Ramakeli

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Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Malda district map

Ramakeli (रामकेलि) is historical place situated in Malda town in West Bengal.

Variants

  • Ramkeli रामकेलि, बंगाल, (AS, p.787)

History

Ramakeli (रामकेलि) situated in Malda town in West Bengal has been headquarters of Sri Rupa and Sanatana Goswami before they fully themselves surrendered unto the lotus feet of Chaitanya Mahaprabhu. Chaitanya Mahaprabhu had stayed at Ramakeli while enroute Vrindavana.[1]


Rāmakeli (रामकेलि) is the name of a village in Bengal, of which Rūpa Gosvāmin (C. 1470-1583 C.E.) was a resident. Rūpagosvāmin is the author of Aṣṭādaśachandas and erudite scholar of Indian Diaspora who has enriched the Sanskrit literature by his various compositions with the nectar of Vaiṣṇava philosophy. Rūpagosvāmin was the son of Kumāra, grandson of Mukunda, great grandson of Padmanābha and great great grandson of Rūpeśvara, who is the son of Jagadguru Niruddha. He had two brothers namely Vallabha and Sanātana. He was also the uncle of Jīvagosvāmin, son of his younger brother Vallabha. He was a resident of Rāmakeli, a village in Bengal.[2][3]

रामकेलि

रामकेलि (AS, p.787) बंगाल स्थित एक ऐतिहासिक नगर है. 15वीं शती ई. में बंगाल के शासक अलाउद्दीन हुसैनशाह के मंत्रिद्वय 'रूप' और 'सनातन' ने इस नगर को बसाया था। रूप तथा सनातन ने यहाँ भगवान राम के मंदिर का निर्माण करवाया था। रामकेलि के निकट इन्होंने 'कन्हाई नाट्यशाला' नामक कृष्ण मंदिर भी बनवाया था। कालांतर में रूप तथा सनातन चैतन्य महाप्रभु के शिष्य बनकर वृंदावन चले गये थे। चैतन्य भी स्वयं रामकेलि आए थे। [4]

मालदा परिचय

प्राकृतिक विविधताओं से भरा मालदा पश्चिम बंगाल में स्थित है। यह मालदा जिला का मुख्यालय है। इसे इंग्लिश बाजार के नाम से भी जाना जाता है। पर्यटक यहां पर घने जंगलों और नदियों के खूसबूरत दृश्य देख सकते हैं। मालदा के प्रमुख आकर्षण हैं:

रामकेली: मालदा से 19 कि.मी. की दूरी पर एक छोटा-सा गांव रामकेली स्थित है। यह बंगाल के महान धर्म सुधारक श्री चैतन्य के लिए प्रसिद्ध है। वह जब वृंदावन जा रहे थे तब इसी गांव में रूके थे। यहां पर तमल और कदम्ब वृक्ष का अनुठा मेल भी देखा जा सकता है। कहा जाता है कि श्री चैतन्य ने इसी वृक्ष के नीचे तपस्या की थी। इस वृक्ष के नीचे एक पत्थर भी है जिस पर उनके पदचिन्ह देखे जा सकते हैं। यहां पर एक मन्दिर का निर्माण भी किया गया है जो श्री चैतन्य को समर्पित है। मन्दिर के पास आठ कुण्ड है जो बहुत आकर्षक हैं। इन कुण्डों के नाम रूपसागर, श्यामकुण्ड, राधाकुण्ड, ललितकुण्ड, विशाखाकुण्ड, सुरभि कुण्ड, रंजाकुण्ड और इन्दुलेखाकुण्ड है। ज्येष्ठ संक्रान्ति के दिन श्री चैतन्य को याद करने के लिए यहां एक सप्ताह के लिए भव्य मेले का आयोजन भी किया जाता है। इस मेले में स्थानीय निवासी और पर्यटक बड़े उत्साह के साथ भाग लेते हैं।

