Salemabad Ajmer

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Author:Laxman Burdak, IFS (R)

For other city of same name see Salemabad
Location of Kishangarh in Ajmer district

Salemabad (सलेमाबाद) is a village in Kishangarh Tehsil in Ajmer District of Rajasthan State, India.

Variants

Location

It belongs to Ajmer Division . It is located 37 KM towards North from District head quarters Ajmer. 12 KM from Kishangarh (Rural). 121 KM from State capital Jaipur. Salemabad Pin code is 305815 and postal head office is Salemabad.[1]

Origin

Jat Gotras

History

परशुरामपुरी

विजयेन्द्र कुमार माथुर[2] ने लेख किया है ...परशुरामपुरी (AS, p.531): पुष्कर और सांभर के बीच में सरस्वती नदी के तट पर स्थित है. कहा जाता है कि 15 वीं सदी के मध्य में आचार्य परशुराम देव ने इस स्थान से होकर जाने वाले यात्रियों को मुसलमान शासकों के उत्पीड़न से मुक्त किया था और इसी कारण यह स्थान इन्हीं के नाम पर प्रसिद्ध हुआ. शेरशाह सूरी ने जो इस स्थान पर आया था, परशुरामपुरी का नाम अपने पुत्र सलीम शाह के नाम पर सलेमाबाद कर दिया था.

श्रीनिम्बार्कतीर्थ (सलेमाबाद)

वर्तमान में आप जिस ग्राम को सलेमाबाद के नाम से जानते हैं यह क्षेत्र पुराणों में श्रीनिम्बार्कतीर्थ के नाम से वर्णित है। पुराणों के अनुसार प्राचीन समय में यहाँ साभ्रमती नदी (अर्थात् जो नदी सांभर की तरफ जाती है) के किनारे एक कोलाहल नामक दैत्य हुआ था। उसका देवताओं के साथ युद्ध छिड़ गया। उसके प्रहारों से घबरा कर देवता अपने प्राण बचाने के लिये सूक्ष्म रूप धारण कर वृक्षों पर जा चढ़े। इनमें शंकर जी विल्व (बील) वृक्ष पर, विष्णु जी पीपल पर, इन्द्र शिरीष वृक्ष पर एवं सूर्य निम्ब (नीम) वृक्ष पर छिप गये। इन्ही सूर्य भगवान की प्रखर किरणों से जिस सरोवर का उद्भव हुआ, वही सरोवर श्रीनिम्बार्क सरोवर के नाम से प्र​सिद्ध हुआ। तथा जिस परिक्षेत्र में यह सरोवर ​स्थित है, उसका नाम श्रीनिम्बार्कतीर्थ प्र​सिद्ध हुआ। जो आज भी प्रचलित है। बाद में उस दैत्य का विनाश महाविष्णु ने कर देवताओं को राहत पहुँचाई। ऐसे पुष्कर क्षेत्र ​स्थित इस तीर्थ की महिमा शास्त्रों द्वारा प्रतिपादित है।

एक बार ब्रह्मा जी के मानस पुत्र सनकादिकों ने ब्रह्मा जी से प्रश्न किया था कि सत्व, रज, तम आदि गुणों में चित्त मिला हुआ है और गुण चित्त में लगे हुए हैं। ऐसे में संसार से तरने वाले मुमुक्षु (मोक्ष की कामना करने वाले) के गुण और चित्त कैसे अलग हो सकेगें। इस पर जगत्स्रष्टा ब्रह्मा जी समाधान न पाकर निरुत्तर हो गये और भगवान की प्रार्थना करने लगे। तब श्रीहरि ने हंस स्वरूप धारण कर सनकादिकों को जो उपदेश दिया वह श्रीमद्भागवत के स्कन्ध में विस्तार से वर्णित किया गया है। जिसे विष्णु यामल में भी कहा गया है, जो निम्न है-

नारायणमुखाम्भोजान् मन्त्रस्त्वष्टादशाक्षर:

इस अष्टादशाक्षर मन्त्र का उपदेश एवं दीक्षा पुष्करारण्य क्षेत्र के इसी पावन स्थल पर भगवान ने हंसावतार धारण कर सनकादिकों को दी थी। इसीलिये श्रीनिम्बार्क तीर्थ के लिये स्वयं श्री महादेव जी ने माता पार्वती जी से कहा है-

निम्बार्कत: परं तीर्थं न भूतं न भविष्यति। अत्र स्नात्वा च पीत्वा च मुक्तिभागी भवेद्ध्रुवम्।।

