Ramesh Ralia
Ramesh Ralia (डॉ. रमेश रलिया) is Agriculture Scientist from village Khariya Khangar, Bhopalgarh, Jodhpur, Rajasthan.
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परिचय
कहां जोधपुर का छोटा सा गांव खारिया खंगार और कहाँ अमेरिका का सेंट लुईस शहर ? वाह भाई रमेश! क्या लंबी छलांग लगाईं है। जी हां मित्रों आज हम बात कर रहे हैं हमारे खारिया खंगार निवासी कृषि वैज्ञानिक रमेश रलिया की.....
जन्म व शिक्षा
डॉ. रमेश का जन्म भोपालगढ तहसील के छोटे से ग्राम खारिया खंगार में हुआ। इनके पिताजी श्री सुखराम जी रलिया एक किसान हैं और आज भी खेती-बाङी का कार्य करते हैं। वैसे इनका पूरा परिवार कृषि कार्य में ही निपुण हैं और अगर खेती-बाङी के साथ साथ शिक्षा को भी मन में ठाना तो सिर्फ रमेश ने! शायद इनसे पहले आपके परिवार में कोई अधिक पढा लिखा नहीं होगा। गांव के पथरीले खेतों के बीच से होते हुए गाँव की ही सरकारी स्कूल में पढ़ने जाते हुए इस किसान पुत्र ने एक सपनों की दुनिया बसा ली थी। कुछ खास करना है, यह तय कर लिया था। दसवीं तक की शिक्षा गांव में प्राप्त करने के बाद नजदीक के रतकुडिया गाँव की चौधरी गुल्लाराम सरकारी स्कूल से ही कक्षा 12 तक की पढ़ाई पूरी की।
उच्च शिक्षा
स्कूली शिक्षा के बाद जोधपुर से B.Sc. की और फिर Biotechnology में M.Sc. कर ली।
काजरी में चयन: रमेश की मेहनत अब रंग लाने लगी और बंदे का चयन CAZRI जोधपुर में हो गया। यहाँ रमेश ने Nanotechnology जैसे आधुनिक क्षेत्र में झंडे गाड़ने शुरू कर दिए और निरन्तर अभ्यास में लग गये।
अमेरिका से बुलावा: काजरी में वर्ल्ड बैंक के एक प्रोजेक्ट पर काम करते करते मन में आया कि अमेरिका की दुनिया देख ली जाए। वाशिंगटन यूनिवर्सिटी से बुलावा आ गया। लेकिन CAZRI और भारत सरकार उसे छुट्टी नहीं देना चाहते थे, साफ इंकार कर दिया। भारत में यह आम बात है कि इस प्रकार के संस्थान और विभाग बिना अप्रोच वालों को आगे नहीं बढ़ने देते हैं।रमेश ने अक्टूबर 2013 में इस्तीफा देकर भी अमेरिका जाने का तय कर लिया।
अल्पायु में बङा नाम: एक ढाणी में साधारण किसान के घर पैदा होकर सरकारी स्कूल के रास्ते जो युवा अमेरिका की मशहूर यूनिवर्सिटी में रिसर्च कर रहा हो, ये अपने आप में बहुत ही गौरवान्वित करने वाली बात हैं। रमेश अभी मात्र 27 वर्ष के हैं और वहाँ वाशिंगटन यूनिवर्सिटी में सस्ते खाद से अधिक उत्पादन की तकनीक पर रिसर्च कर रहे हैं।
नेनो खाद का अविष्कार: वाशिंगटन में निरन्तर अभ्यास के बाद रमेश ने किसानों के लिए नेनो तकनीक के माध्यम से ऐसी खाद का अविष्कार किया हैं की मात्र कुछ मिलीग्राम खाद देने से खेत की पैदावार कई गुना बढ़ जाती है। 80 किग्रा DAP की जगह मात्र 640 मिग्रा नेनो फोस्फेट से ही काम चल जाएगा। नेनो खाद सीधी पौधे के अंदर जायेगी, और मिट्टी के लिए बिलकुल भी हानिकारक नहीं होगी। हाल ही में इस खाद का पादपों पर सफल परीक्षण किया गया हैं।
सम्मान
डॉ. रमेश को सैकङों बार राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय व विभिन्न स्तरों पर सम्मानित किया जा चुका हैं। गत कुछ वर्ष पहले आप तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के हाथों भी सम्मान प्राप्त कर चुके हैं। नेनो खाद के सफल परीक्षण के बाद हाल ही में रमेश का चयन इन्वेंटर चैलेंज अवार्ड के लिए हुआ हैं, इसके तहत इन्हें सेंट लुईस अमेरिका के स्कैंडलेरिस सेंटर फॉर इंटरडिसिप्लिनरी इनोवेशन एंड एंटरप्रिन्योरशिप की ओर से 50 हजार अमेरिकी डॉलर दिये जायेंगे।
देवरी धाम के भक्त
डॉ. रमेश भोलारामजी महाराज और देवरी धाम (रतकुङिया) के सच्चे भक्त हैं। रमेश अपनी खारिया से अमेरिका तक की यात्रा का सारा श्रेय देवरी धाम को देते हैं, वो बताते हैं की अगर उन्हें अगर जरा सी भी परेशानी आयी तो उनका सामना सदगुरु महाराज का नाम लेकर किया और प्रत्येक समस्या का समाधान पाया।
युवाओं के प्रेरणास्त्रोत
डॉ. रलिया आज के युवाओं के लिए एक मार्गदर्शक और प्रेरणास्त्रोत बनकर उभरे हैं। रमेश ने अपनी अल्प आयु में इतना कुछ प्राप्त किया वो वास्तव में सराहनीय और प्रेरणादायक हैं।
लेखक - अमेश बैरड़, Abairad36@gmail.com, मो. 8000005924/8000095924
गैलरी
References
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