Tarawati Bhadu

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Author: Laxman Burdak IFS (R)
Smt. Tarawati Bhadu

Smt. Tarawati Bhadu (born:10.5.1938) was a social reformer and educationist from Rajasthan. She was born in the family of freedom fighter Hanuman Singh Budania of Dudhwa Khara village of Churu district in Rajasthan, India. She was married to Hajari Lal Bhadu of village Badopal in district Hanumangarh, Rajasthan in 1953. She started Government job as a teacher and retired as District Education Officer in 1995. She has done commendable work in the fields of women education, women empowerment and rehabilitation of war widows. Her youngest son Ajay Bhadu is IAS 1999 batch serving in Gujarat Cadre.

तारावती भादू पर पुस्तक

तारावती भादू के जीवन पर आधारित पुस्तक:माटी की महक

माटी की महक (तारावती भादू: व्यक्तित्व एवं कृतित्व), संपादक: शिशुपाल सिंह 'नारसरा', प्रकाशक: साहित्य संसद, रोडवेज बस स्टेंड के पास, फतेहपुर शेखावाटी, राजस्थान-332301 ISBN:978-81-926510-2-6, वर्ष: 2014

तारावती भादू जी के 75 वर्ष की आयु पूर्ण करने के अवसर पर आपका अमृत महोत्सव 9.2.2014 को सीकर में मनाया गया और आपके व्यक्तित्व एवं कृतित्व को उजागार करने वाले ग्रंथ माटी की महक का प्रकाशन किया गया। प्रस्तुत लेख में विवरण मुख्यत: इसी पुस्तक से लिया गया है तथा पैरा के अंत में पृष्ठ का उल्लेख किया गया है।

तारावती भादू का जीवन परिचय

तारावती भादू

आपका जन्म 10 मई 1938 को वरिष्ठ स्वतन्त्रता सेनानी श्री हनुमान सिंह बुड़ानिया के घर श्रीमती लक्ष्मी देवी की कोख से गाँव दूधवा-खारा जिला चुरू में हुआ। (पृ.6)

आपने जन-जीवन की पीड़ा हरने के लिए न केवल सपने देखे बल्कि सपनों को हकीकत में बदलने के लिए सतत क्रियाशील रहती हैं। आपने साक्षरता के वातावरण निर्माण हेतु गाँव-गाँव में जन सभायें की, जन-चेतना रेलियाँ निकाली, प्रभातफेरी, कला जत्थों के संस्कृतिक कार्यक्रम, नुक्कड़ नाटक, महिला जाजम आदि कार्यक्रम आयोजित कर शिक्षा और साक्षरता को सामाजिक बदलाव का मिशन बनाया। (पृ.8)

खेती और किसानी के नए तरीके ईजाद किए। पापड़-मंगोड़ी, आचार-मुरब्बा, सिलाई-बुनाई के प्रशिक्षण एवं अन्य रोजगार परक योजनाओं को साक्षरता से जोड़ा गया। सामाजिक बुराईयों, रूढ़ियों, कुरीतियों से मुक्ति की मुहिम चलाई। दलित, शोषित, पीड़ित, एवं उपेक्षित ग्रामीणों विशेषकर महिलाओं में नव-जीवन का संचार किया। बच्चों के लालन-पालन से लेकर उनके स्वास्थ्य एवं शिक्षा तक के मार्ग बताए। (पृ.8)

अपनी प्रतिभा और कार्यक्षमता के बल पर आपने अनेक विभागों एवं स्वयंसेवी संस्थाओं को मार्गदर्शन ही नहीं, अपनी सेवाएँ भी दी। उप जिला शिक्षा अधिकारी, छात्र संस्थाएं रहते हुये आप सीकर-झुंझुणु दोनों जिलों की प्रभारी रही। जिला प्रौढ़ शिक्षा अधिकारी, सीकर रहते हुये जिला शिक्षा अधिकारी, सीकर का दायित्व वहाँ किया। साथ ही परियोजना निदेशक, महिला विकास सीकर और चुरू के दायित्वों का कुशलता से निर्वहन करते हुए राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई। आपने कार्यकर्ताओं की एक फौज तैयार की तथा समय-समय पर उनकी पीठ थपथपाकर अपनी सफलता का श्रेय उन्हें दिया। (पृ.9)

तत्कालीन मानव संसाधन मंत्री पी.शिव शंकर के उन उद्गारों का यहाँ उल्लेख करना समीचीन होगा जो उन्होने प्रौढ़ शिक्षा निदेशालय भवन के उदघाटन अवसर पर कहे थे -