अर्थात् :- हे! पार्वती इस भूतल पर महान पावन इस निम्बार्क तीर्थ से बढ़कर न कोई और तीर्थ हुआ है, और न इससे बढ़कर कोई और तीर्थ भविष्य में होने वाला है। इस तीर्थ में स्नान और आचमन करने वाला मनुष्य मुक्ति अर्थात् भगवत् प्राप्ति का नि:सन्देह अधिकारी बन जाता है। परन्तु इस निम्बार्क तीर्थ में कालान्तर में घटित एक घटना के बाद से इस तीर्थ क्षेत्र का नाम सलेमाबाद रखा गया। जो निम्न प्रकार से है :-

सलेमाबाद :- वर्तमान में जहाँ आचार्य पीठ ​स्थित है, वहाँ पर लगभग 500 वर्ष पूर्व भयंकर जंगल था। जिसमें कई तरह के हिंसक जानवर निवास करते थे। इसी जंगल में एक सुन्दर आश्रम भी था। जिसमें साधु सन्त निवास करते थे। इन सन्तों को एक दुष्ट यवन फकीर म​िस्तंगशाह ने यहॉँ से भगाकर इस आश्रम पर अपना अधिकार जमा लिया। तथा बाद में यहाँ से होकर गुजरने वाले तीर्थ यात्रियों को तंग करने लगा। उस समय इस मार्ग से काफी तीर्थ यात्री पुष्कर एवं द्वारका जाते थे, क्योंकि इन दोनो धामों को जाने का यह एक मुख्य मार्ग था। एक बार उस दुष्ट फकीर ने इस मार्ग से गुजरने वाले सन्तों के एक दल को अपनी करतूतों से कष्ट पहुँचाना शुरु कर दिया। यहाँ से सन्त किसी प्रकार बचकर मथुरा में श्री हरिव्यास देवाचार्य जी महाराज के पास पहुँचे तथा वहाँ पहुँचकर उन्होनें अपने साथ घटित घटना के बारे में उन्हें जानकारी दी तथा इस स्थान को दुष्ट यवन फकीर म​िस्तंगशाह से मुक्त कराने की प्रार्थना की। महाराज श्री को उस दुष्ट के कृत्यों के बारे में जानकर काफी दु:ख पहुँचा। तब उन्होनें अपने प्रिय शिष्य श्री परशुराम देवाचार्य जी को उस फकीर को भगा कर धर्म प्रेमी जनता को निर्भय कर वैष्णव धर्म प्रचार की आज्ञा प्रदान की। तब श्री परशुराम देवाचार्य जी ने गुरु के चरणों की वंदना कर उनकी आज्ञानुसार पुष्कर परिक्षेत्र के श्रीनिम्बार्कतीर्थ में रह रहे दुष्ट फकीर की ​सिद्धियों को नष्ट कर यहाँ से भागने पर विवश कर दिया। तथा श्रीनिम्बार्कतीर्थ एवं यहाँ से गुजरने वाले तीर्थ यात्रियों को भय मुक्त कर दिया। इस फकीर की कब्र आज भी आचार्य पीठ से दक्षिण दिशा में बगीची वाले बालाजी के मन्दिर के पास विद्यमान है।

इसके पश्चात् श्री परशुराम देवाचार्य जी महाराज ने अपने गुरु श्रीहरिव्यास देवाचार्य जी की आज्ञा पाकर इस स्थान पर आचार्य पीठ की स्थापना की। इन्ही श्री परशुराम देवाचार्य जी महाराज के साथ जुड़ी एक घटना से इस स्थान का नाम श्रीनिम्बार्कतीर्थ के साथ-साथ सलेमाबाद भी रख दिया गया। वो घटना इस प्रकार है :-

