Ranakpur

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Author: Laxman Burdak IFS (R)

Location of Ranakpur in Pali District

Ranakpur (रणकपुर) is a village in Desuri tehsil in Pali district of Rajasthan.

Variants

Ranapura (राणपुर) = Ranakapura (राणकपुर), जिला पाली, राज., (AS, p.785)

Location

Ranakpur is 9 kms south of Sadri near the border of Pali and Rajsamand districts.

Ranakpur Jain Temple

Ranakapura is widely known for its marble Jain temple, and for a much older Sun Temple which lies opposite the former. It is near near Sadari town in tahsil Desuri. Ranakpur is situated on the Udaipur - Jodhpur highway.It is 90 kms away from Udaipur. The temple is located in the gorgeous Aravali ranges. It is one of the most important pilgrim among the five prilgrims of the Jainism. It is perhaps the most Byzantine and massive of Jain temples in India. The complex also contains several smaller temples, also fantastically carved.

Ranakpur Inscription of 1439

Sanskrit Text
L.१७-२० कुल करानन पंचाननस्य | विषमतरभंगसारंगपुर
गागरणनराणा का अजयमेरुमंडोरमंडलकरबूंदि
खाटूचाटसूजानादिनानामहादुर्ग लीलामरत्र ग्रहण
प्रमाणितजित काशित्वा भिमानास्य
Ranakpur Inscription of 1439[1]

रणकपुर प्रशस्ति 1439 ई. डॉ. गोपीनाथ शर्मा [2] लिखते हैं कियह प्रशस्ति रणकपुर के चौमुख मंदिर के बाएं स्तंभ में लगी हुई थी. इसमें ४७ पंक्तियां हैं. इसमें मेवाड के राजवंश, धरणा श्रेष्टी वंश तथा उसके शिल्पी का पता लगता है. इसमें कुंभा का वर्णन किया है और उसके विरुदों और विजयों का वर्णन किया है. ये विजयें बून्दी, गागरोण, सारंगपुर, नागौर, चाटसू, अजमेर, मंडोर, मांडलगढ, खाटू, लीलामरत्र आदि हैं. इसमें धरणा श्रेष्ठी के पूर्वज और उसके पुत्रों का भी पता लगता है. धरणा प्रथम सिरोही जाकर मेवाड में आ बसा. ये घटना मेवाड़ में सुख शांति का प्रतीक है. इसी अवस्था से प्रभावित होकर उसने अपने द्रव्य का उपयोग चतुर्मुख प्रसाद के निर्माण में किया. इसमें मांगण, कुरपाल , रत्ना, धारणा और उसके पुत्र जाखा और जावड़ इस वंश की परंपरा में उल्लिखित हैं. इस मंदिर की प्रतिष्ठा के सम्बन्ध में आचार्यों का नाम - जैसे श्रीजगच्चंद्र सूरि, श्री देवेंद्रे सूरि, श्री सोमसुन्दर सूरि उल्लिखित है. इसका निर्माता सूत्रधार देपाक या दीपा था.

रणकपुर शिलालेख में गोगाजी को एक लोकप्रिय वीर माना है. यह शिलालेख वि. 1496 (1439 ई.) का है.[3]

इस की कुछ पंक्तियाँ साथ के बाक्स में हैं.

History

Ranakpur is site of Shvetambara Jain Temple devoted to Adishvara. The temple was built in V.S. 1496 in the reign of Rana Kumbha. This tirtha was visited by poet Megha in V.S. 1499, who has referred to seven Jina temples at this place. The temple of Adishvara was named after its builder, namely minister Dharana (धरण) and it came to be known as Dharanavihara and also Trailokyadipaka. Later inscriptions from this temple complex have also been discovered; See Jinavijaya;Prachina Jain Lekh Sangraha, II, No.307 ff. One inscription (308) mentions the celebrated Hiravijaya, also visted during the time of Emperor Akbar. For useful account of this tirtha see Avalokana in Gujarati of Jinavijaya in Vol.II of his great work on Jain Epigraphs, pp.185 ff; for modern appreciation see Tirtha Darshan, I, p. 210ff. [4]

राणकपुर

विजयेन्द्र कुमार माथुर[5] ने लेख किया है ...राणकपुर अथवा 'राणपुर' राजस्थान में अरावली पर्वतमाला की घाटियों में स्थित वर्तमान 'रणकपुर' का प्राचीन नाम है। यह क़स्बा मारवाड़ में, सादड़ी से 6 मील दूर है। यह स्थान दक्षिण की ओर अरावली पर्वतमाला से घिरा हुआ है। यहाँ का प्रसिद्ध स्मारक ऋषभदेव का 'चौमुखा मंदिर' (त्रैलाक्य दीपक प्रसाद) है, जो शायद 15वीं शती में बना था। इस स्थान से 1496 विक्रम संवत (1439 ई.) का धारणाक का एक अभिलेख मिला है। किंवदंती है कि प्राचीन समय में नदिया के रहने वाले 'धन्ना' तथा 'रत्ना' नामक दो सहोदर भाइयों ने राणपुर के मंदिर का निर्माण करवाया था। यह मंदिर बहुत ऊंचा तथा भव्य है। इसमें 1444 स्तंभ हैं। कहा जाता है कि इसे बनवाने में 96 लाख रुपये खर्च हुए थे। इसका जीर्णाद्वार हाल ही में 10 लाख की लागत से हुआ था।

