Payoshni

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Author:Laxman Burdak, IFS (Retd.)

Payoshni (पयॊष्णी) is an ancient river mentioned in the epic Mahābhārata. Pandavas had visited this place as part of their pilgrimage. It lies in the territory of Vidarbha. Payoshni is mentioned as lying in the northern entrance of the great Dandaka Forest, an ancient forest that is spread throughout south-central India.

Variants

Mention in Mahabharata

Payoshni (पयॊष्णी) (River)/(Tirtha) mentioned in Mahabharata (III.83.37), (III.86.4), (VI.10.15), (VI.10.19),

Vana Parva, Mahabharata/Book III Chapter 83 mentions that after visiting Sarvadeva-hrada (सर्वदेव ह्रद) (III.83.36) and proceeding next to the highly sacred tank called Payoshni (पयॊष्णी) (III.83.37), that best of waters, he that offers oblations of water to the gods and the Pitris acquires the merit of the gift of a thousand kine. Arriving next at the sacred forest of Dandakarnya (दण्डकारण्य) (III.83.38), a person should bathe (in the waters) there. [1]


Vana Parva, Mahabharata/Book III Chapter 86 mentions the sacred tirthas of the south. In that quarter lies the sacred and auspicious river Godavari (गॊदावरी) (III.86.2), full of water abounding in groves and frequented by ascetics. In that direction also are the rivers Venna (वेण्णा) (III.86.3) and Bhimarathi (भीम रथी) (III.86.3), both capable of destroying sin and fear, and abounding in birds and deer, and graced with abodes of ascetics. In that region also, is the tirtha of the royal ascetic, Nriga (नृग) (III.86.4) viz., the river Payoshni (पयॊष्णी) (III.86.4), which is delightful and full of waters and visited by Brahmanas. There the illustrious Markandeya (मार्कण्डेय) (III.86.5), of high ascetic merit sang the praises in verse of king Nriga's line! We have heard respecting the sacrificing king Nriga that which really took place while he was performing a sacrifice in the excellent tirtha called Varaha on the Payoshni. In that sacrifice Indra became intoxicated with quaffing the Soma, and the Brahmanas, with the gifts they received. The water of the Payoshni, taken up (in vessel), or flowing along the ground, or conveyed by the wind, can cleanse a person from whatever sins he may commit till the day of his death. Higher than heaven itself, and pure, and created and bestowed by the trident-bearing god, there in that tirtha is an image of Mahadeva beholding which a mortal goeth to the region of Siva. Placing on one scale Ganga River and the other rivers with their waters, and on the other, the Payoshni, the latter, would be superior to all the tirthas, together, in point of merit! [2]


Bhisma Parva, Mahabharata/Book VI Chapter 10 describes geography and provinces of Bharatavarsha. Payoshni (पयॊष्णी) (River)/(Tirtha) is mentioned in Mahabharata (VI.10.15)[3], (VI.10.19)[4].

Identification

History

पयोष्णी

विजयेन्द्र कुमार माथुर[7] ने लेख किया है ...1. पयोष्णी (AS, p.528): तापी या ताप्ती की उपनदी जो विंध्याचल की दक्षिण-पूर्वी पहाड़ियों से निकलकर ताप्ती में मिल जाती है. महाभारत वन पर्व 87, 4-5-6-7 में इस नदी का राजा नृग से संबंध बताया गया है, (जैसा चर्मण्वती या चंबल का राजा रंतिदेव से है) जिन्होंने इस नदी के तट पर स्थित वाराह तीर्थ में अनेक यज्ञ किए थे-- 'राजर्षेस्तस्य च सरिन्नृगस्य भरतर्षभ, रम्यतीर्था बहुजला पयॊष्णी द्विज सेविता (III.86.4) अपि चात्र महायॊगी मार्कण्डेयॊ महातपाः, अनुवंष्यां जगौ गाथां नृगस्य धरणी पतेः (III.86.5) नृगस्य यजमानस्य प्रत्यक्षम इति नः श्रुतम, अमाद्यद इन्द्रः सॊमेन दक्षिणाभिर द्विजातयः (III.86.6) पयोष्ण्यां यजमानस्य वाराहे तीर्थ उत्तमे, उद्भृतं भूतलस्थं वा वायुना समुदीरीतम्। पयोष्ण्या हरते तोयं पाप मामरणान्तिकम्। महाभारत भीष्म.9,20 में भी पयोष्णि का उल्लेख है-- 'शरावतीं पयोष्णीं च वेणां भीमरथीमपि' ।

