Shekhawati Ke Gandhi Amar Shahid Karni Ram/Jyada Achchha Hona Bhi Achchha Nahin

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पुस्तक: शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम

लेखक: रामेश्वरसिंह, प्रथम संस्करण: 2 अक्टूबर, 1984

द्धितीय खण्ड - सम्मत्ति एवं संस्मरण

23. ज्यादा अच्छा होना भी अच्छा नहीं

श्री कन्हैयालाल एडवोकेट

यह कहावत मशहूर है कि मनुष्य की सच्चाई, ईमानदारी व कर्मठता उनकी दुश्मन बन जाती है और उसे इस संसार से उठा दिया जाता है। यह कहावत श्री करणीराम पर पूर्णतः लागू होती है। श्री करणीराम को अपने जीवन में काम करने को बहुत ही कम समय मिला। उन्होंने सन 1941-42 में इलाहाबाद महाविद्यालय से एल. एल.बी. की, और 1943 में वकालत करना शुरू किया। उन दिनों में झुंझुनू जिले में श्री नरोत्तम लाल जोशी मशहूर वकील थे और सार्वजनिक नेता भी थे। किसान वर्ग में वे ख्याति प्राप्त थे। श्री करणीराम ने उनके पास रह कर वकालत करने की ट्रेनिंग प्राप्त की और तत्कालीन कानून के अनुसार छः माह तक किसी एडवोकेट के पास ट्रेनिंग लेने पर उसके द्वारा दिये गये प्रमाण-पत्र पर ही वकालत का लाइसेंस तत्कालीन जयपुर रियासत की हाईकोर्ट द्वारा दिया जाता था।

श्री करणीराम को जयपुर से वकालत करने का लाइसेंस सन 1943-44 में मिला, परन्तु वे वकालत श्री नरोत्तम लाल जोशी की देखरेख में रहकर ही करते थे। उन दिनों में भारत के विदेशी शासकों से स्वतंत्र करवाने का आन्दोलन जोरों पर था। महात्मा गाँधी ने 'करो या मरो' का नारा दे रखा था और भारत के सभी प्रमुख नेता महात्मा गाँधी व जवाहर लाल नेहरू, सरदार बल्ल्भ भाई पटेल, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद आदि जेलों में बंद कर दिए गये थे। तत्कालीन जयपुर रियासत में प्रजामण्डल ने अजाड़ी की लड़ाई में भाग महात्मा गाँधी की नीति के अनुसार न लेने का निर्णय श्री हीरालाल शास्त्री के नेतृत्व में लिया था।


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गाँधी जी की स्पष्ट नीति थी कि रियासतों में आन्दोलन न किया जावे, क्योंकि भारत आजाद होने पर रियासतें भी अपने आप आजाद हो जावेगी। गाँधी जी ने स्वायत शासन प्राप्त करने के लिए आन्दोलन करने की छूट दे रखी थी। उक्त जयपुर रियासत के प्राइम मिनिस्टर श्री मिर्जा इस्माईल थे और उन्होने स्वायत शासन स्थापित करने की दिशा में कसम उठाने का आश्वासन दे रखा था और इस सम्बन्ध में असेम्ब्ली व् कौंसिल स्थापित करने की घोषणा कर दी थी। श्री नरोत्तम लाल जोशी, सरदार हरलाल सिंह वगैरह प्रजामण्डल में थे। श्री करणीराम भी प्रजामण्डल में ही थे।

भारत में स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद पहला आम चुनाव राज्य विधान सभाओं व संसद के लिए सन 1952 में होना था। उस वक्त राजस्थान के मुख्यमंत्री श्री जय नारायण व्यास थे। राजस्थान में कांग्रेस चुनाव की तैयारी कर रही थी। श्री करणीराम जयपुर प्रजामण्डल के कांग्रेस में विलीन होने पर जिला कांग्रेस के प्रमुख नेताओं में से थे। श्री नरोत्तमलाल जोशी राजस्थान मंत्री मण्डल के सदस्य थे। झुंझुनू जिले में कांग्रेस की तरफ से संसद व विधान सभाओं के उम्मीदवार खड़े करने का प्रश्न था। उस वक्त सरदार हरलाल सिंह जी राजस्थान कांग्रेस के प्रमुख नेताओं में से थे और जिले के तो एकमात्र नेता थे। सरदार जी श्री करणीराम को विधानसभा के लिए चुनाव में कांग्रेस की तरफ से खड़ा करना चाहते थे।

