Shekhawati Ke Gandhi Amar Shahid Karni Ram/Ek Mahan Balidan

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पुस्तक: शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम

लेखक: रामेश्वरसिंह, प्रथम संस्करण: 2 अक्टूबर, 1984

द्धितीय खण्ड - सम्मत्ति एवं संस्मरण

नरोत्तमलाल जोशी
14. एक महान बलिदान

नरोत्तमलाल जोशी,

भूतपूर्व न्यायमंत्री,

राजस्थान

महापुरषों के बलिदान

हमारे समाज में उदात्त गुणों और नैतिक मूल्यों का सदा महत्व रहा है। समाज में गुणवान,पवित्र आचरण वाले सत्यनिष्ठ सेवाभावी व्यक्ति को सदा ही श्रदा व सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। उसके व्यवहार व आचरण से जन जीवन में शान्ति और सुख की तरंगे चलती रहती है क्योंकि उनका सारा जीवन लोक कल्याण के लिए ही होता है। ऐसे व्यक्ति यद्पि सर्वभूतहित में रहते हैं परन्तु आसुरी या विरोधी शक्तियां स्वयं उनसे टकराती हैं---संघर्ष करती रहती है। उस संघर्ष में यदि ऐसे सात्विक पुरुषों का पार्थिव कलेवर नष्ट हो जाता है और उनकी हत्या हो जाती है तो भी नैतिक क्षेत्र में उसका प्रभाव कम नहीं होता प्रत्युत् दिगुणित होता है।

महापुरषों के बलिदानों में हमने देखा है कि जहां एक और उनका पार्थिव शरीर नष्ट कर दिया गया है तो दूसरी और उनका नैतिक या आध्यात्मिक तेज पुञ्ज द्विगुणित प्रकाश से ज्योतिर्मय होकर लोक जीवन को प्रेरणा देता रहता है।

श्री करणीराम ऐसे ही देवगुणों से मण्डित व्यक्ति थे, जिनकी 13 मई 1952 को चंवरा ग्राम जिला झुंझुनू की एक ढाणी में कुछ अज्ञानी भूस्वामियों ने गोली मरकर हत्या कर दी थी। श्री करणीराम के साथ उस समय श्री रामदेव सिंह भी मारे गए। ये दोनों मध्यायान्ह के भोजनोपरान्त एक किसान के छप्पर में विश्राम कर रहे थे, कि आतताइयों ने आकर ही इन्हें मार डाला।

श्री करणीराम के बलिदान का प्रभाव

श्री करणीराम की हत्या को आज लगभग 34-35 वर्ष बीत गए। आज


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-II, पृष्ठांत-38

हम उनके बलिदान का प्रभाव झुंझुनू जिले के उदयपुरवाटी तहसील में स्पष्ट तौर से कृषक वर्ग की सम्पनता, समृद्धि, उनके परिवार के बालकों की शिक्षा दीक्षा और निरन्तर हो रहे अभ्युदय के रूप में देख रहे हैं। बहुत से लोगों को आज यह कल्पना भी नहीं हो सकती कि श्री करणीराम जैसे शहीदों और उनके पूर्ववर्ती कार्यकर्ताओं ने किन कठिन और भयंकर परिस्थितयों में इन जागीरदारों के बीच जाकर कार्य किया था और कैसी भयंकर यातनाएं सही थी। वैसे तो इस क्षेत्र के भूस्वामियों के वहां के किसानों पर किये गए अमानवीय अत्याचारों और शोषण की कहानी बहुत लम्बी है परन्तु यहां उन 8-10 वर्षो में हुई कुछ घटनाओं का सिंहावलोकन करेंगे,जिनका अंतिम परिपाक श्री करणीराम जी की हत्या में हुआ।

