Ramnarayan Zinda

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Choudhary Ramnarayan Zinda

Choudhary Ram Narayan Jinda (Mayla) (20.1.1965 - 26.10.1992) from Tilwasani, Pipar City, Jodhpur, Rajasthan was a student leader, social worker who struggled against the jagirdars for the cause of farmers. He was founder of Kisan Chhatra Sangh.

परिचय

जन्म- 20 जनवरी 1965 ।
उपाधि- जिँदा ।
जन्मस्थान- तिलवासनी, पिपाड़ सिटी, जोधपुर, राजस्थान
पिता का नाम- श्री राणारामजी मायला
शिक्षा- बीए., एम.ए. एवं विधि मेँ उच्च शिक्षा ।
स्वर्गवास- 26 अक्टूबर 1992 साथीन गांव के समीप सङक दुर्घटना मेँ ।

युवाओं के दिलों पर राज करने वाले और 'जिंदा' की उपाधि से संपूर्ण राजस्थान में मसहूर चौधरी रामनारायण जी का जन्म 20 जनवरी 1965 को जोधपुर की बिलाङा तहसील के तिलवासनी ग्राम के एक साधारण किसान परिवार में श्री राणारामजी मायला के घर हुआ।

शिक्षा

तत्कालीन समय में ग्रामीण क्षेत्रों में लोग पढाई से ज्यादा कृषि को तवज्जो देते थे। आप भी अपनी पढाई के साथ साथ खेती बाङी में माता-पिता का हाथ बंटाते थे, लेकिन पिता राणाराम जी ने बालक की पढाई के प्रति लग्न और छुपी प्रतिभा को पहचानते तनिक देर न करते हुए आपको उच्च शिक्षा दिलाने की ठान ली। आप भी माता-पिता की उम्मीदों पर खरे उतरे और बीए. व एमए. अच्छें अंको से उत्तीर्ण की, साथ ही विधि में भी उच्च शिक्षा प्राप्त की।


किसान छात्रसंघ की स्थापना

स्कूल स्तर की पढाई के बाद आपने जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय में दाखिला लिया। तत्कालीन समय में सामन्ती ताकतों के बलबूते पर ग्रामीण और किसान छात्रों पर हो रहे अत्याचार को आपने अपनी आंखों से देखा की किस तरह उच्च वर्ग और जाति विशेष के लोग ग्रामीण क्षेत्रों के पिछङे और गरीब छात्रों के साथ अत्याचार करते हुए उन्हें उच्च शिक्षा से वंचित कर रहे हैं। छात्र रामनारायण से ये अन्याय सहा नहीं गया और आपनें सामंती ताकत के विरुद्ध कमर कस ली, उनके खिलाफ एक आंदोलन छेङ दिया, ग्रामीण किसानों के बेटे और बेटियों का एक संगठन तैयार किया और इस संगठन को नाम दिया 'किसान छात्रसंघ।' शायद रामनारायण जी का ये आंदोलन सामंतों के खिलाफ छात्रों का सबसे बङा संघर्ष था तब से लेकर आज तक किसान छात्रसंघ ग्रामीण क्षेत्र के गरीब किसान छात्रों के हित में काम कर रहा हैं।

कबड्डी के हीरो

चौधरी जी छात्रप्रेमी होने के साथ साथ कबड्डी के भी अच्छे खिलाङी थे। आपने अपनी कबड्डी की थापों से राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर अपनी अमिट छाप छोङी।

मिलनसार व्यक्तित्व

हंसमुख चेहरा और मिलनसार व्यक्तित्व रामनारायण जी की विशेषताएं थी। अपनी इन्हीं खुबियों की बदौलत आप सहस्त्रों युवा दिलों में आज भी जिंदा हैं। और इन्ही की बदौलत आपको 'जिंदा' की उपाधि से नवाजा गया। आपकी मिलनसारिता का दूसरा उदाहरण; सुप्रसिद्ध फिल्म स्टार धर्मेन्द्र देओल आपका प्रिय सखा था और आपसे मिलने बिलाङा और जोधपुर भी आया करता था।

स्वर्गवास

26 अक्टूबर 1992 को लोग दीपावली के दूसरे दिन छोटी दिवाली की खुशियों में व्यस्त थे लेकिन पता नहीं ये दिवस किस तरह का काल बनकर उदित हुआ था, पता नहीं इस दिन क्यों अनहोनी भी होनी का रुप धारण करके आयी। लेकिन कहते है ना... "जो प्राणी दुनिया में अपने कहलाने आते हैं.. वो कब मोह-माया में पङकर अपना समय गंवाते हैं... ......और सूर्यास्त से पूर्व हमारा शेर मात्र 27 वर्ष की अल्पायु में साथीन गांव के समीप सङक दुर्घटना का शिकार हो गया।

