंह जी के परिजनों में उनके भतीजे हरदेव सिंह जी से बहुत आशाएं की। अपने चाचा की मौत पर


[पृ.379]: उन्होंने कौमी सेवा करने का व्रत भी प्रकट किया था। कुछ दिन कार्य किया भी। अब वह अपने निज के धंधे में ज्यादा समय देते हैं।

2. कुंवर हनुमान सिंह जी - भूरसिंह जी के द्वितीय पुत्र हैं। तालीम भी अच्छी पाई है। पिताजी की भांति तीक्ष्ण बुद्धि के हैं उनसे भी बड़ी आशाएं थी। सन 1935 में आगरा में जब ‘गणेश’ पत्र निकला पत्र कला सीखने के लिए रहे।

आपका जन्म संवत 1973 में हुआ था। आप व्यापार के लिए सूरजगढ़ में कुछ समय तक जमे थे। आपका विवाह देवास (हिसार जिला) के प्रसिद्ध धनीमानी चौधरी उदमी राम जी की सुपुत्री के साथ तमाम फिजूलखर्ची को खत्म करके नवीनतम ढंग से हुआ था। पिलानी में होने वाली जाट स्टूडेंट कॉन्फ्रेंस में भी आपने अच्छा काम किया था।

3. निहाल सिंह जी हरदेव सिंह जी छोटे हैं। आप लोगों के पिता का नाम चेतराम जी था। निहाल सिंह जी का परिचय अन्यत्र दिया जा रहा है।

4. विश्वेश्वर सिंह: कुंवर पन्ने सिंह जी के बड़े लड़के विश्वेश्वर सिंह हैं उनका जन्म संवत 1980 विक्रमी में हुआ है। आपको पिता की असामयिक मौत के कारण पढ़ाई छोड़ कर व्यवसाय और खेती में लग जाना पड़ा। आपने अपने छोटे भाइयों को अच्छी तालीम दिलाने के लिए पूर्ण कोशिश की। आप अपने पिता के योग्य पुत्र हैं।

5. सत्यदेव : विश्वेश्वर सिंह से छोटे हैं उनका जन्म संवत 1980 में हुआ। आप प्रजामंडल में काम करते हैं। श्री विद्याधर सिंह जी वकील और पंडित ताड़केश्वर जी के साथ


[पृ.380]: 1945 में जेल में भी रहे आए हैं। अगस्त आंदोलन में आप आजाद मोर्चे के साथ थे। आप एक होनहार लड़के हैं।

6. रघुवीर सिंह जी: कुंवर पन्ने सिंह जी के तीसरे पुत्र हैं। उनका जन्म संवत 1984 विक्रमी में हुआ है। पिलानी कॉलेज में पढ़ते हैं। पढ़ने में होशियार हैं। और भविष्य में एक रतन होने की उनसे आशा है।

7. रणधीर सिंह: रघुवीर सिंह से छोटे रणधीर सिंह हैं। उनका जन्म संवत 1989 में हुआ था। इस समय झुंझुनू में पढ़ते हैं।

शेखावाटी किसान आन्दोलन के नेता

झुंझुनवाटी में जन आन्दोलन का अंकुर सेठ देवीबक्स सर्राफ और चिमनाराम सांगासी ने लगाया. इसे विशाल वटवृक्ष का रूप पन्ने सिंह ने दिया. पन्ने सिंह ने अपनी अल्प आयु में बतौर संगठनकर्ता और कर्मठता का जो उदहारण प्रस्तुत किया, वह सौ साल के इतिहास में बेजोड़ है. [7]

जब गाँधी जी सन 1921 में भिवानी आये तो पन्ने सिंह युवक बन चुके थे और वह भी भिवानी जाने वाले जत्थे में सामिल थे. यह जत्था पैदल ही भिवानी गया और पैदल ही वापस लौटा. शेखावाटी का प्रतिनिधि मंडल गाँधीजी से मिला और जागीरदारों द्वारा की जा रहे अन्याय, शोषण और मनमानी की शिकायत की. सत्यदेव सिंह के अनुसार गाँधी जी ने उन्हें दिशा निर्देश देकर संगठन बनाने तथा जन जागरण अभियान शुरू करने का कहा. इसके अतिरिक्त गांधीजी ने पत्रकार विद्यालंकार को शेखावाटी आकर स्थिति देखने और रिपोर्ट देने का कहा. पत्रकार विद्यालंकार शेखावाटी आये और वस्तुस्थिति का प्रतिवेदन दिया. गांधीजी से मिलकर लौटने के बाद जत्थे के सदस्य नई प्रेरणा, उमंग और अनुभव से ओतप्रोत थे. सामंती अत्याचारों के विरुद्ध वे संगठित होकर कुछ करना चाहते थे. पन्नेसिंह साहस,बुद्धि और धैर्य में सबसे आगे थे. [8]

जाट महासभा का पुष्कर में जलसा सन् 1925

सर्वप्रथम सन् 1925 में अखिल भारतीय जाट महासभा ने राजस्थान में दस्तक दी और अजमेर के निकट पुष्कर में अखिल भारतीय जाट महासभा का जलसा हुआ. इसकी अध्यक्षता भरतपुर महाराजा कृष्णसिंह ने की. इस अवसर पर जाट रियासतों के मंत्री, पंडित मदन मोहन मालवीय, पंजाब के सर छोटूरामसेठ छज्जू राम भी पुष्कर आये. इस क्षेत्र के जाटों पर इस जलसे का चमत्कारिक प्रभाव पड़ा और उन्होंने अनुभव किया कि वे दीन हीन नहीं हैं. बल्कि एक बहादुर कौम हैं, जिसने ज़माने को कई बार बदला है. भरतपुर की जाट महासभा को देखकर उनमें नई चेतना व जागृति का संचार हुआ और कुछ कर गुजरने की भावना तेज हो गयी. यह जलसा अजमेर - मेरवाडा के मास्टर भजनलाल बिजारनिया की प्रेरणा से हुआ था. शेखावाटी के हर कौने से जाट इस जलसे में भाग लेने हेतु केसरिया बाना पहनकर पहुंचे, जिनमें आप भी सम्मिलित थे. वहां से आप एक दिव्य सन्देश, एक नया जोश, और एक नई प्रेरणा लेकर लौटे. जाट राजा भरतपुर के भाषण सेभान हुआ कि उनके स्वजातीय बंधू, राजा, महाराजा, सरदार, योद्धा, उच्चपदस्थ अधिकारी और सम्मानीय लोग हैं. पुष्कर से आप दो व्रत लेकर लौटे. प्रथम- समाज सुधार, जिसके तहत कुरीतियों को मिटाना एवं शिक्षा-प्रसार करना. दूसरा व्रत - करो या मरो का था जिसके तहत किसानों की ठिकानों के विरुद्ध मुकदमेबाजी या संघर्ष में मदद करना और उनमें हकों के लिए जागृति करना था.[9]