"मैं राजस्थान से तारावती भादू की साक्षरता संबंधी रिपोर्ट को पढ़ता रहा हूँ। उन्हीं में आंशिक शंसोधन कर हम पूरे राष्ट्र में लागू करते हैं। आज मैं इस विदुषी महिला के दर्शन कर पाया। मैं इन्हें प्रणाम करता हूँ।" (पृ.12)

ये पंक्तियाँ अगले दिन राजस्थान पत्रिका के मुख पृष्ठ पर कोष्ठक में छपी, जिन्हें पढ़कर कार्यकर्ताओं एवं आपकी टीम का सिर तो गौरव से ऊंचा हुआ ही, पूरे राजस्थान का शिक्षा जगत गौरवान्वित हुआ। (पृ.12)

एक और घटना का उल्लेख करना भी यहाँ समीचीन होगा। प्रौढ़ शिक्षा एवं साक्षरता के क्षेत्र में जब सीकर भारत के नक्शे पर चमकने लगा तो एक दिन अकस्मात टाइम्स ऑफ इंडिया की विदुषी पत्रकार उषा राय सीकर पधारी और सारे प्रौढ़ शिक्षा केन्द्रों की सूची प्राप्त कर 10-15 केन्द्रों को रेखांकित कर तत्काल अवलोकन का मन बनाया। वे यहाँ की गतिविधियों से इतनी प्रभावित हुई कि एक लंबा आलेख टाइम्स ऑफ इंडिया में Literacy wave in Rural Rajasthan शीर्षक से लिखा जिसे आगे यथावत अङ्ग्रेज़ी में प्रकाशित किया जा रहा है। (पृ.12)

विनम्र स्वभाव, मृदुभाषिता और क्षमाशीलता आपके व्यक्तिगत चरित्र की विशेषताएँ हैं। राज्य सेवक होने के नाते आप समय की पाबंद, कल्पना शक्ति और अपने कार्य निष्पादन में सुनियोजित रही। (पृ.74)

आपने अध्यापक के पद से अपना कार्य शुरू किया तथा 1995 में आप जिला शिक्षा अधिकारी पद से सेवानिवृत हुई। (पृ.80)

सीकर प्रवास के समय आपके जीवन में एक नया मोड़ आया। आपकी लोकप्रियता एवं पारिवारिक पृष्ठभूमि के मद्देनजर आपको सीकर विधानसभा क्षेत्र से विधायक के चुनाव हेतु चयन किया गया। आपने स्वैच्छिक सेवानिवृति हेतु आवेदन दे दिया। जब इस बात का पता आपके नजदीकी और तत्कालीन राजनीतिज्ञों को लगा तो खलबली मच गई। ईर्ष्यावश सभी आपके विरोध में आ खड़े हुये। इससे दुखी होकर आपने चुनाव न लड़ने का मन बनाया। तत्कालीन मुख्यमंत्री और पार्टी अध्यक्ष से आग्रह कर अपना स्वैच्छिक सेवानिवृति का आवेदन वापस लेकर त्याग एवं निस्वार्थता का परिचय दिया। (पृ.81)

आप भारत स्काऊट गाईड एसोसियशन 'जिला कमिश्नर गाईड' तथा 'स्टेट कमिश्नर गाइड' रही। गाइड कमिश्नर की परंपरागत वेषभूषा में आपका जोश एवं ओजस्वी भाषण अत्यंत प्रेरक होता था। (पृ.81)

राजस्थान सरकार ने 1983 में शिक्षा के उच्चतम सम्मान 'राज्य स्तरीय शिक्षक पुरस्कार' से आपको नवाजा है। (पृ.82)

सेवा निवृति के उपरांत भी आप लगातार शिक्षा एवं अन्य समाज सेवा की गतिविधियों से जुड़ी हुई हैं। आप लगातार महिला शिक्षा, महिला अधिकारिता, महिला समानता तथा महिला के अतीत के खोये गौरव को लौटने के लिए प्रयासरत हैं। (पृ.82)

भारत सरकार मानव संसाधन विकास मंत्रालय नई दिल्ली के जोइन्ट सेक्रेट्री एवं डाइरेक्टर जनरल, राष्ट्रीय साक्षरता मिशन लक्ष्मीधर मिश्रा 1 अक्तूबर 1988 को सीकर पधारे तथा फील्ड विजिट के अंतर्गत जिले के जन शिक्षण निलयम केंद्र खूड़ पर पहुँच कर केंद्र की चल रही गुणात्मक गतिविधियों की जानकारी ली। वे यहाँ के कामों से काफी प्रभावित हुये तथा तारावती भादू द्वारा जिले में साक्षरता अभियान में किए गए कामों को मिसाल बताया। श्री मिश्रा ने दिल्ली से जारी अपनी रिपोर्ट की शुरुआत ही खूड़ केंद्र से की तथा सीकर जिले को अन्य क्षेत्रों के लिए अनुकरणीय उदाहरण बताया। (पृ.89)