उदयपुरवाटी क्षेत्र की स्थिति

उदयपुरवाटी का यह क्षेत्र झुंझुनू जिले का सबसे अधिक उपजाऊ भाग है और तत्कालीन जयपुर राज्य ताल्लुका था,जो बाद में तहसील क्षेत्र बना दिया गया। वहां की भूमि तत्कालीन छोटे-छोटे भूस्वामियों की सम्पति थी और छोटे-छोटे टुकड़ों में बंटी हुई थी। इस क्षेत्र में कभी भी भूमि का बन्दोबस्त नहीं हुआ---पटवारी द्धारा फसलों का मूल्यांकन और काश्तकारों का अमुक खेत काश्त करने का कोई रिकॉर्ड कभी नहीं रहा। न कोई लगान कभी मुकर्रर किया गया।

ये भूस्वामी जैसे चाहे भूमि का लगान फसल के हिस्से के रूप में लेते थे और यह हिस्सा भी मनमाना और इतना अधिक होता था कि किसान को उदर पूर्ति के लिए भी कठिनता से अन्न प्राप्त होता था, यदि किसान लगान नहीं देता तो उसे खेत छोड़ने को बाध्य किया जाता और कहीं कहीं तो उसे गाँव छोड़कर भी जाना पड़ता। ऐसे बहुत से विवाद झुंझुनू की निजामत में इस शताब्दी के तृतीय व चतुर्थ दशक में आए है,जिनमें लगान वसूली के प्रयास में काश्तकारों की गोली मारकर हत्या कर दी गई। मारपीट,अपहरण, चोरी डाके व गांव से निष्कासन आदि अपराधों की जो इन भूस्वामियों द्धारा किए जाते थे, उनकी सुनवाई पुलिस व कचहरियों में नहीं होती थी,क्योंकि यह भूस्वामी तत्कालीन जयपुर शासन परिवार के भाई बेटे ही तो थे,परन्तु जहां हत्या या कत्ल हो जाती वहां तो राज्य सरकार को विवशता में मुकदमा अदालत में प्रस्तुत करना पड़ता।


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-II, पृष्ठांत-39

इस क्षेत्र के काश्तकारों में ज्यादातर माली जाट और गूजर हैं जिनके लिए कभी कोई कल्याणकारी कार्य भूस्वामियों द्वारा स्कूल,पाठशाला या ओषधालय आदि के रूप में नहीं किया गया, प्रस्तुत इन भूस्वामियों की यह नीति रही कि इनके गांवो में कोई स्कूल न खोला जावे और यदि कोई स्कूल किसी सेठ या मारवाड़ी रिलीफ सोसाइटी या बिड़ला बन्धुओं द्धारा खोल भी दिया जाता तो इसमें आसामी की सन्तान न पढ़े।

किसी भी सार्वजनिक कार्यकर्ता को वह अपने अधिकार क्षेत्र के गाँवों में प्रचार के लिए नहीं प्रवेश करने देते और यदि आसामी चोरी छुपे प्रजामण्डल या कांग्रेस कार्यकर्ता से सम्पर्क करते और उसकी जानकारी भूस्वामी को हो जाती तो वह भूस्वामी का कोपभाजन होता। ऐसी कई घटनाएं हुई परन्तु एक घटना का विशेष वर्णन आगे किया जाएगा।

प्रजामण्डल का असहयोग आन्दोलन

तत्कालीन जयपुर राज्य में सन 1938 में सेठ जमनालाल जी बजाज के नेतृत्व में प्रजामण्डल ने भाषण करने एवं लिखने की नागरिक अधिकारों के लिए एक असहयोग आन्दोलन किया था। उस आन्दोलन में शेखावाटी कृषकों ने विशेषत : जाट किसानों ने बड़ी संख्या में भाग लिया और जेल गए। उसके परिणामस्वरूप राज्य सरकार ने जयपुर में सीमित मताधिकार के आधार पर रिप्रेजेंटेटिव एसेम्बली और लेजिस्लेटिव कोन्सिल के निर्माण की घोषणा को और उनके चुनाव 15 मई, 1945 को निश्चित हुए। जागीरदारों और मुसलमानों की सीटें सयुंक्त चुनाव में सुरक्षित कर दी गई। उक्त चुनाव के प्रचार के सिलसिले में अपनी उम्मीदवारी के लिए मतदाताओं से वोट की अपील करने के लिए 14 मई, 1945 [1] को मैं गुढा और उदयपुर गया था।

