Suraj-Chanda Sath Rashin Karni-Ramde

- बात उन दिनों की हैं, जब प्रजातंत्र पालने में था ।
- राजतंत्र चालने में था।
- सूरज ओट में था और अँधियारा चोट में था ।
- मतपेटी महारानी बन गई थी व महारानी कहानी बन गई थी ।
- भोमिये छटपटा रहे थे । किसान शासन-आसन के दरवाजे खटखटा रहे थे ।
- वे जाती के बजा रहे थे । किसान आती(आजादी ) को सजा रहे थे ।
- उनके हाथों में प्याले-भाले थे। किसानों के हाथों में कलम-कुदाले थे।
- बदी का बोलबाला था । नेकी के मुँह पर ताला था । जागीरदारी की रीत व आजादी की जीत परस्पर टकरा रही थी ।
- उदयपुरवाटी ,हल्दीघाटी बनी हुई थी ।
- किसान खेत-माटी हँस रही थी ।जागीरदारी परिपाटी रो रही थी ।
- प्रभात होते ही प्रजा जाग उठी थी जो अब तक सो रही थी ।
15 अगस्त, 1947 को जब देश में आजादी का सूर्य उदित हुआ तो अधिकांश भारत, भा-रत हो गया फिर भी देश के कुछ हिस्सों में गुलामी का कोहरा अभी भी छाया हुआ था । उन्हीं क्षेत्रों में से एक क्षेत्र उदयपुरवाटी (झुंन्झूनूं) था । यह क्षेत्र पैंतालिसे (पैंतालिस गांवों का समूह) के नाम से जाना जाता था । आजादी के बाद भी वहां लोकराज-लोकलाज नहीं थी । लोप -राज था । पैंतालिसे में भोमियों का शासन चलता था । वे किसानों से मन माना लगान वसूल करते और अनेक तरह की अतिरिक्त लाग-बाग भी लेते थे । क्षेत्र का भू- प्रबंध नहीं होने के कारण भोमिये जब चाहते किसान को खेत से बेदखल कर देते थे । किसान दीन-हीन, अणपढ़ व असंगठित थे । उनकी दरिद्रता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता कि घरों में खींप की रस्सियों की खाट (चारपाई) व रहने के लिए छान-झोंपडे़ थे। किसान भोमिये के सामने चारपाई पर नहीं बैठ सकता था । किसान महिलाएं सोने के आभूषण नहीं पहन सकती थी । वैसे किसान महिलाओं के सोने आभूषण थे भी नहीं ।
आजादी से पहले उत्तरी भारत में आजादी का अलख जगाने का कार्य आर्य -समाज जैसे सामाजिक-धार्मिक संगठनों ने भी किया । साथ ही राष्ट्रीय आंदोलन की गुंज भी शनैः शनैः शेखावाटी क्षेत्र में पहुंचने लगी थी । सामाजिक संगठनों के कार्यकर्त्ताओं ने समाज सुधार की बात भी आजादी के आंदोलन के साथ-साथ की । गांव-गांव में शिक्षा का प्रचार-प्रसार किया । उनकी दूरदृष्टि ने भोमियों की जंग लगी तलवारों का जवाब किताबों में खोजा । क्षेत्र के अग्रणी किसानों के बच्चे पढ़ने लगे। ऐसे ही परिवारों से सम्बन्धित श्रद्धेय करणीराम जी मील व रामदेवसिंह जी गिल थे । करणीराम जी का जन्म भोजासर, झुंन्झूनूं में हुआ परन्तु बचपन में ही मां का स्वर्गवास होने के कारण उनका लालन-पालन उनके मामा डूंडलोद ठिकाने के प्रभावशाली चौधरी मोहनराम जी अजाड़ी ने किया। वे इलाहाबाद से विधि स्नातक होकर झुंन्झूनूं में वकालात करने लगे।
श्रद्धेय रामदेवसिंह का जन्म गिलों की ढाणी (उदयपुरवाटी) में हुआ। प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त करके वे अध्यापक बने । करणीराम जी का विवाह रामदेवसिंह जी की भुआ श्रीमती चावली देवी जी के साथ हुआ ।
करणीराम जी धीर-गंभीर, गांधीवादी विचारक वकील थे । रामदेवसिंह जी गरजते-धधकते अँगारे अध्यापक थे।लेखक के गांव कूदन में भी वे भागीरथमल कानोडिया ट्रस्ट द्वारा संचालित स्कूल में अध्यापक रहे ।उनकी क्रातिंकारी शिक्षा से भयभीत होकर सीकर ठिकाने ने स्कूल खोलकर पूज्य रणमलसिंह जी कटराथल (पूर्व विधायक ) को सन् 1941 ई.में अध्यापक नियुक्त किया ।उन्होंने ठिकाने की स्कूल का विरोध करते हुए पूज्य रणमलसिंह जी को प्रवेश नहीं करने दिया ।बाद में ठिकाने की पुलिस ने उनको गिरफ्तार कर लिया तब पूज्य रणमलसिंह जी स्कूल में प्रवेश कर सके । हमारे गाँव के उनके शिष्य बताते हैं कि वे अपने हाथ से काते सूत का ही कपड़ा पहनते थे । वे बड़े स्वाभिमानी-सिद्धांतवादी थे ।