आपने स्वामी केशवानन्द के इन अमूल्य विचारों को जीवन में उतारा है,"मैं इस संसार में केवल एक ही बार आया हूँ इसलिए यदि कोई अच्छा काम कर सकूँ व किसी मनुष्य के प्रति दया दिखा सकूँ तो मुझे अभी कर लेना चाहिए। उसे आगे के लिए स्थगित नहीं करना चाहिए क्योंकि मुझे इस रूप में दुबारा नहीं आना है।" (पृ.94)

आपके द्वारा आयोजित बहू आयामी विशाल जन जागृति सम्मेलनों में आपके नाम से स्वत: जन समुदाय का सैलाब उमड़ पड़ता था। सम्मेलनों का उद्देश्य जन-जागरण, विकास, शिक्षा व राष्ट्रीयता आदि रहा है। ग्राम दूधवा, उदयपुरिया मोड, रुकनसर, लाम्पुआ, भीखनवासी, सीकर नगर (1988, 16.9.93), कुडली, उदयपुरा, गोठड़ा तगेलान, गोठड़ा भुखरान, सेवद बड़ी (27.7.1993) आदि में हुये जन जागृति सम्मेलन इसके जीते जागते उदाहरण हैं। (पृ.94)

आपने पीलीबंगा क्षेत्र में शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए केशव विद्यापीठ शिक्षण समिति पीलीबंगा के माध्यम से लोगों में शिक्षा का अलख जगाया। घर-घर जाकर बच्चों और उनके मातापिता को अच्छे से अच्छे शिक्षण संस्थान में पढ़ने के लिए प्रेरित किया। (पृ.112)

तारावती भादू की टीम के सिपाही: आपकी टीम के सिपाही भी आपके साथ कदम से कदम मिलाते हुये सराहनीय कार्यों की मिसाल कायम करने में साथ रहे। ये हैं:

विभिन्न संस्थाओं और कार्यक्रमों से जुड़ाव

विभिन्न संस्थाओं और कार्यक्रमों से तारावती भादू का जुड़ाव रहा वे संक्षेप में निम्नानुसार हैं:

  • राजस्थान प्रौढ़ शिक्षण समिति, जयपुर तथा राज्य संदर्भ केंद्र (S.R.C.) जयपुर जो समिति के तत्वावधान में संचालित NGO है, से आप जुड़ी रही हैं। (पृ.484)
  • आपने वार विडोज़ असोशिएशन, सीकर की अध्यक्ष रहते हुये संकटग्रस्त महिलाओं, विधवाओं, परित्यक्ताओं के लिए सीकर में अल्प आवास गृह संचालित किया। इस एसोशिएशन की राष्ट्रीय आध्यक्ष श्रीमती वी. मोहिनी गिरि ने सीकर का दौरा कर ग्राम सभाओं, महिला जाजमों, एवं जनजागरण के कार्य देखकर खूब प्रशंसा की।(पृ.484)
  • आप भारत स्काऊट गाईड एसोसियशन 'जिला कमिश्नर गाईड' तथा 'स्टेट कमिश्नर गाइड' रही। जयपुर ग्रामीण रेंजरींग गतिविधि, महिला रेंजर्स द्वारा गांवों में जागृति का अलख जगाया। (पृ.845)
  • 'समाज कल्याण एवं न्याय अधिकारिता' के क्षेत्र में निशक्त जन सहायता व जागरूकता के संदर्भ में समाज कल्याण विभाग से समन्वय स्थापित कर विभिन्न सेवा कार्य किए। (पृ.486)
  • सामाजिक कुप्रथाओं (दहेज, बाल विवाह, मोसर तथा विशेषकर सती प्रथा) उन्मूलन का कार्य किया। (पृ.486)
  • महिला सशक्तिकरण की सुदृढ़ आधारशिला रखी; शिक्षा, साक्षरता प्रसार के माध्यम से। ग्राम में ग्राम सभाएं, जन जागरण, महिला जाजम का आयोजन। राजस्थान की विधवाओं व एकल नारियों के संगठन से जुड़ाव। एक दूसरे की मदद और बदलाव के लिए कार्य करने हेतु। (पृ.486)
  • 'व्यापक साक्षरता प्रसार' हेतु विद्यालयों से जुड़कर विद्यार्थियों को साक्षरता स्वयं सेवक तैयार करने का कार्य किया। 'विद्यार्थी संगठनों का गठन'। (पृ.486)
  • राजस्थान के पारंपरिक ज्ञान संरक्षक समिति का गठन सीकर (राजस्थान); पारंपरिक ज्ञान कार्य में संलग्न। प्रत्येक घर, परिवारों से जुड़कर कार्य किया। यथा औषध विज्ञान, कृषि विज्ञान आदि। (पृ.486)
  • संस्कृतिक मूल्यों के संरक्षण की रक्षा, आध्यात्मिक संरक्षण का कार्य, मानवीय मूल्यों के सुदृढ़ीकरण हेतु कार्य। राष्ट्रीय मूल्यों एवं राष्ट्रीय इतिहास, स्वतन्त्रता आंदोलनों की जानकारी। (पृ.486)
  • मंदिरों, मस्जिदों के माध्यम से जागृति; धर्म गुरुओं का सहयोग प्राप्त करना। (पृ.486)
  • राष्ट्रीय अल्प बचत योजनाओं का संचालन व सहयोग किया। (पृ.487)
  • मायड़ भाषा की हिमायती। मायड़ भाषा राजस्थानी की संवैधानिक मान्यता हेतु संकल्पित संघर्ष में रत। (पृ.487)
  • महावीर इन्टरनेशनल संस्था से जुड़ाव व सेवा कार्य। कन्या भ्रूण हत्या रोकने के लिए गर्भस्थ शिशु संरक्षण समिति को सम्पूर्ण योगदान। (पृ.487)
  • रचनाधर्मियों, लेखकों, कवियों, रचनाकरों की रचनाओं का सृजन व जागृति कार्य। (पृ.487)
  • ग्रामीण महिला शिक्षण संस्थान, सीकर की प्रथम महिला सहायक, संयोजन कार्यकारिणी की प्रथम महिला सदस्य। (पृ.487)
  • स्वामी केशवानन्द ट्रस्ट मण्डल, संगरिया की मानद सदस्य, स्वामी जी के 'समाज शोधन कार्यक्रम' के नए आयाम स्थापित किए। समूचे राजस्थान में सेवा कार्य को अंजाम दिया। (पृ.487)
  • 'सौर चेतना एवं सेवा विकलांग संस्थान जिला हनुमानगढ़' के साथ समन्वय और सहयोग। (पृ.488)
  • 'केशव विद्यापीठ शिक्षण समिति पीलीबंगा मंडी' जिला हनुमानगढ़ की अध्यक्ष (पृ.488)
  • 'पशु क्रूरता निवारण जिला समिति सीकर' की सक्रिय सदस्य। (पृ.488)
  • 'जीव दया मंडलों' का गठन, महिला समिति सीकर की जिला अध्यक्ष रही। (पृ.488)

अमृत महोत्सव

विगत 6 दशकों से से शिक्षा से सामाजिक बदलाव की मसाल थामे तारावती जी अपने 75 बसंत देख चुकी हैं। इस अवसर पर आपका अमृत महोत्सव 9.2.2014 को सीकर में मनाया गया और आपके व्यक्तित्व एवं कृतित्व को उजागार करने वाले ग्रंथ माटी की महक का प्रकाशन किया गया। (पृ.6)


दैनिक भास्कर सीकर ने यह समाचार प्रकाशित किया - शिक्षा एवं सामाजिक क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने वाली पूर्व जिला शिक्षा अधिकारी तारावती भादू को उनके जीवन के 75 वर्ष पर साहित्य संसद की ओर से सम्मानित किया गया। रेलवे के सामुदायिक भवन में आयोजित अमृत महोत्सव समारोह में उनके सहयोगी रहे कई रिटायर्ड अधिकारी भी यहां पहुंचे। भादू परियोजना निदेशक महिला विकास भी रहीं थीं, इसलिए पूर्व में महिला एवं बाल विकास विभाग की सचिव एवं राजस्थान की मुख्य सचिव रही राष्ट्रीय बाल संरक्षण एवं अधिकार आयोग की राष्ट्रीय अध्यक्ष कुशल सिंह ने भी यहां बतौर मुख्य अतिथि शिरकत की। अध्यक्षता कार्यवाहक सभापति विमल कुलहरि ने की। इस दौरान राष्ट्रीय अध्यक्ष कुशल सिंह ने शिशुपाल सिंह नारसरा द्वारा तारावती भादू के व्यक्तित्व पर लिखी पुस्तक माटी की महक, का विमोचन भी किया। समारोह में स्कूली बच्चों ने महिला शिक्षा, भ्रूण हत्या आदि पर कार्यक्रम पेश करते हुए लोगों को भाव विभोर कर दिया। समारोह में स्वामी राघवाचार्य वेदांती, स्वामी सुमेधानंद सरस्वती, प्रदेश के पूर्व लोकायुक्त पीपी सिंह, सीकर के पूर्व एडीएम ताराचंद सहारण, ईएसआई निदेशक एम.पी. बुडानिया, उप जिला प्रमुख पूरण कंवर सहित अनेक लोग मौजूद रहे।[1]

