Tameshvaranatha

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Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Tameshvaranatha (तामेश्वरनाथ) is Buddhist site at present village called Tama (तमा) in Hainsar Bazar Block of Sant Kabeer Nagar District in Uttar Pradesh State, India. It belongs to Basti Division .

Location

It is located 32 kms towards South from District head quarters Khalilabad, 248 KM from State capital Lucknow. Tama Pin code is 272165 and postal head office is Hainsar Bazar. Tama is surrounded by Nath Nagar Block towards North , Pauli Block towards west , Jahangir Ganj Block towards South , Belghat Block towards East. Sahjanwa , Gorakhpur, Tanda, Azamgarh are the near by Cities to Tama.[1]

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Variants

History

तामेश्वरनाथ

विजयेन्द्र कुमार माथुर[2] ने लेख किया है ... तामेश्वरनाथ (AS, p.393) खलीलाबाद स्टेशन से 6 मील दक्षिण की ओर संत कबीर नगर में कुदवा नाला है जो संभवतः बौद्ध साहित्य में प्रसिद्ध अनोमा नदी है. कुदवा से एक मील दक्षिणपूर्व की [p.394]: ओर एक मील लंबा प्राचीन खंडहर है जहां तामेश्वरनाथ का वर्तमान मंदिर है. कहा जाता है यही वह स्थान है जहां अनोमा को पार करने के पश्चात सिद्धार्थ ने अपने राजसी वस्त्र उतार दिए थे तथा राजसी केशों को काट कर फेंक दिया था. यहां से उन्होंने अपने सारथी छंदक को विदा कर दिया था-- देखें बुद्धचरित 6,57-65 'निष्कास्य तं चोत्पलपत्रनीलं चिच्छेद चित्रं मुकुटं सकेशम्, विकीर्यमाणांशुकमंतरीक्षे चिक्षेप चैन सरसीव हंसम्, 'छंदं तथा साश्रुमुखं विसृज्य' इत्यादि. युवानच्वांग के अनुसार इस स्थान पर इन्हीं तीनों घटनाओं के स्मारक के रूप में अशोक ने तीन स्तूप बनवाए थे जिनके खंडहर तामेश्वरनाथ के मंदिर के निकट हैं.

तामेश्वरनाथ मंदिर

तामेश्वरनाथ संत कबीर नगर जनपद मुख्यालय खलीलाबाद से मात्र सात कि.मी. की दूरी पर स्थित देवाधिदेव महादेव बाबा तामेश्वरनाथ मंदिर (तामेश्वरनाथ धाम) की महत्ता अन्नत (आदि) काल से चली आ रही है। वर्तमान में भी इस स्थान की महिमा व आस्था का केन्द्र होने के कारण भक्तों का तांता लगा रहता है।

जनश्रुति के अनुसार यह स्थल महाभारत काल में महाराजा विराट के राज्य का जंगली इलाका रहा। यहां पांडवों का वनवास क्षेत्र रहा है और अज्ञातवास के दौरान कुंती ने पांडवों के साथ यहां कुछ दिनों तक निवास किया था। इसी स्थल पर माता कुंती ने शिवलिंग की स्थापना की थी, यह वही शिवलिंग है।

यही वह स्थान है जहां क़रीब ढाई हज़ार वर्ष पूर्व दुनिया में बौद्ध धर्म का संदेश का परचम लहराने वाले महात्मा बुद्ध ने मुण्डन संस्कार कराने के पश्चात् अपने राजश्री वस्त्रों का परित्याग कर दिया था। भगवान बुद्ध के यहां मुण्डन संस्कार कराने के नाते यह स्थान मुंडन के लिए प्रसिद्ध है। महाशिव रात्रि पर यहां भारी संख्या में लोग यहां अपने बच्चों का मुंडन कराने के लिए उपस्थित होते है।

इसके बाद इस स्थान की महत्ता दिन-प्रतिदिन बढ़ती गयी और कालांतर में यह ताम्रगढ़ बांसी नरेश राज्य में आ गया जिन्होंने यहां पर आने वाले श्रद्धालुओं की भारी तादाद को देखते हुए मंदिर का निर्माण कराया। जहां स्थापित शिव लिंग पर जलाभिषेक व यहां रूद्धाभिषेक, शिव आराधना के लिए दूर-दराज के भक्त आते और मनवांछित फल प्राप्त करते रहते हैं।

बांसी के राजा ने क़रीब डेढ़ सौ साल पहले मंदिर की पूजा अर्चना के लिए गोरखपुर जनपद के हरनही के समीप जैसरनाथ गांव से गुसाई परिवार बुलाकर उन्हें जिम्मदारी सौंप दी। तबसे उन्हीं के वंशज यहां के पूजा पाठ का जिम्मा संभाल रहे हैं। इस बात की पुष्टि अवकाश प्राप्त शिक्षक और महंत रामरक्षा भारती करते हैं। उन्होंने बताया कि उनके पूर्वजों में एक बुजुर्ग ने तामेश्वरनाथ मंदिर के सामने जीवित समाधि ले ली थी, वे सिद्ध व्यक्ति थे। उनकी समाधि पर आज भी शिवार्चन के बाद गुड़भंगा चढ़ाया जाता है।

यह मंदिर आठ फुट ऊंचे चबूतरे पर बना हुआ है। इससे प्राचीन मंदिर परिसर में छोटे-बड़े नौ और सटे ही पांच अन्य मन्दिर है। इनमें एक मंदिर मुख्य मंदिर के ठीक सामने है जो देवताओं का नहीं अपितु देव स्वरूप उस मानव का है जिसने जीते जी यहां पर समाधि ले ली थी। समाधि लिए मानव के बारे में लोगों का कहना है कि वह समय समय पर उपस्थित होकर विघ्र बाधा व कठिनाईयों का निराकरण करते है, जिन्हें गोस्वामी बुझावन भारती बाबा के नाम से पुकारा जाता है। इन्हीं के वंशज यहां के गोस्वामी भारतीगण है, जो बाबा तामेश्वरनाथ मंदिर की देखभाल करते है।

तामेश्वरनाथ का नाम ताम्रगढ़ और बाद में तामा पड़ा। बताया जाता है कि तामा गांव के उत्तर दो बड़े तालाब थे जिसे वर्तमान में लठियहवांझझवा नाम से पुकारा जाता है। पूरब दिशा में भी इसी तरह का तालाब-पोखरे व भीटा स्थित है। इसके सटे ही कोटिया है। इस नाम से प्रतीत होता है कि यहां पर कोई कोटि या दुर्ग रहा है। पुराने लोगों का यह भी कहना है कि यहां पहले थारू जाति के लोग रहा करते थे। इसका बिगड़ा रूप तामा है जो अब तामेश्वरनाथ धाम नाम से प्रचलित है।

तामेश्वरनाथ मे वैसे तो हर सोमवार को लोग आकर जलाभिषेक करते है और मेला जैसा दृश्य रहता है। लेकिन वर्ष में तीन बार यहां विशाल मेला लगता है जिसमें ज़िले ही नहीं पूरे पूर्वांचल के लोग जुटकर जलाभिषेक करते है।


संदर्भ भारतकोश-तामेश्वरनाथ मंदिर

External links

References