राणकपुर परिचय

रणकपुर राजस्थान के देसूरी तहसील के निकट पाली ज़िले के सादडी में स्थित है। रणकपुर जोधपुर और उदयपुर के बीच में अरावली पर्वत की घाटियों में स्थित है। यह स्थान मन्दिरों के लिए प्रसिद्ध है, जो उत्तरी भारत के श्वेताम्बर जैन मन्दिरों में अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं। इन मन्दिरों का निर्माण धन्ना नामक सेठ ने किया था, उसे 'धरणाक सेठ' भी कहते हैं। इस सेठ ने महाराणा कुम्भा से इन मन्दिरों के लिए भूमि ख़रीदी थी। यहाँ स्थित प्रमुख मन्दिर को 'रणकपुर का चौमुखा मन्दिर' कहते हैं। इस मन्दिर के चारों ओर द्वार हैं। मन्दिर में प्रथम जैन तीर्थंकर आदिनाथ की मूर्ति स्थापित है। इस मन्दिर के अलावा दो और जैन मन्दिर हैं, जिनमें पार्श्वनाथ और नेमिनाथ की मूर्तियाँ प्रतिष्ठित हैं। एक वैष्णव मन्दिर सूर्यनारायण का भी है। एक धार्मिक मन्दिर चौमुखा त्रलोक्य दीपक है, जिसमें राजस्थान की जैन कला और धार्मिक परम्परा का अपूर्व प्रदर्शन हुआ है।

स्थापना: रणकपुर में मन्दिर की प्रतिष्ठा विक्रम संवत 1496 (1439 ई.) में हुई थी। प्रधान मन्दिर वर्गाकार (220 फुट x 220 फुट) एवं चौमुखा है। इसका विस्तार 48, 400 वर्ग फुट ज़मीन पर किया गया है। इस मन्दिर में कुल 24 मण्डप, 84 शिखर और 1444 स्तम्भ हैं। सम्पूर्ण मन्दिर में सोनाणा, सेदाड़ी और मकराना के पत्थर का प्रयोग किया गया है। इस मन्दिर को बनाने में 99 लाख रुपया व्यय किया गया था।

चौमुखा मन्दिर: रणकपुर में आदिनाथ की भव्य प्रतिमाएँ श्वेत संगमरमर पत्थर की बनी हुई हैं। एक उच्च पीठिका पर आसीन आदिनाथ की प्रतिमाएँ पाँच फुट ऊँची हैं और एक-दूसरे की पीठ से लगी हुई चारों दिशाओं में मुख किये हुए हैं। इसी कारण यह मन्दिर चौमुखा कहलाता है। चारों ओर द्बार होने से कोई भी श्रद्धालु किसी भी दिशा से भगवान आदिनाथ के दर्शन कर सकता है।

इस मन्दिर के सामने दो अन्य जैन मन्दिर हैं, जिनमें से पार्श्वनाथ के मन्दिर का बाहरी भाग पूरा मैथुन मूर्तियों से भरा पड़ा है। इसीलिए इस मन्दिर को लोग 'वेश्या मन्दिर' कहते हैं। मन्दिर के सभामण्डप, द्वार, स्तम्भ, छत आदि तक्षण-कला के काम से लदे पड़े हैं। नर्तकी की मूर्तियाँ हाव-भाव से परिपूर्ण हैं। प्रमुख मन्दिर में जैन तीर्थों का भी वर्णन हैं। मन्दिर के चारों ओर 80 छोटी और 4 बड़ी देवकुलिकाएँ हैं। मन्दिर की मुख्य देहरी में भगवान नेमीनाथ की श्यामल भव्य मूर्ति है। अन्य मूर्तियों में सहस्त्रकूट, भैरव, हरिहर, सहस्त्रफणा, धरणीशाह और देपाक की मूर्तियाँ उल्लेखनीय हैं। यहाँ पर एक 47 पंक्तियों का लेख चौमुखा मन्दिर के एक स्तम्भ में लगे हुए पत्थर पर उत्कीर्ण है, जो विक्रम संवत 1496 (1939 ई.) का है। इस लेख में संस्कृत तथा नागरी, दोनों लिपियों का प्रयोग किया गया है। प्रस्तुत लेख में बापा से लेकर कुम्भा तक के बहुत से शासकों का वर्णन है। महाराणा कुम्भा की विजयों तथा उसके विरुदों का विस्तृत विवरण दिया गया है। इस लेख में तत्कालीन सामाजिक, आर्थिक तथा धार्मिक जीवन के बारे में भी पर्याप्त जानकारी मिलती है। फर्ग्युसन ने इस अद्भुत प्रासाद का वर्णन करते हुए लिखा है कि ऐसा जटिल एवं कलापूर्ण मन्दिर मेरे देखने में नहीं आया है और मैं अन्य ऐसा कोई भवन नहीं जानता, जो इतना रोचक व प्रभावशाली हो। कर्नल टॉड ने भी इसे भव्य प्रासादों में गिना है।

संदर्भ: भारतकोश-राणकपुर

Notable persons

Further reading

  • Annual Review of Archaeological Survey of India, 1907-08, p.214-215
  • Indian Antiquary Vol. 8, p. 114

External Links

References

  1. डॉ गोपीनाथ शर्मा: 'राजस्थान के इतिहास के स्त्रोत', 1983, पृ.140
  2. डॉ. गोपीनाथ शर्मा: राजस्थान के इतिहास के स्त्रोत, 1983, पृ. 140
  3. रतन लाल मिश्र:शेखावाटी का नवीन इतिहास, मंडावा, 1998, पृ.75-76
  4. Encyclopaedia of Jainism, Volume-1 By Indo-European Jain Research Foundation p.5537-38
  5. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.785