Puniawati

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Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Puniawati (पूनियावाटी) or Pauniawati (पौनियावाटी) is the region inhabited by Punia Gotra Jats.

Variants

पौनियावाटी

कैप्टन दलीपसिंह अहलावत[1] लिखते हैं कि उत्तरप्रदेश में पौनिया जाटों की बड़ी संख्या है। वहां इनके गांव निम्नप्रकार से हैं। मुरादाबाद जिले में 2 गांव, मेरठ जिले में 10 गांव, अलीगढ़ जिले में सासनी के समीप 10 गांव हैं और अलीगढ़ जिले की अतरौली तहसील में “पौनियावाटी” सुप्रसिद्ध है, जहां के पौनिया जाटों के 84 गांव मुगल पतनकाल में सर्वथा स्वतंत्र हो गये थे। आगरा जिले में टूण्डले के समीप पौनियों की एक टीकरी नाम की अच्छी रियासत थी। चुलाहवली, मदावली, बलिया नंगला यहां के प्रसिद्ध गांव इनके हैं। बुलन्दशहर जिले में पौनियों का मण्डौना गांव बड़ा प्रसिद्ध है।

जालन्धर जिले में 9 गांव पौनियां सिख जाटों के हैं। अम्बाला में नूरपुर, जांडली, मानका, हिसार में लाडवा, सातरोड कलां व खुर्द, हांसी के पास खरक पूनिया, सिरसाना, विदयान खेड़ा, ज्ञानपुरा, मतलौहडा और सरेरा गांव पौनिया जाटों के हैं। जिला पटियाला (पहले रियासत पटियाला) में भी बहुत गांव पौनिया जाट सिक्खों के हैं। भिवानी जिले (पूर्व जींद रियासत) में 150 गांव पौनियां जाटों के हैं। जैसा कि पहले लिख दिया गया है, पाकिस्तान में पौनिया जाट बड़ी संख्या में आबाद हैं।

पौनिया जाटों का एक शिलालेख जिला देहरादून (उ० प्र०) में चूहदपुर के समीप जगत् ग्राम में मिला है। इन लोगों का राज्य यमुना किनारे जगाधारी के निकट क्षेत्र पर था।[2]


पंडित अमीचन्द्र शर्मा[3] ने लिखा है -बाढ़ के पुत्र पूनम विक्रमी संवत 1235 (1178 ई.) में पैदा हुए जो बाढ़ के बाद राजा बने. पूनम ने झांसल के आसपास बहुत गाँव बसाये. इसीलिए उस भाग को 'पूनिया इलाका' अथवा पूनियावाटी कहते हैं.

झांसल में पूनिया गणराज्य की नींव

चौधरी कन्हैयालाल पूनिया[4] ने लिखा है कि... लगभग 900 साल पहले श्री उतगर के दो संतान पैदा हुई जिसमें से एक का नाम बाढ़ तथा दूसरे का नाम मेर था। बाढ़देव का जन्म विक्रम संवत 1154 (1097=ई.) कार्तिक सुदी पूर्णिमा को पुणे महाराष्ट्र में हुआ। बाढ़देव ने विक्रम संवत 1184 (1127=ई.) आषाढ़ सुदी नवमी वार शनिवार को बाड़मेर की स्थापना की। बाढ़ और मेर दोनों भाईयों के नाम पर आज के बाढ़मेर का नामकरण हुआ। कालांतर में दोनों भाईयों के झगड़े का फायदा उठाकर सोढ़ा राजपूतों ने उस पर कब्जा कर लिया। बाढ़देव उत्तर भारत की ओर प्रस्थान कर गए। उनकी संताने पूनिया कहलाई और मेर महाराष्ट्र में मेरठा (मराठा) के नाम से जाने गए।

बाढ़देव बाड़मेर से विक्रम संवत 1235 (1178=ई.) में पुष्कर आए और आगे जीनमाता के स्थान पर हर्ष के पहाड़ पर शिव मंदिर बनवाया। जीनमाता ने बाढ़देव को वरदान स्वरूप एक पत्थर शीला दी और कहा कि यह जहां गिरे वहीं पर नीम की हरी शाखा काटकर डालना वह संजीवनी हो जाएगी तथा वहीं आपका राज्य सदा-सदा के लिए कायम रहेगा। पूनिया गोत्र आज भी उस शीला का आदर करता है। उस पर स्नान नहीं करते।

विक्रम संवत 1245 (1188=ई.) मिति चैत्र सुदी 2 वार शनिवार को पूनिया गोत्र के आदि पुरुष बाढ़देव ने झांसल में अपने प्रसिद्ध गणराज्य की नींव रखी। विक्रम संवत 1245 से 1822 के राठोडों के साथ राजीनामे तक पुनिया आज के हिसार-पिलानी-चुरू-तारानगर एवं भादरा तक काबिज रहे। इस बीच राज्य कायम रखने के समकालीन संघर्षों में पुनियों की राजधानी झांसल से लूदी में तब्दील करनी पड़ी। पडोस के दईया सरदार दीर्घपाल पर विजय, रठौड़ों और गोदारों की संयुक्त सेना के साथ लगातार संघर्ष , जबरिया राठौड़ शासक रायसिंह द्वारा धर्मभाई बनाने का बुलावा देकर धोके से पूनिया सरदारों चेचू और खेता को अपने राजगढ़ वाले किले की नींव में दबाने का बदला राठौड़ रायसिंह के वध से लेने आदि की ऐतिहासिक घटनाएँ हुई। इस कालावधि में कान्हादेव पुनिया गोत्र का इतिहास प्रसिद्ध योद्धा बनकर उभरा जिसने लूदी में अपना स्वतंत्र गढ़ निर्माण किया। लगभग 360 गांवों का यह पूनिया गणराज्य अंतत: जोधपुर शासन के विस्तार हेतु कांधल और बीका तथा जाट गणराज्यों की फूट का शिकार हो गया।

See also

References

  1. Jat History Dalip Singh Ahlawat/Chapter III,पृ.221
  2. Studies in Indian History and Civilization P. 263 by Buddha Prakash
  3. Jat Varna Mimansa (1910) by Pandit Amichandra Sharma, p.41-42
  4. Hanumangarh Jila Jat Samaj Smarika-2010,p.16-17

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