Panipat

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Map of Panipat District

Panipat (पानीपत) is an ancient and historic city in Panipat District, Haryana state, India. Three battles fought at the city were turning points in Indian history.

Variants

Location

It is 90 km from Delhi on NH-1 and comes under the National Capital Territory of Delhi. Panipat is situated on the banks of the river Yamuna, and here the three historical battles of Panipat were fought. This district is bordered by Karnal, Sonipat, Jind and Kaithal and the state of Uttar Pradesh.

Tahsils in Panipat district

Villages in Panipat tahsil

(This list consists of villages falling under Panipat tehsil, and not district Panipat as a whole). Adiyana, Ahmadpur Majra, Asan Kalan, Asankhurd (CT), Azizullapur, Babail, Babarpur, Badauli, Baholi, Bal Jattan, Barana, Begumpur Bapnot, Bhadaur, Bhainswal, Bhalsi, Binjhol, Brahman Majra, Bursham, Chandoli, Dadlana, Dahar, Dharamgarh, Diwana, Faridpur, Ganjbar, Garh Sanrai, Hartari, Jatol, Joshi, Kabri, Kawi-कवी Kabul Bagh, Kachrauli, Kalkha, Khandra, Kheri Nangal, Khotpura, Khukhrana, Kotani, Luhari, Madlauda, Mahayudinpur Thirana, Mahmadpur, Mahrana, Milk Ugra Kheri, Nara Panipat, Nauhra, Nimbri, Nizampur, Pahladpur Khalila, Palheri, Panipat (M Cl), Panipat Taraf Afghan, Panipat Taraf Ansar(CT), Panipat Taraf Makhdum Zadgan (CT), Panipat Taraf Rajputan (CT), Puthar(पुठऱ), Rair Kalan, Raja Kheri, Ratipur, Razapur, Risalu, Sarai Bachhra, Sewah, Sewah Kheri, Sherah, Shohdapur, Sikanderpur, Simla Molana, Sithana, Sondhapur, Sutana, Ugrakheri, Untiliya, Waisar, Waisari,

History

V. S. Agrawala[1] writes that Panini mentions in category of villages ending prastha. In Pali text Prastha denotes a place outside the grama, a waste land not used by men either for ploughing or sowing. It may be noted that places ending with the Prastha (Hindi=pat) are confined mostly to Kuru Country, such as Panipat, Sonipat, Baghpat, Tilpat etc. and to the region of Himalayas watered by Ganges.


Panipat was one of the five cities (prasthas) founded by the Pandava brothers during the times of the Mahabharata; its historic name being Panduprastha. Panipat was the scene of three pivotal battles in Indian history.

The first battle of Panipat, fought in AD 1526 in which invader Babur defeated Ibrahim Lodhi, the Sultan of Delhi, on April 26.

In the second battle of Panipat, on November 5, 1556, Akbar's guardian Bairam Khan defeated the Hindu ruler Hemu.

Ahmad Shah Abdali, the Afghan ruler defeated the Marathas in the third battle of Panipat that took place on 13 January, 1761.

Today Panipat is an industrial town and is known for its handloom products. The district headquarter is situated in Panipat town. Other smaller towns are Samalkha, Israna and Naultha. The total area of Panipat district is 1,754 sq km and its population is 8,33,000.

Ibrahim Lodi’s tomb: This king who was defeated by Babur in 1526 in the first battle of Panipat, lies buried here within a tomb. His grave is a simple affair; just a rectangular block on a high platform approached by a flight of steps made of lakhori bricks. The tomb was renovated by the British in 1866.

