Raja Risalu
Raja Risalu (2nd century CE) was a Sindhu Gotra Jat Ruler of Sialkot in Pakistan.
Jat Gotras descended from him
History
Hindu Shahi dynasty: In the 2nd century CE, a mythical Hindu king Raja Risalu, son of Raja Salbahan of Sialkot, brought the Khyber Pakhtunkhwa area under his control. The local people consider him as their hero and, even today, parents tell their children the stories of Raja Risalu and his wife Rani Konklan on winter nights. When a Chinese pilgrim, Hiun-Tsang, visited this area, it was under the control of Durlabhavardhana, the ruler of Kashmir.
Talwada Dhar is a village in tehsil Dhar of Dhar district in Madhya Pradesh. This is an old historical village. The name Talwada is due to number of Talabs (ponds) in this area. This is a well-connected village. The ancient building of Raja Risalu is still present. Some people call this village by the name Turwada also.
According to Ram Swarup Joon,[1]Tiwana and Janjoha both gotras consider themselves to be descendants of Raja Risalu of Sialkot. There is a well known saying among them that when the king was killed by the enemy his queen fled with her three princes called Taih, Jaihu and Saihu after whom the three gotra are named.
इतिहास
राजा रिसालू - सातवीं सदी में स्यालकोट क्षेत्र पर राज किया।[2]
दलीप सिंह अहलावत[3] लिखते हैं ....राजा रिसालू - राजा शालिवाहन की छोटी रानी नूणादेह से रिसालू पुत्र उत्पन्न हुए जो पूरण भगत की मौसी के बेटे भाई थे। प्रचलित लोककथाओं के अनुसार उसका जन्म ही पूरण भगत जी के आशीर्वाद से हुआ था। प्रचलित लोककथाओं के अनुसार उसका जन्म ही पूरण भगत जी के आशीर्वाद से हुआ था। राजा रिसालू सातवीं सदी के अन्त में अथवा आठवीं सदी के आदि में राज्य करते थे जिनकी राजधानी सियालकोट थी। राजा रिसालू के शासनकाल में मोहम्मद बिन कासिम ने भारत पर प्रथम मुस्लिम आक्रमण का नेतृत्व किया था।
इस आक्रमण की समाप्ति के पश्चात् मोहम्मद बिन कासिम तथा राजा रिसालू में परस्पर सन्धि हुई थी। यह तथ्य भारतीय तथा अरबी इतिहास ग्रन्थों में उपलब्ध है। प्रख्यात इतिहासवेत्ता डा० टेम्पल ने सन् 1884 ई० में इस सम्बन्ध में शोध की थी, उससे भी यही तथ्य प्रमाणित एवं पुष्ट हुए हैं। डाक्टर टेम्पल की मान्यता है कि राजा रिसालू सिन्धु अथवा सिन्धड़ गोत्र के जाट थे
ठाकुर देशराज[4] ने लिखा है .... पंजाब में किन्हीं दिनों भट्टी (यदुओं की एक शाखा) का बड़ा बोलबाला था। राजा रिसालू के बाद वहां दुल्ला भट्टी का नाम लिया जाता है। पंजाबी देहाती गीतों में दूल्हा की बहादुरी की प्रशंसा भरी पड़ी है। इसके नाम से पंजाब में ‘दुला की बार’ नाम से एक इलाका भी प्रसिद्ध रह चुका है। आगे चलकर भट्टियों की एक शाखा ही दुलड़ के नाम से प्रसिद्ध हो गई। इसी शाखा के कुछ लोग अब से सैकड़ों वर्ष पूर्व नेहरा वाटी, जो अब शेखावाटी के नाम से पुकारी जाती है, में आकर आबाद हो गए। मंडावा के पास उनका एक गाँव ‘दुलड़ों का बास’ नाम से मशहूर है। जिसे हनुमानपुरा भी कहते हैं।
External links
References
- ↑ History of the Jats
- ↑ Hawa Singh Sangwan: Asli Lutere Koun/Part-I,p.61
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Chapter VI (Page 539)
- ↑ Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.380
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