सर्वप्रथम आप 1925 में शेखावाटी जत्थे के साथ केसरिया वस्त्र पहन कर पुष्कर के जाट महोत्सव में गए थे, जहाँ से आप कौमी सेवा और देश सेवा का व्रत लेकर लौटे. आपने मास्टर रतनसिंह और रामसिंह कुंवरपुरा के साथ मिलकर बगड़ में जाट सभा की स्थापना की और किसान आन्दोलन में सक्रीय सहयोग दिया. [10]

मार्च 1931 में दिल्ली में हुए अखिल भारतीय जाट महासभा के सालाना जलसे में आपने हिस्सा लिया. इस महोत्सव के बाद तो आप जाति के संगठन में दिन-रत लग गए. अक्टूबर 1931 में अखिल भारतीय जाट महासभा का एक प्रतिनिधि-मंडल शेखावाटी आया तो आपने उसके साथ सारी शेखावाटी का भ्रमण किया और जगह जगह सभाएं की. अथक प्रयास कर आपने स्थान-स्थान से लोगों को देश सेवा औए जाति सेवा के लिए तैयार किया. इसके बाद आपने कभी शांति से साँस नहीं लिया. आप जहाँ भी लोगों की कमजोरी की बात सुनते पहुँच जाते. आप अपनी कठोर किन्तु सत्य व् दृढ़तापूर्वक कही गयी वाणी से लोगों में उत्सक का बिजली की तरह संचार पैदा करते थे. ठिकानों के आदमी आपकी हलचलों से कांप गए थे. [11]

1932 में झुंझुनू के जाट महोत्सव को सफल बनाने के लिए आपने दिन-रात एक कर दिया. उस अवसर पर जयपुर प्रांतीय जाट सभा का संगठन हुआ, जिसके आप अध्यक्ष चुने गए. इससे सारी शेखावाटी में आपका नाम जाग उठा और लोगों ने नए उत्साह के साथ आपके साथ काम करना शुरू किया. झुंझुनूं महोत्सव के बाद तो आप इतने चमके की सारे इलाके की निगाह आप पर जा जमी. ठिकानों की स्वेच्छाचारिता के खिलाफ आपकी आँखें लाल हो उठती थी और क्रोध में काँप उठते थे. आपका सुन्दर गठा हुआ और लम्बा शारीर धनुष की तरह खिच जाता था. गरीब लोगों को आप न केवल सहानुभूति देते थे अपितु धन और जन से भी मदद करते थे. गरीबों के तो आप परम सहायक थे. झुंझुनू महोत्सव के बाद तो आपका सितारा खूब चमका. कौम में जहाँ आपकी इज्जत बढ़ी , राज्य में भी गिनती के आदमियों में सामिल थे. आपने थोड़े ही समय में देवरोड़ को शेखावाटी के लोगों की आशा का केंद्र बना दिया. [12]

झुंझुनूं में विशाल सम्मलेन 1932

नोट - यह सेक्शन राजेन्द्र कसवा की पुस्तक मेरा गाँव मेरा देश (वाया शेखावाटी), प्रकाशक: कल्पना पब्लिकेशन, जयपुर, फोन: 0141 -2317611, संस्करण: 2012, ISBN 978-81-89681-21-0, P. 109-117 से साभार लिया गया है.

जब राष्ट्रीय स्तर पर गांधीजी डांडी यात्रा कर रहे थे और नमक का कानून तोड़ने के अभियान चला रहे थे तो पन्ने सिंह ने शेखावाटी में जन आन्दोलन की हलचलें शुरू की. पन्ने सिंह उस समय शेखावाटी में तेजी से उभर रहे थे. उनमें संगठन निर्माण की अद्भुत क्षमता थी. रींगस के मूल चन्द अग्रवाल ने पिलानी में खादी भण्डार खोल दिया जिसे पन्ने सिंह ही संभाल रहे थे. खादी उत्पादन केंद्र देवरोड़ में खोला गया . कताई-बुनाई का कार्य शुरू किया गया. ठाकुर देशराज झुंझुनू आये औए पन्ने सिंह सहित अन्य किसान नेताओं से मिले. झुंझुनूं में विशाल पैमाने पर सम्मलेन करने के लिए गाँव-गाँव भजनोपदेशक पहुँचने लगे.

सन 1931 में ही मंडावा में आर्य समाज का वार्षिक सम्मलेन हुआ. ठिकानेदारों ने भय का वातावरण बनाया किन्तु हजारों स्त्री-पुरुषों ने सम्मलेन में भाग लिया. सभी ने आग्रह किया कि झुंझुनू में होने वाले सम्मलेन में भाग लें. ठाकुर देशराज के नेतृत्व में झम्मन सिंह वकील, भोला सिंह, हुकुम सिंह तथा स्थानीय भजनोपदेशकों की टोलियाँ शेखावाटी अंचल के सैंकड़ों गाँवों में घूमी और झुंझुनू सम्मलेन को सफल बनाने की अपील की.

जन जागरण के गीतों के माध्यम से गाँव-गाँव को जागरुक किया. घासी राम और हरलाल सिंह पडौसी रियासत बीकानेर के गाँवों में प्रचार करने लगे. राजगढ़ तहसील के जीवन राम जैतपुरा साथ थे जो देर रात तक गाँवों में भजनों के माध्यम से कार्यक्रम करते.

झुंझुनू सम्मलेन, बसंत पंचमी गुरुवार, 11 फ़रवरी 1932 को होना तय हुआ जो तीन दिन चला. स्वागत-समिति के अध्यक्ष पन्ने सिंह को बनाया गया. उनके पुत्र सत्यदेव सिंह के अनुसार महासम्मेलन के आयोजन के लिए बिड़ला परिवार की और से भरपूर आर्थिक सहयोग मिला. मुख्य अतिथि का स्वागत करने के लिए बिड़ला परिवार ने एक सुसज्जित हाथी उपलब्ध कराया. यह समाचार सुना तो ठिकानेदार क्रोधित हो गए. उन्होंने कटाक्ष किया - तो क्या जाट अब हाथियों पर चढ़ेंगे? यह सामंतों के रौब-दौब को खुली चुनोती थी. जागीरदारों ने सरे आम घोषणा की, 'हाथी को झुंझुनू नहीं पहुँचने दिया जायेगा.'

पिलानी के कच्चे मार्ग से हाथी झुंझुनू पहुँचाना था. रस्ते में पड़ने वाले गाँवों ने हाथी की सुरक्षा का भर लिया. इस क्रम में गाँव खेड़ला, नरहड़ , लाम्बा गोठड़ा, अलीपुर, बगड़ आदि गाँवों के लोग मुस्तैद रहे. हाथी दो दिन में सुरक्षित झुंझुनू पहुँच गया. ठिकाने दारों की हिम्मत नहीं हुई की कि रोकें.

सम्मलेन के लिए वर्तमान सेठ मोती लाल कालेज और रानीसती मंदिर के मैदान में विशाल तम्बू लगाये गए थे. एक नया गाँव बस गया था. सम्मलेन का कार्यालय सभा स्थल के निकट, मुख्य सड़क पर 'टेकडी वाली हवेली' में रखा था. आम लोगों के लिए सम्मलेन स्थल पर अनेक भोजनालय बनाये गए थे. झुंझुनू शहर के दुर्गादास काइयां , रंगलाल गाड़िया, बजरंग लाल वर्मा आदि ने खूब दौड़-भाग की. बगड़, चिड़ावा आदि शहरों से भरपूर सहयोग मिला. पूरा झुंझुनू शहर महासम्मेलन का स्वयं ही आयोजक बन गया था. स्वयं सेवकों की पूरी फ़ौज तीन दिन तक सम्मलेन स्थल पर अपनी सेवाएँ देती रही. झुंझुनू की गली-गली उत्साह से सरोबर थी.

