Phyllanthus emblica

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आंवला का वृक्ष

Phyllanthus emblica (आंवला) is a deciduous tree of the family Phyllanthaceae. It is known for its edible fruit of the same name.

Variants

General description

The tree is small to medium in size, reaching 1–8 m (3 ft 3 in–26 ft 3 in) in height. The branchlets aren't glabrous or finely pubescent, 10–20 cm (3.9–7.9 in) long, usually deciduous; the leaves are simple, subsessile and closely set along branchlets, light green, resembling pinnate leaves. The flowers are greenish-yellow. The fruit is nearly spherical, light greenish yellow, quite smooth and hard on appearance, with six vertical stripes or furrows.

Ripening in autumn, the berries are harvested by hand after climbing to upper branches bearing the fruits. The taste of Indian emblic is sour, bitter and astringent, and it is quite fibrous. In India, it is common to eat emblic steeped in salt water and red chilli powder to make the sour fruits palatable.

Traditional medicine

Amla Fruits

In traditional Indian medicine, dried and fresh fruits of the plant are used. All parts of the plant are used in various Ayurvedic/Unani medicine (Jawarish amla) herbal preparations, including the fruit, seed, leaves, root, bark and flowers. According to Ayurveda, amla fruit is sour (amla) and astringent (kashaya) in taste (rasa), with sweet (madhura), bitter (tikta) and pungent (katu) secondary tastes (anurasas). Its qualities (gunas) are light (laghu) and dry (ruksha), the postdigestive effect (vipaka) is sweet (madhura) and its energy (virya) is cooling (shita).

According to Ayurveda, amla balances all three doshas. While amla is unusual in that it contains five out of the six tastes recognized by Ayurveda, it is most important to recognize the effects of the "virya", or potency, and "vipaka", or post-digestive effect. Considered in this light, amla is particularly helpful in reducing pitta because of its cooling energy. It also balances both Pitta (पित्त) and vata (वात) by virtue of its sweet taste. The kapha (कफ) is balanced primarily due to its drying action. It may be used as a rasayana (rejuvenative) to promote longevity, and traditionally to enhance digestion (dipanapachana), treat constipation (anuloma), reduce fever (jvaraghna), purify the blood (raktaprasadana), reduce cough (kasahara), alleviate asthma (svasahara), strengthen the heart (hrdaya), benefit the eyes (chakshushya), stimulate hair growth (romasanjana), enliven the body (jivaniya), and enhance intellect (medhya).

In Ayurvedic polyherbal formulations, Indian gooseberry is a common constituent, and most notably is the primary ingredient in an ancient herbal rasayana called Chyawanprash. This formula, which contains 43 herbal ingredients as well as clarified butter, sesame oil, sugar cane juice, and honey, was first mentioned in the Charaka Samhita as a premier rejuvenative compound.

In Chinese traditional therapy, this fruit is called yuganzi (余甘子), which is used to treat throat inflammation.

आंवला - एक अद्भुत वृक्ष

आँवला एक फल देने वाला वृक्ष है। यह करीब २० फीट से २५ फुट तक लंबा झारीय पौधा होता है। यह एशिया के अलावा यूरोप और अफ्रीका में भी पाया जाता है। हिमालयी क्षेत्र और प्रायद्वीपीय भारत में आंवला के पौधे बहुतायत मिलते हैं। इसके फूल घंटे की तरह होते हैं। इसके फल सामान्यरूप से छोटे होते हैं, लेकिन प्रसंस्कृत पौधे में थोड़े बड़े फल लगते हैं। इसके फल हरे, चिकने और गुदेदार होते हैं। स्वाद में इनके फल कसाय होते हैं।

संस्कृत में इसे अमृता, अमृतफल, आमलकी, पंचरसा इत्यादि, अंग्रेजी में 'एँब्लिक माइरीबालन' या इण्डियन गूजबेरी (Indian gooseberry) तथा लैटिन में 'फ़िलैंथस एँबेलिका' (Phyllanthus emblica) कहते हैं। यह वृक्ष समस्त भारत में जंगलों तथा बाग-बगीचों में होता है। इसकी ऊँचाई 20 से 25 फुट तक, छाल राख के रंग की, पत्ते इमली के पत्तों जैसे, किंतु कुछ बड़े तथा फूल पीले रंग के छोटे-छोटे होते हैं। फूलों के स्थान पर गोल, चमकते हुए, पकने पर लाल रंग के, फल लगते हैं, जो आँवला नाम से ही जाने जाते हैं। वाराणसी का आँवला सब से अच्छा माना जाता है। यह वृक्ष कार्तिक में फलता है।

