Shekhawati Ke Gandhi Amar Shahid Karni Ram/Osaf Sirat yani Halat Jindagi Karni Ram

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पुस्तक: शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम

लेखक: रामेश्वरसिंह, प्रथम संस्करण: 2 अक्टूबर, 1984

द्धितीय खण्ड - सम्मत्ति एवं संस्मरण

24. ओसाफ सीरत यानी हालात जिन्दगी व गुण स्वर्गीय श्री करणीराम जी एडवोकेट अमर शहीद
फजलुल रहमान शेख फारुखी

स्वर्गीय श्री करणीराम जी एड़वोकेट ग्राम भोजासर जिला झुंझुनू के निवासी थे, जो मान्य हाईकोर्ट के सनद याफ्ता थे --- डिसिट्रक्ट झुंझुनू की कोर्ट में वकालत कर रहे थे। उस वक्त अदालतों में उर्दू पड़े हुए मोहर्रिर की तलाश थी। मैं भी रोजगार की तलाश में था। मैनें उनसे सन 1942 ई. में उनकी सेवा में बतौर मुन्शी के रहने की रुवाहिश की तो मुझे उन्होंने अपनी सेवा में रखना स्वीकार कर लिया था।

स्वर्गीय श्री करणीराम जी बहुत होशियार काबिल एडवोकेट थे। क़ाबलियत झुंझुनू बार रूम के वुकालय साहबान उनकी काबिलियत की तारीफ़ करते थे। स्वर्गीय श्री करणीराम जी को उनकी काबिलियत को देखते हुये श्री नरोत्तम लाल जी जोशी एडवोकेट झुंझुनू ने अपने साथ वकालत के कार्य में मुकदमात की पैरवी में शरीक कर लिया था। श्री हरनन्द जी एडवोकेट अजाड़ी वाले भी वकालत के कार्यों में उनके शरीक रहे थे।

स्वर्गीय करणीराम जी बहुत खुश मिजाज व नेक अखलाक व रहमदिल थे। कमजोरों गरीबों की बहुत मदद करते थे। दुखियों के दुःख, तकलीफ के हालात गौर से सुनते थे। उनकी गरीबी कमजोरी तंगदस्ती पर रहम करते थे।

कोई शख्श पहले मुकदमा पैरवी के लिए आता था तो अपनी फीस वकालत के लिए किसी को तंग व मजबूर नहीं करते थे। कोई गरीब जो फीस देते ले लेते थे। न मिलने पर भी पैरवी कर देते थे, बल्कि गरीब व कमजोर के लिये तो अपने पास से मुकदमे में खर्चा कर देते थे, और वह गरीब दौलत मन्द को एकसा ख्याल करते थे। सबकी दिल जोई तसल्ली पूरी हमदर्दी करते थे।


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-II, पृष्ठांत-100

स्वर्गीय करणीराम जी के पास मुकदमात इस कदर हो गये थे, कि उनकी डायरी तारीख पेशी के दो दो पत्रे एक तारीख के भर जाते थे। स्व. करणीराम जी दिनरात मुकदमात में मेहनत करते थे, बहुत मेहनती जफ़ाकश थे। अगर कोई गरीब पहले मुकदमा फीस माफ़ करवाता था, तो हंसकर चेहरे पर बिला शिकन डाले फीस माफ़ करके पैरवी कर देते थे। वादा करके मुकरते नहीं थे।


स्व. करणीराम जी अपने दिल में कोई भेद भाव जाती-वाद नहीं रखते थे। सबकी अपना ख्याल करते सबसे प्रेम करते थे। सबका भला चाहते थे।

मिसाल के तौर पर अर्ज करता हूँ।

कस्वा बगड़ जिला झुंझुनू के एक श्री लुकमान नामी लुहार को उनके दुश्मनों ने फरसी आदि से सख्त मजरुब कर दिया था, उसके सर व शरीर से काफी खून जारी था। खून आलूदा कपड़े थे। उसकी हालत जरबाट से बहुत नाजूक थी। बचने की उम्मीद नहीं थी। महोम्मद इसहाक लुहार निवासी बगड़ को वकील साहब के मकान पर लाया गया।

उसकी हालत को देखकर अपने दफ्तर से बाहर आ गये, फ़ौरन क़ानूनी कार्यवाही पुलिस में जाकर कराई अस्पताल में भर्ती कराया। लुकमान गरीब कमजोर मजदूर आदमी था। उसकी औरत व दो बच्चे साथ आये थे। उनका रोना तड़पना देखकर उन पर रहम आ गया, बल्कि आखों में आसूं भी आ गए। उनको तसल्ली दी और अपने पास से पचास रूपये दिए और जब तक लुकमान अस्पताल में जेर इलाज रहा, उसकी खबर गिरी करते थे।