पन्ने सिंह ने महासम्मेलन की अध्यक्षता के लिए दिल्ली के आनरेरी मजिस्ट्रेट चौधरी रिशाल सिंह राव को आमंत्रित किया था. चौधरी रिशाल सिंह दिल्ली से रींगस, रींगस से झुंझुनू रेल द्वारा पहुंचे. रेलवे स्टेशन पर किसान नेताओं के अलावा हजारों का जनसमूह अपने मुख्य अतिथि की प्रतीक्षा कर रहे थे. जब वे स्टेशन पहुंचे तो झुंझुनू स्टेशन जय कारों से गूँज उठा. रेलवे स्टेशन पर ऐसी भीड़ बाद में कभी नहीं देखी गयी. स्टेशन से सभा स्थल तक मुख्य सड़क से जुलुस के रूप में जाना तय हुआ. आगे-आगे बैंड बाजा , उसके पीछे सजा हुआ हाथी चलने लगा. हाथी पर चौधरी रिशाल सिंह और उनके पीछे पन्ने सिंह सवार थे. हाथी पर इन दोनों के साथ गनपतराम नाई बैठा था, जो मुख्य अतिथि को चंवर ढुला रहा था. हाथी के पीछे पैदल स्त्रियों का जत्था पांच-पांच की पंक्तियों में गीत गाते चल रहा था. महिला जत्थे के पीछे पांच-पांच की पंक्तियों में पुरुष पैदल हाथों में लाठियां या बरछी लिए चल रहे थे. सबसे पीछे ऊंट सवारों का जत्था था. सजे हुए ऊंट भी पांच-पांच की पंक्तियों में चल रहे थे. सत्यदेव सिंह के पास वर्षों तक इस जुलुस की फोटो सुरक्षित रही परन्तु दुर्भाग्य से अब वे उपलब्ध नहीं हैं. सत्यदेव सिंह पन्ने सिंह के दूसरे बेटे हैं.

चौधरी घासीराम, हर लाल सिंह, राम सिंह बख्तावरपुरा, लादूराम किसारी, ठाकुर देशराज, पंडित ताड़केश्वर शर्मा, जीवन राम जैतपुरा, हुकुम सिंह आदि की मेहनत के कारण पूरा झुंझुनू जिला महासम्मेलन की और उमड़ पड़ा. पन्ने सिंह के बड़े भाई भूरेसिंह ने भी इस सम्मलेन के दौरान उत्साह से कार्य किया. सीकरवाटी से भी काफी संख्या में किसान नेता आये थे. यह परिवर्तन की आंधी थी. इसलिए भूखे-प्यासे, पीड़ित गाँवों के लोग पैदल जत्थों में सभा स्थल की और चल पड़े. प्रथम बार गाँवों की महिलायें गीत गाते हुए आई. झुंझुनू की मुख्य सड़क पर जुलुस सभा स्थल की और बढ़ रहा था. शहर के निवासीगण घरों की छतों पर, दीवारों और मुंडेरों तथा छपरों पर खड़े हो आन्दोलनकारियों का हौसला बढ़ा रहे थे.

जयपुर रियासत के पुलिस इंस्पेक्टर जनरल मि. अफ.ऍम. यंग, नाजिम शेखावाटी, पुलिस अधीक्षक झुंझुनू व अन्य अधिकारीगण जुलुस के साथ-साथ चल रहे थे. शहर के निवासियों ने अनेक स्थानों पर जुलुस रोककर , मुख्य अतिथि व किसान नेताओं का सम्मान किया. महिलाओं ने आरती उतारी. तत्पश्चात वे भी जुलुस में शामिल हो गए.

सम्मलेन स्थल पर ऊँचा मंच बना हुआ था. अनेक हवन-कुण्ड एक और बने हुए थे. अधिवेशन के दौरान तीनों दिन सुबह यग्य हुआ और जनेऊ बांटी गयी. दिन में भाषणों के अतिरिक्त भजनोपदेशक रोचक और जोशीले गीत प्रस्तुत कर रहे थे. जीवन राम जैतपुरा, हुकुम सिंह, भोला सिंह, पंडित दत्तुराम, हनुमान स्वामी, चौधरी घासी राम आदि ने एक से बढ़कर एक गीत सुनाये. ठाकुर देशराज, पन्ने सिंह, सरदार हरलाल सिंह आदि नेताओं ने सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक बदलाव की आवश्यकता प्रतिपादित की. विशाल सम्मलेन को संबोधित करते हुए जयपुर रियासत के आई .जी . यंग ने कहा - जाट एक बहादुर कौम है. सामन्तों और पुरोहितों के लिए यह असह्य था.

इस ऐतिहासिक सम्मलेन जो निर्णय लिए गए उनमें प्रमुख निर्णय था - झुंझुनू में विद्यार्थियों के पढ़ने और रहने के लिए छात्रावास का निर्माण. दूसरा निर्णय जाट जाति का सामाजिक दर्जा बढ़ाने सम्बंधित था. जागीरदार और पुरोहित किसान को प्रताड़ित करते थे और उनमें हीन भावना भरने के लिए छोटे नाम से पुकारते थे जैसे मालाराम को मालिया. मंच पर ऐलान किया गया कि आज से सभी अपने नाम के आगे 'सिंह' लगावेंगे. सिंह उपनाम केवल ठाकुरों की बपौती नहीं है. उसी दिन से पन्ना लाल देवरोड़ बने कुंवर पन्ने सिंह देवारोड़, हनुमानपुरा के हरलाल बने सरदार हरलाल सिंह, गौरीर के नेतराम बने कुंवर नेतराम सिंह गौरीर, घासी राम बने चौधरी घासी राम फौजदार. आगरा के चाहर अपना टाईटल फौजदार लगाते हैं अत: चाहर गोत्र के घासी राम को यह टाईटल दिया गया.

कुंवर पन्ने सिंह देवरोड़ महासम्मेलन के पश्चात् पूरे शेखावाटी क्षेत्र में प्रसिद्ध हो गए थे. राष्ट्रीय स्तर पर अन्य नेताओं से उनके संपर्क स्थापित हुए. उनकी कर्मठता, परिवर्तन की ललक, अध्ययन प्रियता और दबंग स्वभाव ने पन्ने सिंह को शेखावाटी अंचल का आदर्श व्यक्ति बनादिया. उनके साहस की चर्चा जन-जन में होने लगी. पन्ने सिंह के नाम से गाँवों के गरीबों में साहस भर जाता था. पिलानी के निकट होने से बिड़लाओं ने स्कूलों का जाल बिछाया, उन सबके पीछे पन्ने सिंह का मस्तिष्क काम कर रहा था.