गुढा की सभा में मेरे को तथा मेरे साथी श्री सूरजमल जी गोठड़ा तथा मेरे परम स्नेहभाजन व रिश्तेदार (अब बड़े सर्जन जो उस समय मेडिकल के विद्यार्थी थे) श्री केदारनाथ जी शर्मा को गुढा के बाजार में दिन 3 बजे मीटिंग करते हुए बुरी तरह पीटा और हारमोनियम बाजा, दरी, टेबल व अन्य सामान तोड़कर उठा ले गए। बाद में उदयपुर जाने पर तो वहां इन भौमियों के 15-20 आदमियों ने ऐसा आक्रमण किया कि मैं देव योग से ही बच पाया वरना मुझे जान से मार


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-II, पृष्ठांत-40

दिया जाता। इस सारी घटना का विस्तृत विवरण उस समय के जयपुर के साप्ताहिक लोकवाणी के 30 मई के अंक में प्रकाशित हुआ है।

तत्कालीन जयपुर राज्य का शासन तंत्र भी इन अत्याचारों के खिलाफ कुछ नहीं कर पाया। इन ही दिनों सन 1945 के वर्षो की फसल के समय कार्यकर्ताओं की मण्डली देहातों में प्रचार करने जाती और काश्तकारों को प्रजामण्डल के उद्देश्यों को बतलाती और सदस्य बनाती फिरती थी। नरहड़ के श्री खेतराम जी, तोगड़ा के श्री भैरोसिंह, महेंद्रसिंह, रामदेव जी गीला, श्री ख्यालीरामजी, श्री बूंटी रामजी किशोरपुरा---डूंगरसिंह और कूमास डूमरा के कार्यकर्ता आदि थे। ये लोग उदयपुरवाटी क्षेत्र को छोड़कर सभी जगह जाते।

श्यायी (सेही) से ही एक फौज के रिटायर्ड व्यक्ति थे जिन्होंने अपना नाम स्वामी मिश्रानन्द रख लिया था बड़े उत्साह से गाँवों में घूम घूम कर काश्तकारों में राजनैतिक चेतना का संदेश दिया करते थे। श्री रामदेव जी उन्हें अपने साथ उदयपुरवाटी में प्रचार के लिए ले गए थे। उदयपुरवाटी के क्षेत्र के काश्तकारों ने उनका बड़ा आतिथ्य सत्कार किया। कार्यकर्ताओं को काश्तकार उन दिनों भौमियों के अत्याचारों से रक्षा करने वाला मुक्ति दूत समझते थे।

उक्त स्वामी जी दूध, दही, खीर आदि खाते पीते और स्वागत सत्कार स्वीकार करते हुए एक दिन दुड़िया ग्राम में विश्राम कर रहे थे कि 10-15 लठैत एवं शस्त्रधारी भौमिये वहां आ पहुंचे और स्वामीजी और उनके साथियों को खूब मारा पीटा और स्वामी जी को तुरन्त वह क्षेत्र छोड़ने के लिए बाध्य कर दिया और कभी न आने का वचन लेकर जाने दिया। बाद में स्वामी जी ने बतलाया कि उन्हें लाठियों की चोटों,घूसों और बंदूक के कुंदे से इस तरह पीटा कि सारा असिथपंजर हिल उठा और भयंकर पीड़ा होती रही। कहीं भी शरीर पर खून का या अन्य कोई चोट फूट नहीं निकली। इसकी पीड़ा कई मास तक रही और बराबर याद रही।

इस घटना से प्रायः कार्यकर्ता उदयपुरवाटी क्षेत्र में जाने से कतराते। भूस्वामियों का प्रभाव या आतंक इतना था कि उसके भयानक परिणामों की आशंका


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-II, पृष्ठांत-41

से कोई भी आहत व्यक्ति प्रथम तो पुलिस में रिपोर्ट ही नहीं करता और यदि साहस करके पुलिस थाने में आता तो हतोत्साहित करते --- यदि फिर भी रिपोर्ट होती तो कोई साक्षी उक्त घटना का प्रमाण देने के लिए प्रस्तुत नहीं होता।

