Plakshavatarana

From Jatland Wiki
Jump to navigation Jump to search
Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Plakshavatarana (प्लक्षावतरण) was a sacred spot at the place of origin of Yamuna. The ancient people of Bhārata used to worship this place as a gate of Heaven. [1][2]

Origin

Variants

History

In Mahabharata

Plakshavatarana (पलक्षावतरण) (T) is mentioned in (3-131-13a), (III.88.3)

Vana Parva, Mahabharata/Book III Chapter 88 mentions tirthas in the North. Plakshavatarana (पलक्षावतरण) (Tirtha) is mentioned in (III.88.3). [3]....In that region is the highly sacred Saraswati (सरस्वती) (III.88.2) abounding in tirthas and with banks easy of descent. There also, O son of Pandu, is the ocean-going and impetuous Yamuna (यमुना)(III.88.2), and the tirtha called Plakshavatarana (पलक्षावतरण)(III.88.3), productive of high merit and prosperity. It was there that the regenerate ones having performed the Saraswata sacrifice, bathed on the completion there of.

प्लक्षावतरण

विजयेन्द्र कुमार माथुर[4] ने लेख किया है .....प्लक्षावतरण (AS, p.593) : 'सरस्वती महापुण्या ह्लादिनी तीर्थम-लिनी, समुद्रगा महावेगा यमुना यत्र पांडव। यत्र पुण्यतरं तीर्थ प्लक्षावतरणं शुभम्, यत्र सारस्वतैरिष्ट्वा गच्छन्त्यवभृथैर्द्विजा:' महाभारत, वनपर्व 90, 3, 4. एतत् प्लक्षावतरणं यमुनातीर्थमुत्तमम् एतद् वै नाक्पृष्ठस्य द्वारमाहुर्मनीषिण: 'महाभारत, वनपर्व 129, 13. इन उल्लेखों के अनुसार सरस्वती नदी के निकट और यमुना पर स्थित कोई तीर्थ जान पड़ता है, जो कुरुक्षेत्र के पास था। कुरुक्षेत्र का वनपर्व 129, 11 में उल्लेख हुआ है। महाभारत के इस प्रसंग में प्लक्षावतरण में महर्षियों द्वारा किए गए सारस्वत यज्ञों का उल्लेख है। राजा भरत ने धर्मपूर्वक वसुधा का राज्य पाकर यहाँ बहुत से यज्ञ किए थे और 'अश्वमेध यज्ञ' के उद्देश्य से इस स्थान पर कृष्णमृग के समान श्यामवर्ण अश्व को पृथ्वी पर भ्रमण करने के लिए छोड़ा था। इसी तीर्थ में महर्षि संवर्त से अभिपालित महाराज मरुत्त ने उत्तम सत्र का अनुष्ठान किया था- 'अत्र वै भरतो राजा राजन् क्रुतुभिरिष्टवान् ह्यमेधेन यज्ञेन मेघ्यमश्वमवासृजत। असकृत कृष्ण सारंगं धर्मेणाप्य च मेदिनीभ, अत्रैव पुरुषव्याघ्र मरुत: सत्रमुत्तमम्, प्राप चैवर्षिमुख्येन संर्वेतनाभिपालित:' महाभातर, वनपर्व 129, 15-16-17.

External links

References

  1. Source: archive.org: Puranic Encyclopaedia
  2. https://www.wisdomlib.org/definition/plakshavatarana
  3. तत्र पुण्यतमं तीर्थं पलक्षावतरणं शिवम, यत्र सारस्वतैर इष्ट्वा गच्छन्त्य अवभृथं द्विजाः
  4. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.593