खादी की सफ़ेद धोती, कुरता, खुले गले का कोट, सर पर सफ़ेद पगड़ी, पैरों में देशी जूती, ये पन्ने सिंह की पहचान बन गयी. विशाल काया और ऊँचा कद , पन्ने सिंह को अन्य से करते थे. उनके देवरोड़ स्थित घर में आने जाने वालों का ताँता लगा रहता था. पन्ने सिंह के बेटे सत्यदेव का कहना है कि उनके घर पर क्रांतिकारियों का जमघट लगा ही रहता था. क्रन्तिकारी बाबा नरसिंह दास लम्बे समय तक भूमिगत रूप में पन्ने सिंह के घर रहे. पन्ने सिंह की पत्नी आने वालों को खाना खिलाती थी. मेहमानों की भीड़ बढने पर गाँव के नाई की सेवा ली जाती थी.

पन्ने सिंह दिन-रात जिले में दौरा करते थे. आवश्कता होने पर राज्य से बाहर भी जाते थे. जब-जब भी आर्य समाज का वार्षिक सम्मलेन मंडावा में होता, पन्ने सिंह गाँव के लोगों को एकत्रित कर पैदल ही मंडावा के लिए चल देते. गाँवों में रुकते हुए, प्रचार करते हुए वे मंडावा पहुंचते थे.

राजनैतिक जीवन में व्यस्त रहने के बावजूद वे आर्थिक पक्ष का ध्यान रखते थे. इसके लिए वे निर्माण कार्यों का ठेका लेते. इससे उन्हें अतिरिक्त आय होती रहती और आर्थिक आधार सुदृढ़ बना रहता. किसी के आगे हाथ पसारने की उन्हें आवश्यकता नहीं थी. सन 1928 के पश्चात् पन्ने सिंह ने ब्याज पर रुपये उधार देना (बोरगत) बंद कर दिया था. इस कार्य से उन्हें घृणा हो गयी थी.

राजस्थान की जाट जागृति में योगदान

ठाकुर देशराज[13] ने लिखा है ....उत्तर और मध्य भारत की रियासतों में जो भी जागृति दिखाई देती है और जाट कौम पर से जितने भी संकट के बादल हट गए हैं, इसका श्रेय समूहिक रूप से अखिल भारतीय जाट महासभा और व्यक्तिगत रूप से मास्टर भजन लाल अजमेर, ठाकुर देशराज और कुँवर रत्न सिंह भरतपुर को जाता है।

यद्यपि मास्टर भजन लाल का कार्यक्षेत्र अजमेर मेरवाड़ा तक ही सीमित रहा तथापि सन् 1925 में पुष्कर में जाट महासभा का शानदार जलसा कराकर ऐसा कार्य किया था जिसका राजस्थान की तमाम रियासतों पर आश्चर्यजनक प्रभाव पड़ा और सभी रियासतों में जीवन शिखाएँ जल उठी।

सन् 1925 में राजस्थान की रियासतों में जहां भी जैसा बन पड़ा लोगों ने शिक्षा का काम आरंभ कर दिया किन्तु महत्वपूर्ण कार्य आरंभ हुये सन् 1931 के मई महीने से जब दिल्ली महोत्सव के बाद ठाकुर देशराज अजमेर में ‘राजस्थान संदेश’ के संपादक होकर आए। आपने राजस्थान प्रादेशिक जाट क्षत्रिय की नींव दिल्ली महोत्सव में ही डाल दी थी। दिल्ली के जाट महोत्सव में राजस्थान के विभिन्न


[पृ 2]: भागों से बहुत सज्जन आए थे। यह बात थी सन 1930 अंतिम दिनों में ठाकुर देशराज ‘जाट वीर’ आगरा सह संपादक बन चुके थे। वे बराबर 4-5 साल से राजस्थान की राजपूत रियासतों के जाटों की दुर्दशा के समाचार पढ़ते रहते थे। ‘जाट-वीर’ में आते ही इस ओर उन्होने विशेष दिलचस्पी ली और जब दिल्ली महोत्सव की तारीख तय हो गई तो उन्होने जयपुर, जोधपुर, बीकानेर और दूसरी रियासतों के कार्य कर्ताओं को दिल्ली पहुँचने का निमंत्रण दिया। दिल्ली जयपुर से चौधरी लादूराम किसारी, राम सिंह बख्तावरपुरा, कुँवर पन्ने सिंह देवरोड़, लादूराम गोरधनपुरा, मूलचंद नागौर वाले पहुंचे। कुछ सज्जन बीकानेर के भी थे। राजस्थान सभा की नींव डाली गई और उसी समय शेखावाटी में अपना अधिवेशन करने का निमंत्रण दिया गया। यह घटना मार्च 1931 की है।

इसके एक-डेढ़ महीने बाद ही आर्य समाज मड़वार का वार्षिक अधिवेशन था। लाला देवीबक्ष सराफ मंडावा के एक प्रतिष्ठित वैश्य थे। शेखावाटी में यही एक मात्र ऐसे व्यक्ति थे जिनहोने कानूनी तरीके से ठिकानाशाही का सामना करने की हिम्मत की थी। उन्होने ठाकुर देशराज और कुँवर रत्न सिंह दोनों को आर्य समाज के जलसे में आमंत्रित किया। इस जलसे में जाट और जाटनियाँ भरी संख्या में शामिल हुये। यहाँ हरलाल सिंह, गोविंद राम, चिमना राम आदि से नया परिचय इन दोनों नेताओं का हुआ।

सहयोगी

ठाकुर देशराज[14] ने लिखा है ....कालूराम जी देवरोड़ - [पृ.435]: संवत 1931 (1874 ई.) बैशाख में आपका जन्म हुआ। आपके पिता का नाम रामसुख व माता का नाम हीरा था। आप सब मिलकर चार भाई हैं। सबसे बड़े आप हैं। आप से छोटा शिवनारायण, उन से छोटा ईश्वर, व इससे छोटा लालाराम है।

आपने झुंझुनू सभा में कुंवर पन्नेसिंह जी के साथ कार्य किया। बहुत सी बार जाट सभा के कार्य के लिए जयपुर भी गए। सदैव कुंवर पन्नेसिंह साहब के साथ काम किया। कुछ दिन तक खेतराम जी के साथ चंदा इकट्ठा किया। आपने जाट सभा की तन मन से सेवा की व अब भी कर रहे हैं। आपका देशप्रेम अकथनीय है। आपके तीन लड़के थे। परंतु अब एक की मृत्यु हो गई है। अब दो लड़के हैं, बड़े का नाम खूबाराम है, छोटे का नाम मालाराम है। आप का गोत्र पिलानिया है।

देहावसान

झुंझुनू जिले के लिए सन 1933 बहुत दुर्भाग्यपूर्ण साबित हुआ. 27 अप्रेल 1933 अर्थात आखातीज संवत 2010 के दिन शाम पांच बजे शेखावाटी के इस क्रन्तिकारी सपूत का बीमारी के कारण देहांत हो गया. इससे पूर्व नौ दिन वे बेहोशी की अवस्था में रहे थे. दिमाग की नस फट गयी थी. डॉ गुलझारी लाल उनका ईलाज कर रहे थे. कहा जाता है कि बेहोशी के दौरान भी वे किसान आन्दोलन के बारे में बुदबुदाते रहे. दूसरे दिन दाह संस्कार किया गया. उनकी शव यात्रा में भारी जन समूह एकत्रितहुआ था.