यह आतंक का वातावरण काल्पनिक नहीं था वास्तविक था, क्योंकि भौमियां लोग अपने उदयपुरवाटी क्षेत्र में किसी भी ऐसे व्यक्ति या समूह का प्रवेश नहीं करने देते जो काश्तकारों में किसी प्रकार की चेतना या जागृति पैदा करके उनके शोषण को समाप्त कर दे। इस प्रकार की मारपीट करते समय वे साफ तौर से आहत व्यक्ति या समूह को स्पष्ट रूप से बतला देते कि उदयपुरवाटी उनका एकाधिकार का क्षेत्र है, हमारे काश्तकारों को बहकाने या प्रचार करने को जो भी आएगा उसे हम निकाल देंगे या समाप्त कर देंगे।

इस ही प्रकार की एक घटना सन 1946-47 के आस पास हुई। गुढ़ा के पास हुकमपुरा के एक काश्तकार "हरलाल जाट" पर उन्हें यह सन्देह हो गया कि उसकी गतिविधियां विरोधी है और वह प्रजामण्डल या किसान कार्यकर्ताओं से सम्पर्क रखता है। बस एक दिन भौमियों के एक गिरोह ने उक्त हरलाल को जबरदस्ती उड़ा लिया और उसे गायब कर दिया।

हम लोगों ने स्थानीय पुलिस व तत्कालीन जयपुर राज्य के गृहमन्त्री तक इसकी शिकायत की और उसे खोज कराने की मांग की परन्तु पुलिस ने बराबर यही कहा कि ऐसी न तो हमारे थाने में रिपोर्ट की न ऐसी कोई घटना हुई। यहां तक कि पत्नी को तथा उसके सन्तान को पुलिस के सामने प्रस्तुत किया तो भी कोई सफलता नहीं मिली---इस घटना के लगभग 15-20 वर्ष बाद जब परिस्थितयों ने पलटा खाया तो उन भौमियों ने मेरे को उक्त हरलाल के अपहरण व हत्या का सारा विवरण बतलाया और कहा कि वे लोग पुलिस द्धारा पकड़े जाने और कार्यवाही के भय से उसकी लाश के टुकड़े टुकड़े करके उदयपुरवाटी के पहाड़ों की तली में तांबा व अन्य धातु खनिज के लिए खोदे गए कुँओं में डाल दिए थे।

सबसे बड़ी घटना फरवरी 1946 में हमारे चनाणा में किए गए किसान सम्मेलन में हुई। उक्त सम्मेलन का सभापति मैं मनोनीत किया गया था।


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-II, पृष्ठांत-42

उद्धघाटन करने के लिए जयपुर राज्य प्रजामण्डल के तत्कालीन सभापति श्री टीकाराम जी पालीवाल जयपुर से आए थे जो मुख्य अतिथि होकर उक्त सम्मेलन का उद्धघाटन करने वाले थे। लगभग इस क्षेत्र के सारे कार्यकर्ता उस सम्मेलन में उपस्थित थे।

जाट किसान पंचायत शेखावाटी को प्रजामण्डल में विलीन कर दिए जाने के कारण एक पक्ष हम लोगों का विरोधी था जो इस समारोह का विरोधी प्रचारक के रूप में गाँवों में प्रचार कार्य कर रहा था। सभा की कार्यवाही पुरानावास चनाणा पर हुई जो लगभग 2-3 फलांग के फासले पर गाँव से पड़ता था। ज्योहीं सभा शुरू कि चनाण के ठाकुर व उनके आश्रित लोग 20-25 ऊँटो पर तथा 3- 4 घोड़ों पर सवार व 30-40 पैदल चलने वाले बाजा बजाते हुए आए। सब लोग तलवार, बंदूक व लाठियों से सुसज्जित थे। नि:शस्त्र और शान्त जनता पर लाठी, फरसी का बार करना शुरू कर दिया और सभा के मण्डप को तथा हारमोनियम व साजबाज को तोड़ डाला और बंदूक के फायर किए जिससे सीथल गाँव का किसान घटना स्थल पर ही मारा गया और 15-20 किसान बंदूक के छर्रो से घायल हो गए।