करणी-रामदे, एक चंद्रमा तो दूसरे सूरज थे। वे पारस्परिक रूप से परिपूरक थे ।
करणीराम जी ने सन् 1952 में उदयपुरवाटी क्षेत्र से विधानसभा का चुनाव लड़ा। किसानों के मुकदमों की पैरवी विशेषतः पचेरी कांड व चुनाव अभियान के दौरान क्षेत्र के किसानों की दुर्दशा से वे सुपरिचित हुए। उनके रिश्तेदार रामदेवसिंह जी उसी क्षेत्र के रहने वाले तथा किसानों की हर समस्या से सुपरिचित व संघर्षरत थे । करणीराम जी ने गिलों से हाथ मिलाया व रामदेवसिंह जी ने सदैव साथ निभाया। करणी-रामदेव का युगल हरजी-रामदेव (हरजी भाटी व राम-सा पीर) की तरह भोमियों की बदी के खिलाफ संघर्ष करता रहा। उनका ‘घबराओ मत' का घोष किसानों में जोश भरने लगा । उदयपुरवाटी के किसानों के वे दोनों आँख, कान, हाथ व पाँव बन गये ।
देश की आजादी के बाद राजस्थान कृषि लगान नियंत्रण अधिनियम विधानसभा के प्रथम अधिवेशन में पारित हो गया । उसके अनुसार भोमियों को उपज का छठा हिस्सा लगान के रूप में देना तय किया । वे पहले की भांति उपज का आधा हिस्सा चाहते थे। करणी-रामदेव ने गांव-गांव जाकर नए नियमों की किसानों को जानकारी दी । उनके प्रयत्नों के फलस्वरूप क्षेत्र के किसानों में जागृति आई । फलतः वे भोमियों की आंख की किरकिरी बन गए। वे उनको मारने का षड्यंत्र रचने लगे । लोगों ने जब उनके षड्यंत्र की जानकारी करणी -रामदेव को दी तो वे बात को सुनी-अनसुनी करते आगे बढ़ते गए । महान् मतवालों के मार्ग को मौत कब रोक पाई है ।
11 मई, 1952 को जिला कलेक्टर,झुंझुनूं के आग्रह पर समझौता बैठक बुलाई गई। उदयपुरवाटी की उस बैठक में समझौता नहीं हो सका। 13 मई, 1952 को पुनः चँवरा में बैठक बुलाई गई । भोमियों ने चंँवरा का स्थान जान- बूझकर अपने षड्यंत्र को अंजाम देने के लिए चुना था । चंँवरा पहाड़ों से घिरा हुआ उन आठों ढ़हरों में से एक था जहां आठों पहरों भोमियों की तूती बोलती थी।
13 मई, 1952 को किसान चंँवरा की अलग-अलग ढ़ाणियों में दोपहर में विश्राम कर रहे थे। सेडू गुर्जर की ढ़़ाणी में करणी -रामदेव विश्राम कर रहे थे । पूरब दिशा से हथियारों से लेस घोड़ों पर चढ़े हुए कुछ लोग ढ़ाणी में आते हुए सेडू गुर्जर की लड़की नारायणी जी को दिखाई दिए। नारायणी बाई ने करणी- रामदेव को भागने या भूस के छप्पर में छुप जाने के लिए कहा परन्तु उन्होंने भागने से मना कर दिया। कहते हैं इतिहास अपने आपको दोहराता है ।नारायणी बाई की राय को नकार कर वे नर-नारायण बन गए । उस घटना के करीब 2280 वर्ष पूर्व ऐसी ही घटना यूनान में घटित हुई । यूनान में 70 वर्ष के संत सुकरात पर यह अभियोग चलाया गया था कि वह युवकों को गलत रास्ते पर ले जा रहा है । उन्हें अन्त में प्राणदण्ड सुनाया गया । जब प्राणदण्ड देने का समय आया तो उनके एक शिष्य ने जेलर से मिलकर भागने की व्यवस्था कर ली थी परन्तु सुकरात ने मना कर दिया। कंचन-काल-कामनी बड़ों-बड़ों को विचलित कर देते हैं परन्तु धन्य हैं उन शूर-वीरों को जो चंँवरा की उस ढ़ाणी में प्रत्यक्ष मौत के सामने ऐसे बैठे रहे मानो चँवरी के पास बैठे हों। हत्यारों ने आते ही गोलियां चलाई ।पाँच-पाँच गोलियां उनकी छाती व बगल में लगी और वे पंचतत्व में विलीन हो गये ।
उस घटनाक्रम के आगे लेखन प्रारंभ करते ही मेरी कलम थम गई और आँखें नम गई । पाठकों ! मेरा निवेदन है कि कुछ क्षण के लिए पढ़ना बंद कर उस दृश्य को आँखें बंद कर आत्मसात करें ........!