श्री पन्ने सिंह देवरोड़ पर भजन

रचनाकार : महाशय धर्मपाल सिंह भालोठिया, भजन-96, मेरा अनुभव (भाग-2) - मो॰9460389546

देशभक्त-श्री पन्नेसिंह - स्वतंत्रता सेनानी
तर्ज-चौकलिया

देवरोड़ शेखावाटी में, बना पवित्र धाम।

देशभक्त पन्नेसिंह का, अमर हो गया नाम।। टेक ।।


बचपन बीता आई जवानी, जिस दिन होश संभाला था।

भारतवासी गुलाम देखे, नाम कुली और काला था।

राजा जागीरदारों के, जुल्मों का बोलबाला था।

कूद पड़ा मैदान में वो, आजादी का मतवाला था।

छोड़ दिया घर गाँव बच्चे, छोड़ा ऐशो-आराम ।। 1 ।।

मातृशक्ति का आदर, अछूतों का उद्धार किया।

अन्ध-विश्वास कुरीति खंडन, सामाजिक सुधार किया।

स्कूल छात्रावास बनाये, विद्या का प्रचार किया।

ऊँच-नीच का भेद मिटाया, दीन हीन से प्यार किया।

उनका भाई चारा था, ये गाँव के लोग तमाम ।। 2 ।।

नहीं वो हिन्दू मुसलमान और नहीं वो सिक्ख ईसाई था।

नहीं वो गूजर राजपूत, नहीं ब्राह्मण बनिया नाई था।

नहीं वो अहीर, जाट हरिजन, जोगी और गुसाई था।

जंगे आजादी का बहादुर, राजस्थानी भाई था।

दृढ़ संकल्प था उनका, अब रहना नहीं गुलाम ।। 3 ।।

निर्दोष कमेरा जाति का, जहाँ पर भी पड़ा पसीना था।

देने अपना खून वहाँ पर, चला खोलकर सीना था।

देवरोड़ में वीर बालक , जन्मा लाल लखीना था।

किसान तेरी अंगूठी का, श्री पन्ने सिंह नगीना था।

भालोठिया उस देशभक्त को, करता है सलाम ।। 4 ।।

कवि के पसंदीदा कुछ अन्य संकलन

कुंवर पन्नेसिंह देवरोड़ की पुण्यतिथि 27 अप्रैल पर दयाराम महरिया का लेख

शेखावाटी के सिंह : कुंवर पन्नेसिंह देवरोड़
लेखक - दयाराम महरिया, कूदन (सीकर)

पृष्ठभूमि: आजादी से पूर्व शेखावाटी के किसान तिहरी गुलामी व त्रिकाल से त्रस्त थे। दो बूंद पानी व दो मुट्ठी धाणी (अनाज) के लिए घाणी -माणी जिंदगानी थी। असंगठित किसान राव राजा व जागीरदारों के जुल्म के शिकार थे। जन चेतना व शिक्षा के अभाव में अंधविश्वास, कुरीतियां व भाग्यवाद समाज को बर्बाद कर रहा था। उस समय किसान की पढ़ने की परिस्थितियां नहीं थी परन्तु वह पढ़ना चाहता था तो भी उसे संस्कृत जैसे विषय पढ़ाए भी नहीं जाते थे । भैरोंसर ,चूरू के स्वामी गोपालदास जी व मंगलूना(लक्ष्मणगढ़) के स्वामी केशवानंद जी संत होने के कारण ही पढ़ सके। बीसवीं सदी के प्रारंभ में शेखावाटी में जन -जागृति का कार्य, आर्य समाज ने किया। आर्य समाज के महात्मा कालूराम जी( रामगढ़ सेठान) सेठ देवीबक्स सर्राफ( मंडावा )ठाकुर छत्तूसिंह जी (टांई) व चौधरी चिमनाराम जी कुलहरी (सांगासी ) आदि प्रमुख नेता थे। आर्य समाज सुधारकों ने जागीरदारों के अत्याचारों का विरोध करने के साथ-साथ, अंधविश्वास, सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार किया। उनके भजन उपदेशक गांव- गांव में जाकर शिक्षा एवं जन चेतना का प्रचार -प्रसार करते । उन्होंने विवाह-समारोह के अवसर पर गाए जाने वाले मांगलिक गीतों को चेतना से जोड़ दिया। लड़की -लड़के के विवाह के अवसर पर गाए जाने वाले निम्न दो गीतों का नमूना देखिए-

बाबोसा री प्यारी बनड़ी कुरस्यां पर बैठी
बैठी बांचै वो किताब बन्नी आर्यां की लड़की .....

अर्थात अपने माता-पिता की लाडली वधू(बनड़ी ) कुर्सी पर बैठी हुई किताब पढ़ रही है ।

इसी तरह वर के लिए -

बन्ना !लेल्यो कलम दवात चल्या जावो पढ़बा नै...

प्रथम विश्वयुद्ध में शेखावाटी के जाट-जवान सेना में गए ।वे भी सेना से वापस आकर जनचेतना के संवाहक बने ।उस समय के अग्रणी किसान नेताओं के व्यक्तित्व में त्रिजातीय (ब्राह्मण -जनेऊ, कुंवर ,सिंह - राजपूत व जाट ) गुण संगम देखने को मिलते हैं ।आर्य समाज की भाव-भूमि पर सहज संगठन बनकर किसान सभा का अभ्युदय हुआ । कालांतर में कांग्रेस का रियासती संस्करण प्रजामंडल भी कुछ स्थानों पर सक्रिय हुआ ।