सभा में भगदड़ मच गई और भौमियां दरी शामियाना व सारा सामान ऊँटों पर लादकर ले गए। इस सारे दृश्य को पुलिस का थानेदार अपने 5-7 सिपाहियों के साथ मौके पर खड़ा-खड़ा देखता रहा और कोई भी कार्यवाही नहीं की। इस सारी घटना का भी जागीरदारों पर कत्ल का मुकदमा तो पुलिस को बनता ही पड़ा परन्तु पुलिस बंदूक के छर्रों से घायल व आहत किसानों और हम कार्यकर्ताओं पर भी साथ ही में मुकदमा करने में नहीं चुकी।

इन सारी घटनाओं से भौमियों का हौसला बढ़ता जाता था, परन्तु जनता का उत्साह कम नहीं हुआ। भारतवर्ष को अंग्रेजी शासन से 1947 में मुक्ति मिली और देशी राज्यों के विलीनीकरण के बाद में 1949 में वर्तमान राजस्थान का निर्माण हुआ और 1950 में कल्याणकारी राज्य का संविधान लागू होकर 1952 में प्रथम आम चुनावों का समय आने तक राजस्थान में सन 1951 के अप्रैल में श्री जयनारायण व्यास के नेतृत्व में प्रथम लोकप्रिय मन्त्री मण्डल स्थापित हो चुका


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-II, पृष्ठांत-43

था और उसने जागीरदारी अबोलिशन एक्ट सन 51 में ही पास कर दिया था।

प्रथम आम चुनाव1952

उस ही समय 1952 में भारतीय गणतन्त्र के प्रथम आम चुनाव बालिग मताधिकार के आधार पर होना निश्चित हुआ और श्री करणीराम जी को उदयपुरवाटी क्षेत्र में उम्मीदवार नामजद किया गया। विरोध में मण्डावा के जागीरदार के पुत्र श्री देवीसिंह--रामराज्य परिषद से थोड़े ही वोटों से जीत पाए। श्री करणीराम जी ने काश्तकारों की झोपड़ियों में जाकर रात-दिन कांग्रेस का प्रचार किया जिससे काश्तकारों को एक मुक्ति दूत मिला और इस प्रकार निर्भयतापूर्वक किसानों का हिमायती मिला तो उन्हें अन्धकार में एक प्रकाश किरण के दर्शन हुए और एक नई आशा का संचार हुआ।

भौमियों को यह आशा नहीं थी इस तरह निर्भीकता पूर्वक गाँव-गाँव में फिरकर खुले रूप में एक काश्तकार का हिमायती और स्वयं काश्तकार किसानों को जागीरदारों की यातनाओं से मुक्ति दिलाने का साहसपूर्ण कार्य कर सकता था। किन्हीं कारणोंवश वे चुनाव अभियान के मध्य में श्री करणीराम की हत्या नहीं कर पाए परन्तु चुनाव के बाद वे इस अवसर को हाथ से खोना नहीं चाहते थे। सारे क्षेत्र में इस तरह की आशंकाओं का तथा अफवाहों का बाजार गर्म था कि करणीराम को मार दिया जाएगा।

विधान सभा के पहले सत्र की कार्यवाही में श्री करणीराम काश्तकारों की कुछ समस्याएं लेकर जयपुर गए हुए थे और लगभग 5 मई, 1951 को मैं उनसे सी-स्कीम में जहां वे ठहरे हुए थे मिला। मैनें उन्हें कहा कि वे सावधान रहें और अपने आपको भौमियों के हाथों से मारे जाने से बचावें। उन्हें स्वयं भी यह आभास हो रहा था कि उदयपुरवाटी में जाने के लिए तथा काश्तकारों के अभाव अभियोगों की सुनवाई के लिए जाना बड़ा संकटपूर्ण है परन्तु अपने कर्तव्य परायणता से विमुख होकर काश्तकारों से दूर रहना उनकी अन्तरात्मा को ठीक नहीं लगा और उन्होंने यह सब कुछ भगवन इच्छा पर छोड़ कर जाने का निश्चय किया। मैं जयपुर से झुंझुनू उस ही दिन आ गया था और 13 मई, 51 के सायंकाल चंवरा से सूचना मिली कि श्री करणीराम एवं रामदेव की गोली मार कर हत्या कर दी गई है।