श्री करणीराम चुनाव में अपने स्वास्थ्य व स्वभाव के कारण चुनाव में खड़ा नहीं होना चाहते थे, परन्तु सरदार जी व कार्यकर्त्ता के दबाव के कारण उन्होंने चुनाव लड़ना स्वीकार कर लिया, सरदार जी ने उन्हें खेतड़ी विधान सभा से चुनाव में खड़ा करने का निश्चय किया। उस वक्त खेतड़ी डबल मेम्बर सीट थी। उनके साथ एक हरिजन उम्मीदवार को खड़ा करने का प्रश्न था, जो श्री करणीराम की इच्छा पर छोड़ दिया गया। श्री करणीराम ने खेतड़ी विधान सभा का व्यापक रूप से दौरा किया और जन सम्पर्क किया। हरिजनों में से पढ़े लिखे उम्मीदवार का मिलना उन दिनों में कठिन था।

अपने जनसम्पर्क के दौरान उन्हें पता चला कि श्री श्योनारायण चमार पढ़ा लिखा है और देहली में सरकारी नौकरी में है। श्री श्योनारायण के घरवालों से


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सम्पर्क करके झुंझुनू बुलाया और उसे चुनाव लड़ने के लिए तैयार किया। श्री श्योनारायण ने नौकरी से इस्तीफा दे दिया और चुनाव के सिलसिले में श्री करणीराम के साथ जनसम्पर्क में शामिल रहा। यह करीब-करीब तय था की खेतड़ी विधानसभा से कांग्रेस की तरफ से चुनाव के लिए श्री करणीराम व श्योनारायण उम्मीदवार होंगे। समय गुजरता गया और सरदार जी की महत्वकान्श्चा बढ़ गयी। वे कार्यकर्ताओ में यह प्रगट भी कर चुके थे, कि वे विधान सभा के चुनाव के बाद कांग्रेस की जो सरकार बनेगी, उसके गृह-मंत्री होंगे और कोट व पेंट भी सिलवाली।

यह कहावत है कि मनुष्य के मन में जब महत्वाकांक्षा की भावना आ जाती है तो वह सुध-बुध भूलता चला जाता है और अपने शुभचिंतकों पर भी अविश्वास करने लग जाता है। यह कहावत सरदार जी पर चरितार्थ सिद्ध हुई। उनके मन में यह भावना आ गई कि अगर श्री करणीराम चुनाव में जीत गये तो वे उनकी इस महत्वाकांक्षा में बाधक हो सकते हैं। इसी इरादे से सरदारजी के इशारे पर जिला कांग्रेस में विरोधाभास हुआ कि श्री करणीराम को खेतड़ी से चुनाव नहीं लड़ने दिया जावेगा। इस विरोध को देखते हुए श्री करणीराम ने चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया और स्पष्ट कहा कि अगर जिला कांग्रेस कमेटी का एक भी सदस्य उनके खिलाफ है तो वे चुनाव नहीं लड़ेंगे, और न टिकट प्राप्त करने की चेष्टा करेंगे। इस स्थिति पर सरदार जी ने चुप्पी साधली। इसी कारण से श्री करणीराम ने खेतड़ी विधान सभा से चुनाव नहीं लड़ा।

दूसरा कारण चुनाव न लड़ने का यह रहा की श्री श्योनारायण को कांग्रेस टिकट पर उम्मीदवार न बनाना तय कर दिया। इसका श्री करणीराम ने विरोध किया और कहा कि वह उनके कहने से नौकरी से स्तीफा देकर आया है और अगर उसे टिकट नहीं दी जावेगी, तो वे भी चुनाव नहीं लड़ेंगे। श्री श्योनारायण की जगह श्री महादेव प्रसाद बंका को टिकट देना जिला कांग्रेस ने तय कर दिया। इसके अलावा संसद के लिए चुनाव में उम्मीदवार खड़ा करने का प्रश्न था। सरदार जी इस मत के थे, इस सीट के लिए किसी पूंजीपति को खड़ा करके चुनाव खर्चा लिया जावे। श्री करणीराम ने इसका विरोध किया और कहा कि इस सीट के लिए आम जनता के आदमी को खड़ा किया जावे। उस वक्त संसद की यह सीट भी डबल मेम्बर सीट थी और गंगानगर व झुंझुनू जिला उसमें शामिल था। एक हरिजन को भी सीट से खड़ा करना था।


