Shekhawati Ke Gandhi Amar Shahid Karni Ram/Smriti Patal Par Ubharati Yaden

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पुस्तक: शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम

लेखक: रामेश्वरसिंह, प्रथम संस्करण: 2 अक्टूबर, 1984

द्धितीय खण्ड - सम्मत्ति एवं संस्मरण

11. स्मृति पटल पर उभरती यादें

हरदेवसिंह भारु

जिला प्रमुख, झुंझुनू

श्री करणीराम जी से मेरी जान पहचान जब वे अपने मामा चौधरी मोहनराम जी के घर ग्राम अजाड़ी में रह कर शिक्षा ग्रहण कर रहे थे, तब हुई थी।

चौधरी मोहनराम जी के परिवार से मेरा बहुत निकट संबंध था। उनके सगे भतीजे को मेरी बहिन परणाई थी, इसलिए वर्ष में कई बार मेरा अजाड़ी कला आना जाना होता था। श्री करणीराम जी के व्यक्तित्व की छाप उनके विद्यार्थी जीवन से ही मेरे ऊपर थी और मैं उनके व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित था। श्री करणीराम जी देश की आजादी के संबंध में, यहां के किसान मजदूर एवं पीड़ित जनता के संबंध में व आर्थिक व सामाजिक व्यवस्था के लिए उच्च विचार रखते थे। सामाजिक सुधार का असर देख कर मैं दंग रह गया था और ताज्जुव करता था कि एक विद्यार्थी चौधरी मोहनराम जी के परिवार पर सामाजिक सुधार का कितना असर रखता है। यह परिवार झुंझुनू जिले के किसानों में ही नहीं बल्कि अन्य वर्गो में भी जिले का मुखिया गिना जाता था। श्री करणीराम जी एवं उनके मामा चौ.मोहनराम जी अपने परिवार झुंझुनू जिले के किसानों में ही नहीं बल्कि अन्य वर्गो में भी जिले का मुखिया गिना जाता था। श्री करणीराम जी एवं उनके मामा चौ. मोहनराम जी अपने परिवार में नहीं बल्कि अपने गाँव और अपने बहुत सारे रिश्तेदारों के यहां मृतक भोज,दहेज प्रथा और छुआछूत को आज से 45 वर्ष पहले ही समाप्त कर दिया था। उनके मामा चौधरी मोहनराम जी के परिवार में उन दिनों रेखा हरिजन से रोटी पानी,खिलाना पिलाना, उनके नाना स्व. श्री टीकूराम जी का मृतक भोज नहीं करना, उनके परिवार की शादियों में धन दायजा नहीं लेते देख शेखावाटी के किसान एवं अन्य जातियों का ध्यान इस ओर आकर्षित हुआ और


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-II, पृष्ठांत-21

इसके बहुत अच्छे परिणाम निकलने शुरु हो गए। जब श्री करणीराम जी मृतक भोज एवं दहेज प्रथा के विषय में तथा किसान मजदूर की कठिनाईयों के बारे में अपनी मधुर वाणी से चर्चा करते थे तो मैं ही नहीं बल्कि सुनने वाले बहुत प्रभावित होते थे और कहते थे कि ये सब बातें हम अपने परिवार में लागू करेंगे।

जब श्री करणीराम जी एल.एल.बी.करके झुंझुनू में आकर वकालत शुरू की,उस समय काफी संख्या में कांग्रेसी कार्यकर्ता उनके घर सुबह शाम आते जाते थे. बहुत बड़ी संख्या में लोगों की भीड़ उनके घर झुंझुनू में बनी रहती थी. उन सबको वे आग्रह कर खाना खिलाते थे तो हम कहते थे कि इतने आदमियों को भोजन बना कर खिलाने में कितनी तकलीफ होती है यह तो बनाने वाला ही जानता है। इस बात पर श्रीमती चांवली धर्म पत्नी स्व. श्री करणीराम जी कहती थी कि मैं जितने अधिक आदमियों को भोजन बना कर खिलाती हूँ उतना ही ज्यादा सुख मुझे मिलता है,इसलिए आप लोगों को ऐसी बात नहीं कहनी चाहिए। जो दुःखी मोवकिक्ल श्री करणीराम जी के पास आते थे उनमें से किसी के पास उन्हें कोई फीस कभी भी मांगते हुए नहीं देखा। जो कोई फीस के लिए कहता उसकी वे नम्रवाणी से कहते कि यदि आपके पास पैसे है तो उनके स्टाम्प वगैरह खरीद लेना। श्री करणीराम जी को जो कठिनाई में होता उसके बड़ी पहचान थी और वे कठिनाई वाले व्यक्ति से कहते कि अब तेरे संकट के दिन गुजर गए और बहुत जल्दी ही तुम जमीन के मालिक होंगे।