दिन रात की मेहनत मुखवाकत मुकदमात की पैरवी की भाग दौड़ में उनकी तंदुरस्ती पर बहुत गहरा असर पड़ा और सन 1942 ई. में ज्यादा बीमार हो गए थे। इलाज कराने चले गए थे। बाद इलाज तंदुरस्त होने पर अपना कार्य वकालत फिर करने लग गए थे।

सूरजगढ़ के श्री चिरंजीलाल बोहरा ने एक असगर नीलगर पर दुकान खाली कराने व उसके जिम्मे कर्जा होने के बाबत दावे किये असगर नीलगर पैरों से अपाहिज कमजोर, बूढ़ा विकलांग था। उसके घर में कोई कमाने वाला नहीं था, न कोई लड़का था। वह जब कोर्ट में आता था, उसके साथ उसकी एक छोटी लड़की आती थी। वह अपने घर से उनको खाना खिलाते थे। वापसी पर खर्चा किराया पास से देते थे।


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-II, पृष्ठांत-101

गालेबन सन 1945 ई. में किसानों पर बेदखली के मुकदमात के लिए जयपुर सरकार से कार्यालय इन्तेक्जेकमेन्ट व स्पेशल ऑफिसर मुकर्रर किये थे, छोटे छोटे गरीब किसानों नीचे तबके के लोगों पर ही जागीरदारान ठिकानेजात भौमियां की तरफ से बेदखली के दावेजात किये गए। उन मुकदमात में उन गरीब कमजोर तबके के लोगों के पैरवी बिना फीस नीचे की अदालत से अपील तक की।

स्व. करणीराम जी जवानुल उमर बहुत सजींदा अकलमंद मोहजबहस्ती थे। अमन व सलाहत पसन्द थे। सबका भला चाहते थे। मुकदमात में फरीकें को समझाकर बाहमी फैसला कर देते थे। लोगों के इस तरह तबाही से बचा देते थे। उनकी और बातें बहुत सी नेकी हमदर्दी की है, कहां तक बयान करूं।

स्व. करणीराम जी को खुदा ने अपनी मखलूक में अपने बन्दो के साथ नेक सलूक व हमदर्दी के लिए भेजा था। बाद में जल्दी ही अपने प्यारों व नेक शहीदों में दाखिला करके मई सन 1952 में शाहदत का दर्जा देकर अमर शहीद कायम कर अपने घर बुला लिया। उनकी जुदाई का सदमा मेरे दिल पर बहुत


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-II, पृष्ठांत-102

बड़ा गम है, जो मरते दम तक याद रहेगा। मैंने जो बातें उनके लिए बयान की है सही व सच है ,मैं बहुत अच्छी तरह वाकिफ हूँ। उनकी सेवा में रह कर तमाम हाल देखा है। मैंने कोई झूठ बात मन गड़त बयानी नहीं की है।

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"हमारे शहीद भाई हम में से एक है, जिनके नाम इंसानों के पास नहीं, परमात्मा के पास रहने वाले है। "


विनोबा


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-II, पृष्ठांत-103

नोट - निम्न पृष्ठ 104-110 पहले छप चुके हैं.


एक उदार ह्रदय और शिक्षा-प्रेमी मानव (देखें पृष्ठ 68)

चौधरी रामलाल सिंह, भोजासर

श्री करणीराम एक शिक्षा-प्रेमी और उदार ह्रदय व्यक्ति थे। वे भोजासर में जन्मे थे, व्ही स्थान उनका पैतृक स्थान था, अतः इस स्थान की उन्नति में स्वाभाविक रूप से वे बहुत दिलचस्पी लेते थे। वकालत झुंझुनू में करते थे, वहीं रहते थे, पर बीच बीच में गाँव की भी बराबर सर संभाल करते थे। गाँव में आते तो सभी लोगों से दुःख सुख की चर्चा करते ओट जहां तक हो सकता अपनी तरफ से पूरी मदद करते।

अन्य गाँवो की तरह पिछड़ापन लिए हुए भोजासर का गाँव था। अधिक बस्ती किसानों की थी। जागीर जुल्म का शिकार यह गाँव भी था, पर अन्य ठिकानों की अपेक्षा खेतड़ी का शासन आगे चलकर अधिक उदार हो गया था। वर्षों से चले आते हुए सामाजिक जीवन का पिछड़ापन लिए हुए लोग यहां भी पारस्परिक जीवन जीते आ रहे थे। आसपास के विकसित जीवन की खबरें ग्राम में आती रहती थी तथा इन्हीं बातों के कारण लोगों के मन में उन्नति की और एक स्वाभाविक सम्मान हो चला था।