In Mahabharata

पानीपत को पांडवों ने इंद्रप्रस्थ के साथ ही बसाया था, पानीपत का किला अर्जुन द्वारा बनवाया गया था (एच ए बरारी) तब पानीपत को पनप्रस्त या पांडवप्रस्त के नाम से जाना जाता था । पानीपत को दोबारा राजा दंडपाणी ने ईसा से 707 साल पहले फिर बसाया इसका नाम पानीपथ पड़ा (सर सैय्यद अहमद खान) । रणदीप घनगस ने अपनी किताब पांडवों का पानीपत में लिखा है कि पानीपत नगर पहले सिर्फ किले के अंदर बसा था । यह किला पांडवों द्वारा निर्मित था जो 1857 तक मौजूद था । जिसे 1857 की क्रांति के बाद ढाया गया जिसके अवशेष आज भी मौजूद है । किले पर एक तोप भी थी जिसे बाद में दिल्ली ले जाया गया । एशिया सोसाइटीक ऑफ बंगाल के 1868 के रिसर्च पेपर में पानीपत हस्तीनापुर और अन्य कई महाभारतकालीन किलो की ईंटो की बनावट पर शोध करके लिखा है कि ईंटों के साइज माप और बनावट से यह किला भी महाभारत काल का बना हुआ है । कुछ इतिहासकारों के अनुसार पानीपत के किले पर भगवान हरिहर का मंदिर था जिसे गुलाम वंश का शासन होने पर तोड़ा गया था, बाद में भगवान हरिहर की प्रतिमा देवी मंदिर के पास सरोवर से खुदाई में मिली । किले पर कई जैन मंदिर भी थे । जैन धर्म के संबंधित साहित्य के अनुसार उस समय पानीपत को पानीपथ दुर्ग भी कहा जाता था । पानीपत के लिए एक ही लड़ाई हुई जिसे महाभारत का युद्ध कहा जाता है । पानीपत के आखिरी हिंदू राजा जो तोमर (तंवर) वंश का था को परिवार सहित बलबन के समय धोखे से मार दिया गया । किले में काम करने वाले कुम्हारों ने जो परिवार सहित किले में थे राजा की गर्भवती पोत्रवधु को छिपा लिया इस कारण उसकी जान बच गई यह ज्वालापुर (हरिद्वार के पास) के राजा की बेटी थी जिसे कुछ समय बाद किसी तरह से कुम्हारों ने उसके मायके ज्वालापुर पहुंचा दिया । वहां उसने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम अमर सिंह था । जिसे किशोर अवस्था में पता चला कि वह तो पानीपत के राजा का पौत्र है तो वह पानीपत आया । जहां पर उसे उसकी अपनी जायदाद लौटने का लालच दिया या जान का हवाला, पानीपत के शेख सरफुद्दीन कलंदर ने अमर सिंह को कलमा पढ़वा कर धर्म परिवर्तन कर दिया और उसे नया नाम अमीरुल्ला खान दिया और बल्बन के नाम उसकी जमीन उसे देने का परवाना लिख दिया । पर बलबन तो पहले ही अमर सिंह के परिवार की जमीन पानीपत पर कब्जा करने में सहायता करने वाले तीन परिवारों के दे चुका था तो अमर सिंह के हाथ पूरा पानीपत न आकर सिर्फ चौथा भाग से भी कम ही आया । आज भी पानीपत में राजस्व विभाग के अनुसार जमीन की चार पट्टियाँ है । जो बलवन के समय से चली आ रही है । 1 अंसार पट्टी 2 अफगान पट्टी 3 मखदूम पट्टी 4 राजपूतान पट्टी किताब प्रिचर ऑफ इस्लाम का लेखक लिखता है कि पानीपत में शेख शरफुद्दीन कलंदर जो पहले दिल्ली में काज़ी था बाद में पानीपत आया ने उस समय 300 राजपूतों को मुसलमान बनाया ।

1526 में पानीपत में इब्राहिम लोधी के साथ विदेशी आक्रमणकारी बाबर के खिलाफ लड़ाई लड़ते हुए ग्वालियर का राजा विक्रमजित तोमर शहीद हो गया उसकी समाधी पानीपत में वर्तमान जीटी रोड पर आजकल सरकारी अस्पताल बना है के पास बनी हुई थी जिसे अंग्रेजो ने 1866 में खुर्दबुर्द कर दिया जीटी रोड बनाते समय उसका नामोनिशान मिटा दिया गया । यह क्षेत्र को गंज शहीदा कहलाता था । यही राजा विक्रमजीत कोहिनूर हीरे का मालिक था । राजा विक्रमजीत के पानीपत में शहीद होने के उपरांत हमायूं ने आगरा में राजा जी की विधवा रानी से कोहिनूर हीरा छीन लिया ।