तारावती भादू की अनुभूतियाँ

नोट: माटी की महक (तारावती भादू: व्यक्तित्व एवं कृतित्व) पुस्तक के पृष्ठ 31-38 पर "मेरी अनुभूतियाँ" अध्याय के अंतर्गत तारावती जी ने स्वयं के जीवन संस्मरण दिये हैं जो यहाँ प्रस्तुत किए जा रहे हैं:

जब मैंने समझ पकड़ी स्वत: यह अनुभूति होने लगी कि मेरी सादगी में मेरी माँ का भरपूर सहयोग रहा है। उसी का परिणाम है कि मैं तड़क-भड़क से सदैव दूर रही। सादा जीवन उच्च विचार की पोषक रही। तन से और मन से मैंने सादगी पसंद की।

गरीब किसान परिवार में पैदा हुई। मेरी माँ की सादगी का साया सदैव मेरे साथ रहा। उन्हीं की प्रेरणा सदैव मेरे साथ रही। जीवन में अनेक बाधाएँ आती हैं। अपितु उन बाधाओं को मैंने हँसकर झेला। भयमुक्त होकर जीवन जिया। सहजता मेरे जीवन की संगिनी रही। माता-पिता की भावना, जो मेरे लालन-पालन में छिपी हुई है, स्पष्ट देखी जा सकती है। मैं हमेशा 'निंदक नियरे राखिए, आँगन कुटि छवाय' की समर्थक रही। (पृ.31)

मेरी औपचारिक शिक्षा केवल 8 वीं कक्षा तक हुई। मैंने अपनी शेष स्नातकोत्तर तक उपाधि स्वाध्याय तथा शिक्षक बनने के लिए बी.एड. नियमित शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान बीकानेर से किया। मैंने यद्यपि शिक्षण कार्य 10वीं उत्तीर्ण करने के पश्चात ही प्रारम्भ कर दिया था। यह बात 1954 की है। मैं 75 रुपये मासिक मात्र में कन्या विद्यालय संगरिया, जो स्वामी केशवानन्द जी द्वारा प्रारम्भ किया गया, नौकरी करती थी। मेरे पति श्री हजारीलाल भाादू स्वामी केशवानन्द जी की कुटिया में उनकी अवैतनिक सेवा सुश्रुवा करते थे तथा संस्था के आनरेरी लाईब्रेरियन भी रहे। चूंकि उस समय इंटरमीडिएट पास थे और किसान पिता स्वर्गीय मनीराम भादू ने उन्हें पढ़ने का खर्च देने से इंकार कर दिया था। मेरे श्वसुर मेरी शादी की घटना से काफी रुष्ट रहे, लंबे समय तक और अपनी पैतृक चल-अचल संपति, जमीन, घर आदि किसी संपति में से अपने बेटे को हिस्सा नहीं दिया। (पृ.33)

खैर ! मेरी प्रेरणा गुरु माँ, संरक्षक पिता तथा जीवनसाथी श्री हजारीलाल जी भादू जी ने 1954 से मेरी बागडोर अपने हाथ में संभाली और मेरे स्वाध्याय में कभी विघ्न नहीं डाला। मेरे पति के पास अपनी पत्नी को देने के के लिए कुछ नहीं था - रोटी, कपड़ा और मकान। बस परमपिता परमेश्वर की यही कृपा मुझ पर रही जिसके बल पर मैंने चेतना पाई, शिक्षा ग्रहण कर सकी और जीवन में एक वैज्ञानिक सौच के साथ कार्यात्मक जीवन जीना सीखा। (पृ.34)