उन दिनों बिरला जी ग्राम-ग्राम में पाठशाला खोलकर ग्राम्य जीवन में शिक्षा प्रसार का प्रयत्न कर रहे थे। जागीरदार शिक्षा प्रसार के प्रति जरा भी साथ नहीं देते उल्टा उसमे बाधक बनते थे। बड़ी मुश्किल से स्थान मिलता और अध्यापन की व्यवस्था होती थी। लोगों के मन में भी शिक्षा के प्रति अधिक रूचि न थी, अतः मुश्किल से लड़के पड़ने आते।


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-II, पृष्ठांत-104

मुकुन्दगढ़ के मुरारका बसंतलाल जी की तरफ से भी ग्राम्य जीवन में शिक्षा प्रसार के प्रयत्न हो रहे थे। कानोडिया जी की भी स्कूल चलती थी। भोजासर में मुरारका जी की तरफ से के छोटी स्कूल चलती थी। इसमें उनकी तरफ से 15 रूपये महीने स्कूल के लिए मिलते थे। एक कच्ची खुड्डी में स्कूल चलती थी, ऊपर कच्चा छप्पर था। गाँव के कुछ बच्चे पढ़ने आते थे।

उन दिनों शिक्षित अध्यापक मिलना भी मुश्किल था। पास ही के चूड़ी अजीतगढ़ में रहने वाले भींवजी ब्राह्मण स्कूल में अध्यापक थे। स्कूल चौथी कक्षा तक चलती थी। पंडित जी स्वयं कम पढ़े लिखे थे। यह स्कूल सन 1929 में गाँव में स्थापित की गयी।

गोठड़ा गाँव में सन 1938 में एक बड़ी मीटिंग हुई थी। चौधरी पृथ्वी सिंह गोठड़ा के ही थे और वे एक निर्भीक कार्य करती थे। वहां एक समझौता वार्ता किसानों और जागीरदारों के बीच हो रही थी। किसानों के प्रतिनिधि सरदार हरलाल सिंह थे तथा जागीरदारों में रावल मदन सिंह अन्य सरदारों के साथ थे। इस मीटिंग की अध्यक्षता उत्तर प्रदेश के असेम्ब्ली सदस्य विजयपाल सिंह कर रहे थे। इस मीटिंग में करणीराम राधाकिशन जयपुर में भाग लेने आये थे।

मीटिंग में भाषण देते हुए सरदार हरलाल सिंह ने कहा कि इन लोगों से समझौता हो सकता है। रावल मदन सिंह नई रोशनी के माने जाते हैं, पर इन्होने शेखसर की स्कूल में ढीरे लगवा दिए। इन्होने मि. यंग पुलिस इन्स्पेक्टर जनरल से इस बात को नोट करने के लिए कहा। डूंडलोद ठाकुर ने दूड़ाना में चल रही स्कूल बन्द करवादी। लूंग फूस पानी में से भी ये आधा उठा लेते हैं। किसान तरसता रह जाता है।

बूढ़े बड़े लोग जो प्रायः अनपढ़ ही थे, वह मानने लगे थे की शिक्षा आवश्यक है। बच्चों में भी स्कूल जाने की होड़ आगे चलकर हो चली थी। इन कारणों से ग्राम की वह छोटी सी पाठशाला दिनों दिन उन्नति करने लगी। जागीरी गाँव था, पर अधिक बस्ती जाटों की होने तथा खेतड़ी ठिकाने के अधिक उदार होने के कारण स्कूल के सामने बाधाएं भी और स्थानों की तरह नहीं थी।


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-II, पृष्ठांत-105

स्कूल के संचालन के लिए ग्राम के लोगों की छोटी सी समिति बनी हुई थी। इस समिति के मंत्री चौ.कालूराम थे। ये ढलती उम्र के शिक्षा में रूचि वाले उत्साही व्यक्ति थे। स्कूल के लिए खुड्डी की व्यवस्था ग्राम ने ही की थी और स्कूल के पानी की व्यवस्था के लिए डोल, बरी, स्टेशनरी, आदि के खर्चो की व्यवस्था भी समिति की तरफ से होती थी। समिति अपनी तरफ से 15 रूपये माहवार का खर्चा जुटाती और जैसा कि ऊपर कहा गया है 15 रूपये मुरारकाजी की ओर से मिलने इस प्रकार मिले जुले प्रयत्न तथा गाँव वालों के उत्साह से एक छोटी सी स्कूल गाँव में निरन्तर प्रगति करने लगी।