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बिड़ला परिवार के श्री घनश्यामदास बिड़ला ने पूंजीपति व उद्योगपतियों को संगठित कर रखा था और वे अपना उम्मीदवार इस सीट पर खड़ा करने के प्रयत्न में थे। इसी कारण से सरदार जी को पूंजीपति व उद्योगपतियों में से कोई उम्मीदवार नहीं मिल रहा था। अन्त में श्री नाहरसिंह जी कांग्रेस के प्रमुख कार्यकर्त्ता थे व नवलगढ़ के निवासी थे, नवलगढ़ के ही मुरारका परिवार में से श्री राधेश्याम मुरारका को चुनाव लड़ने के लिये तैयार कर लिया और सरदार जी ने हाँ कर ली। इस सीट के उम्मीदवार को लेकर भी श्री करणीराम व सरदार जी में मतभेद रहा। परन्तु श्री करणीराम किसी भी कीमत पर सरदार जी का खुला विरोध करके संगठन को नुकसान नहीं पहुंचना चाहते थे। श्री कुम्भाराम आर्य भी सरदार जी के ही मत के थे। अन्त में श्री राधेश्याम मुरारका को संसद के लिए कांग्रेस की तरफ से चुनाव लड़ने को तय कर दिया।

सरदार जी के नवलगढ़ व चिड़ावा दो विधान सभा सीटों से चुनाव लड़ना तय किया और उन्हें टिकट मिल गई। झुंझुनू जिले में झुंझुनू विधान सभा से श्री नरोत्तम लाल जोशी की और खेतड़ी विधान सभा से श्री नाहर सिंह व महादेव प्रसाद को कांग्रेस टिकट मिली। उदयपुरवाटी क्षेत्र में जागीरदारों का काफी असर था और काश्तकार आम लोग उनसे डरे हुए थे। वहां से कांग्रेस के जीतने की आशा तो कतई थी ही नहीं और यह भी डर था कि वहां से चुनाव लड़ने वाले को प्राण भी देने पड़ सकते है। इस सीट के लिए कोई खड़ा होने को तैयार नहीं था। श्री चन्द्रभान भार्गव उन दिनों में जिले में बहुत अच्छे वकील थे और व्यवहार से बहुत सज्जन थे। श्री चन्द्रभान ने उदयपुरवाटी के कुछ गांवों में आकर अपने समर्थन के लिए सम्पर्क किया, उदयपुरवाटी क्षेत्र के उस वक्त कार्यकर्ता भी यह नहीं चाहते थे, कि श्री चन्द्रभान को वहां से कांग्रेस की तरफ से चुनाव लड़ाया जावे।

श्री रामदेव सिंह जो श्री करणीराम के साले के पुत्र थे, बहुत जोशीले व कर्मठ कार्यकर्ता थे। उन्होंने सरदार जी के इस अंत का बहुत विरोध किया और वे किसी


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कोंग्रेसी कार्यकर्त्ता को ही चुनाव में खड़ा करने के पक्ष में थे। इस बात का अब श्री करणीराम को पता चला तो उन्होंने श्री रामदेवसिंह को समझाया कि सरदार जी जिले के एकमात्र नेता है और उन्हें जो आपको राय देनी थी दे चुके और उनके निर्णय को मान लेना चाहिये। इस पर श्री रामदेव सिंह व उनके साथ कार्यकर्त्ता मान गए और चुप हो गए। उन्होंने श्री चन्द्रभान को अपना समर्थन देने का वचन भी श्री करणीराम के कहने पर दे दिया, परन्तु श्री भार्गव साहब खुद ही ने चुनाव लड़ने से इन्कार कर दिया।

इस सीट पर चुनाव में कांग्रेस की तरफ से चुनाव लड़ने को कोई तैयार नहीं हुआ और सीट खाली रहने की हालत हो गई। श्री रामदेव सिंह व उनके अन्य साथी कार्यकर्ताओ ने श्री करणीराम पर दबाव डाला कि वे खुद इस सीट से चुनाव लड़ें और जागीरदारों का सामना करें। श्री करणीराम ने उन्हें स्पष्ट कहा कि इस चुनाव में जीत का कोई प्रश्न नहीं है और इस क्षेत्र में यह चुनाव नहीं है, बल्कि जागीरदार व काश्तकारों का संघर्ष करने को तैयार है तो मैं चुनाव भी लड़ने को तैयार हूँ इसे सब कार्यकर्ताओं ने स्वीकार कर लिया और श्री करणीराम ने चुनाव उस सीट से लड़ा।

चुनाव में जैसी उम्मीद थी, वही हुआ और श्री करणीराम को उम्मीद से कहीं ज्यादा मत मिले और सब यह जानकर आश्चर्यचकित रह गये कि श्री करणीराम केवल 1770 मतों से ही हारे। इस चुनाव यह भी नतीजा सामने आया, कि किसान वर्ग में तेजी से जागृति आई और वे काफी संगठित हो गए। जागीरदारों के प्रबल संगठन व शक्ति के सामने श्री करणीराम के नेतृत्व में भी संगठित हो गए और बराबर की शक्ति के रूप में सामने आये।

