Ram Narain Chaudhari

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Ram Narain Chaudhari (Agrawal) from village Neem Ka Thana Dist:Sikar Rajasthan, was a leading Freedom Fighter who took part in Shekhawati farmers movement in Rajasthan.

रामनारायण चौधरी का जीवन परिचय

रामनारायण चौधरी का का जन्म 1 अगस्त 1896 को सीकर जिले के नीम का थाना कसबे में एक संभ्रांत और अपने समय के संपन्न प्रभावशाली अग्रवाल परिवार में हुआ. इन्होने जयपुर में अर्जुन लाल सेठी से आजीवन देशसेवा की दीक्षा ली. इनका सार्वजनिक जीवन विविध रंगों से अलंकृत रहा. 1914 से 1916 तक आप क्रन्तिकारी थे. 1916 से 1920 तक वर्धा में रहे. 1920 से 1928 तक आप 'राजस्थान सेवा संघ अजमेर' के मंत्री की हैसियत से राजस्थान की रियासती जनता के लिए किसानों के कष्ट को दूर करने के लिए कार्य किया. आपने बिजोलिया , बेगूं, बूंदी तथा शेखावाटी के किसान आन्दोलन का मार्गदर्शन किया. परिणाम स्वरुप मेवाड़, बूंदी, जयपुर आदि रियासतों ने आपको अपने राज्य से निर्वासित कर दिया. आप और विजय सिंह पथिक दोनों ही राजस्थान के किसानों के उद्धारक के रूप में हमेशा याद किये जाते रहेंगे. [1]


रामेश्वरसिंह[2]ने लिखा है....सन 1921 में महात्मा गाँधी भिवानी में आये थे। अनेक लोग इनके दर्शन कर आन्दोलन की तीव्र इच्छा मन में लिए लौटे। इसी वर्ष असहयोग आन्दोलन प्रारम्भ हो चुका था, जगह-जगह सेवा समितियां बनी। जागीरी इलाकों में सेवा समितियां बनी। जागीरदारों को यह सहन नहीं था, जिसके कारण जगह-जगह दमन चक्र चलने लगा। मास्टर प्यारेलाल जी, कालीचरण जी आदि को पन्द्रह कोस तक घोड़े के पीछे बांधकर दौड़ाया गया।

सन 1922-23 में शेखावाटी के विभिन्न भागों में भी सेवा समितियां बनी और लोगों में चेतना आई। किसान अपनी ही दशा का ज्ञान अब करने लगे थे।

1924 ई. में सीकर से सीनियर अधिकारी वैब ने कृषक आंदोलन को कुचलना चाहा। इस पर जगह-जगह आंदोलन तेज हुए, अजमेर के चौधरी राम नारायण सीकर गए, कैप्टेन बैब से मिलकर किसानों पर लगने वाले कर को अन्यायपूर्ण बताया। जयपुर राज्य ने 11 फरवरी 1925 को चौधरी जी को जयपुर राज्य की सरहद छोड़ देने का आदेश दिया। इसके बाद चौधरी जी पन्द्रह माह तक जयपुर नहीं गये।

11 मई 1926 को श्री रामनारायण चौधरी जयपुर गये, वहां उन्हें गिरफ्तार


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-III, पृष्ठांत-29

कर लिया गया। उन्हें पांच माह की सख्त कैद की सजा दी गई। जयपुर राज्य में सर्वथा राजनैतिक चेतना फैल रही थी। यह अंग्रेजों का शासन काल था। वहां के अंग्रेज अधिकारी कार्यकर्ताओं का निवार्सन, समाचार पत्रों का प्रवेश निषेध, सार्वजनिक सभाओं पर पाबन्दी आदि के द्वारा इस भावना को कुचलने की कोशिश कर रहे थे।