जब वे ग्राम अजाड़ी में बीमार होते हुए अपने मामा चौधरी मोहनराम जी के खेत में गाँव से बाहर प्राकृतिक इलाज ले रहे थे तब मैं उनसे मिलने कई बार जाता था। सुबह के वक्त बहुत देर तक झुंझुनू जिले के खासकर उदयपुरवाटी के किसानों के संबंध में व राजस्थान की राजनीति की चर्चा होती रहती थी। वे अपनी मधुर वाणी सहनशील स्वभाव से किसानों के साथ जो अन्याय व शोषण हो रहा था, उस पर विस्तार से प्रकाश डालते थे और कहते थे कि मैं ठीक होने पर कम से कम उदयपुरवाटी के किसानों के बीच रह कर उनकी कठिनाईयों व दुःख में भाग लूंगा। मैं उनको इस बात के लिए मजबूर करने की कोशिश करता कि पहले आप अपना स्वास्थ्य लाभ कीजिए, फिर हम पीड़ित एवं शोषित जनता के लिए


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आवाज उठायेंगे लेकिन उनके दिल में हर वक्त यही लगन थी कि गरीब लोगों के साथ जो अन्याय हो रहा है, वह मैं कैसे सहन कर सकता हूँ।

स्वस्थ होने के बाद माह जनवरी 1952 में बहुत से कांग्रेसी कार्यकर्ता उदयपुरवाटी के ग्राम गुढ़ा में एक सभा में भाग लेने एक ट्रक में जा रहे थे। ग्राम बड़ा गाँव में कुछ समाज विरोधी तत्वों ने ऊँची हवेली से काफी पत्थर कांग्रेसी कार्यकर्ताओ पर फेंके थे, जिसमें मेरे भी चार चोटे आई थी। हमारे आगे आगे चौधरी कुम्भारामसरदार हरलाल सिंह जीपों में थे। पत्थर की चोटों का मुकदमा उदयपुरवाटी में तीन साल तक चला था लेकिन श्री करणीराम जी इतने उदार थे कि उन्होंने अप्रैल 52 में पुलिस को कहा कि हम सब भाई-भाई हैं। राजीनामा कर लिया जावे क्योकि मुकदमे से दोनों ही पक्षों को भारी नुकसान होता है। आगे हम सब मिलजुल कर रहे तो क्या ही अच्छा रहे। उनकी इस उदारता से हमें बड़ी प्रेरणा मिली।

मई सन 52 के शुरू सप्ताह की बात है। विद्यार्धी भवन झुंझुनू में एक दिन श्री करणीराम जी उदयपुरवाटी के गाँवो का कार्यक्रम बना रहे थे। उस समय जिले के कलेक्टर श्री बी.एन.तनखा भी वहां उपस्थित थे। श्री तनखा कलेक्टर ने बताया की उदयपुरवाटी क्षेत्र में इस समय भयंकर तनाव है इसलिए आप अपने सारे कार्यक्रम से मुझे अवगत कराते रहें ताकि मैं आपकी सुरक्षा की व्यवस्था कर संकू। इस पर श्री करणीराम जी ने कहा कि मैं तो केवल उदयपुरवाटी के भूमिपतियों से न्याय मागूंगा,वहां के लोगों के दुःख दर्द में शामिल होऊंगा, इसलिए मेरे साथ दुव्यर्वहार होगा ही कैसे। मैं न्याय दिलवाने व न्याय मांगने के सिवाय किसी के साथ कुछ नहीं कर रहा हूँ। मुझे पूर्ण विश्वास है कि मेरे साथ अगर कोई दुव्यर्वहार या बेजा कार्यवाही करेगा तो उसी के साथ होगी, ऐसा उन्होंने बहुत ही हंसकर कहा था।