श्री करणीराम के सामने चुनाव के बाद प्रमुख समस्या काश्तकारों को जागीरदारों के आतंक व अत्याचारों से छुटकारा दिलाना था। चुनावों के दौरान उन्होंने ग्राम-ग्राम में जाकर आम जनता से सम्पर्क किया था और उस क्षेत्र की समस्याओं का गहन अध्ययन कर लिया था। यद्यपि राजस्थान में जन प्रतिनिधियों की सरकार बन गई थी; परन्तु सरकारी अधिकारियों का रवैया जागीरदारों के ही पक्ष में और किसान विरोधी था। जन प्रतिनिधियों में सत्ता प्राप्ति के लिए आपसी में गुटबाजी पैदा होनी शुरू हो गयी थी।


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श्री जय नारायण व्यास चुनाव हार गये थे। इस पर श्री टीकाराम पालीवाल को विधान सभा में कांग्रेस का नेता चुना गया मुख्यमंत्री बने। उस वक्त यह तय किया गया था, कि श्री जय नारायण व्यास को कहीं से चुनाव लड़ाकर विधान सभा में लाया जावेगा और उन्हें मुख्य मंत्री बनाया जावेगा। इस दौरान श्री पालीवाल मुख्य मन्त्री रहेंगे। बाद में श्री व्यास जी किशनगढ़ विधान सभा से चुनाव लड़कर विधान सभा के सदस्य बन गये। उन्हें मुख्यमंत्री बनाने के प्रश्न को लेकर कांग्रेस में गुटबाजी हो गई और नेताओं का ध्यान गुटबाजी में लग गया। जन समस्याओं की तरफ से इस कारण से नेताओं व संगठन का ध्यान कम हो गया, परन्तु श्री करणीराम पर इसका कोई प्रभाव नहीं था और वे उस क्षेत्र की आम समस्याएं सुलझाने में जुट गये।

उन दिनों में जागीरदार काश्तकारों से मन मानी कूंत के आधार पर काश्तकारों से आधा बांटा कुल पैदावार का लेते थे और जागीरदारों को यह भी पता चल गया था, कि उनकी जागीरें खत्म होगी और वे काश्तकारों को बेदखल कानून से नहीं कर सकेंगे। अतः वे काश्तकारों को जबरन बेदखल उनकी जमीनों से करने लगे और मनमाना लगान वसूल करने लगे। जगह-जगह खून-खराबी हो चुकी थी। किसान वर्ग में कोई मजबूत संगठन नहीं था और इनकी शक्ति अलग-अलग बिखरी हुई थी। ग्राम स्टेज के कार्यकर्त्ता नेतृत्वविहीन थे।


श्री रामदेवसिंह उन दिनों में हिम्मत से उक्त इलाके में कार्य कर रहे थे और उनमें आत्मविश्वास कमाल का था। जागीरदार उन्हें अपना दुश्मन समझने लग गये और उनको खत्म करने की सोचने लगे। जागीरदारों का मजबूत संगठन श्री सूरजबक्स सिंह गुरु के नेतृत्व में था और नवलगढ़ के जागीरदार रावल मदन सिंह का उन्होंने समर्थन था। श्री मदन सिंह काफी होशियार बुद्धिजीवी थे। उनका असर सरकारी अधिकारियों पर काफी था। वे समय को पहचान कर चल रहे थे। भौमियां लोग निरंकुश थे और वे समय को नहीं समझते थे और खून-खराबी व मनमानी पर उतारू थे उनमे खेतड़ी अव्वल नम्बर थी।

उन्हीं दिनों में रबी की फसल तैयार हो गई थी। जागीरदार काश्तकारों से


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आधा बांटा लेने पर उतारू थे। सरकार ने काश्तकारों का लगान पहले फसल का आधा चौथा भाग और बाद में छठा तय कर दिया। काश्तकार पैदावार का छठा भाग कनून के अनुसार चाहते थे, परन्तु भौमियां लोग आधा बांटा लेने पर उतारू थे, और उन्होंने संगठित होकर काश्तकारों को कुओं से फसल ले जाने से रोक दिया। गाँव-गाँव में बन्दूक आदि हथियारों से लैस होकर पहरे पर बैठ गये। जगह-जगह खून-खराबा होना शुरू हो गया। काश्तकारों के श्री करणीराम ने उस इलाके के कार्यकर्ताओं को संगठित किया और ग्राम-ग्राम प्रचार करवाया, कि कानून के अनुसार पैदावार की छठे हिस्से से ज्यादा लगान न दें और वह भी रसीद लेकर। तनाव काफी तेजी पकड़ गया था।