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-II, पृष्ठांत-44

इस हत्याकाण्ड से सारा जिला हाहाकार कर उठा। शासन ने आतताईयों को गिरफ्तार करने की चेष्टा की तो फरार हो गए। गुढा और उदयपुरवाटी के पहड़ों में सशस्त्र मोर्चा लेकर बंदूक तलवारों राज्य की पुलिस सामना करने का दुस्साहस करने पर आमादा हो गए। राज्य सरकार ने भी पुलिस के सशस्त्र जवानों की संख्या बढ़ा दी और घेरा डाल दिया परन्तु कुछ बड़े व समझदार जागीरदारों ने परिस्थिति को समझा और बीच बचाव किया और एक बड़ा नरसंहार होते-होते बचा। कथित हत्यारों में गुढा के एक प्रमुख जागीरदार थे जो कई मास तक फरार रहे और अपनी मुक्ति का उपाय करते रहे। आखिरकार बड़ी दौड़धूप और ऊँचे स्तर पर उनका मामला कहीं गया तो वे अचानक झुंझुनू के मजिस्ट्रेट की अदालत में हाजिर हो गए और तत्काल उन्हें जमानत पर भी छोड़ दिया गया।

इससे स्थानीय कारकर्ताओं में विवाद छिड़ गया। आगे चलकर इस ही राजस्थान कांग्रेस के बड़े नेताओं में तथा मंत्रिमण्डल के सदस्यों में ऐसी धड़े-बंदी हुई जिससे राजस्थान की ऊँची राजनीति में बड़े भारी परिवर्तन आए तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री जयनारायण जी व्यास 29 नवम्बर, 1952 को झुंझुनू आए और 30 नवम्बर को उन्होंने चंवरा ग्राम में श्री करणीराम और रामदेव की समाधि स्थल पर श्रद्वापुष्प अर्पित किये। श्री व्यासजी ऐसे मामलों में किसी भी प्रकार की शिथिलता आतताइयों के साथ में नहीं बरतना चाहते थे और इस ही कारण उनसे मतभेद बढ़ने के अनेक कारणों में इस मामले को लेकर एक गांठ और लग गई। अस्तु।

श्री करणीराम जी के बलिदान के स्वरूप सारे क्षेत्र में जागृति की लहर आई। काश्तकारों का भय निरस्त हुआ,भौमियों को सत्ता व आतंक तिरोहित हो गया। आज वहां के किसानों में जो शिक्षा,ज्ञान,समृद्धि और सम्पनता है उसका श्रेय इन दोनों के बलिदानों को है।

यहाँ पर श्री करणीराम जी के बारे में तथा उनके लालन पालन व शिक्षा दीक्षा के बारे में लिखना उचित होगा। श्री करणीराम का जन्म ग्राम भोजासर ठिकाना खेतड़ी में हुआ था परन्तु मातृ वियोग के कारण उनका शैशवकाल अपने


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-II, पृष्ठांत-45

मामा श्री मोहनरामजी चौधरी अजाड़ी बड़ी के यहाँ बीता। श्री चौधरी जी ने ही इनको अपने पास रखा और बी.ए.एल.एल.बी. तक पढ़ा लिखाकर वकील बनाया।

