Sarai Sukhi
Sarai Sukhi (सराय सुखी) is a medium-size village in Kurukshetra district of Haryana, under Thanesar Tehsil.
Gotras
Population
(Data as per Census-2011 figures)
Total Population | Male Population | Female Population |
---|---|---|
1769 | 930 | 839 |
History

कप्तान सिंह देशवाल लिखते हैं -
गाँव रानी खेड़ा (दिल्ली), सराय सुखी, होली और लवाणा - इनका निकास गाँव दुल्हेड़ा से एक ही समय हुआ था। इस गाँव की कहानी भी लगभग एक ही है। इस गाँव के बसने वाले 300 वर्ष पहले गाँव दुल्हेड़ा से सन् 1700 के आसपास पलायन कर गये थे।
गाँव दुल्हेड़ा में सन् 1700 में दो परिवारों में किसी बात को लेकर झगड़ा हो गया। यह बाल्याण पाने के व्यक्ति थे। इस पाने में ये परिवार शक्तिशाली थे। आपस के झगड़े में दूसरे पक्ष का आदमी मर गया। गाँव में उग्रवाद फैलने का डर हो गया क्योंकि आपस में लोग धड़ेबन्दी बनाने लग गये थे। यह सब हालात को देखकर गाँव में शान्ति बनाए रखने के लिए और झगड़े का निपटारा करने के लिए गाँव में पंचायत हुई। पंचायत ने यह फैसला किया कि दोषी पक्ष कुछ समय के लिए गाँव छोड़कर कहीं दूसरी जगह पर चले जाएं। बात पुरानी होने के बाद उनको वापिस अपने गाँव में आकर बसना होगा।
गाँव की पंचायत का फैसला मान कर 5 परिवार यहाँ से चल दिए। चौ. गंगाराम रानी खेड़ा गया। चौ. अजीतसिंह और अमितसिंह ने अम्बाला में अपनी कर्मभूमि गाँव होली और लवाणा बसाया। चौ. जकसी राम उत्तरप्रदेश चले गये। चौ. उदयसिंह पानीपत के पास बिहोली गाँव में रुक गये। इन परिवारों में से दिल्ली वालों के परिवार के कुछ आदमी वापिस दुल्हेड़ा में चले गये। बिहोली देशवाल गौत्र का गाँव है।
गाँव दुल्हेड़ा से चलकर देशवाल गौत्र का एक परिवार पानीपत में बिहोली गाँव में कुछ वर्षों तक रहा। यहाँ पर ठीक तरह प्रबन्ध व परवरिश नहीं होने के कारण इस जगह से चौ. उदयसिंह देशवाल अपने कबीले सहित अपना पशुधन लेकर अन्य सुरक्षित जगह की तलाश में चल पड़ा।
पहले कच्चे रोड़ होते थे। जिस रास्ते पर यह परिवार जा रहा था, वह रास्ता लाहौर का कच्चा रास्ता था। इस रास्ते पर यात्रियों के ठहरने के लिए सराय होती थी। थानेसर से 10 किलोमीटर के आसपास भठयारों की एक सराय थी। काम कम चलने के कारण इस सराय के मालिक भी यहाँ से पलायन करना चाहते थे। इस सराय पर देशवाल परिवार ने कब्जा कर लिया और इसी भूमि को अपना उत्तम भविष्य और कर्मभूमि समझकर यहाँ पर यज्ञ हवन करके अपना डेरा डाल दिया। धीरे-धीरे यह बस्ती गाँव का रूप धारण कर गया।
इसी विषय में दूसरा मत यह है कि यह सराय पहले से ही भठयारे खाली करके चले गये थे। देशवाल परिवार ने आकर खाली जगह देखकर अपना अधिकार जमा लिया। एक मत यह भी है कि यह सराय खरीदी गई थी। समय के अनुसार चाहे कुछ भी हुआ हो, सराय पर देशवालों का कब्जा पक्का हो गया।
विशेषताएं -
- चौ. उदेसिंह (उदमी) और सुखराम दो भाई थे। चौ. सुखराम मर्द व्यक्ति (बहादुर) थे। इन्हीं के नाम से सराय सुखी गाँव का नाम रखा गया।
- चौ. सुखराम ने यहाँ पर एक तालाब की खुदाई की थी जिसे सुखी तालाब कहते हैं।
- चौ. तोताराम स्वतंत्रता सैनानी हुए। इन्होंने अनेकों यातनाएं सहीं और सैन्ट्रल जेल दिल्ली में कैद करके डाल दिये। जेल से बाहर आने पर फिर आजादी की लड़ाई जारी रखी।
- नाहड़ के नवाब का चरित्र क्षीण था। इसके साथ महाराजा भरतपुर की लड़ाई हुई। उस लड़ाई में नवाब पठान को देशवालों ने कैद कर लिया। डोहकी गाँव रेवाड़ी (देशवाल) का सिपहसालार था। नवाब को कैद करके ले जा रहे थे, उस समय पर पठानों के सैनिक ने देशवाल सिपहसालार पर तलवार से हमला किया और नवाब को छुड़ाने में कामयाबी मिल गई और नवाब (बलूच पठान) को छुड़ा ले गये। यह घटना सन् 1750 की है। इस गाँव के कई देशवाल जवान अग्रणीय थे। इसके बाद राव तुलाराम ने फिर नाहड़ पर आक्रमण कर दिया था। इस हमले में देशवालों का पूरा सहयोग था। यह विजय मिलने पर देशवालों ने आगे-पीछे से कई अंग्रेजों को काटा था जिसके कारण सराय सुखी गाँव के आदमियों पर अंग्रेजों ने झांसा रोड पर पत्थर का कोल्हू घुमा कर मार दिया था। (यह जनश्रुति के आधार पर है)।
- यह गाँव थानेसर से झांसा रोड़ पर 10 किलोमीटर धुराला गाँव से उत्तर दिशा में बसा हुआ है।
- इस गाँव का क्षेत्रफल 4500 पक्का बीघा जमीन है।
- यह गाँव सन् 1700 में आबाद हुआ था।
- इस गाँव में मन्दिर, चौपाल आदि देशवालों ने बनवाई थी।
- इस गाँव की जमीन में रेलवे स्टेशन है और स्टेशन का नाम धीरपुर है। यह लाइन दिल्ली से अम्बाला जाती है।[1]
Notable persons
External links
References
- ↑ कप्तान सिंह देशवाल : देशवाल गोत्र का इतिहास (भाग 2) (पृष्ठ 127-129)
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