उन दिनों में श्री वी.एन.तनखां साहब जिलाधीश के पद पर थे। राजस्थान सरकार की तरफ से यह आदेश जिलाधीश को दिये कि जागीरदारों व काश्तकारों के प्रतिनिधियों को बुलाकर वे समस्या हल करें। इस इरादे से श्री तनखां ने जागीरदारों की तरफ से बुलाया और ता. 11-5-1952 इस बातचीत के लिए झुंझुनू से ऊंट गाड़ी से रवाना हुये और शाम को अपने ननिहाल अजाड़ी कलां (बास नानिग) में ठहरे। उन्होंने उदयपुरवाटी जाने के अपने इरादे व योजना को अपने मामा श्री मोहनराम को बताया। श्री मोहनराम के पास बराबर समाचार विश्वसनीय सूत्रों से थे, कि अगर करणीराम उदयपुरवाटी जाये तो उन्हें खत्म कर दिया जावे। श्री मोहनराम जागीरदारों के हथकंडो व इरादों को बहुत समझते थे। उन्होंने श्री करणीराम से कहा कि जागीरदारों ने यह बातचीत करने का केवल बहाना किया है और उनका इरादा समझौता करने का नहीं है, और न वे समझौता करेंगे। उनका इरादा तुम्हें व तुम्हारे साथियों को खत्म करने का है।

जागीरदारों की हुकूमत व रोजी जा रही है। वह वक्त वे संगीन से संगीन जुर्म कर सकते हैं। श्री करणीराम का कहना था कि जिलाधीश श्री तनखां ने आपसी समझौते को उन्हें बुलाया है। श्री तनखां का पत्र भी उन्हें बताया। इस पर भी श्री मोहनराम ने कहा कि तनखां तो जागीरदारों के असर में हैं और जागीरदार श्री तनखां को भी धोखा ही देंगे और समझौता नहीं करेंगे। इस पर भी श्री करणीराम ने कहा कि उनके साथी उदयपुरवाटी जा चुके हैं और वे उन्हें नेतृत्वहीन नहीं छोड़


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सकते। इस बातचीत के बाद तुरन्त ही 12-5-52 को ही वापस झुंझुनू आ जावेंगे। इस वक्त तो उन्हें जाना ही पड़ेगा और वे जाने को तैयार हो गये। श्री मोहनराम ने कहा कि तुम वहां से वापस नहीं आ सकोगे और तुम्हारी लाश ही मुझे लानी पड़ेगी। इस पर श्री करणीराम अपने इरादे से नहीं हटे और वे ता. 10-5-1952 को उदयपुरवाटी पहुंच गए।

ता. 12-5-1952 को जागीरदारों के प्रतिनिधियों व काश्तकारों के प्रतिनिधियों के बीच में श्री तनखां ने बातचीत की और श्री तनखां ने यह सुझाव रखा कि इस साल काश्तकार पैदावार का चौथा भाग लगान के रूप में दे देवें और आईन्दा जैसा कानून है, उसकी पालना की जावेगी। श्री करणीराम खून-खराबी से बचना चाहते थे। वे काश्तकारों से पहले ही तय कर के गये थे, किवे जो भी बात समझौते में मंजूर करेंगे, वह उन्हें मान्य होगी। आपसी बातचीत हुई, वहां पर जागीरदारों की तरफ से कुछ आदमियों से परिचय करवाया कि श्री करणीराम ये है। वे आदमी कहीं बाहर के थे।

श्री करणीराम ने काश्तकारों की तरफ से उस साल पैदावार का चौथा हिस्सा देना स्वीकार कर लिया परन्तु शर्त यह थी कि सरकारी अधिकारी मौके पर जाकर फसल का चौथा भाग तुलवा देंगे व उसकी रसीद काश्तकारों को दिलाई जावेगी। इस बात को जागीरदारों ने नहीं माना और आगे विचार कर के जवाब देने को कहा। इस पर उक्त बैठक बिना निर्णय के खत्म हो गई। बैठक के बाद ता. 12-5-1952 को श्री करणीराम झुंझुनू आने को तैयार हुये और रात को श्री चन्द्र सिंह वकील के मकान पर ठहरे। रात को ही यह समाचार आया कि जागीरदार लोग काफी संख्या में चंवरा इकठ्ठे हो गए है और वे काश्तकारों के अनाज को खेतों में जबरन उठायेंगे। काश्तकार भी काफी तादाद में वहां पर इकठ्ठे हो गये।