बादशाह शेरशाह सूरी के कोई पुत्र नहीं था। अत: बादशाह एक बार पुत्र प्राप्ति की कामना से अजमेर ​स्थित विश्व प्र​सिद्ध ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर आया हुआ था। परन्तु बादशाह को विभि उपायों के बाद भी पुत्र रत्न की प्राप्ति नहीं हुई। इस कारण वह बहुत निराश था। उसकी इसी निराशा को देखते हुये, उसकी ही सेना के सेनापति जोधपुर राज्य के खेजड़ला ग्राम के ठाकुर श्री शियोजी भाटी जो स्वयं श्री परशुराम देवाचार्य जी महाराज के शिष्य थे। उन्हानें शेरशाह सूरी से निवेदन किया कि यदि आप एक बार मेरे गुरुश्री के दर्शन करें तो आपको अवश्य ही पुत्र रत्न की प्राप्ति हो सकती है, ऐसा मेरा विश्वास है। ठाकुर साहब ने बादशाह सलामत को बताया कि आचार्य श्री यहाँ (अजमेर) से मात्र दस कोस की दूरी पर ही ​स्थित श्रीनिम्बार्कतीर्थ में निवास करते हुये सर्वेश्वर प्रभु की आराधना करते हैं।शेरशाह सूरी ने श्री शियोजी के विश्वास एवं पुत्र प्राप्ति की अभिलाषा के कारण श्रीनिम्बार्कतीर्थ चलने का आमन्त्रण सहर्ष स्वीकार कर लिया। तथा यहाँ आकर आचार्य श्री परशुराम देवाचार्य जी महाराज के दर्शन प्राप्त किये। बादशाह शेरशाह सूरी ने आचार्य श्री के चरणों में प्रणाम कर एक स्वर्ण-रत्न जडि़त कीमती दुशाला भेंट ​किया। आचार्य श्री ने निर्विकार भाव से उस बहुमूल्य दुशाले को अपने चिमटे से उठाकर अपने सामने प्रज्वलित हवन कुण्ड़ (धूनी) में डाल दिया। जब बादशाह ने अपने भेंट किये हुये दुशाले को जलता हुआ देखा तो उसके मन में कई प्रकार के विचार उत्पन्न होने लगे। आचार्य श्री ने जब बादशाह के मन के विचारों को अपने योग बल से जाना (क्योंकि आप श्री तो अन्तर्यामी थे) तो आपने उसी चिमटे से हवन कुण्ड़ में से उसी प्रकार के स्वर्ण-रत्न जडि़त विभि प्रकार के दुशालों का ढ़ेर बादशाह के सामने लगा दिया और बादशाह से कहा "इसमे से तेरा जो भी दुशाला हो उसे उठा ले। हमारा तो खजाना यही हवन कुण्ड़ है, जो आता है, हम तो इसी में रख देते है। तू दु:खी मत हो ।" यह चमत्कारी घटना देखकर शेरशाह सूरी श्री परशुराम देवाचार्य जी महाराज के चरणों में गिर पड़ा एवं अपनी गलत भावनाओं के लिये क्षमायाचना करने लगा। तत्पश्चात् आचार्यश्री ने बादशाह की प्रार्थना पर सर्वेश्वर प्रभु का स्मरण कर पुत्र रत्न प्राप्त होने का आशीर्वाद प्रदान किया।

समय आने पर बादशाह को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। तथा उसका नाम सलीम शाह रखा गया। पुत्र प्राप्ति के बाद बादशाह एक बार पुन: अपने लाव-लश्कर के साथ विभि प्रकार की भेंटे लेकर श्री परशुराम देवाचार्य जी महाराज के चरणों में आया। उसने आचार्य श्री के चरणों में बहुत सारे हीरे, जवाहरात एवं स्वर्ण मुद्रायें रख दी। परन्तु महाराज श्री ने उनमे से एक भी वस्तु स्वीकार नही की। तब एक बार फिर बादशाह को अपनी तुच्छता का अहसास हुआ। अन्त में उसने आचार्य श्री के चरणों में अपना ​सिर रख कर यहाँ पर एक ग्राम निर्माण की आज्ञा प्रदान करने की प्रार्थना की तथा उस ग्राम का नाम अपने पुत्र सलीम शाह के नाम पर रखने की स्वीकृति चाही। आचार्य श्री ने इस प्रार्थना को स्वीकार कर लिया। तब से इस ग्राम का नाम श्रीनिम्बार्कतीर्थ के साथ-साथ सलेमाबाद भी पड़ गया। इसके बाद बादशाह ने जाते-जाते इस क्षेत्र की लगभग छ: हजार बीघा जमीन गायों के चरने के लिये आचार्य पीठ को समर्पित कर दी। इसके प्रमाण स्वरूप बादशाह ने ताम्रपत्र प्रदान किया जो आज भी आचार्य पीठ में सुरक्षित है।

विशेष :- राजस्थान में समय-समय पर राजस्थान की देशी रियासतों के अनेक राजवंशों ने भी इस संप्रदाय के प्रति अपनी भक्ति प्रकट की। जयपुर नरेश जगत ​सिंह ने संवत् 1856 में सलेमाबाद आकर आचार्य श्री का आशीर्वाद प्राप्त किया जिसके फलस्वरुप राजकुमार जय​​सिंह का जन्म हुआ, अत: यह राजवंश उन्नीसवीं सदीतक इस संप्रदाय की सेवा में निरत रहा और अनेक मेले आयोजित किये इसका उल्लेख इतिहास में मिलता है।

वर्तमान पीठाधीश्वर (वर्तमान पीठाधीश्वर श्रीराधासर्वेश्वर शरण देवाचार्य जी महाराज) ने भी इसी धरा (श्रीनिम्बार्कतीर्थ, सलेमाबाद) पर जन्म लिया है।

संदर्भ: श्रीनिम्बार्कतीर्थ (सलेमाबाद)

Notable Persons

Population

At the time of Census-2011, the population of Salemabad village stood at 3099, with 581 households.

External links

References