कुंवर पन्नेसिंह देवरोड़ - कुंवर पन्नेसिंह देवरोड़ का जन्म चिड़ावा -पिलानी के मध्य के देवरोड़ गांव में एक संपन्न किसान चौधरी जालूराम कुल्हार के घर सन् 1900 (सर्वोदयी, स्वतंत्रता सेनानी उनके पुत्र सत्यदेव जी के अनुसार) में हुआ । ठाकुर देशराज के अनुसार उनका जन्म सम्वत् 1959 विक्रमी के चैत्र में कृष्ण एकादशी को हुआ था । जालूराम के चार बेटे चेतराम, भूरसिंह ,पन्ने सिंह व बेगराज थे ।देवीरोड़ ताजीमी जागीरदार बिसाऊ के अधीनस्थ था । चौधरी जालूराम जागीरदार की तरफ से लगान वसूली का कार्य करते थे जिसे उन दिनों नंबरदार कहा जाता था। पन्नेसिंह जी ने देवरोड़ के निकट नरहड़ में मौलवी से उर्दू सीखी । उसके पश्चात गांव खुड़िया के पंडित जी से हिंदी सीखी ।कहावत है -' होनहार बिरवान के होत चिकने पात' । पन्नेसिंह प्रारंभ से ही तीक्ष्ण बुद्धि वाले, साहसी एवं नेतृत्व क्षमता के धनी थे ।शिवाजी की तरह 'कार्य वा साधयामि, देहं वा पातयामि' अर्थात कार्य को पूरा करूंगा या शरीर का त्याग कर दूंगा ,में विश्वास करने वाले थे । उन्होंने पिलानी के पंडित रूपाराम जी से आर्य समाज की दीक्षा ली । पंडित जी के माध्यम से ही उनका संपर्क घनश्यामदास बिड़ला, डॉक्टर गुलजारीलाल एवं हरियाणा के मास्टर रतनसिंह से हुआ ‌।उनमें शिक्षा का प्रचार -प्रसार करने की धुन थी । उन्होंने सन् 1927 में अपने घर में' महेंद्र प्रताप पुस्तकालय' की स्थापना की जिसमें सन् 1930-31 तक हजारों पुस्तकें थी । उन्होंने ने बिड़ला बंधुओं के सहयोग से अपने गांव में स्कूल भी खोला । शिक्षा व चेतना का प्रचार गांव- गांव में रामसिंह कंवरपुरा, मास्टर रतनसिंह, हवलदार खेताराम नरहड़ आदि को साथ लेकर किया । पिलानी में खादी उद्योग शुरू किया । उन्होंने पांडियों की धर्मशाला में छात्रावास खोला। उस छात्रावास में चौधरी चिमनाराम सांगासी के पुत्र विद्याधर एडवोकेट भी रहे थे । पन्नेसिंह पर आर्य समाज का बहुत प्रभाव था । उन्होंने अपने घर पर अनुसूचित जाति के लोगों को जोड़कर कताई -बुनाई का काम प्रारंभ किया । यही नहीं अस्पृश्यता की भावना को समाप्त करने के लिए अपने घर पर चमड़ा उद्योग स्थापित किया ।मोहनदास गांधी जी सन् 1921 में भिवानी आए थे । उस समय महात्मा कालूराम,सेठ देवीबक्स सर्राफ, चौधरी चिमनाराम आदि के साथ गांधी जी से भेंट की तथा शेखावाटी के किसानों की समस्याओं से अवगत करवाया । वहां पर पंजाब, यू.पी. व दिल्ली के किसान नेताओं से मुलाकात हुई ।भिवानी से लौटकर चौधरी चिमनाराम ने अपने ग्राम सांगासी में शेखावाटी में किसान जन जागृति के लिए अग्रणी किसान नेताओं की एक मीटिंग बुलाई जिसमें पन्नेसिंह देवरोड़ भी एक थे ।

सन् 1925 में बगड़ में शेखावाटी में प्रथम जाट पंचायत की स्थापना हुई जिसमें रामसिंह बख्तावरपुरा को अध्यक्ष ,चौधरी भूदाराम को उपाध्यक्ष , मास्टर रतन सिंह जी को मंत्री नियुक्त किया गया तथा पन्नेसिंह देवरोड़ को व्यवस्थापक बनाया गया । जाट छात्रावास के निर्माण के लिए बृजमोहन लोयल, हरियाणा के दानवीर चौधरी छाजूराम ( उनके पूर्वज गोठड़ा लांबा के थे ) जुगल किशोर बिड़ला आदि ने सहयोग किया ।सन् 1925 में पुष्कर में जाट महासभा का अधिवेशन हुआ जिसके अध्यक्ष भरतपुर रियासत के राजा कृष्णसिंह थे तथा पंडित मदन मोहन मालवीय भी उस में पधारे थे। शेखावाटी से काफी संख्या में किसान उस सम्मेलन में शरीक हुए जिनमें प्रमुख चौधरी भूदाराम, चिमना राम ,गोविंदाराम,हरलाल सिंह, पन्नेसिंह देवरोड़, रामसिंह ,लादूराम किसारी , चेतराम भामरवासी ,चौधरी घासीराम, पृथ्वीसिंह गोठड़ा, हरिसिंह पलथाना ,मोतीराम धायल कोटड़ी, गोपीसिंह व देवीसिंह आदि थे । वहां महाराजा कृष्णसिंह जी व पंडित मदन मोहन मालवीय जी के भाषण हुए थे । उन दोनों के भाषणों से जाटों में एक नवीन जागृति पैदा हुई और उन्होंने यह अनुभव किया कि जाट क्षेत्रीय कौम है और वह किसी से कम नहीं है । उनके भी राज्य हैं। हीन भावना का त्याग और जाति में गौरव उत्थान की भावना जागृत हुई ।सभी लोग पूरे जोश के साथ जाटों को संगठित करने व अत्याचारों का मुकाबला करने के संकल्प के साथ लौटे और इसका सब जगह प्रचार किया जिसका बहुत अच्छा असर हुआ।

नव जागृति व चेतना का उदय हुआ। उन्हीं दिनों सेठ देवीबक्स सर्राफ ने मंडावा में आर्य समाज का जलसा किया। उन्होंने अपना मकान आर्य समाज को सौंपने की घोषणा की । हमेशा गले में पिस्तौल रखने वाले सेठ जी ने जन समूह से आर्य समाजी बनने का आग्रह किया । सन् 1927 में आर्य समाज भवन का निर्माण प्रारंभ हुआ जिसका उद्घाटन फरवरी 1929 में किया गया ।उद्घाटन से पूर्व भवन के मंडावा के ठाकुर ने ताला लगा दिया । इससे वहां एकत्रित जनसमूह में काफी आक्रोश हो गया। टांई के ठाकुर छत्तूसिंह के नेतृत्व में भवन का ताला तोड़ दिया गया । सन् 1929 में दिल्ली में केंद्रीय असेंबली में भगतसिंह एवं बटुकेश्वर दत्त ने बम फेंका। उस घटना ने भी शेखावाटी के युवा किसान नेताओं में जोश भर दिया उनमें पन्ने सिंह देवरोड़ भी थे ।सन 1930 में दिल्ली में अखिल भारतीय क्षत्रिय जाट महासभा का वार्षिक अधिवेशन हुआ । पन्नेसिंह देवरोड़ ने अन्य नेताओं के साथ उसमें भाग लिया। वहीं पर भरतपुर के ठाकुर देशराज से उनकी मुलाकात हुई । ठाकुर देशराज कुशल रणनीतिकार व इतिहासकार थे। वहीं सन् 1932 फरवरी के लिए कुंवर पन्नेसिंह देवरोड़ ने झुंझुनूं में 23 वें महोत्सव के लिए आमंत्रित किया । अखिल भारतीय जाट क्षत्रिय महासभा का 23 वां अधिवेशन 11-12-13 फरवरी सन् 1932 को झुंझुनू में हुआ। झुंझुनू महोत्सव के लिए पैंपलेट निकाला गया हिन्दी व उर्दू में छपे उस पेम्पलेंट को राज्य अभिलेखागार, बीकानेर से प्राप्त कर इतिहासकार अरविंद भास्कर ने मुझे उपलब्ध कराया है जो निम्नानुसार है