यह भी अफवाह थी कि श्री रामदेवसिंह को पुलिस ने जागीरदारों के इशारे पर गिरफ्तार कर लिया। इस सब अफवाहों को सुनकर श्री करणीराम ने झुंझुनू जाने का कार्यक्रम खत्म कर दिया और चंवरा जाकर स्थिति का पता लगाने व सुलझाने के इरादे से कार्यक्रम बना लिया। वे ता. 12-5-52 को ऊंट गाड़ी से चंवरा के लिये रवाना हो गये। उस रोज रात को वे कालका ढाणी में रुके। वहां


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उन्हें पता चल गया था, कि जागीरदार व काश्तकार काफी इकठ्ठे हो गये थे और पुलिस फोर्स भी काफी तादाद में वहां है। पुलिस श्री रामदेव सिंह व उनके साथियों को जबरन वहां से गुढा ले गई और छोड़ दिया। ता. 13-5-52 को सुबह श्री करणीराम चंवरा पहुंच गये। श्री रामदेव सिंह व इलाके के अन्य कार्यकर्त्ता भी उनके चंवरा जाने की बात सुनकर चंवरा पहुंच गये।

ता. 13-5-1952 की सुबह करीब बारह बजे तक उस इलाके के काश्तकारों से बात की और कुल हालात को समझा। उन्होंने वहां पर मौजूद पुलिस के थानेदार से बातचीत की और पहले दिन की घटना की जानकारी की, तो थानेदार जी ने बताया कि जागीरदार काफी तादाद में इकठ्ठे हो गये थे और श्री रामदेवसिंह व उनके साथी कार्यकर्ताओं को मारने पर उतारू थे। इस स्थिति को देखते हुये उनके प्राण रक्षा के लिए पकड़ कर उनकी इच्छा के खिलाफ गुढा ले जाकर छोड़ दिया गया। इस बात से श्री करणीराम ने थानेदार जी व पुलिस रवैये से नाराजगी प्रकट की और कहा की उन्हें कार्यवाही तो शान्ति भंग करने वालों के खिलाफ न करके उलटे शान्तिप्रिय आदमियों के खिलाफ करने में भूल की है और इससे जागीरदारों के मनोबल को बढ़ावा मिला है और कानून व्यवस्था भंग होने का अन्देशा बढ़ता है।

श्री करणीराम ने काश्तकारों को समझौते आदि की भी जानकारी दी और शान्ति बनाये रखने को कहा। इसके बाद धूप तेज हो गई और श्री करणीराम व रामदेवसिंह सेडू गुजर की ढाणी में एकान्त में विश्राम करने को चले गये। सेडू गुजर की अकेले की ही वह ढाणी थी और उसमे उसके घरवाले ही रहते थे। अन्य पुलिस सेडू गुजर की ढाणी से करीब 200 गज की दूरी पर ही रुक, बड़ के पेड़ के नीचे केम्प लगाए हुए थी। श्री करणीराम व रामदेवसिंह जब सेडू गुजर की ढाणी में आराम कर रहे थे, उस वक्त गोरधन सिंह नामक जागीरदार पुलिस कैम्प पर आया और वहां से करणीराम के आने व विश्राम के स्थान की जानकारी करने के बाद चला गया।

जागीरदार अपनी योजना व षड्यंत्र के अनुसार श्री करणीराम व श्री राम-


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देवसिंह को खत्म कर देना चाहते थे और इसी इरादे को कार्यरूप में परिणित करने के लिए उनके आने व ठहरने के स्थान की पूर्ण जानकारी करके गोरधन सिंह चला गया। इसके कुछ देर बाद ही करीब तीन बजे शाम जागीरदार बंदूक, तलवार, भाले आदि से सज्जित होकर काफी तादाद में आये और सेडू गूजर की ढाणी के सामने खड़े हो गये। सेडू गूजर की लड़की श्रीमति नारायणी देवी ने जागीरदारों को आते देख लिया था और इसकी सूचना श्री करणीराम व रामदेव सिंह को दे दी और उन्हें भाग जाने या उनके घर में ही छुपने को कहा। श्री करणीराम ने यह बात नहीं मानी और उनका विश्वास था, कि जब समझौते की बात चल रही है तो मारने का प्रश्न ही नहीं था और उनको मारने से उनके हितों का कोई फायदा होने के बजाय अहित होगा। इसके अलावा वे कायरों की तरह से भागना भी नहीं चाहते थे।

