Sujata

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Sujata (सुजात) was a branch of Haihaya Kshatriyas. Sujatas (सुजात) are mentioned in Mahabharata (II.48.16), (IX.44.61). Sujata is mentioned in the Rig Veda as a title of people.

Variants of name

History

Hukum Singh Panwar (Pauria)[1] writes ....The exponents as well as the adherents of the "Yadava origin of the Jats' are, however, simply misled by the confusion of the Haihayas alongwith their five alleged tribes including their descendents, the Jatas or Sujatas in the genealogies of the Yadavas, most probably in their fourteenth generation66 by the Puranakritas, Kirfel, quoted by Morton


The Jats:Their Origin, Antiquity and Migrations: End of p.86


Smith67, rejects this confusion as sheer nonsense. The Haihayas were, infact, according to Tod68, Scythians or (Sakas). The Haihayas derived their name, as such, from the word 'haya', which means 'horse'69. The Scythians (Sakas) are invariably identified70 with the Jats. The ancient Indian historical tradition has, 'however, undoubtedly established the fact that the Sakas (Haihaya-Scythians) and their descendents rendered succour to the Yadavas in men, money and material in their prolonged wars against Parasurama, Bahu and Sagar 71 who is said to have, in the long run, turned them out of the country. The Jats are described as Sujatas, the sons of Bharata, the foremost of the hundred sons of Talajanghha of the Haihayas in the Puranas (Vishnu, IV, 1I, 17). We know it for sure that those Jats, who helped Cyrus and Darius, the Iranian Emperors72 and Alexander the Great73 in their central Asian conquests as well as the Muslim invader, Mohammad bin Qasim74 in his conquest of Sindh, were appellated in Greek and Latin as "euergetae or good Jats" and those, who opposed them, were notoriously called with the opprobrious sobriquet of enemies, robbers, especially as Jat-i-badzaat (of evil race). The unknown can often be best explained by the known. Similarly, the Jats, (Haihaya-Scythians) who came to the help of the Yadavas in their ordeals, were called Su-Jatas, a name which gives two meanings i.e. "good-Jats" because 'Su' in Sanskrit75 means "good or noble" and also "Saka-Jata", for "Su" in archaic Chinese language76 was also used to denote the Sakas. Since the grateful Yadavas commonly addressed them as Sujatas, they were described likewise in various Puranas 77. However, notwithstanding their fabrication in the Yadava genealogy, it may vividly be understood that they were not at all the descendents of the latter, and the exponents of the theory misused them not only as a sheet-anchor but also as a powerful lever to raise it. It is extremely interesting to note that this reference to the Jats as Sujatas is the first and the last in the Puranas 78.


66. Pargiter, op.cit, p. 144.
67. Smith, R. Morton: op.cit, p. 171.
68. Tod, op.cit, Vol. I. p. 76. Sankalia, H.D., Excavations at Maheshwar and Navdatoli, 1952,53, Poona, 1958, p. 252.
69.Monier-Williaqls, Skt. Eng. Dic. pp. 1288. 1296-7, 1305, Hinhinana is the equivalent word for the neighing of horse in the Jatu or Haryanvi dialects.
70. Cf. "Scythic Origin of the Jats", Ch. VIII in this book.
71. Cf. "Scythic Origin" as well as "Jatthara Origin of Jats· in this book.
72. Kephart. Calvin, op.cit. p. 529.
73. Ibid,
74. Elliot and Dowson, Vol. 1. pp. 131-211.
75.Monier-Wliliams, op.cit., p. 1223.
76. Cunningham. ASRI, Vol. II, 1883-84, pp. 48f.
77. Wilson Vishnu Pur., pp. 335f.
78. The Puranas generally omit the name and use Dasa or Dasyu instead, which Dahyu in the Zend Avesta and Daha in Archaic Persian and Dahae in Greek whereas, Tahae in Bactrian and Dahiya in Haryanvi.

सुजात से जाट की उत्पत्ति

ठाकुर देशराज[2] लिखते हैं.... कोई-कोई इतिहासकार और विद्वान् यह भी मानता है कि जाट हैहय क्षत्रियों की उन शाखाओं में से हैं जो सुजात और जात नाम से प्रसिद्ध थीं। देशी इतिहासकारों में भाई परमानन्दजी इसी मत के समर्थक हैं। जाटों की उत्पत्ति के सम्बन्ध में भाई परमानन्दजी के जो विचार हैं, उन्हें हम ज्यों का त्यों उद्धृत करते हैं। वे लिखते हैं कि -

"ऐसा मालूम पड़ता है यादु नस्ल की एक शाख जाट कहलाने लगी। जाट और यादु लफ्ज एक-दूसरे से बहुत मिलते-जुलते हैं। यादुओं के हैहय कबीले की एक शाख का नाम