आपको अहसास होगा कि कितने महान् थे वे लोग ।
उदयपुरवाटी में दोपहर में ही अंँधियारा छा गया। गोलियांँ इतनी नजदीक से चलाई गई थी कि उनके कपड़े भी जल गए थे । 13 अप्रैल,1919 ई. को जलियाँवाला बाग का हत्याकांड भी ठीक ऐसा ही था ।तारीख '13' का आंकिक साम्य ही नहीं बल्कि परिस्थिति साम्य भी था ।अंतर केवल इतना था कि तब देश गुलाम था ।अब देश आजाद था ।एक अंतर ओर भी है ।वहां गोली चलाने का आदेश देने वाला जनरल डायर था ।यहां का डायर कौन था ? वह हमेशा इतिहास के गर्भ में रहेगा । उनकी शहादत परिस्थितिजन्य नहीं बल्कि प्रयत्न वरण्य थी ।
विधि की विडम्बना देखिये कि जिस दिन उदयपुरवाटी में लोकतंत्र खून से लथपथ हो रहा था ठीक उसी दिन (13 मई, 1952) भारतीय गणतंत्र की प्रथम लोकसभा की प्रथम बैठक में लोकतंत्र शपथ ले रहा था । दिल्ली में लोकतंत्र की बोली चल रही थी । उदयपुरवाटी में लोकतंत्र पर गोली चल रही थी। वहां लोकतंत्र की कक्षा आहुत हो रही थी तो यहां लोकतंत्र की रक्षा हेतु प्राणों की आहुति दी जा रही थी । वहां लोकसभा तो यहां शोकसभा । धन्य हैं मीलों-गिलों के उन लाडलों को जिन्होंने मीलों तक संघर्ष की राह ही साथ-साथ तय नहीं की बल्कि मंजिल के लिए मौत भी साथ-साथ पाकर मील के पत्थर बन गए ।उनको मारने वाले मर गए परन्तु उनकी मौत की मौत हो गई। वे अमर हैं ।
जालिम फ़लक ने लाख मिटाने की कोशिश की , हर दिल में अक्स रह गया, तस्वीर रह गई ।
हुतात्मा रामदेवसिंह जी के भाई आदरणीय शिवनाथ सिंह जी गिल ने झुंझुनू लोकसभा क्षेत्र से सन् 1971 में चुनाव लड़ा । उन शहीदों की शहादत को नमन करते हुए झुंझुनू के महान मतदाताओं ने सुप्रसिद्ध उद्योगपति घनश्यामदास बिरला के बेटे कृष्णकुमार को हरा कर सच्ची श्रद्धांजलि दी । आदरणीय शिवनाथ सिंह जी कि वह विजय विश्व स्तर पर चर्चित रही ।
आज उस घटना का 73 वर्ष हो गए हैं। आज भी सेडूराम गुर्जर की ढ़ाणी में खड़ी खेजड़ी(अक्षय जड़ी ) सायं-सायं करती हुई उस घड़ी की लोमहर्षक कहानी कह रही है । शेखावाटी का कण-कण, क्षण-क्षण उनके बलिदान का बखान कर रहा है । खेतों में चलते फव्वारों की संगीतमय रिमझिम उनका गौरव गान गा रही है । लहलहाती फसलें उन्हें नमन करती हैं । उनके लाडले सपूत खेतों में इन्द्रधनुष उतार रहे हैं । झुंझुनू के विद्यार्थी भवन(जहाँ उनका दाहसंस्कार हुआ ) व कलेक्ट्रेट तथा शहादत स्थल पर उनकी मूर्तियां लगी हुई हैं जहां पुण्य तिथि पर हर साल शहीद मेला भरता है । मेले में आसपास के काफी संख्या में क्षेत्रीय समाज के लोग श्रद्धांजलि अर्पित करने आते हैं । बुजुर्ग आज भी उनके संस्मरण सुनाते हुए भाव विभोर हो जाते हैं। मुझे कुंवर पन्नेसिंह देवरोड के सुपुत्र स्वतंत्रता सेनानी आदरणीय सत्यदेव सिंह देवरोड ने बताया की करणीराम जी टी.बी. ग्रस्त हो गए थे ।