श्री करणीराम का यह मानना था, कि सम्मान से रहने के लिए कभी-कभी मरना भी मनुष्य को पड़ता है और इसके लिए वे तैयार थे। अन्त में जागीरदार सेडू की ढाणी में घुसे और चारपाई पर निहत्थे सोते हुये श्री करणीराम व श्री रामदेव सिंह को उन्होंने बंदूक से खत्म कर दिया। मौके पर ही उसी वक्त उनके प्राण निकल गए। इसके बाद जागरीदार लोग वहां से भाग गये। पुलिस जो वहां से करीब दो सौ गज पर ही थी। मौके पर कुछ देर कर के वर्दी आदि पहनने का बहाना करके पहुंची और मौके पर कागजी कार्यवाही करती रही। कातिलों का पीछा तुरन्त ही नहीं किया और उनको फरार हो जाने का अवसर मिल गया। वहां के आम लोगों का मानना था, कि पुलिस भी जागीरदारों की तरफदारी कर रही थी। इस धारणा की बाद के पुलिस रवैये से भी सत्य होने का ही प्रमाण मिलता है।

इस हत्या की बात बिजली की तरह चारों और फैल गई और आस-पास के काफी काश्तकार व अन्य लोग वहां पर इकट्ठे हो गये। पुलिस अधिकारी व उपजिलाधीश श्री रामेश्वर दयाल गुप्ता थे, मौके पर पहुंच गये। काश्तकार व आमजनता में भी उग्र रूप से जोश जागीरदारों के खिलाफ फैल गया। वे काफी उत्तेजित थे।

श्री करणीराम व रामदेवसिंह की हत्या करने के समाचार बहुत पहले से फैले हुए थे। श्री नरोत्तम लाल जोशी ने भी इसकी जानकारी श्री करणीराम को दे दी थी


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और उन्हें वहां जाने से मना किया था। उनके मामा श्री मोहनराम ने भी रोका था, और स्पष्ट कह दिया था कि वह इस बार वहां से वापस जिन्दा नहीं आवेगा। जिला अधिकारियों ने भी जागीरदारों के इस षड्यंत्र की जानकारी दी जिलाधीश श्री तनखां ता. 12-5-1952 को ही उदयपुरवाटी से करीब बारह बजे दिन को झुंझुनू पहुंचे थे।

उस वक्त मैं, श्री शिवनाथ सिंह व श्री भागीरथमल स्वामी पैदल अदालत से, अदालत का समय खत्म होने पर घर आ रहे थे। रास्ते में श्री तनखां मिले और उन्होंने हमसे कहा कि वे श्री करणीराम को उदयपुरवाटी से तुरन्त बुलालें वरना जागीरदार उनकी हत्या कर देंगे। वे अपनी जीप देने के लिये तैयार थे परन्तु हमने मना कर दिया और कहा कि कानून व्यवस्था रखना आपका काम है और उनके जीवन की रक्षा करना भी आपकी जिम्मेदारी है। इस पर वे वहां से चले गए और हम लोग घर आ गए।

शाम को मैं व श्री शिवनाथ सिंह बाबूलाल जलेबी चोर के मकान पर सोने की तैयारी कर रहे थे। श्री बाबूलाल का मकान किराया लेकर श्री करणीराम व हम लोग रहते थे। श्री करणीराम की धर्मपत्नी श्रीमति चावली देवी भी वहीं पर थी। उस वक्त श्री नरोत्तमलाल जोशी ने हमे तुरन्त ही बुलाया। हम लोग जोशी जी के मकान पर गए। वहां पर जोशी जी व नगर के काफी कार्यकर्त्ता बैठे हुए थे। उनके चेहरे उतरे हुए थे। हमारे चेहरों को देखकर जोशी जी को भान हो गया कि श्री करणीराम व श्री रामदेव सिंह की कत्ल का पता हमें नहीं है। उन्होंने काफी सोच समझ कर व हमारी हालत को देखकर यह दुःखद सूचना दी। हम यह सुनकर गुम-सुम हो गए और न बोल सके न रो सके। जोशी जी ने हमे सांतवना दी। हमने यह समाचार उनकी पत्नी को नहीं बताया परन्तु वह समझ गई कि कोई अनहोनी घटना उनके पति के साथ हुई है। हमने उनसे इतना ही बताया कि चंबरा में झगड़ा हो गया है और काफी लोग घायल हो गये हैं। श्री करणीराम व श्री रामदेव सिंह के घायल होने का समाचार है। अतः हम इसी वक्त वहां जा रहे है। उसने हमारी बातों पर विश्वास कर लिया।