आयुर्वेद के अनुसार हरीतकी (हड़) और आँवला दो सर्वोत्कृष्ट औषधियाँ हैं। इन दोनों में आँवले का महत्व अधिक है। चरक के मत से शारीरिक अवनति को रोकनेवाले अवस्थास्थापक द्रव्यों में आँवला सबसे प्रधान है। प्राचीन ग्रंथकारों ने इसको शिवा (कल्याणकारी), वयस्था (अवस्था को बनाए रखनेवाला) तथा धात्री (माता के समान रक्षा करनेवाला) कहा है।

वानस्पतिक परिचय

आंवले के पेड़ की छाल पतली और परत छोड़ती हुई होती है। आंवले के पत्ते इमली के पत्तों की तरह छोटी और नुकीली और लगभग आधा इंच लंबे होते हैं। जिससे नीबू के पत्तियां सी खुशबू आती है। इस पेड़ में फ़रवरी से मई के दौरान फूल लगते हैं जो आगे चल कर अक्टूबर से अप्रैल तक फल बनाते हैं। इसके पुष्प हरे-पीले रंग के बहुत छोटे गुच्छों में लगते हैं तथा घंटे की तरह होते हैं। इसके फल सामान्य रूप से छोटे होते हैं, लेकिन प्रसंस्कृत पौधे में थोड़े बड़े फल लगते हैं। फल गोलाकार लगभग 2.5 से 5 सेमी व्यास के चिकने, गूदेदार हरे, पीले रंग के होते हैं। पके फलों का रंग लालिमायुक्त होता है। ख़रबूज़े की भांति फल पर 6 रेखाएं 6 खंडों का प्रतीक होती हैं। फल की गुठली में 6 कोष (षट्कोषीय बीज) होते हैं, छोटे आंवलों में गूदा कम, रेशेदार और गुठली बड़ी होती है, औषधीय प्रयोग के लिए छोटे आंवले ही अधिक उपयुक्त होते हैं। स्वाद में इनके फल कसाय होते हैं। आंवले का स्वाद भले ही कसैला होता है परंतु इसके गुणों के कारण इसे "धातृ फल" भी कहा जाता है, धातृ का अर्थ होता है पालन पोषण करने वाला अर्थात "मां"। इसे अमर फल और आदिफल भी कहते हैं।

आयुर्वेद में उपयोग

Patanjali - Amla Candy.jpg

आयुर्वेद में आंवले को बहुत महत्ता प्रदान की गई है, जिससे इसे रसायन माना जाता है। च्यवनप्राश आयुर्वेद का प्रसिद्ध रसायन है, जो टॉनिक के रूप में आम आदमी भी प्रयोग करता है। इसमें आंवले की अधिकता के कारण ही विटामिन 'सी' भरपूर होता है। यह शरीर में आरोग्य शक्ति बढ़ाता है। त्वचा, नेत्र रोग और केश (बालों) के लिए विटामिन सी बहुत उपयोगी है। संक्रमण से बचाने, मसूढ़ों को स्वस्थ रखने, घाव भरने और रक्त बनाने में भी विटामिन सी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। इसके अलावा आंवला का उपयोग त्रिफला बनाने में किया जाता है जो कब्ज या पेट में गैस की समस्या को दूर करने के लिए उपयुक्त दवा है। त्रिफला स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के साथ ही शरीर में रोग प्रतिरोधी क्षमता को भी बढाता है। इस फल में आयरन व कैल्शियम भी पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं। आयरन रक्त को बढ़ाता है। आंवला आयुर्वेद और यूनानी पैथी की प्रसिद्ध दवाइयों, च्यवन प्राश, ब्राह्म रसायन, धात्री रसायन, अनोशदारू, त्रिफला रसायन, आमलकी रसायन, त्रिफला चूर्ण, धायरिष्ट, त्रिफलारिष्ट, त्रिफला घृत आदि के साथ मुरब्बे, शर्बत, केश तेल आदि निर्माण में प्रयुक्त होता है। रक्तवर्धक नवायस लौह, धात्री लौह, योगराज रसायन, त्रिफला मंडूर भी आंवले से बनाए जाते हैं। ये सभी आंवले के प्रमुख शक्तिवर्धक व रोग-निवारक उत्पाद हैं। मानव शरीर में सिर्फ श्वेत कुष्ठ (ल्यूकोडर्मा) में आंवला उपयोग में नहीं लिया जाता। इसके अलावा सिर से पैर तक का कोई ऐसा रोग नहीं जहां आंवला दवा या खुराक के रूप में उपयोगी न रहता हो।