गुरु नानक देव जी भी पहली उदासी में दिल्ली बनारस जाते हुए पानीपत आए थे और नगर के बाहर एक कुएं पर रुके थे । इस स्थान पर आज एक गुरुद्वारा साहब बना हुआ है । आर्य समाज के प्रवर्तक महर्षि दयानंद जी भी लुधियाना से दिल्ली जाते हुए कुछ समय के लिए पानीपत में ठहरे थे । वे डाक गाड़ी ( जिसमे घोड़े जुते होते थे ) से पानीपत आए । डाक गाड़ी पानीपत के पालिका बाजार के पास लाल बत्ती की तरफ स्थान पर रुकती थी । जहाँ वर्तमान में एक छोटा डाक खाना बना हुआ है । डाक गाड़ी रुकने पर स्वामी दयानंद ने पानीपत नगर के कुछ लोगो से वार्तालाप किया और अपने कार्य को बताया ।

1761 में जब मराठे पानीपत आए तो उन्होंने भगवान शंकर जी के मन्दिर में अपनी कुल देवी की स्थापना कर पूजा अर्चना की, यही शंकर जी का मंदिर आज देवी मंदिर के नाम से जाना जाता है । बाद में 1765 के आसपास मराठों ने यहां पर बड़ी पहाड़ मोहल्ले में रामचन्द्र जी का मंदिर भी बनवाया, जिसके नाम एक 51 एकड़ जमीन (लगान फ्री) भी की । पानीपत के मथुरादास ने शंकर जी के मन्दिर के पास एक सरोवर का निर्माण करवाया । 1803 में इस इलाके में अंग्रेजो ने काबिज होने के बाद पानीपत जो जिला मुख्यालय बनाया जिसका हेडक्वार्टर पांडव कालीन किला ही बना और किले पर ही कार्यालय बनाए गए ।

  • स्किनर हॉर्स के कर्नल जेम्स स्किनर की जमींदारी पानीपत में थी उसने अपने नाम से एक बसाया स्किनर पुर जिसे आज सिकंदरपुर गढ़ी ने नाम से जाना जाता है । बाद में कर्नल स्किनर के परिवार से इन गांव की जमींदारी पानीपत के एक धनवान परिवार ने खरीद ली ।

किताब पांडवों का पानीपत - लेखक रणदीप घनगस

It was one of five villages demanded by Pandavas. Mahabharata tells that When Pandavas were defeated in Chausar they were forced to leave the state for 13 years. During most of this time, they lived at place called Varnavata (modern Bairat) in Jaipur district in Rajasthan. Having lived there for pretty long time, the Pandawas sent a message to the Kauravas that they won't lay their claim to the throne if they were given just five villages. These 5 villages were :

  1. Indraprastha (इन्द्रप्रस्थ) (Indarpat) - Purana Kila (Delhi)
  2. Panaprastha (पणप्रस्थ) (Panipat) - Haryana
  3. Sonaprastha (सोणप्रस्थ) (Sonipat) - Haryana
  4. Tilaprastha (तिलप्रस्थ) (Tilpat) - Haryana
  5. Vyaghraprastha (व्याग्रप्रस्थ) (Bagpat) - Uttar Pradesh

If you study the population of people who lived in all these areas mentioned in Mahabharata it is found to be the homeland of Jats.

