Raja Devendra Singh Kakran

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Raja Devendra Singh Kakran

Raja Devendra Singh Kakran was the king of Sahanpur state in Bijnore district of Uttar Pradesh. He was also Irrigation minister of Uttar Pradesh. His son Kunwar Bhartendu Singh is the current titular king of Sahanpur state and Member of Parliament from BJP.

History

The Kakrana Jats had a small principality `Sahanpur' in the District of Bijnor. They were great warriors. In this Sahanpur state, the Kakrana Jats had 14 (Chaudeh) great warriors, and this branch of Kakran clan is known as Chaudehrana[1]. At the time of the Paravonh, statues were made of these warriors and they are worshiped.

साहनपुर रियासत : ठाकुर देशराज

ठाकुर देशराज[2] लिखते हैं कि बिजनौर जिले में चौधरी, पछांदे और देशवाली जाट अधिक प्रसिद्ध हैं। इनमें सबसे बड़ा साहनपुर का था। साहनपुर के जाट सरदार झींद की ओर से इधर आए थे। इस खानदान का जन्मदाता नाहरसिंह जी को माना जाता है। नाहरसिंह के पुत्र बसरूसिंह जींद की ओर देहली के पास बहादुरगंज में आकर आबाद हुए थे। सन् 1600 ई. में यह घटना है। उस समय जहांगीर भारत का शासक था। उसकी सेना में रहकर इन लोगों ने बड़ा सम्मान प्राप्त किया था। बसरूसिंह के छोटे लड़के तेगसिंह जी ने बादशाह जहांगीर से जलालाबाद, कीरतपुर और मडावर के परगने में 660 मौजे प्राप्त किये थे। राय का खिताब भी इन्हें मिला था। यह खिताब आज तक इनके वंश में चला आता है। आरम्भ में बिजनौर जिले में नगल के मौजे में इन्होंने आबादी की। दो वर्ष पश्चात् साहनपुर में किले की बुनियाद डाली। राय तेगसिंहजी का 1631 ई. में स्वर्गवास हो गया। उनके 5 लड़के थे। राय भीमसिंह जी, जो कि दूसरे लड़के थे, रियासत के मालिक हुए। अपने समय में राय भीमसिंह ने यथाशक्ति रियासत की उन्नति में अपने को लगाया। वह झगड़ालू प्रकृति के मनुष्य न थे। भीमसिंह जी के कोई पुत्र न था, इसलिए उनके देहावसान के पश्चात् उनके छोटे भाई के पुत्र नत्थीसिंह जी राज के मालिक हुए। सबलसिंह राजसी ठाट-बाट और चमक-दमक को पसन्द करते थें। वह अपने नाम को भूलने की चीज नहीं रहने देना चाहते थे। उन्होंने अपने नाम से सबलगढ़ नाम का एक मजबूत किला बनवाया। सबलसिंह जी के तीन पुत्र थे, जिनमें से दो उनके आगे ही मर चुके थे। इसलिए रियासत के मालिक तृतीय पुत्र रामबलसिंह जी हुए। इनके दो पुत्र थे - 1. ताराचन्द और सब्बाचन्द। अपने पिता के बाद ताराचन्द ही अपनी पैतृक रियासत के स्वामी हुए। सन् 1752 ई. में ताराचन्द जी का देवलोक हो गया। सब्बाचन्द जी ने अपने भाई के बाद राज्य की बागडोर अपने हाथ में ले ली। सब्बाचन्द जी ने रियासत को खूब ही बढ़ाया। कहा जाता है कि उन्होंने गांवों की संख्या 1887 तक कर दी थी।


जाट इतिहास:ठाकुर देशराज,पृष्ठान्त-579


राव सब्बाचन्दजी की सन् 1784 ई. में मृत्यु हो गई। उनके भतीजे राय जसवंतसिंह जी गद्दी के अधिकारी हुए। किन्तु जसवंतसिंह जी की गद्दी पर बैठने के एक वर्ष पश्चचात् उनकी मृत्यु हो गई। चूंकि राय जसवन्तसिंह जी के कोई सन्तान न थी, इसलिये उनके चाचा के पुत्र राव रामदासजी राज्य के स्वामी हुए। पठान लोग उस समय विशेष उपद्रव कर रहे थे। सहानपुर पर भी उनका दांत था। उनसे लड़ते हुए ही राव रामदास जी वीरगति को प्राप्त हुए।