जब पूर्ण स्वस्थ होने के बाद पुनः उन्होंने उदयपुरवाटी के गाँवों का कार्यक्रम बनाया तो मैंने भी उनके साथ जाने की इच्छा जाहिर की तो उन्होंने मेरे एवं सूबेदार लादूराम जी जाखल जो उनके घनिष्ठ साथी थे और उदयपुरवाटी के किसानों की तकलीफ के लिए संघर्षशील थे और उन दिनों मेरे गाँव भारु में ही निवास करते


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थे,साथ ले जाने के लिए राजी हो गए। श्री रामदेव जी जो उनके साथ शहीद हुए, मैं व सूबेदार लादूराम जी 9 मई 1952 को उदयपुरवाटी के ग्राम गुढा, पुंख, नेवरी, व चंवरा आदि गाँवो का दौरा कर रात्रि विश्राम उदयपुरवाटी में किए जाने का निश्चय किया। ग्राम छापोली के पास रात 9:00 बजे जीप खराब हो गई। जीप की हालत बिना मिस्त्री के ठीक होना संभव नहीं थी। इस पर श्री करणीराम जी ने कहा कि मैं जीप के पास रहता हूँ और आप लोग छापोली जाकर बस वालों को जो उनके जानकार थे,उनकी गाड़ी लेकर आओ। रात्रि के समय जंगल में ऐसी तनाव पूर्ण स्थिति में उनका अकेले जीप के पास रहना हमने किसी प्रकार उचित नहीं समझा। हमने सूबेदार लादूराम जी को जीप के पास छोड़कर छापोली से गाड़ी लेकर उदयपुरवाटी जाकर विश्राम किया। इस प्रकार का तनाव किसानों व जागीरदारों के बीच मैंने पहले कभी नहीं देखा था। जागीरदार अपनी चारपाई लगाए किसान के खलिहान की रखवाली करते थे ताकि रात में किसान स्वयं ही खलिहान में से अनाज,चारा या घास आदि न ले जावे। खलिहान की रखवाली करने वाले इन जागीरदारों को हीठा कहा जाता था। इन हीठा जागीरदारों से जब श्री करणीराम जी बहुत नम्र भाव से नमस्कार करते तो नमस्कार का उत्तर न देकर उन लोगो में से कुछ लोग तो यह कहते कि "आगो पकड़" आगो पकड़ म्हे समझा सा फिर भी श्री करणीराम जी के चेहरे पर तनिक भी नाराजगी नहीं महसूस होती थी। हमें उस वक्त श्री करणीराम जी के साहस और हिम्मत को देखकर बड़ी प्रेरणा मिली। उस वक्त झगड़ा यह था की राज्य सरकार ने किसान की उपज का छठा हिस्सा जागीरदार को देना तय कर दिया था लेकिन जागीरदार इजारा एवं आधा हिस्सा से कम लेने को तैयार नहीं थे। 11 मई 52 को गाड़ी की खराबी से हम सब लोग झुंझुनू आ गए और तय रहा की गाँव भारु जाकर 12 मई 52 को 1:00 बजे मण्डावा से झुंझुनू आने वाली बस से आएंगे, लेकिन उस दिन बस नहीं आने की वजह से हम नूआं रेलवे स्टेशन से रेल द्धारा 4:00 बजे झुंझुनू पहुंचे तब तक श्री करणीराम जी व रामदेव जी हमारा इन्तजार करके उदयपुरवाटी के दौरे के लिए रवाना हो चुके थे। हमारा दुर्भाग्य था कि हम 12 व 13 मई को झुंझुनू में उनके आने का इन्तजार करते रहे और 13 मई 52 को श्री झाबर सिंह गिल द्धारा हमें सूचना मिली-- आज श्री करणीराम जी व रामदेव जी जागीरदारों


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की गोलियों से शहीद हो चुके हैं। हमारा दुर्भाग्य था कि कार्यक्रम तय हो जाने के बाद भी हम 13 मई 52 को उनके साथ नहीं रह सके।

अब उनका हंसमुख चेहरा, सहनशील स्वभाव, मधुर वाणी, पीड़ित जनता के लिए उनकी तड़फ हमेशा-हमेशा याद आती रहती है जो कि हम सबके लिए शहीद हो गए।

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"उत्तम पुरुषों का ह्रदय बज्र से भी कठोर और फूल से भी कोमल होता है उसे जानने में समर्थ कौन है।" ---भवभूति


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