Shekhawati Ke Gandhi Amar Shahid Karni Ram/Udaipurwati Me Nai Nijamat Aur Karni Ram

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पुस्तक: शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम

लेखक: रामेश्वरसिंह, प्रथम संस्करण: 2 अक्टूबर, 1984

द्धितीय खण्ड - सम्मत्ति एवं संस्मरण

25. उदयपुरवाटी में नई निजामत और श्री करणीराम
हनुमान प्रसाद बाबलिया वकील, झुंझुनू

उदयपुरवाटी में काश्तकारों पर जुल्म हो रहा था, खासकर माली काश्तकार बहुत दुखी थे। पीढ़ियों से वे काश्त करते थे, उनकी कोई रसीद लगान या ऐसी कोई सनद नहीं दी जाती थी, कि कौन काश्तकार कब से चाही जमीन काश्त करता है। पक्का मकान बनाने नहीं दिया जाता था, कुंवे का भूण,लाव,चड़स भी रात को अपनी कच्ची खुड्डी में जहां काश्तकार सोता था, टाबर की तरह पास रखकर सोता था, उसी में बैल बंधा करते थे। खाट या चारपाई किसी के पास टूटी-फूटी होती थी, काश्तकार को खाट पर बैठने का अधिकार नहीं था। बोरी का खोयला करके ओढ़ते थे। लालटैन तो किसी किसी माली के पास होती थी। टूटी-फूटी खुड्डी के सुराख़ से चाँद या तारों की रोशनी होती थी, जमीन में गुदड़ा बिछा कर पड़े रहते थे।

सरदार हरलाल सिंह जी काश्तकारों की यह दुःख भरी हालत देखकर रोने लग गये। जिले के नाजिम तहसीलदार तालकदार झुंझुनू बैठे कुछ नहीं कर सकते थे, तो जयपुर जाकर रोजना रोया, सरदार जी का सुझाव था कि उदयपुरवाटी में निजामत कायम कर दी जावे। उनके सुझाव पर निजामत कायम कर दी। सरदारों की तरफ से कामदार मुन्शी, वकील रहते थे। मगर काश्तकारों की तरफ से कोई अर्जी लिखने वाला भी नहीं था। काश्तकार डरते हुए निजामत में जाते थे।


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-II, पृष्ठांत-111

नये नाजिम ने जयपुर रिपोर्ट भेजी कि काश्तकार या उनकी तरफ से कोई वकील नहीं आता है न मेरे पास कोई उसका आदमी आता है। सरदार जी को बुलाया गया, निजामत कायम करके पांच हजार रुपया महीना सरकार का और खर्च बढ़ा दिया। सरदार जी ने जाट बोर्डिंग में अपने साथियों को बुलाकर सलाह मशवरा किया। चौ. नेतराम जी गौरिर, हरदेव सिंह पातुसरी, बूंटीराम जी, चेताराम हबलदार और चौ. घासीराम जी वगैरह सब मेरे मकान पर आये और उदयपुरवाटी जाने को मजबूर किया। कांग्रेस की इज्जत का सवाल पैदा हो गया था, मैनें कहा "ब्राह्मण को ही मरवाना है क्या, तो सरदार जी ने कहा 'ब्राह्मण मरेगा नहीं। "

सवारी का साधन नहीं, 18 कोस ऊंट पर ही जाना पड़ता था। सात दिन से डाक आती थी। डॉ. दयाशंकर 6 महीने का, बूढ़ी माँ, 24 साल से नगरपालिका का मैम्बर, जमी जमाई वकालत, सौ से ज्यादा मुख्तारनामे आम। मैं अपने कांग्रेस के साथियों का कहना नहीं टाल सका। सरदार जी तो मेरे गुरु भाई है, आर्य वीर सेठ देवीबक्सजी मंडावा के हम दोनों चेले हैं।

1952 के प्रथम चुनावों की तैयारी होने लगी, सवाल पैदा हुआ उदयपुरवाटी की टिकट किसको दी जावे। श्री हीरालाल जी शास्त्री ने श्री हरलाल सिंह को कहलाया कि श्री चन्द्र भान जी भार्गव एडवोकेट झुंझुनू को उदयपुरवाटी का टिकट कांग्रेस की तरफ से दे दिया जावे, वह योग्य और प्रभावशाली सज्जन है, उदयपुरवाटी से जीत कर आवेंगे तो मैं उनको मिनिस्टरी में ले लूंगा। श्री चंद्रभान जी की जाति निश्चित थी। हम कांग्रेसी कार्यकर्ताओं में खुशी की लहर दौड़ गई।

चुनावों से 15 दिन पहले श्री चंद्रभान जी भार्गव ने चुनाव लड़ने से इन्कार कर दिया, लोगों को ताज्जुब हुआ, अत्यन्त नम्रता भी आदमी को नुकसान पहुंचा देती है। कार्यकर्ताओं में निराशा छा गई। खैर आखिरकार गांधीवादी सत्य और अहिंसा के पुजारी श्री करणीराम जी एडवोकेट का नाम सर्व सम्मति से आया, उदयपुरवाटी के भावी नेता मान लिये गये। श्री करणीराम जी और श्री रामदेव जी, श्री झाबर सिंह गीला मेरे पास उदयपुर आये और कहा "दादा, राम-राम। हम आ


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गए है।' मैनें कहा स्वागत इतनी देर नहीं करनी चाहिये थी, उन्होंने सब हालात बयान कर दिए।