हम लोग व जिलाधीश, पुलिस सुप्रिडेंट जीप से चंवरा सुबह आठ-नौ बजे


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पहुंचे। वहां पर हजारों की संख्या में जन समूह इकठ्ठा था। हम लोगों ने श्री करणीराम व श्री रामदेव सिंह की लाशों को उन्हीं चारपाईयों पर लुढ़का देखा।

उस वक्त जिलाधीश श्री तनखां का रवैया अखरने वाला था। वे बाहर काश्तकारों को धमका रहे थे, कि तुम लोग खेतों से फसल उठाने इकठ्ठे हुए हो और जब तक फैसला न हो नहीं उठा सकोगे। वे यह प्रकट करना चाहते थे कि श्री करणीराम व श्री रामदेव सिंह के बहकावे पर काश्तकार बिना बँटाये जागीरदारों को दिये फसल उठाना चाहते थे। इस पर जागीरदारों से झगड़ा हो गया और श्री करणीराम व श्री रामदेव सिंह मारे गये। उनका रवैया पूर्णतः जागीरदारों के पक्ष में था।

हम लोग उनकी हत्या के दुःख में दुःखी थे और रोने से ही फुरसत नहीं थी। इतने में ही जयपुर से श्री हरलाल सिंह, श्री कुम्भाराम व पुलिस के आई.जी.वहां पर आ गए। श्री हरलाल व श्री कुम्भाराम ने उत्तेजित जन समूह का शान्ति बनाये रखने व समझ से काम लेने की अपील की जन समूह ने मान ली। पुलिस के आई.जी.ने श्री तनखां से अलग ले जाकर बातें की। उनमे क्या बातें हुई उनकी जानकारी तो हमें नहीं हो सकी, परन्तु आई.जी. के चेहरे से स्पष्ट था कि वे श्री तनखां साहब के रवैये को गलत बताया और उन्हें जोश से धमकाया तक था।

आई.जी.ने मामले की जाँच कर के कातिलों को जल्दी से जल्दी कानून के हवाले करने का आश्वासन दिया। इसके बाद जरूरी कार्यवाही करने के बाद श्री करणीराम व श्री रामदेव सिंह की लाशों को लेकर उसी रोज झुंझुनू पहुंच गये और लाशों को विद्यार्थी भवन झुंझुनू में रख दिया। ता. 14-5-1952 को उन दिनों शहीदों का अन्तिम संस्कार विद्यार्थी भवन में कर दिया गया। इस तरह इन दोनों महान व्यक्तित्व के धनी नेताओं का जीवन इस संसार से खत्म हो गया और वे शहीद हो गए।

इन दोनों शहीदों की कत्ल का मुकदमा दर्ज हुआ और कार्यवाही शुरू हुई। काफी लम्बे अर्स तक कातिल गिरफ्तार नहीं हुए। बाद में चालान आदि की खानापूरी भी हुई। इस केस के बारे में सच्चाई प्रकट करना उचित नहीं समझता क्योंकि सच्चाई सामने रखने से कांग्रेस के तत्कालीन नेता व मंत्रिमण्डल के ज्यादातर सदस्यों


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-II, पृष्ठांत-98

के काले कारनामे नंगे हो जावेंगे और देखकर हैरान हो गया, कि आपसी सत्ता प्राप्ति के संघर्ष में नेता लोग कितने निम्न स्तर तक जा सकते है ओर वे ही उनको समय समय पर श्रद्धांजलियां अर्पित कर के राजनैतिक लाभ उठाते रहे है। सच्चाई को सामने लाने से समाज के मौजूदा रवैये को देखते हुए मैं उचित भी नहीं समझता हूँ।

श्री करणीराम जिन आदर्शो व समाज सुधार के लिए जिए व मरे वे अब राजनैतिक माहौल लौप होता जा रहा है। आज दहेज, जेवर प्रथा आदि फिर जोरों पर है और मानवता की मान्यतायें खत्म हो रही हैं। सत्य का स्थान झूठ ने ले लिया है। भ्र्ष्टाचार, ब्याज, राजनीति आदि जीवन का भाग बन चुकी है और समाज के रग-रग में व्याप्त है। ऐसे समय में श्री करणीराम जैसे नेता की सख्त जरूरत है।


"अगर तुम्हारा अहंकार चला गया है तो किसी भी धर्मपुस्तक की एक भी पंक्ति बांचे बिना जहां बैठे हो, मौक्ष प्राप्त हो जायेगा।" : विवेकानन्द:


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-II, पृष्ठांत-99

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