Shiv Devi

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Shiv Devi Tomar was a brave woman from Baraut, Uttar Pradesh, who fought with Britishers for the freedom of country. She became martyr during 1857 freedom movement.

शिवदेवी का जीवन परिचय

Shiv devi and Jai devi Tomar

सन 1857 की क्रांति की शुरुआत मेरठ में हुई थी। जनपद के किसान नेता शाहमल जाट ने भी जमकर अंग्रेजों से लोहा लिया था। क्रांतिकारियों कों अंग्रेजों ने मौत के घाट उतारा। उन लोगों को पत्थर के कोल्हू से पीसकर चूर-चूर कर मसल दिया था। स्त्री, बूढ़े और बालकों को भी अन्न-जल के अभाव में तड़पा-तड़पा कर मारा। जाटों के अनेक गांवों को अंग्रेजों ने बागी घोषित कर दिया तथा उनकी जमीन, मकान, चल अचल संपत्ती जब्त कर ली। 1947 तक काले अंग्रेजों ने भी इन गांवों को विशेष यातनाएं दी। केवल इतना ही अन्न दिया जाता था कि वे जिंदा रह सकें। पशुओं के लिए भूषा भी ले जाते थे। अतः किसान पुत्रियों को घास खोदकर पेट भरना पड़ता था। घी-दूध बेचकर इन्हें अपना गुजारा


जाटों के विश्व साम्राज्य और उनके युग पुरुष: पृष्ठांत 240


करना पड़ता था। जाट-पुत्री शिवदेवी ने जब यह अत्याचार देखा तो उन्होने अंग्रेजों को मारने का निश्चय किया। उसकी सहेली किशनदेवी ने भी इस आजादी-यज्ञ में साथ देने का निश्चय किया। बड़ौत के कुछ जाट युवकों के साथ शिवदेवी ने बड़ौत में ही अंग्रेजों के तंबुओं पर हमला किया। शिवदेवी के नेतृत्व में जाटों ने 17 अंग्रेजों को तलवार के घाट उतार दिया। जबकि 25 भागकर छिपने में सफल रहे। घायल शिवदेवी अपने घावों की मरहमपट्टी कर रही थी कि बाहर से आए अंग्रेजों ने उसे घेर लिया। अंग्रेज़ सैनिक जाट सिंहनी की ओर डरते डरते बढ़े। वीर बालिका ने मरते दम तक अंग्रेजों से लोहा लेकर जाटों की उच्चतम शौर्य प्रदर्शन करने की परंपरा निभाई तथा समाज व देश को गौरवान्वित किया।

बाहरी कड़ियाँ

चित्र गैलरी

संदर्भ

लेखक: महावीर सिंह जाखड़, पुस्तक: जाटों के विश्व साम्राज्य और उनके युग पुरुष, 2004, p.240-241, प्रकाशक: मरुधरा प्रकाशन, आर्य टाईप सेन्टर, पुरानी तह्सील के पास, सुजानगढ (चुरु)


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