[पृ.57]: जात या सुजात था। यह भी कहा जाता है कि कश्यप ऋषि ने अग्नि-कुल राजपूतों की तरह जाटों को भी क्षत्रिय बनाया । नस्ल के लिहाज से जाट बिल्कुल राजपूतों से मिलते हैं। राजपूत लोग उन्हें इसलिये अपने से छोटा समझते हैं कि उनमें करेवा का रिवाज पाया जाता है। लेकिन गौर करने पर यह भी नतीजा निकल सकता है कि जाट हिन्दू-समाज की उस हालत से ज्यादा मिलतें हैं जो कि पुराणों के पहले पाई जाती थी। देवर लफ्ज के माने दूसरे पति के हैं। दूसरी कई बातें से भी यह मालूम होता है कि जाटों पर बनिस्वत दूसरे हिन्दुओं के पुराणों की तालीम का बहुत कम असर हुआ है। मसलन जाट अभी तक ‘कुल’ की हालत में पाये जाते हैं। उनमें जाति-पाति की तकसीम नहीं पाई जाती जो बाकी हिन्दू-समाज में इतने जोर से पाई जाती है। भाषा, करेक्टर और विचारों से भी यही जाहिर होता है कि जाट लोग वैदिक जमाने की सुसाइटी के आम हिन्दुओं की निस्बत बेहतर कायम मुकाम हैं।"

जात या सुजात शब्द से जाट शब्द का बनना संबंध समझकर शायद भाईजी ने सुजात लोगों को ही जाट मान लिया है और इसमें भी सच्चाई है कि जात शब्द से आगे चलकर, परिस्थितियों के कारण, जाट शब्द बन गया। किन्तु यह कथन गलत है कि परशुराम वाले सुजात या जात लोग ही अब के जाट हैं। परशुराम और हैहय लोगों का युद्ध रामायण काल से भी पहले का है। यदि सुजात लोग ही जाट कहलाने लग गये होते तो महाभारत के समय अवश्य इनकी हस्ती होती। हैहय


[पृ.58]: क्षत्रिय एकतन्त्र विचार के थे। परशुराम के बाद अवश्य ही वे लोग कहीं अपना राज्य स्थापित करते। लेकिन लाखों वर्षों के अन्तर (कुछ विदेशी इतिहासकारों ने रामायण-काल से लेकर महाभारत के बीच का समय दस हजार वर्ष तक माना है) में सुजात लोगों को पैतृक गौरव प्राप्त करने की चेष्टा (साम्राज्य स्थापन) करते हम कहीं नहीं पाते। इस परशुराम वाली कहानी का हम पीछे के पृष्ठों में काफी खंडन कर चुके हैं। यहां इतना ही लिख देना उचित समझते हैं कि उनके गौत्र जो कि पांडवों, शैव्यों, गान्धारों, मालवों आदि राजवंश से निकलते हुए हैं वे सुजात के वंशज कैसे कहला सकते हैं? यहां तक कि उनमें नाग वंशी तथा सूर्यवंशी (पूणिया, तक्षक) गोत्र भी पाये जाते हैं। इस सिद्धान्त का खण्डन करने के लिए यही एक बात पर्याप्त है। उनके गोत्र व कुल न तो कुछ भी हैहय क्षत्रियों से मिलते हैं और न हैहयों की आदिभूमि दक्षिण में उनका (जाट) कोई नाम निशान ही पाया जाता है।

In Mahabharata

Sujata (सुजात) are mentioned in Mahabharata (II.48.16), (IX.44.61).

Sabha Parva, Mahabharata/Book II Chapter 48 Describes Kings who presented tributes to Yudhishthira. Sujatas are mentioned in verse (II.48.16). [3]


Shalya Parva, Mahabharata/Book IX Chapter 44 mentions the ceremony for investing Kartikeya with the status of generalissimo (सेनागणाध्यक्ष), the diverse gods, various clans who joined it. Sujatas are mentioned in the list of combatants in verse (IX.44.61).[4]

External links

References

  1. The Jats:Their Origin, Antiquity and Migrations/The Yadava origin of the Jats, p.85-86
  2. Jat Itihas (Utpatti Aur Gaurav Khand)/Chaturtha Parichhed,p. 56-58
  3. सुजातयः शरेणिमन्तः शरेयांसः शस्त्रपाणयः, आहार्षुः कषत्रिया वित्तं शतशॊ ऽजातशत्रवे (II.48.16)
  4. कषेमवापः सुजातश च सिद्धयात्रश च भारत, गॊव्रजः कनकापीडॊ महापारिषदेश्वरः (IX.44.61)

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