रामदास जी के पश्चात् रियासत उनके भाई राव बसूचन्द जी के हाथ आई। ग्यारह वर्ष तक इन्होंने बड़ी योग्यता से रियासत का प्रबन्ध किया। सन् 1796 ई. में इनकी मृत्यु हो गई। इनके पुत्र खेमचन्दजी को 2 वर्ष के बाद मार डाला गया था, इसलिए छोटे लड़के तपराजसिंह गद्दी पर बैठे। सन् 1817 ई. तक इन्होंने राज किया। इनकी मृत्यु के पश्चात् राव जहानसिंह जी रियासत के कर्ताधर्ता बने, किन्तु वे सन् 1825 ई. में डाकुओं से सामना करते हुए मारे गए। अतः उनके छोटे भाई राव हिम्मतसिंह जी मालिक हुए। 45 वर्ष के लम्बे समय तक इन्होंने रियासत का प्रबन्ध किया। सन् 1873 ई. में इनके स्वर्गवास के पश्चात् इनके बड़े पुत्र राव उमरावसिंह जी साहनपुर के राव नियुक्त हुए। नौ वर्ष तक इन्होंने राज किया। सन् 1882 ई. में इनका देहान्त होने के समय इनके भाई डालचन्दजी नाबालिग थे, इससे रियासत कोर्ट ऑफ वार्डस के अधीन हो गई। डालचन्दजी का असमय ही सन् 1897 ई. में देहान्त हो गया, इसलिए रियासत राव प्रतापसिंह के कब्जे में आई। कोर्ट ऑफ वार्डस का प्रबन्ध हटा दिया गया। सन् 1902 ई. में राव प्रतापसिंह जी भी मर गए। उनके एक नाबालिग पुत्र दत्तप्रसादसिंह जी थे जिन्हें आफताब-जंग भी कहते थे। रियासत का इन्तजाम उनके चाचा कुवंर भारतसिंह जी के हाथ में आया। भारतसिंह जी बड़े ही उच्च विचार के और समाजसेवी व्यक्ति थे। शुद्धि-आन्दोलन से तो उनकी सहानुभूति थी ही, जाति-सेवक भी वे ऊंचे दर्जे के थे। राजा भारतसिंह जी सभी की प्रशंसा के पात्र रहे हैं। कुवर चरतसिंहजी भी योग्य व्यक्तियों में गिने जाते थे।

यह विशेष स्मरण रखने की बात है कि साहनपुर दो रियासतें थीं और दोनों ही जाटों की। एक बुलन्दशहर जिले में थी और दूसरी बिजनौर जिले में।

बिजनोर साहनपुर काकरण जाट रियासत

भाजपा सांसद कुंवर भारतेंद्र सिंह के पिता राजा स्व० देवेंद्र सिंह ने 12 वर्ष की आयु में लालढांग के पास चमरिया के जंगल में शेर को मार गिराया था। उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से एमबीए किया था और 1960 में इंडियन शिकार एंड टूरिस्ट कंपनी बनाई थी।

कालाडूंगी के जंगल में उन्होंने विश्व का सबसे बड़ा 12 फिट एक इंच का शेर मारा था, जो आज भी अमेरिका के स्मिथ सोनियन इंस्ट्टीयूट के संग्रहालय में रखा हुआ है।

इस खानदान के जन्म दाता नाहर सिंह जी को माना जाता है। नाहरसिंह के पुत्र बसरूसिंह जींद से सन 1600 में यहाँ आबाद हुए थे। उस समय जहांगीर भारत के शासक थे उनकी सेना में रहकर इन लोगों ने बड़ा सम्मान प्राप्त किया था। बसरूसिंह के छोटे लड़के तेगसिंह जी ने बादशाह जहांगीर से जलालाबाद, किरतपुर और मडाँवर के परगने में 660 मौजे प्राप्त किये थे। इन्हें राय का खिताब भी मिला था। यह खिताब आज तक इनके वंश में चला आ रहा है राय भीमसिंह जो उनके दूसरे लड़के थे, रियासत के मालिक हुए। सबलसिंह राजसी ठाट-बाट और चमक-दमक को पसन्द करते थें। उन्होंने अपने नाम से ग्राम पँचायत सबलगढ़ में एक मजबूत किला बनवाया।