-- जातीय सुधार व संगठन और जाति में विद्या प्रचार के उपायों पर विचार करने के लिए यह अधिवेशन बुलाया जा रहा है। अधिवेशन में चौधरी रिसालसिंह जी ऑनरेरी मजिस्ट्रेट व म्युनिसिपल कमिश्नर दिल्ली को सभापति बनाया गया है । 14 फरवरी ,1932 को जाट जाति की ओर से महाराजाधिराज जयपुर को एक अभिनंदन पत्र पेश किए किया जाएगा ।

निवेदक- रावबहादुर चौधरी लालचंद एम.एल.ए. ,एडवोकेट प्रधान महासभा, झम्मनसिंह एडवोकेट मंत्री महासभा, भैरोंसिंह (न्यू होटल, जयपुर) स्वागत अध्यक्ष, पन्नेसिंह शेखावाटी स्वागत मंत्री ।'

इस अधिवेशन की रूपरेखा ठाकुर देशराज ने बनाई थी। पन्ने सिंह उनके अर्जुन थे। अधिवेशन के सभापति को हाथी पर चढ़ा कर जुलूस निकाला गया उस अधिवेशन से कुंवर पन्नेसिंह देवरोड़ शेखावाटी में उसी तरह छा गए जिस तरह स्वामी विवेकानंद शिकागो सम्मेलन के बाद विश्व स्तर पर छा गए थे । सम्मेलन के पश्चात ठाकुर देशराज ने उनको एवं अन्य कई नेताओं को कुंवर एवं हरलालसिंह को सरदार की उपाधि से नवाजा । ध्यातव्य है कि पन्नेसिंह का पहले नाम पन्नालाल था ।ठाकुर देशराज ने उनके नाम के पीछे सिंह लगाया और तब से सिंह कई जाट नेताओं ने लगाना प्रारंभ कर दिया। उनके घर पर ब्याज का धंधा था ।पन्नेसिंह जी ने उसे बंद कर दिया । वे बड़े स्वाभिमानी व्यक्ति थे । किसी के सामने हाथ फैलाना उन्होंने नहीं सीखा था ।परिवार-पालन के लिए वे पिलानी में निर्माण कार्य के ठेके लेते थे । सन् 1932 में ही उन्होंने झुंझुनूं के संस्थापक झुंझा नेहरा की जीवनी 'रणकेसरी जुंझारसिंह 'नामक पुस्तक प्रकाशित की थी जिसके वे लेखक थे । सन् 1933 में 'महाराजा सूरजमल जन्म शताब्दी समारोह' में ठाकुर देशराज ने उन्हें भरतपुर में आमंत्रित किया । रेलगाड़ी से जब वे अपने साथियों सहित आगरा पहुंचे तो उन्हें पता चला कि भरतपुर में धारा 144 लगा दी गई है तब उन्होंने बठोठ के लोठ जाट की तरह एक युक्ति निकाली ।आगरा में हनुमानपुरा के सूरजमल नाई को दूल्हा बनाकर शेष बराती के भेष में भरतपुर पहुंचकर समारोह में भाग लिया ।

प्रखर विचारक, समाज सुधारक ,किसान नेता कुंवर पन्ने सिंह देवरोड़ धोती कुर्ता वह सिर पर पगड़ी बांधते थे । आत्म सुरक्षा के लिए हमेशा अपने पास दो पिस्तौल रखते थे।उस पोशाक में उन्नत भाल वाले जज़्बाती मरुधर - लाल देवरोड़ की मरोड़ देखते ही बनती थी ।

उनके एक घर में दो मत थे ।पिताजी एवं बड़े भाई भूर सिंह जी प्रारंभ में जागीरदारों के पक्षधर थे जब कि पन्नेसिंह जी धूर विरोधी थे।

वे ठाकुर देशराज के मार्गदर्शन में सीकर में आंदोलन की रूपरेखा तैयार कर रहे थे परन्तु दुर्भाग्य से पन्ना की तमन्ना अधूरी रह गई । निमोनिया से अक्षय तृतीया ,27 अप्रैल,1933 को उनका निधन हो गया ।उनके निधन से शेखावाटी के किसान आंदोलन पर वज्रपात हो गया। शोक प्रकट के लिए देवरोड़ उनके घर ठाकुर देशराज आए तो वे पछाड़ खाकर गिर पड़े । उन्होंने घायल हिरणी की भांति तड़पते हुए कहा-' अब मैं और पन्नेसिंह कहां से लाऊं ?' उस घटना के समय वहां उपस्थित कुंवर नेतरामसिंह गोरीर(पूर्व राज्यपाल कमला जी के पिता ) व कुंवर भूरसिंह(पन्नेसिंह के बड़े भाई ) ने ठाकुर देशराज को धीरज बंधाया तथा परमात्मा को साक्षी करके जाट कौम की सेवा करने का संकल्प लिया । कुंवर नेतरामसिंह की डायरी (अप्रकाशित) के पृष्ठ संख्या 33 पर वे लिखते हैं-

' जुल्मों को खत्म करने के लिए पन्नेसिंह किस प्रकार तड़फड़ाते यह भी वे (देशराज) रोते-रोते कह रहे थे । उस समय मेरे चारों ओर घूम रही थी वह गंभीर मूर्ति मानो यह सब देख सुन रही हो और हमें उद्देश्य सिद्धि के लिए प्रभावित कर रही हो । ज्यों-ज्यों में ठाकुर साहब के शब्दों को सुन रहा था पन्नेसिंह जी की गंभीर मूर्ति मेरी आंखों के सामने झूलने लग रही और धीरे-धीरे स्पष्ट हो रही थी ।जब मैं बोलकर चुप हुआ ,मैंने देखा कुंवर पन्नेसिंह जी की वह परछाई प्रफुल्लित हो रही है ।ज्यों ही मैं बोलकर चुप हुआ ठाकुर साहब बोल उठे- नहीं -नहीं ,कुंवर पन्नेसिंह जी की मृत्यु नहीं हुई है ।हां, वह अब तुम्हारे रूप में मेरे सामने जीवित है ।'

उनके निधन पर शोक प्रकट करने दीनबंधु छोटूराम आए तो उन्होंने पन्नेसिंह के बड़े भाई कुंवर भूरसिंह जी से कहा कि वे पन्ने सिंह जी के सपनों को पूरा करें। इससे पूर्व पन्नेसिंह जी की अध्यक्षता में जाट बोर्डिंग हाउस की स्थापना 6 रुपये मासिक किराए के मकान में4अप्रेल, 1933 में रामनवमी के दिन हो चुकी थी। भूरसिंह जी ने प्रयास करके बिसाऊ ठाकुर से जाट बोर्डिंग के लिए धत्तरवाल गांव में 11 बीघा जमीन दिलवाई ।

आर्य समाज के तपोनिष्ठ पंडित खेमराज शर्मा लिखते हैं-

' कुंवर पन्नेसिंह देवरोड़ सर्वश्रेष्ठ नेता थे परंतु उनकी मृत्यु यौवन की देहरी पर कुछ आगे बढ़ने पर ही हो गई थी । अत्याचार की एक बड़ी शक्ति होती है जिसका कल्याणकारी स्वरूप यह होता है कि वह अपने विनाश के लिए स्वयं नेतृत्व शक्ति को जन्म देता है ।शेखावाटी क्षेत्र में ऐसा कृत संकल्प नेतृत्व उत्पन्न हो गया था ।'