श्री करणीराम मेरे पास सन 1942 के लगभग वकालत में सहयोगी बनकर आए और अपनी प्रखर बुद्धि, कर्तव्य निष्ठा,कठिन परिश्रम व सच्चाई व ईमानदारी के कारण अल्पकाल में ही बड़े कुशल वकील हो गए। उन दिनों में जागीरदारों के पैरवी का भार उन पर ही छोड़ दिया जाता था। सन 1944-45 के लगभग पचेरी के अहीर काश्तकार जो शिवसिंहपुरा नामक एक अलग बास में बस गए थे। उस ग्राम में जागीरदार से संघर्ष में एक काश्तकार बंदूक की गोली से मार दिया गया था और सारे गाँव को बेदखल करने के दावे जो लगभग संख्या में पचास थे और सारे गाँव पर थे, निजामत झुंझुनू में प्रस्तुत किए गए।

मौके पर शीघ्र जाँच करके मामले का निर्णय शीघ्र हो जाए और काश्तकारों को अपने तथा गवाहान के लाने ले जाने में खर्चा न करना पड़े इसलिए एक विशेष न्यायालय पचेरी में भेजकर सुनवाई करने की घोषणा हुई। उसमें काश्तकारों की पैरवी का काम लगभग दो मास तक चला जिसकी सारी पैरवी श्री करणीराम जी ने निःशुल्क की। भयंकर गर्मी में तथा और भोजन की अपर्याप्त स्थिति में तथा आवास सम्बन्धी अन्य घोर असुविधाओं में श्री करणीराम जी ने काश्तकारों को बेदखल होने से बचा लिया परन्तु वे स्वयं बीमार हो गए और महीनों बीमार रहे। डॉक्टरों ने कुपोषण से टी.बी.बतलाई तो लगभग दो वर्ष तक चिकित्सा करवाते रहे और अन्त में जयपुर में टी.बी. सेनिटोरियम में 3-4 मास रहकर स्वस्थ होने पाए।

श्री करणीराम के चरित्र पर उनके मामा चौधरी मोहनराम जी का बड़ा प्रभाव था। चौधरी मोहनराम जी बड़े धीर, शान्तिप्रिय, मृदु स्वभाव, शिक्षा प्रेमी,राष्ट्रवादी प्रगतिशील विचारों के सुलझे हुए व्यक्ति थे। तत्कालीन ठिकाना डूंडलोद के पैतृक रूप में वे मुखिया चौधरी थे और इस ही कारण ठिकाने में आने वाले पण्डित गुणी विद्वानों और चरित्रवान व्यक्तियों के सम्पर्क में रहने से समय के


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-II, पृष्ठांत-46

प्रवाह से पूरे परिचित थे। उनका घर सार्वजनिक कार्यकर्ताओं,किसान प्रचारकों और गुणी लोगों का आतिथ्य केन्द्र बना रहता था। वे अपनी सामर्थ्यानुसार आर्थिक सहायता भी किया करते थे। स्वभाव में सहिष्णुता, मार्दव व ऋजुता के गुण चौधरी जी से श्री करणीराम ने पाए।

अपने विवाह सम्बन्ध से करणीराम 'उदयपुरवाटी' क्षेत्र के काश्तकारों के सम्पर्क में आए, भोड़की के पास गीलों को ढाणी में उनका सुसराल था। वकालत के जीवन में ज्योही उनकी ख्याति फैलने लगी। उनके सुसराल के श्री रामदेव जी व झावरमल जी गीला से उनके सम्पर्क बढ़ते गए और सारे काश्तकारों के वे मुख्य पैरवी करने वाले हो गए। जीवन के अन्तिम दो वर्षो में रामदेव जी उनके साथ छाया की तरह रहे और उदयपुरवाटी के किसानों की समस्याओं को सुलझाने में सहयोग करते रहे। इसके पूर्व श्री करणीराम लम्बी और भयंकर बीमारी से बड़ी कठिनता से छुटकारा पा सके थे।