Jat Gotras in Panipat

Beniwal, Bhoria, Deshwal,Dhanda, Dhonchak, Gangas, Ghalyan/Gahlain/Gahlan, Gulia, Jaglan, Kadiyan, Malik, Nandal, Pawar, Poras, Rathi,

पानीपत

विजयेन्द्र कुमार माथुर[2] ने लेख किया है ...पानीपत, हरियाणा, (p.547): यह प्राचीन नगर महाभारतकालीन कुरुक्षेत्र के प्रदेश में स्थित है. इसका शुद्ध नाम शायद पाणिप्रस्थ है. यह भारत के राजनीतिक भाग्य का निपटारा [p.548]: करने वाले तीन प्रसिद्ध युद्धों की स्थली है. स्थानीय किंवदंती में पानीपत को पांडवों द्वारा कौरवों से मांगे गए 5 ग्रामों में सम्मिलित माना गया है किंतु इस तथ्य का उल्लेख महाभारत में नहीं है. (5 ग्रामों के लिए देखें अविस्थल).

पानीपत की प्रथम लड़ाई 1526 ई. में बाबर और दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी में हुई थी जिसमें बाबर की विजय हुई और फलस्वरूप भारत में मुगल साम्राज्य स्थापित हुआ. इस युद्ध में बाबर की विजय का कारण उसका तोपखाना था. भारत में बारूद का प्रयोग पहली बार किसी युद्ध में बाबर ने किया था.

पानीपत की दूसरी लड़ाई अकबर और अफगानों में 1556 ई. में हुई थी अकबर का सेनापति बैरामखां और अफगानों का हेमू (हिंदू वैश्य) था. अफगानों की बुरी तरह हार हुई और हेमू का बैरामखां ने वध कर दिया. इस युद्ध से अकबर के राज्य के नियम सुदृढ़ हो गई और उससे मुगल साम्राज्य को सुदृढ़ रूप से स्थापित करके उसका विस्तार करने का अवसर मिला. परिणाम स्वरूप भारत में एक नए युग का प्रारंभ हुआ.

पानीपत का तीसरा युद्ध अफगानिस्तान के बादशाह है अहमदशाह अब्दाली की और सदाशिवराव भाऊ की अध्यक्षता में मराठों की सेनाओं के बीच 1761 ई. में हुआ था जिसमें मराठों की भयंकर हार होने के कारण उनकी बढ़ती हुई शक्ति को भारी धक्का पहुंचा. मराठों की शक्ति कम होने से अंग्रेजों को भारत के दक्षिणी और पूर्वी भाग में अपने पांव जमाने का अच्छा मौका मिल गया. इस लड़ाई के पश्चात मुगल साम्राज्य की पहले ही से घटी हुई शक्ति और भी क्षीण हो गई. इस प्रकार पानीपत के तीनों युद्धों का भारत के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है.

राजनीतिक शक्ति का केंद्र दिल्ली में होने के कारण उस पर अधिकार करने के लिए ही यह लड़ाइयां लड़ी गई थी क्योंकि पानीपत को दिल्ली का प्रवेश द्वार ही समझना चाहिए. वास्तविकता तो यह है की महाभारत के युद्ध की स्थली कुरुक्षेत्र भी पानीपत के पार्श्वदेश में ही थी. नादिरशाह और मुगल सम्राट मुहम्मदशाह की सेनाओं में जो युद्ध हुआ था (1739 ई.) पानीपत से कुछ ही दूर पर करनाल के निकट हुआ था. महाराज हर्ष के समय का प्रसिद्ध नगर थानेश्वर या थानेसर पानीपत के निकट ही स्थित है.

यह भी देखें

Notable persons

  • Ch. Randeep Ghangas
  • Smt Manju Kadian - Elected as Parshad of Ward No.14 Panipat.[3]
  • Shri Sanjiv Dahiya - Elected as Parshad of Ward No.18 Panipat.[4]
  • Ch Pravesh Nain - Elected as Parshad of Ward No.22 Panipat.[5]

Photo Gallery

References

  1. V. S. Agrawala: India as Known to Panini, 1953, p.67
  2. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.547
  3. Jat Jyoti:September 2013,p. 7
  4. Jat Jyoti:September 2013,p. 7
  5. Jat Jyoti:September 2013,p. 7



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