खेजड़ी का वृक्ष

शादी से पूर्व अपने पिता के घर पर 14 वर्ष की उम्र तक खेजड़ी छांगी थी। लूंग की पतियाँ चारे के रूप में ऊंटों व बकरियों को खिलाते थे। पैदावार में केवल बाजरा, ग्वार की कुछ बोरियां, यदि बरसात होती तो, हो जाती थी अन्यथा अकाल। यह बात चुरू जिले की है जहां खेती मानसून का खेल होती है। (पृ.34)

अपनी पढ़ाई का खर्च, पेंसिल, साँठी, कापियाँ, कागज, स्लेट, तख्ती का खर्चा गाय भैंस चराकर, घास खोद कर, घास काटकर, भरोटी लाकर चलाना पड़ता था। पिताजी पुलिस में मुनसी थे और राष्ट्रीयता के भावों और देश-भक्ति से ओत-प्रोत होकर 1942 में नौकरी छोड़ चुके थे। तब मैं 5 वर्ष की थी। छोटी बहन 3 वर्ष की, एक भाई जो हम तीन बहनों में सबसे बड़े थे, उस समय 8 वर्ष के थे श्री रणवीर सिंह एडवोकेट। गाँव के जागीरदार ठाकुर सूरजमल सिंह के अन्याय के विरुद्ध मेरे युवा पिता चौधरी हनुमान सिंह ने पुलिस की नौकरी छोड़ दी। दो जून की रोटी के लाले पद गए, तीस पर भी आजादी का जुनून सिर पर सवार था। आए दिन फिरंगियों की पुलिस घर पर हम सबको परेशान करती थी। एक भैंस थी जिसका दूध वे ले जाते थे। हम बच्चे, औरतें (मेरी माँ, दादी, चाची-ताई) उन फिरंगी पुलिस वालों की हरकतों, गालियों का शिकार रहती। हमें पिताजी के घर आने पर केवल यह सिखाया जाता था बोला करो, नारे लगाया करो-"जागीरदारी प्रथा का नाश हो, "जयहिंद", "भारत माता की जय" । आजादी के तराने शिखाए जाते थे यथा 'एक चवन्नी तेल में, गांधी बाबो जेल में' 'ए नौजवानों, हाँ भाई हाँ, एक काम करोगे। क्यों भाई क्यों ? एक चीज मिलेगी। क्या भाई क्या? आजादी। वाह भाई वाह।' (पृ.34)

ये सुनकर पुलिसवाले दौड़े आते, कोई बच्चा मिल जाता तो बेंत से मारते। हम बच्चों को यह सिखा दिया था कि तुम छोटे पत्थर इकट्ठे करके रखा करो, सिपाहियों को मारा करो। एक बार हम सबने मिलकर बीकानेर में मौन जुलूस निकाला। तब सिपाही हमारे पीछे चल दिये। मेरी माँ ने तिरंगा झण्डा छुपा रखा था। बीकानेर कोटगेट दरवाजे पर पहुँचते ही झण्डा लहरा दिया और हाथ ऊंचा करके बोले - 'जयहिंद, भारत माता की जय'। बस फिर क्या था? पुलिस हम सबको एक कैंटर में भरकर जेल ले गई। हम बच्चे, बूढ़े, जवान, औरतें सब जेल में भूखे प्यासे ही रहे। उधर पिताजी अनूपगढ़ किले में कैद थे। उन्होने आजीवन भूख हड़ताल करदी थी। बिना पानी रोटी साढ़े तीन फुट लंबी काल कोटरी में बंद थे। यह 65 दिन तक चली। असीम यातनायें दी जा रही थी। अपराध यह था कि राजा की आज्ञा की अवहेलना की। आज्ञा थी कि गाँव दूधवा खारा छोड़ दो, जागीरदार सुरजमल सिंह का विरोध मत करो। तत्कालीन राजा ने कहा कि एक हजार मुरबा जमीन दे दूँगा, गाँव छोड़ दो। किन्तु स्वाभिमानी देशभक्त कब मानने वाला था। पिताजी को कठोर यातनायें दी जाने लगी। 65 दिन पश्चात 35 किलो वजन शेष बचा था। तब जवाहर लाल नेहरू ने राजा शार्दूल सिंह को यह कहकर मेरे पिताजी को रिहा कराया था कि हनुमान सिंह अगर जेल में मर गया तो खूनी क्रांति हो जाएगी। (पृ.35)

इन विकट परिस्थितियों में नहाना तो क्या महीनों बाल धोना भी हमारे लिए मुश्किल होता था। एक तो उम्र में छोटी थी दोनों बहन, दूसरा न साबुन होती थी न तेल। कभी-कभी मेट या खट्टी छाछ से अपने बाल धोती थी। छान-छप्पर के स्कूल में हम बच्चे पढ़ते, न दूध, न सब्जी, न घी न छाछ। कुपोषण की शिकार (पृ.35)