अमृत फल

विटमिन सी से भरपूर आंवला का प्रयोग कई रूपों में किया जाता है। स्‍वास्‍थ्‍यवर्द्धक होने के कारण ही प्राचीन काल से ही भारतीय गृहिणी की रसोई में आंवला, चटनी, सब्जी, आचार, मुरब्बे, जैम के रूप में सदा से विराजमान है। बढ़ती उम्र के प्रभावों को धीमा करने का अद्भुत गुण इसे "रसायन" बनाता है। इसके निरंतर प्रयोग से बाल टूटना, रूसी, सफेद होना रुक जाते हैं। नेत्र ज्योति सुरक्षित रहती है। दांत मज़बूत बने रहते हैं तथा नेत्र, हाथ पांव के तलुओं, मूत्रमार्ग, आमाशय, आंतों तथा मलमार्ग की जलन समाप्त हो जाती है। इसके प्रयोग से इम्युनिटी पावर (आत्मरक्षा प्रणाली) सुरक्षित रहती है। आजकल आंवला, पालक और गाजर का मिश्रित रस जूस बेचने वालों व पीने वालों का सर्वप्रिय स्वास्थ्यवर्धक पेय है। आंवले का मुरब्बा अगर चूने के पानी में उबाल कर बनाया गया है तो सिर्फ सुस्वादु ही हो सकता है, गुणकारी नहीं। इसलिए कोशिश करनी चाहिए कि हरा आंवला ही ज़्यादा प्रयोग किया जाए। ये चार महीने बाज़ार में उपलब्ध रहता है। अगर हम चार महीने इसका सेवन कर लें तो शेष आठ महीने तक तो रोग रहित होकर जीवनयापन कर ही सकते हैं। अपने अनेक गुणों के कारण आयुर्वेद में आंवला को अमृत फल कहा गया है। आंवले का इस्तेमाल आर्युवेदिक दवाइयों में ज़्यादा किया जाता है। आयुर्वेद के विद्वानों एवं ग्रंथों में वनौषधियों में हरड़ और आंवले को सर्वश्रेष्ठ माना है। इसमें हरड़ रोगनाशक तथा आंवला सर्वोत्तम स्वास्थ्य रक्षक माने गए हैं। आंवले में खट्टापन एवं कसैलापन प्रधान रूप से है पर इसमें मिठास, कडुवापन और खारापन भी गौण रूप से विद्यमान है। आयुर्वेद ग्रंथों के अनुसार आंवला कब्जकारक, मूत्रल, रक्त शोधक, पाचक, रुचिवर्धक तथा अतिसार, प्रमेह, दाह, पीलिया, अम्ल पित्त, रक्त विकार, रक्त स्त्राव, बवासीर, कब्ज, अजीर्ण, बदहजमी, श्वास, खांसी, वीर्य क्षीणता, रक्त प्रदर नाशक तथा आयुवर्धक है। यह फल पितनाश्क होने के कारण पित-प्रधान रोगों की प्रधान औषधि है। यह फल मधुरता और शीतलता के कारण पित को शान्त करता है। आंवला तीनों दोषों (वाट पित काफ) को संतुलित करता है। यह पाचक, अरुचि नाशक वमन में लाभकारी है। यह नाड़ी तंत्र व इन्द्रियों को ताकत देने वाला पौष्टिक रसायन है। यह रक्तवाहिनियों के विकारों को नष्ट करने में सक्षम है।

External Links

References


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