एक दिन की बात है कि चौ.करणीराम जी भोजासर में होली के समय आये। उन दिनों गाँव में अधिकांश घर कच्चे ही थे। होली दीपावली आदि त्योहारों पर लोग अपने घरों को लीप पोत कर सुन्दर बना लेते थे। स्कूल का मकान यद्यपि गाँव वालों के प्रयत्न से ही बनाया गया था, पर सार्वजनिक वस्तु के प्रति उतना लगाव न होने के कारण स्कूल की खुड्डी अभी लिपी पोती नहीं गई थी। करणीराम जी जब स्कूल देख रहे थे; तो खुड्डी की इस व्यवस्था की ओर उनका ध्यान गया। उन्होंने चौ.कालूराम से पूछा कि जब सारे गाँव के घर लिपे पुते और साफ़ सुथरे है तो यह सीर का घर (स्कूल) टूटी फूटी क्यों है चौ. जी ने उत्तर दिया, बेटा मेरे पास तो पैसे है नहीं और लिपने वाली स्त्रियाँ पैसे मांगती है, अतः यह स्कूल का स्थान बिना लिपा पुता ही रह गया। उन दिनों चमारियाँ आठ आने प्रतिदिन की मजदूरी पर लीपने पोतने का काम करती थी। उन्होंने पूछा कि खुड्डी की लिपाई पर कितना खर्च लगेगा तो चौधरी जी ने बताया कि 10 औरतें दो दिन गोबर मिट्टी में पोत देगी। इस पर करणीराम जी ने अपनी जेब से पाँच रूपये निकालकर चौधरी हाथ में थमा दिया, इससे मकान लिप पुत कर अन्य घरों की तरह सामान्य बन गया।

यद्यपि आज के मूल्यांकन के हिसाब से पांच रूपये विशेष मूल्यवान नहीं है पर उन दिनों पांच रूपये का बड़ा महत्व था, और सबसे बड़ी महत्वपूर्ण उनकी वह भावना थी, जो सार्वजनिक जीवन में पनपती हुई इस सामजिक संस्था के अभ्युत्थान में संलग्न थी। सार्वजनिक वस्तु के प्रति लगाव और उसके विकास में


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-II, पृष्ठांत-106

निरन्तर रूचि उदारहृदय मानव काम होता है और करणीराम जी ऐसे ही उदारहृदय मानव थे।

एक दिन की बात है कि श्री करणीराम जी श्री सरदार हरलाल सिंह जी के साथ गाँव में आये और चौधरी श्री चिमनाराम के मकान पर गए। चौधरी जी यहां भी नम्बरदार थे, पर आये गए आदमी के ठहरने के लिए स्थान नहीं था। घर में कच्ची खुड्डियाँ थीं, जिसमे रहने तथा खाना पकाने की व्यवस्था थी। करणीराम सरदार बालाजी के जाट के नीचे जाकर खड़े हुए और आपस में खड़े-खड़े बात करने लगे बात ही बात में करणीराम जी ने घर के पास एक स्थान की और इशारा कर चौ. चिमनाराम को कहा कि बाहर के लोगों को उठने बैठने के लिए घर के बाहर एक पक्की तिबारी बना लो। इस पर पक्की ईंटों के जो पैसे लगेंगे मैं दूंगा। चौधरी जी ने इस पर पक्की ईंटे बनाकर कहे अनुसार एक तिबारी बना ली, जो आज भी मौजूद है और इस उदारहृदय व्यक्ति की सार्वजनिक जीवन के कल्याण की भावना का स्मरण करा रही है। वस्तुतः वे सार्वजनिक जीवन के कल्याण में रूचि लेने वाले व्यक्ति थे। जिन्होंने स्वयं के सुख दुःख की परवाह न कर ग्राम जीवन के दुखदर्द को दूर करने में अपना सब कुछ प्रदान किया था।

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"इतिहास, पुराण सभी साक्षी हैं कि मनुष्य के संकल्प के सामने देव, दानव सभी पराजित होते है।"


एमसर्न


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-II, पृष्ठांत-107

एक न्यायप्रिय नेता(देखें पृष्ठ 72)


चौधरी श्री गणपतराम, हनुमानपुरा

भाई करणीराम बाल्य काल से ही न्याय प्रिय थे, वे बचपन में अन्य बालकों की तरह चंचल प्रकृति के नहीं थे, किन्तु शान्त और गम्भीर थे और ज्यों ज्यों वे बड़े हुये थे गुण धीरे-धीरे उनमें और विकसित होने लगे।