विधानसभा अध्यक्ष सुमित्रा सिंह ने मुझसे एक बार पूछा था ताराजी, आपने अपना स्वस्थ्य खो दिया मैं तो आपसे 4 वर्ष बड़ी हूँ किन्तु स्वस्थ हूँ। कारण बताओ! पढ़ी लिखी सेवानिवृत जिला शिक्षा अधिकारी का उत्तर था - विस्तार से तो दीदी कभी फिर बताऊँगी, अभी तो केवल इतना बता रही हूँ कि मैं किस बीमारी से त्रस्त हूँ। मेरा रुँधे गले से उत्तर था- पारिवारिक, सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक परिवेश से जो संघर्ष करना पड़ा उसी कुपोषण का शिकार हूँ। ऐसे में क्या पढ़ाई? कैसी शिक्षा? कैसा स्वस्थ्य होना चाहिए, आप अनुमान लगा सकते हैं;यह कटु सत्य है। (पृ.36)

मेरा छोटा भाई कर्नल सुरेन्द्र अवश्य आजादी के सूर्योदय के बाद जन्म, जो मुझसे 15 साल छोटा है। उसकी शिक्षा दीक्षा में यथा शक्ति समर्पित भावनाओं से मैं जुड़ी रही। उसकी सफलता उसके परिश्रम का ही प्रतिफल है। मैंने अपने लिए कभी श्रेय प्राप्ति की कामना स्वप्न में भी नहीं की। ले. कर्नल डॉ. सुरेन्द्र कुमार (सी.ओ.) यूनिट प्रभारी, 2008 एम्बुलेन्स, मेरा छोटा भाई; उसके प्रति प्यार के आँसू अनायास ही छलक पड़े। मुंह से निकला, छलछलाए आँखों से कहा- मैं तो धन्य हो गई सुरेन्द्र। आशीष भाव से सिर पर हाथ फेरते हुये मैं जो कुछ उस समय कह गई वे शब्द सुरेन्द्र को सदैव प्रेरणा देते रहेंगे, ऐसा मेरा विश्वास है। यह कथ्य बघा बॉर्डर देखने गए उस वक्त का है। (पृ.36)

मेरा सम्पूर्ण जीवन संघर्षों, झंझावतों, व्यथाओं, अभावों से परिपूर्ण रहा जिन्हें मैं कछुओं की संज्ञा देती हूँ। प्रयत्नों के बावजूद मैं उस सुख को न पा सकी जिसका लक्ष्य मैंने अपने जीवन में बनाया था। केवल एक मात्र मेरा (पृ.36)

सबसे छोटा बेटा अजय का आई.ए.एस. बनने का सुख मुझे दे गया, जिसके सहारे मैं जीवित हूँ। क्योंकि मैंने अपनी जीवन यात्रा के दौरान लक्ष्य की प्राप्ति हेतु यह आयाम निश्चित किया था। इस पद पर रहते हुये शक्तियाँ बहुत होती हैं, गरीबों का भला करने की। शेष मेरे तीनों बेटे भी उच्च पदों पर आसीन हैं और अच्छा कार्य कर रहे हैं। विजय डाक्टर है, संजय डी.एफ.ओ. है और अजय आई.ए.एस. । मेरी सम्पूर्ण ताकत चारों बेटों और एक भाई में है। (पृ.37)

लोगों ने चाहे मुझ पर विश्वास किया हो या न किया हो लेकिन मुझे स्वयं पूरा भरोसा था कि मैं व्यवस्था परिवर्तन का काम कर सकती हूँ। चलते-फिरते सिरफिरे लोग कह दिया करते थे - रोजाना एक चम्मच अमृत यदि खारे समुद्र में डाला जावे तो क्या समुद्र मीठा हो जाएगा? राम-सेतु निर्माण में लगी गिलहरी की भांति मैं तो अपने मिशन में लगी रही और दृढ़ संकल्पित थी। विश्वास रखा कि मैं प्रौढ़ शिक्षा के माध्यम से व्यवस्था परिवर्तन का काम कर सकती हूँ। इसी कारण से मैं विपरीत हवाओं और विरोधों के बावजूद भी अपने काम को आगे गति देती रही यथा सीकर, झुंझुणु और चुरू जिलों में प्रौढ़ों की साक्षरता का अलख जगाया। कार्यक्रमों से जुड़ी महिलाएं नींव की पत्थर साबित हुई। आज प्रौढ़ शिक्षा की (राजस्थान) भव्य इमारत जागृत महिलाओं के बल पर टिकी हुई है। प्रौढ़ शिक्षा, महिला विकास का कृत्य ऐसा किया जैसे मुझे कोई देख ही नहीं रहा है। (पृ.37)