सीकर आंदोलन पर प्रकाश

ठाकुर देशराज[3] ने लिखा है....सीकर ठिकानेदार - [पृ.221]: जयपुर से लगभग 60 मील के फैसले पर उत्तर पश्चिम में सीकर नगर अवस्थित है। इस ठिकाने में लगभग 500 गांव हैं। ठिकानेदार को राव राजा की पुश्तैनी उपाधि है और अपने ठिकाने में न्याय और व्यवस्था के लिए फर्स्ट क्लास मजिस्ट्रेट के अधिकार प्राप्त हैं। ठिकाना अपने लिए एक राज्य मानता चला रहा है इसलिए यह फौज, पुलिस, जेल और न्याय का महकमा भी अपना रखा है। जयपुर ने भी उसे ताजिमी सरदार और कर दिहिंदा मातहत राज्य की जैसी आजादी दे रखी है। अंग्रेज हकीमों के आने तक जयपुर में उसके और अपने अधिकारों के निर्णय के बारे में कभी सोचा तक भी नहीं था। सन् 1934 से पहले यहां किसानों से लगान के अलावा वे सभी लागें ली जाती थी जो शेखावाटी के दूसरे बड़े ठिकानों में ली जाती थी।

ठिकाने के अंतर्गत और भी छोटे छोटे जागीरदार थे जो भोमिया, वाढ़दार और ठिकानेदारों के नाम से ही मशहूर थे और अब (सन् 1948 तक) हैं सीकर और उसके मातहत सभी ठिकानों में लगान उगाही के वही तरीके थे जो शेखावाटी में हैं।


[पृ.222]: आतंक शेखावाटी के ठिकानों की अपेक्षा सीकर में अधिक था फिर भी यहां के किसानों ने अपना दुखड़ा न रोया हो ऐसी बात नहीं। सीकर में वे टोल के टोल आकर अपनी शख्तियों को बयान करते थे और सीकर से निराश होने पर ही जयपुर पहुंचते थे। सब जगह से निराश होने पर ही उन्होंने आंदोलन आरंभ किया।

सीकर के जाट किसानों का आंदोलन सन् 1934 के तरीकों में भले ही नया था किंतु यह नहीं कहा जा सकता कि 1934 में जो वे चाहते थे इससे पहले नहीं चाहते थे। उन्होंने सन् 1925 के आसपास चौधरी राम नारायण जी के सहयोग से आगे आने की कोशिश की थी किंतु चौधरी राम नारायण जी को जयपुर राज्य से बाहर निकाल दिया गया इसलिए उनके पास फिर वही दरख्वास्तें देने का मार्ग शेष रह गया था। उन्होंने निरंतर बढ़ने वाले लगान, उसकी उगाए की शख्तियां और लाल बाग के गैरकानूनीपन पर बराबर जयपुर और सीकर के अधिकारियों के दरवाजे खटखटातये, गलियों की खाक छानी और धर्मशाला के फ़र्शों पर लेट लगाए किंतु कभी भी उनकी सुनवाई नहीं हुई।

सीकर के ठिकानेदार ने परवाह नहीं की और वह अपनी नालायक मुलाजिमों और मातहत ठिकानों के जुल्मी हाथों में उनकी दया पर छोड़ दिए गए।

अत्याचारों के सहते-सहते लोगों की आत्मा मर जाती है। उनका स्वाभिमान समाप्त हो जाता है। जातीय प्रेम लुप्त हो जाता है। ऐसा दशा किसी जाति की होने लगे तो समझ लो उसका नाश नजदीक है।

अधिक जानकारी के लिए पढ़ें

  • मोहन राज भंडारी:राम नारायण चौधरी: राजस्थान में स्वतंत्रता संग्राम के अमर पुरोधा, राजस्थान स्वर्ण जयंती प्रकाशन समिति जयपुर के लिए राजस्थान हिंदी ग्रन्थ अकादमी द्वारा प्रकाशित, वर्ष 2001,

References

  1. डॉ पेमाराम: शेखावाटी किसान आन्दोलन का इतिहास, 1990, p.78
  2. Shekhawati Ke Gandhi Amar Shahid Karni Ram/Jaipur Rajya Aur Krishak Andolan,pp.29-30
  3. Thakur Deshraj: Jat Jan Sewak, 1949, p.221-222

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