Prarthna

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परमाणु बम
लेखक
पृथ्वीसिंह बेधङक



प्रार्थना


जुल्मो की हम पर हद हो गई भगवान


बहुत दिन अपने उपर आई जो भगवान बरमला लई

वीर हकीकत ने खंजर गर्दन ऊपर बरमला लई

सरहिन्द की दीवार ने दो गुरू गोविन्द की कला लई

एक रोज़ चित्तौङ में चौदह हजार रानियाँ जला लई

न राजा को खबर लगी न वायसराय की सलाह लई

किसी ने तेगा मारा पेट में किसी ने गोली चला लई

बाग का माली बाँध लिया पेङ की अमियाँ हला लई


चोटी ओर जनेऊ ऊपर रोज चले किरपान


हीरे मोती ओर जवाहरात ले गये ऊँट ओर ठेलों में

गजनी के बाजार एक दिन बिके थे दो दो धेलों में

कोई अनशन कर चले गये कोई बँधे पङे हैं बेलों में

कोई काल कोठरी के अन्दर ही सङते देखे जेलों में

कोई पिस्तौल की गोलीयों से देखे है मरते बेलों में

कोई दक्षिण हैदराबाद में देखे दबते पत्थर ढेलों में

कितने वीरों का पता नहीं ले गये थे भरकर रेलों में


कितने ही भारत माँ के बेटे भेज दिये अंडमान


भगवान देश के कब्जे से जरलेज जजीरे चले गये

मानक मोती जवाहरात बेशकीमती हीरे चले गये

अनंगपाल के जमाने में यूनान में लीरे चले गये

तांबा पीतल सोना ओर चांदी धीरे धीरे चले गये

आलू कचालू टिण्डी भिण्डी खीरे मतीर चले गये

काली मिर्च कृपान कृच धनियां जीरा चले गये

जुल्म के ऊपर टोप आया पगङी चीरे चले गये


चरखे करघे मिटे वतन से गये खद्दर के थान


दुनियाँ कहती तेरे यहाँ जो कोई सवाली आता है

फ़रियाद सुनी जाती उसकी कभी ना खाली जाता है

अफ़सोस देश के अन्दर क्यों नही रखवाली आता है

रोज गऊऎं मारी जाती इनका क्यों नही पाली आता है

आता है तो बस जय चन्द या त्रेता का बाली आता है

भारत के टुकङे-टुकङे कोई करने दुष्ट कुचाली आता है

जो कोई आता है उसको पृथ्वीसिंह देता गाली आता है


फ़ेर मेहर दे फ़ेर वतन पर हे करूणा निधान



Digital text (Wiki version) of the printed book prepared by - Vijay Singh विजय सिंह

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