सबल सिंह के तीन पुत्र थे, जिनमें से दो उनके जीवित रहते ही मर चुके थे। इसलिए रियासत के मालिक रामबलसिंह हुए। इनके दो पुत्र थे ताराचन्द और सब्बाचन्द। अपने पिता के बाद ताराचन्द ही अपनी पैतृक रियासत के स्वामी हुए। सन् 1752 ई. में ताराचन्द जी का देहान्त हो गया। सब्बाचन्द ने अपने भाई के बाद राज्य की बागडोर अपने हाथ में ले ली। सब्बाचन्द ने रियासत को खूब ही बढ़ाया। कहा जाता है कि उन्होंने गांवों की संख्या 1887 तक कर दी थी। सन् 1784 ई. में मृत्यु हो गई। उनके भतीजे राय जसवंतसिंह गद्दी के अधिकारी हुए।

जसवंतसिंह की गद्दी पर बैठने के एक वर्ष बाद मृत्यु हो गई। चूंकि राय जसवन्तसिंह जी के कोई सन्तान न थी सन् 1817 ई. तक इन्होंने राज किया। इनकी मृत्यु के बाद राव जहान सिंह रियासत के कर्ताधर्ता बने वे सन् 1825 में डाकुओं से सामना करते हुए मारे गए। इसके बाद उनके छोटे भाई राव हिम्मतसिंह मालिक हुए। 45 वर्ष के लम्बे समय तक इन्होंने रियासत का प्रबन्ध कार्य देखा। सन् 1873 में इनकी मोत के बाद इनके बड़े पुत्र राव उमरावसिंह साहनपुर के राव नियुक्त हुए। नौ वर्ष तक इन्होंने राज किया।

सन् 1882 में इनका देहान्त होने के समय इनके भाई डालचन्द नाबालिग थे, इससे रियासत कोर्ट ऑफ वार्डस के अधीन हो गई। डालचन्द का असमय ही सन् 1897. में देहान्त हो गया, इसलिए रियासत राव प्रतापसिंह के कब्जे में आई। कोर्ट ऑफ वार्डस का प्रबन्ध हटा दिया गया। सन् 1902 ई. में राव प्रतापसिंह भी मर गए। उनके एक नाबालिग पुत्र दत्तप्रसादसिंह थे जिन्हें आफताब-जंग भी कहते थे।

रियासत का इन्तजाम उनके चाचा कुवंर भारतसिंह जी के हाथ में आया। भारतसिंह बड़े ही उच्च विचार के और समाजसेवी व्यक्ति थे। शुद्धि-आन्दोलन से तो उनकी सहानुभूति थी ही, जाति-सेवक भी वे ऊंचे दर्जे के थे। राजा भारतसिंह सभी की प्रशंसा के पात्र रहे हैं। कुवर चरतसिंहजी भी योग्य व्यक्तियों में गिने जाते थे।

यह विशेष स्मरण रखने की बात है कि साहनपुर दो रियासतें थीं और दोनों ही जाटों की। एक बुलन्दशहर जिले में थी और दूसरी बिजनौर जिले में मोजूद है।

राजनीतिक जीवन: सन 1967 में राजा देवेंद्र सिंह विधायक चुने गए थे। 1969 में वह पुन: निर्वाचित हुए और सिंचाई मंत्री बने। नजीबाबाद में पूर्वी गंगा नहर उनकी ही देन है। 1985 में वह चांदपुर से विधायक निर्वाचित हुए थे।

राजा देवेंद्र सिंह के बेटे कुंवर भारतेंद्र सिंह ने उनकी राजनैतिक विरासत को बढ़ाते हुए वर्ष 2002 में पहली बार बिजनौर सदर सीट से चुनाव लड़ा और विधायक निर्वाचित हुए। साल 2002 में उन्हें सिंचाई मंत्री बनाया गया। उन्होंने अपने पिता की योजना पूर्वी गंगा नहर को सम्पूर्ण कराया। देवेंद्रसिंह के पिता राजा चरतसिंह अंग्रेजों द्वारा पहली बार कराए गए चुनाव मे 1937 में एमएलए बने थे।

वर्तमान में कुँवर भारतेंद्र भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर यहाँ से सांसद है। वह अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के मनोनीत कोर्ट सदस्य भी है।

Ref - https://www.facebook.com/parveer.nagill.9

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