बारोद्वारी मस्जिद: बारोद्वारी मस्जिद को बोरो सोना मस्जिद के नाम से भी जाना जाता है। यह मस्जिद रामकेली गांव की दक्षिण दिशा में स्थित है। यह गौड़ की सबसे बड़ी और भव्य मस्जिद है। बारोद्वारी मस्जिद चौकोर है और इसमें बारह द्वार हैं। इस कारण इसका नाम बारोद्वारी मस्जिद रखा गया है। इसका निर्माण अलाउद्दीन हुसैन शाह ने शुरू किया था और इसका निर्माण कार्य उसके पुत्र नसीरउद्दीन नुसरत शाह के शासनकाल में 1526 ई. में खत्म हुआ था। यह मस्जिद अरबी-भारतीय निर्माण कला का बेहतरीन नमूना है। स्थानीय लोगों के साथ पर्यटकों में भी यह मस्जिद बहुत लोकप्रिय है।

दाखिल दरवाजा: दाखिल दरवाजा बहुत खूबसूरत है। इस दरवाजे का निर्माण 1425 ई. में लाल ईटों से किया गया और टेराकोटा नक्काशी से सजाया गया है। यह दरवाजा 21 मी. ऊंचा और 34.5 मी. चौड़ा है। दरवाजे के चारों कोनों पर पांच मंजिला इमारतों का निर्माण किया गया है जो इसकी खूबसूरती में चार-चांद लगाती हैं। इसकी दक्षिण-पूर्व दिशा में पर्यटक एक पुराने महल के अवशेष भी देख सकते हैं। प्राचीन काल में यहां से तोप के गोले दागे जाते थे। इस कारण इसे सलामी दरवाजे के नाम से भी जाना जाता है।

फिरोज मीनार: दाखिल दरवाजे से 1 कि.मी. की दूरी पर फिरोज मीनार स्थित है। इसे पीर-आशा मीनार और चिरागदानी नाम से भी जाना जाता है। इसका निर्माण सुल्तान सैफउद्दीन फिरोज शाह ने 1485-89 ई. में कराया था। इस मीनार में पांच मंजिल हैं। जिनमें से निचली तीन मंजिलों के बारह पट हैं और ऊपर की दो मंजिल गोल हैं। मीनार के ऊपरी तल तक पहुंचने के लिए 84 सीढ़ियों का निर्माण किया गया है। इस मीनार को टेराकोटा नक्काशी से सजाया गया है। यह मीनार तुगलक निर्माण कला का जीता-जागता गवाह है।

चमकती मस्जिद: चमकती मस्जिद को चीका मस्जिद के नाम से भी जाना जाता है। इस मस्जिद का निर्माण सुल्तान युसूफ शाह ने 1475 ई. में कराया था। बहुत पहले यहां पर चमगादड़ रहते थे इस कारण इसका नाम चमकती मस्जिद रखा गया। चमकती मस्जिद का गुम्बद बहुत खूबसूरत है और इसे बेहतरीन नक्काशी से सजाया गया है। इस मस्जिद की वास्तु कला हिन्दू मन्दिरों की वास्तु कला से मेल खाती है क्योंकि इसकी दीवारों पर हिन्दू देवी-देवताओं की तस्वीरें देखी जा सकती हैं।

लूको चूरी द्वार: कदम-रसूल मस्जिद के पास स्थित लूको चूरी द्वार को लाख छिपी दरवाजे के नाम से भी जाना जाता है। इस मस्जिद का निर्माण शाह शुजा ने 1655 ई. में मुगल शैली में कराया था। कहा जाता है शाह शुजा यहां पर अपनी बेगमों के साथ लुका-छिपी खेला करते थे इसीलिए इसका लूको चूरी रखा गया। अन्य इतिहासकारों के अनुसार यह माना जाता है कि इसका निर्माण अलाउद्दीन हुसैन से 1522 ई. में कराया था। लूको चूरी का वास्तु-शास्त्र अदभूत है जिसे देखने के लिए पर्यटक प्रतिवर्ष यहां आते हैं।

External links

References

  1. Ramakeli, Malda
  2. Source: Shodhganga: a concise history of Sanskrit Chanda literature (history)
  3. https://www.wisdomlib.org/definition/ramakeli
  4. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.787