सीकर के जाट प्रजापति महायज्ञ में 25 जनवरी, 1934 को निम्न प्रथम प्रस्ताव उनको श्रद्धांजलि देते हुए पारित किया हुआ था-

'यह सभा जाट समाज की रीढ़ की हड्डी रहे पन्नेसिंह के निधन पर शोक प्रकट करती है ।

उनके निधन के 2 वर्ष के अंदर ही क्रमशः जयसिंहपुरा (21 जून, 1934) खुड़ी (27 मार्च ,1935 )व कूदन (25 अप्रैल ,1935) को किसानों पर अत्याचार एवं अन्याय की लोमहर्षक घटनाएं हुई ।जब तक शेखावाटी के वे शेर जिंदा रहे किसानों की तरफ आंख उठाने की हिम्मत रावराजा एवं जागीरदार नहीं कर सके। यदि वे होते तो निश्चित रूप से उपर्युक्त तीनों घटनाएं नहीं होती।

कहना चाहूंगा-

जयसिंहपुरा अरु खुड़ी, कृषकन कूदन क्लेश ।
जब परलोक सिधारिया,' देवरोड़ पन्नेस' ।।

कई इतिहासकारों का मानना है कि यदि दीनबंधु छोटूराम जीवित होते तो पंजाब का बंटवारा नहीं होता अर्थात भारत-पाकिस्तान नहीं बनता और बनता तो भी इस स्वरूप में नहीं बनता परंतु दुर्भाग्य से आजादी से पूर्व ही उनका निधन हो गया । कुंवर पन्ने सिंह देवरोड़ शेखावाटी के दीनबंधु छोटूराम थे । ठाकुर देशराज ने अपनी पुस्तक 'रियासती भारत के जाट जनसेवक'(प्रकाशित सन् 1949 ) के पृष्ठ संख्या 163 पर लिखा है-

'अगर आज पन्नेसिंह जी होते तो शेखावाटी का दर्जा बहुत ऊंचा होता ।वे एक आश्चर्यजनक गति के दृढ़ निश्चयी तथा त्यागी व्यक्ति थे । शेखावाटी उनके लिए आज भी रोती है ।'

मनुष्य का जीवन एक कहानी की तरह है महत्वपूर्ण यह नहीं है कि वह कितनी लंबी है बल्कि यह है कि वह कितनी अच्छी है। आदरणीय पन्नेसिंह जी की जीवन कहानी लंबी तो नहीं रही परंतु बहुत अच्छी रही। आदि शंकराचार्य की तरह उन्होंने अल्पायु में ही ऐतिहासिक- क्रांतिकारी काम कर दिखाए । ऐसे ही लोगों के लिए कविवर ईसरदास बारहठ ने 'हाला झाला रा कुंडलिया 'में लिखा है-

मरदा मरणो हक्क है ,ऊबरसी गल्लाॅह।
सा पुरसा रौ जीवणां, थोड़ौ ही भल्लाॅह।।

भर्तृहरि ,नीति शतक में लिखते हैं-

परिवर्तिनि संसारे मृत: को वा न जायते ।
स जातो येन जातेन याति वंश: समुन्नतिम् ।। (1.32)

अर्थात् इस भ्रमणशील व अस्थिर संसार में ऐसा कौन है जिसका जन्म और मृत्यु न हुआ हो? लेकिन यथार्थ में जन्म लेना उसी मनुष्य का सफल है जिसके जन्म से उसके वंश के गौरव की वृद्धि हो । पन्नेसिंह जी के जन्म से उनके वंश एवं शेखावाटी के गौरव की वृद्धि हुई ।

हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि व्यक्ति जब तक नहीं मरता तब तक उसकी बातें चलती रहती हैं । आदरणीय पन्नेसिंह जी की बातें आज भी चल रही हैं ।अतः वे मर कर भी अमर हैं । राजस्थानी में एक भजन है उसकी टेर है-

बिणजारी ए हंस -हंस बोल, बातां थारी रह जासी ।
सौदागर तू सोवैं मत जाग ,टांडो थारो लद जासी ।

मित्रो! एक दिन हम सबका टांडा लदना है अर्थात् जीवन लीला समाप्त होनी है परंतु अपने सद्कार्यों से पन्नेसिंह अमरसिंह हो गए ।

अंत में कहना चाहूंगा-

मान किसान दहाड़ते,' पन्ने सिंह' समान ।
तन क्षय अक्षय तीजिया, अक्षय कीर्ति जहान ।।
लायक नायक झुंझुनूं, शेखावाटी शान ।

' दयाराम 'शत-शत नमन, 'पन्नेसिंह' किसान ।।

पुस्तक का प्रकाशन

चित्र गैलरी

References

  1. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.375
  2. राजेन्द्र कसवा: मेरा गाँव मेरा देश (वाया शेखावाटी), प्रकाशक: कल्पना पब्लिकेशन, जयपुर, फोन: 0141 -2317611, संस्करण: 2012, ISBN 978-81-89681-21-0, P. 72
  3. राजेन्द्र कसवा: मेरा गाँव मेरा देश (वाया शेखावाटी), प्रकाशक: कल्पना पब्लिकेशन, जयपुर, फोन: 0141 -2317611, संस्करण: 2012, ISBN 978-81-89681-21-0, P. 72
  4. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.391-393
  5. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.374-378
  6. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.378-380
  7. राजेन्द्र कसवा: मेरा गाँव मेरा देश (वाया शेखावाटी), प्रकाशक: कल्पना पब्लिकेशन, जयपुर, फोन: 0141 -2317611, संस्करण: 2012, ISBN 978-81-89681-21-0, P. 72
  8. राजेन्द्र कसवा: मेरा गाँव मेरा देश (वाया शेखावाटी), प्रकाशक: कल्पना पब्लिकेशन, जयपुर, फोन: 0141 -2317611, संस्करण: 2012, ISBN 978-81-89681-21-0, P. 72
  9. डॉ. ज्ञानप्रकाश पिलानिया: राजस्थान स्वर्ण जयंती प्रकाशन समिति जयपुर के लिए राजस्थान हिंदी ग्रन्थ अकादमी जयपुर द्वारा प्रकाशित 'राजस्थान में स्वतंत्रता संग्राम के अमर पुरोधा - सरदार हरलाल सिंह' , 2001 , पृ. 20-21
  10. डॉ पेमा राम: राजस्थान में किसान आन्दोलन (Rajasthan mein Kisan Andolan), Publisher - Rajasthani Granthagar, Jodhpur, Ph 0291-2623933, First Edition 2007, p.81
  11. डॉ पेमा राम: राजस्थान में किसान आन्दोलन (Rajasthan mein Kisan Andolan), Publisher - Rajasthani Granthagar, Jodhpur, Ph 0291-2623933, First Edition 2007, p.81
  12. डॉ पेमा राम: राजस्थान में किसान आन्दोलन (Rajasthan mein Kisan Andolan), Publisher - Rajasthani Granthagar, Jodhpur, Ph 0291-2623933, First Edition 2007, p.81
  13. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.1-2
  14. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.435

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