श्री करणीराम बड़े दयालु और कोमल स्वभाव के थे। वकालत सेवा का माध्यम माना और शोषित पीड़ित मानव की पीड़ा देखकर उनके ह्रदय में करुणा स्त्रोत उमड़ता था। यद्धपि उनका आभिजात्य संस्कार अपने बुर्जुगों से मिले थे परन्तु वे अस्पृश्यता को मानवता का घोर अपमान समझते थे। रेखाराम नाम का हरिजन उनका साथी परिचारक था जो संकट के समय उनका साथी रहा। कभी कभी वह लोगों के बहकावे से रूठ जाता तो करणीराम उसके लिए खाना बनाते,उसके जूठे बर्तन साफ़ करते। इससे उसके मन से हीन भावना तिरोहित हो जाती।

मेरे वकालत के सहयोगी के रूप में उन्होंने मेरे को न केवल सार्वजनिक कार्य करने के लिए भारमुक्त किया अपितु आने जाने वाले अतिथियों तथा मुकदमें वालों को उनकी सज्जनता और निष्चल चित ने आकर्षित किया और वे सदा प्रशंसा के पात्र बने रहे। उनके बलिदान के समय में मेरी दैनिक डायरी में लिखे मेरे आत्मगत उदगार का उदाहरण देकर इस सस्मरण को समाप्त करना चाहूंगा।


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-II, पृष्ठांत-47

"श्री करणीराम की हत्या बड़ी भयावह व आकस्मिक रही। वह बड़ा गुणबान, धैर्यशाली, चरित्रवान, संयमी एवं सहिष्ण,स्वभाव का व्यक्ति था। उसने स्वयं किसी का जी नहीं दुखाया। 4-5 वर्ष पहले उस क्षय की भयंकर बीमारी हो गई थी। उससे वह काफी व्ययभार करके ठीक हो पाया था या यों समझा जाए कि परमात्मा ने उसे साधारण मौत नहीं प्रदान की। यह (उसका) अभिप्रेत था कि श्री करणीराम एक असाधारण और गौरव की मृत्यु पावे, और इसीलिए उसे इस प्रकार की मौत मिली।

श्री करणीराम की मृत्यु से इस जिले का एक रत्न उठ गया वह यदि कुछ समय तक और जीवित रहता तो उसकी प्रतिभा और गुण और विकसित होते, और जो लोग उसके सम्पर्क में आते गए उनका आभास होता गया कि श्री करणीराम मानवता के गुणों से विभूषित है। उनके मामा जिन्होंने बचपन से ही पाला पोषा व शिक्षा दिलाकर बड़ा किया उन्हें इसकी मृत्यु से बड़ा भारी व्याघात व बज्रपात हुआ है, परन्तु ऐसे मरने वाले पीछे वालों की कब परवाह करते है? उनका तो अपने कर्तव्य की और लक्ष्य होता है और उसी ओर चलते रहते हैं चाहे जो कुछ हो अपना जीवन भी उतसर्ग कर देते हैं। समाज के अन्य लोगों को ऐसे प्राणोतसर्ग व बलिदानों से प्रेरणा मिलती है और नए जीवन का संचार होता है। ऐसे महापुरषों के बलिदानों से अति कठिन व पहाड़ से दिखने वाले कार्य भी बहुत सुगम व करतलगत जैसे हो जाते है।

मेरा भी श्री करणीराम से सम्पर्क रहा ---- मेरे साथ रहकर उन्होंने वकालत की, राजनैतिक जीवन में प्रवेश किया और अपने नैसगिर्क गुणों से ऊँचा उठा ओर अपना स्वयं का बलिदान कर हमारा भी अनुकरणीय बन गया। ऐसे हुतात्माओं को शान्ति स्वयं ही वरण करती है। हम केवल एक औपचारिक ढंग से परमात्मा को उनकी आत्मा की शान्ति के लिए प्रार्थना मात्र करते है।

                      "सत्य का मुंह स्वर्णपात्र से ढका हुआ है। 
                        हे ईश्वर! उस स्वर्णपात्र को तूं उठा दे,
जिससे सत्य धर्म का दर्शन हो सके।"

----------- ईशावास्योपनिषद


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-II, पृष्ठांत-48

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  1. टीप:पुस्तक में यह वर्ष 1955 अंकित है जो मुद्रण की त्रुटि प्रतीत होता है. Laxman Burdak (talk) 11:35, 19 May 2019 (UTC)