अतः वे घर से बाहर झोंपड़ी में रहते थे। मैं उनसे मिलने गया । हवा उनकी तरफ से आ रही थी। उन्होंने तुरंत मुझे कहा की हवा के विपरीत दिशा में बैठिये । टी.बी. छूत की बीमारी है ।इतना कहते-कहते सत्यदेव जी फफक- फफक कर रोने लगे । कितने संवेदनशील थे वे लोग ! लेखक चँवरा शहीद मेले में प्राय: जाता है । एक बार मैंने देखा अलगोजे पर कुछ लोग गीत गा रहे थे। मैंने पास जाकर उस लोकगीत को सुना । मैं यह जानकर हतप्रभ रह गया कि कितने उदात्त भाव लोकगीत के माध्यम से वे उन शहीदों को समर्पित कर रहे थे। लोकगीत का भावार्थ था--
- ' दिल्ली को आजादी गांँधी- नेहरू ने दिलाई
- वह दिल्ली वालों के काम आई
- उदयपुरवाटी को आजादी करणी -रामदेव ने दिलाई
- वह हमारे काम आई ।'
- शेखावाटी की किसान महिलाएं गीतों के माध्यम से आज भी आह्नान करती हैं--
- ‘फेरु आइयो करणीराम उदयपुरवाटी में,
- और रामदेव सरनाम झूंझूनूंवाटी में।'
मैं जब 9- 10 वर्ष का था तो हमारे मोहल्ले में बुआ जी उपर्युक्त गीत को भाव-विभोर होकर गाती थी। मैंने उनसे पूछा- करणी रामदेव जी कौन थे? उन्होंने कहा वे तेजा जी -रामदेव जी की तरह देवता थे। वास्तव में देवता ही थे।
भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा आजादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में स्वतंत्रता सेनानियों की बनाई जा रही फिल्मों की श्रृंखला में मार्च ,2024 में 'करणीराम - रामदेव' पर लघु फिल्म गायत्री गौशाला, कोट के माध्यम से जयपुर के सारांश स्टूडियो द्वारा सुरेश मुदगल के निर्देशन में बनाई गई है । फिल्म में करणीराम की भूमिका में लेखक है। फिल्म के माध्यम से युवा पीढ़ी को उनके प्राणोत्सर्ग एवं प्रेरणास्पद जीवनी की जानकारी युवा पीढ़ी को मिल सकेगी।
- यथा नाम तथा गुणवत,आगे -पीछे 'राम' ।
- 'रामदेवसिंह' गिल मिल,'करणी ' उत्तम काम ।।1 ।।
- दोय देह इक प्राण थे,अहिंसा मार्ग नेक ।
- ' रामदेवसिंह-करणी ',कथनी-करणी एक ।। 2।।
- मौत निकट रहे अविचल,दोनों 'सेडू'वास ।
- नारायण-'नारायणी',साखी धर-आकाश ।। 3।।
- दोनों साथी आँख थे,दोनों साथी कान ।
- दोनों साथी हाथ थे ,उदयपुरिया किसान ।। 4।।
- तेरह मई सन् बावन,सदी बीसवीं घात ।
- 'करणी-रामदे' चँवरा,हुए हुतात्मा साथ ।।5 ।।
- गए तोड़ बलिदान दे , जागीरी जंजीर ।
- 'रामदेवसिंह-करणी ',वीर धीर-गंभीर ।।6 ।।
- जोड़ी थोड़ी पावती,धरणी 'करणी' -' राम ' ।
- जीना-मरना साथ में ,हित कृषक किया काम ।।7 ।।
- जगती वीरां जात, पीरां पगिया पूजती ।
- सूरज-चंदा साथ, रहसीं 'करणी-रामदे '।।8।।
- करणी 'करणी -रामदे', खेत -खेत तस्वीर।
- 'दयाराम' शत -शत नमन, पैंतालीसा पीर।।9।।
Source - Dayaram Mahariya's Facebook Post, 13.05.2025
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