श्रीमद्भागवत 5,19,18 में पयोष्णी का नामोल्लेख इस प्रकार है-- 'कृष्णा, वेण्या, भीमरथी गोदावरी निर्विध्या पयोष्णी तापी रेवा--' कुछ लोगों के मत में तापी और पयोष्णी एक ही हैं जैसा कि उनके नामर्थ से भी सूचित होता है किंतु श्रीमद्भागवत के उल्लेख में दोनों नदियों का अलग-अलग नाम दिया हुआ है। इनकी भिन्नता विष्णु पुराण 2,3,11 के उल्लेख से भी सूचित होती है-- 'तापी पयोष्णी निर्विध्या प्रमुखा ऋक्ष संभवा:'-- इसमें तापी और पयोष्णी दोनों को ऋक्षपर्वत से उद्भूत माना है। जैसा ऊपर कहा गया है वास्तव में यह दोनों नदियां हैं जो निकलती तो एक ही पर्वत से हैं किन्तु काफी दूर तक अलग-अलग मार्ग से बहती हुई आगे जाकर मिल जाती हैं।

2. पयोष्णी (AS, p.529): Parushni (परुष्णी)

3. पयोष्णी (AS, p.529): Payasvini पयस्विनी-2

पयोष्णी परिचय

पयोष्णी नदी विन्ध्य पर्वत से दक्षिण की ओर प्रवाहित होने वाली नदी है। यह नदी अनेक ग्रामों व नगरों को सिंचित करती हुई गोदावरी में जा मिलती है। वर्तमान में इसे वेनगंगा के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि सृष्टि के प्रारम्भ में जब ब्रह्मा यज्ञ कर रहे थे, तो उनके प्रणीता पात्र के गर्म जल से इस 'पयोष्णी नदी' की उत्पत्ति हुई। पौराणिक उल्लेख

इस नदी के किनारे राजर्षि गय ने सप्त यज्ञ अनुष्ठान किए थे। इन्द्र देवगण तथा प्रजापति ने भी भारी दक्षिणा वाले यज्ञ किए। राजर्षि नृग ने भी यहाँ यज्ञ सम्पन्न किए, जिसमें मार्कण्डेय सम्मिलित हुए थे। इस यज्ञ में इन्द्र ने सोमरस पान किया। द्विज प्रभूत दक्षिणाओं से अभिभूत हुए, इसीलिए इसे 'नृगसरित' भी कहते हैं। अन्य मत

अपने वनवासकाल में पांडव यहाँ आए और पयोष्णी में स्नान कर धन्य होकर पुण्य लाभ को प्राप्त हुए। संजय ने विश्वमाता रूप में पयोष्णी का दो बार उल्लेख किया है। यह नदी पांडुरंग वामन काणे के अनुसार विंध्याचल से निकलती है। डे इसे वर्धा के निकट वेनगंगा का प्रवाह मानते हैं। हंटर और डे ने इसे बरार की गाविलगढ़ पहाड़ियों से प्रवहमान हो ताप्ती नदी में सम्मिलन की बात कही है। नल-दमयंती प्रसंग में पयोष्णी नदी का उल्लेख आया है। ऐसी मान्यता है कि इसमें स्नान से पितृ-देवार्चना से सहस्र गौ दान फल और इन्द्रलोक की प्राप्ति होती है।

संदर्भ: भारतकोश-पयोष्णी नदी

References

  1. सर्वदेव हरदे सनात्वा गॊसहस्रफलं लभेत, जातिमात्रह्रदे सनात्वा भवेज जातिस्मरॊ नरः Mahabharata (III.83.36) ततॊ ऽवाप्य महापुण्यां पयॊष्णीं सरितां वराम, पितृदेवार्चन रतॊ गॊसहस्रफलं लभेत Mahabharata (III.83.37) दण्डकारण्यम आसाद्य महाराज उपस्पृशेत, गॊसहस्रफलं तत्र सनातमात्रस्य भारतMahabharata (III.83.38)
  2. दक्षिणस्यां तु पुण्यानि शृणु तीर्थनि भारत, विस्तरेण यथाबुद्धिकीर्त्यमानानि भारत (III.86.1)
    यस्याम आख्यायते पुण्या दिशि गॊदावरी नदी, बह्व आरामा बहु जला तापसाचरिता शुभा (III.86.2) वेण्णा भीम रथी चॊभे नद्यौ पापभयापहे, मृगद्विजसमाकीर्णे तापसालयभूषिते (III.86.3) राजर्षेस तत्र च सरिन नृगस्य भरतर्षभ, रम्यतीर्था बहु जला पयॊष्णी दविज सेविता (III.86.4) अपि चात्र महायॊगी मार्कण्डेयॊ महातपाः, अनुवंष्यां जगौ गाथां नृगस्य धरणी पतेः (III.86.5) नृगस्य यजमानस्य परत्यक्षम इति नः शरुतम, अमाद्यद इन्द्रः सॊमेन दक्षिणाभिर दविजातयः (III.86.6)
  3. नदीं वेत्रवतीं चैव कृष्ण वेणां च निम्नगाम (VI.10.15)
  4. .... शतावरीं पयॊष्णीं च परां भैमरदीं तदा, कावेरीं चुलुकां चापि वापीं शतबलाम अपि (VI.10.19)
  5. Payoshni on Wikipedia
  6. Purna River on Wikipedia
  7. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.528

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