जाति, धर्म और अन्य तरह के भेदभावों से वे ऊपर थे। उनका सारा काम एक ग्रामीण करता था जो जाति से चमार था। उन दिनों छुआछूत का बोलबाला था। अतः दकियानूसी विचारों के लोग उनकी इस बात को पसन्द नहीं करते थे।

हनुमानपुरा सरदार हरलाल सिंह जी का गाँव था। यहां दूलड़ जाटों की बड़ी बस्ती थी। गाँव के कृषक आन्दोलन को आगे बढ़ाने में पूरी मदद देते थे। जहां कहीं जगीरदारों के मुकाबले में कृषक शक्ति कमजोर पड़ती, इस गाँव के लोग मदद करने पहुंच जाते थे। सरदार जी ने इस छोटे से गाँव को क्रांति का केंद्र बिंदु बना दिया था।

हनुमानपुरा के पास ही बीरम का बास है, जिससे इसकी सीमा मिलती है। अक्सर सीमा सम्बन्धी विवाद हो जाता था, जिसे प्रेमपूर्वक सलटाया जाता। कुछ भूमि इस प्रकार की दोनों गांवों के बीच में थी, जिस पर दोनों समान रूप से दावा कर रहे थे।

आगे चलकर प्रेमपूर्वक दूसरा समाधान निकल आया और हनुमानपुरा


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-II, पृष्ठांत-109

वालों ने इस भूमि को बीरम के बास वालों को सौंप दी। कुछ दिनों बाद दोनों गांवों में किसी बात तनाव बढ़ गया। इस स्थिति में अपना अधिकार होते हुए भी उदारता पूर्वक दी गई अपनी भूमि को हनुमानपुरा वाले वापिस मांगने लगे।

बीरम के बास वालों ने इसका प्रतिवाद किया। वे पहिले की तरह इस भूमि को अपना बता रहे थे। निदान यह तय हुआ कि इसका सलटारा पंच फैसले से कर दिया जावें। बीरम के बास वालों ने श्री विद्याधर जी कुल्हरि वकील को अपना पंच नियुक्त किया। उधर हनुमानपुरा वालों से पूरा सौहार्द और प्रेम था। इसी कारण उन्हें इस ग्राम का प्रतिनिधि बनाया गया था।

दोनों पंच एक स्थान पर मिले और समस्या पर विचार किया। बीरम के बास वालों के प्रतिनिधि ने अपने अधिकार की बात कहीं, जिसका जवाब श्री करणीराम ने दिया। वस्तुतः यह भूमि हनुमानपुरा वालों की ही थी। जब विरोधी प्रतिनिधि ने यह भी कहा कि इस भूमि को स्वेच्छा से हनुमानपुरा वाले दे चुके है और दुबारा लेने का अब कोई औचित्य नहीं है तो श्री करणीराम सोच में पड़ गए।

उन्होंने कुछ देर विचार किया और फिर बोले "ठीक है, मैं हनुमानपुरा वालों के प्रतिनिधि के रूप में यह भूमि बीरम के बास को देता हूँ, इस पर उनका अधिकार मानता हूँ।" पंचायत समाप्त हो गई। दोनों प्रतिनिधि अपने अपने गांव लौट गए।

हनुमानपुरा लौटकर श्री करणीराम ने लोगों को बताया कि वह भूमि मैं बीरम के बास वालों को दे आया हूँ। लोग उत्सुकता से फैसले का इन्तजार कर रहे थे। जब यह सुना तो सन्न रह गए। श्री करणीराम ने उन्हें समझाया कि दूसरे का प्रेम प्राप्त करने के लिए त्याग करना पड़ता है। अब हमारे और बीरम के बास वालों के बीच कोई तनाव नहीं है।

सारे गाँव ने उनकी बात मानी और सहर्ष उनके निर्णय को स्वीकार


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-II, पृष्ठांत-109

किया। इस प्रकार श्री करणीराम ने अपनी न्यायप्रियता के कारण पारस्परिक मतभेद का अन्त कर दिया।

सारे जीवन भर वे इसी भावना को लेकर चलते रहे। जब कभी त्याग और बलिदान के अवसर आये, वे सबसे आगे रहे। इन्ही गुणों का परिणाम था कि वे बराबर जान प्रिय होते गए। जहां कहीं भी वे जाते, लोग उनकी बात को मान लेते क्योंकि वे जानते थे कि श्री करणीराम उनके भले के लिए यह बात कह रहे है।

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"निष्काम कर्म ईश्वर को ऋणी बना देता है, और ईश्वर उसको सूद सहित वापस करने के लिए बाध्य होता है" ------------ स्वामी रामतीर्थ


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-II, पृष्ठांत-110

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