Talavana

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Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Talavana (तालवन) is name of a forest mentioned in Mahabharata and Puranas. It has been variously located 1. Talavana in Brij near Mathura, 2. Talavana around Lataveshta Parvata south of Dwarka, 3. Talavanas people located between Andhras and Kalingas.[1]

Origin

Variants

History

तालवन

विजयेन्द्र कुमार माथुर[2] ने लेख किया है ...1. तालवन (AS, p.398) ब्रज का एक वन है जहाँ श्रीकृष्ण ग्वालों के साथ क्रीड़ार्थ जाते थे-- भ्रममाणौ बने तास्मिनृ रम्ये तालवन गतै, विष्णुपुराण 5,8,1

2. द्वारका के दक्षिण भाग में स्थित लतावेष्ट नामक पर्वत के चतुर्दिक बने हुए उद्यानों में से एक है-- 'लतावेष्टं समंतात् तु मेरूप्रभव्नं महत्, भाति तालवन चैव पुष्पकं पुंडरीकवत्'

3. पाण्ड्यांश च द्रविड़ांश चैव सहितांश चॊन्ड्र केरलैः, अन्ध्रांस तालवनांश चैव कलिङ्गान ओष्ट्र कर्णिकानमहाभारत सभापर्व 31,71. यहाँ तालवन निवासियों का उल्लेख आंध्र और कलिंग वासियों के बीच में है जिससे जान पड़ता है कि यह स्थान पूर्वी समुद्र तट पर स्थित रहा होगा।

तालवन परिचय

तालवन वह स्थान है जहाँ श्रीकृष्ण और बलराम ने यादवों के हितार्थ और सखाओं के विनोदार्थ धेनुकासुर वध किया था। मधुवन से दक्षिण-पश्चिम में लगभग ढाई मील की दूरी पर यह तालवन स्थित है। यहाँ ताल वृक्षों पर भरपूर एक बड़ा ही सुहावना एवं रमणीय वन है। दुष्ट कंस ने अपने एक अनुयायी धेनुकासुर को उस वन की रक्षा के लिए नियुक्त कर रखा था। वह दैत्य बहुत-सी पत्नियों और पुत्रों के साथ बड़ी सावधानी से इस वन की रक्षा करता था। अत: साधारण लोगों के लिए यह वन अगम्य था। केवल महाराज कंस एवं उसके अनुयायी ही मधुर तालफलों का रसास्वादन करते थे।

स्कन्द पुराण[2] में इसका उल्लेख है-- 'अहो तालवनं पुण्यं यत्र तालैर्हतो सुर:। हिताय यादवानाञ्च आत्मक्रीड़नकाय च॥' स्कन्द पुराण. श्रीमद्भागवत पुराण में भी इसका उल्लेख है-- 'एवं सुहृद्वच: श्रुत्वा सुहृत्प्रियचकीर्षया। प्रहस्य जग्मतुर्गोपैर्वृतो तालवनं प्रभू॥ भागवत पुराण'.

कथा: एक दिन की बात है, सखाओं के साथ कृष्ण और बलराम गोचारण करते हुए इधर ही चले आये। सखाओं को बड़ी भूख लगी थी। उन्होंने कृष्ण-बलदेव को क्षुधारूपी असुर से अपनी रक्षा के लिए निवेदन किया। उन्होंने यह भी बतलाया कि कहीं पास से ही पके हुए मधुर तालफलों की सुगन्ध आ रही है। यह सुनकर कृष्ण और बलदेव सखाओं को साथ लेकर तालवन पहुँचे। बलदेव जी ने पके हुए फलों से लदे हुए एक पेड़ को नीचे से हिला दिया, जिससे पके हुए फल थप-थप कर पृथ्वी पर गिरने लगे। ग्वाल-वाल आनन्द से उछलने लगे।

इतने में ही फलों के गिरने का शब्द सुनकर धेनुकासुर ने अपने अनुचरों के साथ कृष्ण और बलदेव पर अपने पिछले पैरों से ज़ोरों से आक्रमण किया। बलदेव प्रभु ने अवलीलापूर्वक महापराक्रमी धेनुकासुर के पिछले पैरों को पकड़कर उसे आकाश में घुमाया तथा एक बृहत ताल वृक्ष के ऊपर पटक दिया, साथ ही साथ वह असुर मल–मूत्र त्याग करता हुआ मारा गया। इधर कृष्ण ने भी धेनुकासुर के अनुचरों का वध करना आरम्भ कर दिया। इस प्रकार सारा तालवन गधों के मल-मूत्र और रक्त से दूषित हो गया। ताल के सारे वृक्ष भी एक दूसरे पर गिरकर नष्ट हो गये। पीछे से तालवन शुद्ध होने पर सखाओं एवं सर्वसाधारण के लिए सुलभ हो गया। यहाँ बलभद्र कुण्ड और बलदेवजी का मन्दिर है। मथुरा के छह मील दक्षिण और मधुवन से दो मील दूर और नैऋत कोण में यह तालवन है।

द्वारका के दक्षिण भाग में स्थित लतावेष्ट नामक पर्वत के चतुर्दिक बने हुए उद्यानों में से एक है-- 'लतावेष्टं समंतात् तु मेरूप्रभव्नं महत्, भाति तालवन चैव पुष्पकं पुंडरीकवत्' महाभारत सभापर्व 31,71. यहाँ तालवन निवासियों का उल्लेख आंध्र और कलिंग वासियों के बीच में है जिससे जान पड़ता है कि यह स्थान पूर्वी समुद्र तट पर स्थित रहा होगा।

संदर्भ : भारतकोश-तालवन

In Mahabharata

Talavan in Mahabharata (तलवन) (II.28.48) Sabha Parva, Mahabharata/Book II Chapter 28 mentions Sahadeva's march towards south: kings and tribes defeated. Talavan (तलवन) is listed in Mahabharata (II.28.48). [3]....The hero (Sahadeva) brought under his subjection and exacted tributes from the Pandyas and the Dravidas along with the Udra and Keralas and the Andhras and the Talavanas, the Kalingas and the Ushtrakarnikas, and also the delightful city of Atavi (Roma) and that of the Yavanas.

External links

References

  1. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.398
  2. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.398
  3. पाण्ड्यांश च द्रविड़ांश चैव सहितांश चॊन्ड्र केरलैः, अन्ध्रांस तालवनांश चैव कलिङ्गान ओष्ट्र कर्णिकान (II.28.48)