Ramkaran Lomror

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नागौर की गौरवशाली धरती को जहां देश विदेश तक शूरता, स्वाभिमान, व बलिदान की साक्षी माना जाता है वहीं इसी जिले की एक तहसिल है - जायल। मारवाड़ के इतिहास में अगर दानवीरता और भाईचारे की मिसालें दी जाती है तो यकीं मानो नागौर जिले का यह जायल क्षैत्र इस लिहाज से मारवाड़ का सिरमौर है। यह वही जायल है जहां किसी समय महान लोकदेवता वीर तेजाजी महाराज के पूर्वज धौलियां जाटों व काला गौत्री जाटों में भयंकर रणसंग्राम हुआ था। वहीं रियासतकाल में खींयाळा और जायल के जाटों द्वारा बादशाह के हुक्म और नाराजगी को धत्ता बता तमाम राजस्व खजाना एक अनजान गूजरी को धरम की बहन बना मायरे पर वांर दिया था। ये उदाहरण है इस जायल के चौधरियों की बहादुरी, शूरता व दरियादिली का। ना केवल वीरता और दानवीरता बल्कि देश में लोकतंत्र की स्थापना तथा पंचायतीराज के नागौर से आगमन के बाद से ही जायल को नागौर जिले में किसान राजनीति का एक गढ कहा जा सकता था। इसी किसान राजनीति के धुरी जायल में सन् 1937 को भारतीय सेना के लेफ्टेनेंट चौधरी हरदीन राम लोमरोर के घर में इस खांटी किसान नेता का जन्म हुआ। आपकी माता का नाम स्व. श्रीमति भूरीदेवी था। इस परिवार का राजनीति से दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं रहा मगर नेतृत्व के गुणों से परिपूर्ण व मददगार, मिलनसार व सेवाभावी स्वभाव के धनी प्रधान साहब रामकरण लोमरोड जी जायल की राजनीति के सदैव सिरमोर रहे।

पारिवारिक परिचय

आपकी धर्मपत्नी का नाम श्रीमति सुगनी देवी है जो लोकसेवा व राजनीति में अंत समय तक आपके साथ कंधे से कंधे मिलाकर खड़े रही थी। आपके 4 सुपुत्र है - भंवरलाल, हनुमानराम, देवाराम, मेघाराम।

शिक्षा

प्रधान साहब ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कक्षा आठ तक जायल से ही पूर्ण की थी। तत्पश्चात उच्च शिक्षा के लिए डीडवाना के बांगड विद्यालय में प्रवेश लिया।

राजनीति में कदम

आपने अपनी राजनीतिक जीवन की शुरूआत वर्ष 1977 में की थी। अपने 40 साल के जीवन में आप सदैव जनमानस के दिलों पर राज करते रहे। 1977 में आपने सरपंच का पहला चुनाव लडा और जीत हासिल की। बतौर सरपंच आपने 3 साल जनसेवा की और लोगों के दिलों पर अमिट छाप छौड़ी। इसी का परिणाम था कि वर्ष 1981 के प्रधान के चुनावों में दावेदारी ठोकी और बने भी। और फिर अगले 7 साल तक जायल के जनमानष ने आपको इस पद से हटने नहीं दिया। बल्कि अपनी पलकों पर बिठाये रखा। 1987 में आपने फिर से सरपंच का चुनाव लड़ा और अगले 5 साल बतौर सरपंच अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी अंजाम दिया। वर्ष 1995 में आपने फिर से प्रधान पद की दावेदार जतायी तो जायल की जनता ने फिर से आपको इस पद पर अपना बेतहासा प्यार इस खांटी किसान नेता के लिए जता दिया। लोमरोड़ साहब का अगला राजनीतिक जीवन इस प्रकार रहा-

1995 से 2000 तक प्रधान
2000 से 2005 तक सरपच
उप चैयरमेन कृषि मंडी

2010 से 2015 तक आपकी धर्मपत्नी सुगनीदेवी प्रधान रही।

अंतिम जीवन

आप की शख्सियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आप नागौर के अग्रिम पंक्ति के कांग्रेस नेताओं में शुमार थे। आपने जीवन के अंतिम समय में राजस्थान विधानसभा चुनाव 2018 में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी से जायल उम्मीदवार 'अनिल बारूपाल' का खुलकर समर्थन किया। जिसकी बदौलत पहली बार चुनाव लड़ रही इस पार्टी ने कांग्रेस को कड़ी टक्कर दी और दूसरे स्थान पर रही। जिस समय जायल की जनता अपना अगले पांच साल का राजनीतिक भविष्य चुन रही थी वहीं प्रधान साहब जयपुर में जीवन और मृत्यु के बीच संघर्ष कर रहे थे। अंतत: 7 दिसंबर की मध्यरात्रि को आपने अंतिम सांस ली। और इस तरह नागौर जिले का एक ख्यातनाम व रौबदार खांटी किसान सूरज सदा सदा के लिए अस्त हो गया। आप देहवसान हुए तब नागौर कृषि उपज मंडी के वॉयस प्रेजिडेंट थे। 40 साल की उम्र से शुरू हुआ आपका राजनीतिक जीवन 81 वर्ष की उम्र तक बेदाग, निष्पक्ष और सेवाभाव से परिपूर्ण रहा। जितना जायल की जनता ने आपको प्यार दिया उससे दुगुना प्यार आपने जनता को दिल खोल के लुटाया। सलाम शत शत नमन महान दिव्यात्मा को।

'तमाम आंखो में सैलाब, और दिल में सम्मान था। कोई फरिश्ता उस रोज, खुदा का बना मेहमान था।।

लेखक

References


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