जिंदा स्मारक साथीन

साथिन ग्राम में आपका विशाल मंदिर और स्मारक बना हुआ हैं जिसमें आपकी विशाल अश्वारुढ प्रतिमा स्थापित हैं। जिंदा स्मारक यहां होने वाले नित नये चमत्कारों की बदौलत सम्पूर्ण राजस्थान में चर्चा का विषय बना हुआ हैं। यहां प्रतिवर्ष छोटी दीपावली के दिन विशाल मेला भरता हैं और रात्रि में भव्य जागरण का आयोजन किया जाता हैं। इनके अलावा यहां 26 अक्टूबर, 20 जनवरी और प्रत्येक माह की शुक्ल प्रतिपदा को भी मेले लगते हैं। युवा और कॉलेज के छात्र-छात्राएं यहां भारी संख्या में आते हैं। यहां दिनभर सैकङों भक्त कष्ट निवारणार्थ यहां आते हैं और जिंदा जी के दरबार में मत्था टेककर मनवांछित फल प्राप्त करते हैं।

जिंदा छात्रावास की स्थापना

आपकी याद में 7अक्टूबर 1995 को भगत की कोठी (जोधपुर) में 'चौधरी रामनारायण जिंदा छात्रावास' का उद्घाटन विश्व प्रसिद्ध पहलवान स्व. दारासिंह के करकमलों द्वारा किया गया। इस छात्रावास में ग्रामीण किसानों के प्रतिभाशाली छात्रों को प्रवेश दिया जाता हैं। यहां आज भी सैकङों किसानपुत्र अध्ययनरत हैं और कईयों ने तो जिंदा जी की आशीर्वाद की बदौलत विभिन्न क्षेत्रों में समाज और परिवार का नाम रोशन किया हैं।

स्वाभिमानी, ईमानदारी और दृढ प्रतिज्ञता की बदौलत मात्र 27 वर्ष के अपने अल्पजीवन में अपना नाम इतना उज्ज्वल कर गये जिसे वक्त की तस्वीर कभी धुँधला नहीँ सकती।

लेखक की और से श्रद्धांजलि

अंत मे इन पंक्तियो के माध्यम से जिंदाजी को श्रद्धांजलि अर्पित करता हुं...

"धन्य हो मारवाङ की वीर भूमी, पूत जन्मते जहाँ शूरवीर हैं। वो चेहरे सदा स्मरण आते, जो परसेवा की जिँदा तस्वीर है।।

ऐसा ही एक शेर हमारा, जो बाजु में युवा-बल रखता था। राम व नारायण सा मुखमँडल था, हुँकार महादेव सी रखता था।।

अनीति को कभी ना टिकने दिया, छात्रहित में मरने को सदा तत्पर था। रसूखोँ की उसने सदा गरदन मरोङी, स्वाभिमान रखता सदा उपर था ॥

किसानपुत्रोँ का हाथ थामकर, उन्हें वो जीना सिखलाता था। वो भीषण तूफान था इतना, सदा बुराईयों से भिङ जाता था।।

एक साधारण परिवार से निकलकर, हजारों युवादिलों का सम्राट बना। उसका हाथ कंधे पर था तभी तो, युवा किसान वर्ग अतिविराट बना।।

केवल सेवा में हि नहीं बल्कि, खेलों में भी क्षमता दिखलाई थी। अपनी कबड्डी की थापों से जाने, कितने विरोधियों को धूल चटाई थी।।

मनहूस था वो दिन हमारे लिए, जिस दिन वे हमसे दूर हूए। छलक पङी हजारोँ आँखे, जाने कितने ह्रदय चकनाचूर हुए ।।

तुम्हीं एकता, तुम्हीं ताकत, तुम्ही युवाओं के अपणायत थे। 'जिंदा' तुम केवल नर नहीं, सच में तुम नारायण थे।।

उपलब्धियाँ

किसानपुत्रो के सिरमौर, स्वाभिमानी व दृढ प्रतिज्ञ, कब्बडी खेल मे राष्ट्रीय स्तर पर ध्वजा लहराई, 15 वर्ष छात्रहित मेँ सर्वस्व लुटा दिया तथा मात्र 27 वर्ष के अपने अल्पजीवन मे अपना नाम इतना उज्ज्वल कर गये जिसे वक्त कि तस्वीर कभी धुँधला नहीँ सकती ।

आपकी याद में 7 अक्टूबर 1995 मेँ भगत की कोठी मेँ जिँदा भवन छात्रावास का उदघाटन पहलवान स्व. श्री दारासिँहजी के करकमलोँ से किया गया । यहाँ आज कई किसानपुत्र अध्ययनरत है तथा जिंदाजी के आशीर्वाद स्वरुप कईयों ने तो समाज को गौरवान्वित भी किया है ।


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लेखक

संदर्भ

  1. लेखक - बलवीर घिंटाला तेजाभक्त
  2. लेखक - अमेश बैरड़

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