गांवों का दौरा शुरू हुआ तथा सभायें शुरू हुई। 27 दिसम्बर 1951 को हमारी सभा पंचलंगी। इसके बाद पापड़ा गाँव गये। भगवान सिंह मुन्शी को राजपूतों ने घेर लिया और कड़ाके की सर्दी की रात में उसे बागोली की नदी में छोड़ आये। हम आठ बजे पोलिंग स्टेशन पर पहुंचे। कांग्रेस का कोई भी एजेण्ट फर्जी वोटर्स को पकड़ने के लिए नहीं था। छापोली की ढाणियों से हमारे वोटर्स को आने नहीं दिया गया और इस वजह से करीब 400 वोट्स कांग्रेस को नहीं मिल सके। आठ जनवरी को उदयपुरवाटी कस्बे में वोट पड़ने थे। स्वयं स्वामी श्री करपात्री जी महाराज वहां आ गए और रामराज्य परिषद् का खूब प्रचार किया। गली गली में पीला साफा और तलवार नजर आ रही थी। कांग्रेस के वोटर्स को तो 11 बजे तक आने ही नहीं दिया। कांग्रेस इस चुनाव में केवल 1700 वोटों से हारी थी।

चुनाव के बाद भौमियान उदयपुरवाटी का सवाल आया,कि माली काश्तकारों से संधि कर दी जावे। पैदावार का छठा हिस्सा भौमियों को दे दिया जावें, हम काश्तकारों को लगान की रसीद दे देगें।

श्री करणीराम जी को यह प्रस्ताव मानना पड़ा। उनका ख्याल था, पीढ़ी दर पीढ़ी जो काश्तकार कुँवें जोत रहे है, उनके पास काश्तकारी का सबूत तो हो जावेगा। गलती इतनी हुई यह काम उदयपुरवाटी कस्बे में बैठकर होना चाहिए था। चंवरा जाने का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। श्री दुलीचन्द जी जैन नाजिम ने बीस आर्म फाॅर्स के जवान और पं. राम सिंह जी डिप्टी को साथ भेज दिया। दो सौ किसान कार्यकर्ता भी साथ गये। मैं साथ जाने लगा तो श्री करणीराम जी ने कहा 'आप उदयपुरवाटी हैडक्वाटर पर रहो, नाजिम साहब को रिपोर्ट देते रहो। '

13 मई, 1952 की सदलबल चंवरा पहुंचे। भौमियां सरदार भी गाँव के अन्दर एक मील के फासले पर मौजूद थे। श्री करणीराम जी, रामदेव जी अपने साथियों और पुलिस के जवानों को छोड़कर अकेले सेडू गुजर की ढाणी में चले गए तो रामेश्वर दरोगा और गोरधन सिंह ने दोनों वीरों को गोली से उड़ा दिया। और


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दोनों फरार हो गये। पुलिस वाले और दो सौ कार्यकर्ता साथी मुँह की तरफ देखते रह गए। पुलिस में रिपोर्ट हुई, मगर इन दोनों हत्यारों का नाम भी नहीं आया। मुकदमें को राजनैतिक रंग दे दिया गया। सब बरी हो गये।

मगर इन शहीदों का खून रंग लाया, गरीब काश्तकारों का हमेशा हमेशा का दुःख निवारण हो गया। परगने के अच्छे-अच्छे सरदारों की गिरफ्तारियां हुई,कुछ फरार हो गये। वातावरण दूषित हो गया। पार्लियामेन्ट के चुनाव में कांग्रेस जीत चुकी थी। श्री राधेश्याम मुरारका दिल्ली की पंचायत में झुंझुनू जिले के भागीदार बन गये थे। अफसोस तो इस बात का है कि श्री करणीराम जी व श्री रामदेव जी की धर्म पत्नियों को राष्ट्रीय सम्मान न सरकार ने दिया न समाज ने।

तारीख 13 मई को शाम 4 बजे श्री भंवरसिंह जी उदयपुरवाटी के ठाकुर मेरे मकान पर आये और कहा आपके दोनों जाट नेता तो स्वर्ग सिधार गए है। आपको भी बुलाया है। मैं इस रहस्य को समझ नहीं सका। मेरे पास दुखी जनता की भीड़ एकत्रित होने लगी। सब रो रहे थे। रात को नौ बजे मेरे पास श्री सरदार सिंह जी राजपूत गिरावड़ी आये और कहने लगे दोनों हत्यारे कोटड़ियों में मौजूद है, आप मकान छोड़कर भाग जाओ, मैं श्री भगवान दास जी के मंदिर की छत पर छुपकर बैठ गया। करीब ग्यारह बजे रात को दस आदमी तलवार, लाठी, फरसा लेकर आये और दरवाजे के किवाड़ को तोड़ डाला। रेखाराम रैगर की जमकर पिटाई हुई। सब मकानों की तलाशी लो और कहा वकीलड़ा कहां है बताओ। रेखाराम रैगर ने कहा लौहागर जी का वैशाखी पर्व है, स्नान करने गये।

वे लौहागर भी गये। कातिलों के साथियों ने उनसे जाकर कहा पुलिस आपका पीछा कर रही है तो पहाड़ों में चले गये। उधर झुंझुनू की जाट बोर्डिंग में दोनों शहीदों का सम्मानपूर्वक दाह-संस्कार हो गया। आज भी उनकी प्रतिमायें बोडिंग स्कूल में मौजूद है। कह रही हैं-हमारा अधूरा कार्य पूरा करो। वतन में इन्कलाब लाओ। मगर उनके उत्तराधिकारी स्वार्थ सिद्धि और धन बटोरने में लगे हुए है।


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