मेरे विचारों ने मेरा संसार बदल दिया और मैं औपचारिक शिक्षा के क्षेत्र में कीर्तिमान बनाने वाली एक शिक्षा अधिकारी 48 प्रतिशत अंक प्राप्त करने वाली छात्राओं के शिक्षण का कार्य छोडकर जीवन की समग्र समझ पैदा करने के लिए समाज के गरीब, दीन-हीन, अनपढ़, पिछड़े लोगों, स्त्री-पुरुषों (15-35 आयु वर्ग) के बीच काम करने लगी। महिलाओं के उत्थान हेतु अनेक कार्यक्रम आयोजित कर उनमें कर्म के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण स्थापित क्या। उन्हें आत्मनिर्भर बनाया। (पृ.38)

जिले में श्रीमती वी. मोहिनी गिरि राष्ट्रीय अध्यक्ष की असीम कृपा से 'राष्ट्रीय वार विडोज़ असोसियेशन' के तत्वावधान में संकटग्रस्त महिलाओं, विधवाओं , पारित्यक्ताओं के लिए सीकर में 'अल्प आवास गृह' संचालित किया। जिनमें महिलाओं को रिहैबिलिटेट या पुनर्स्थापित कर बसने हेतु विभिन्न औद्योगिक गतिविधियों का प्रशिक्षण दिया गया। श्रीमती माग्रेट अल्वा इसी अल्प आवास गृह की गतिविधियों का निरीक्षण करने शहीद दिवस 1998 को सीकर श्रीमती मोहिनी गिरि के साथ टीम सहित पधारी थी। टीम में सुस्री गिरिजा व्यास, श्रीमती कांता खतूरिया, श्रीमती रेणुका बनर्जी साथ थी। (पृ.38)

बहादुर बाप की बहादुर बेटी

नोट: माटी की महक (तारावती भादू: व्यक्तित्व एवं कृतित्व) पुस्तक के पृष्ठ 62-65 पर "बहादुर बाप की बहादुर बेटी" अध्याय के अंतर्गत तारावती जी के संबंध में प्रो. जयनारायन पूनियां (M:94139-75406) ने अपने जीवन संस्मरण दिये हैं जो यहाँ प्रस्तुत किए जा रहे हैं:

शिक्षा: संगरिया के महिला आश्रम जहां प्रयमरी स्कूल और छात्रावास चलता था में मेरी नियुक्ति 70 रुपये महिना में हुई। यहीं 1952 में मेरी मुलाक़ात तारावती भादू से हुई। उस समय वह तारावती बुड़ानियां थी और उम्र थी 14-15 वर्ष। यहाँ वह छात्रावास में रहती थी और लड़कों के हाई स्कूल में 8वीं में पढ़ती थी। लड़कियों के स्कूल नहीं थे। स्वामी केशवानन्द ने पहली बार इस क्षेत्र में लड़कियों का स्कूल प्रारम्भ किया गया था। 1952 में स्कूल में 6ठी कक्षा शुरू हुई। मैं इस स्कूल में प्रधानाध्यापक नियुक्त हुआ। तारावती भादू ने उसी समय संगरिया ग्रामोत्थान विद्यापीठ हाई स्कूल से 8 वीं कक्षा पास की। (पृ.62)

शादी: जनवरी 1953 में बड़ोपल निवासी हजारीलाल भादू से तारावती का विवाह बड़े नाटकीय ढंग से हो गया। हजारीलाल भादू उस समय पुस्तकालय में अवैतनिक सेवा देते थे। इस विवाह से पहले पंजाब के गाँव दिघावाली में हजारीलाल भादू की सगाई हो चुकी थी। तारावती के पिताश्री हनुमान सिंह बुड़ानीया बड़े निर्भीक स्वतन्त्रता सेनानी रहे। वे अपनी पुत्री का विवाह सम्पन्न घराने में करना चाहते थे। हजारीलाल भादू एक सम्पन्न परिवार के नवयुवक थे। हनुमान सिंह ने हजारीलाल भादू को यह कहकर मनाया कि मेरी लड़की जैसी समझदार, पढ़ी-लिखी और सुंदर आपको दूसरी नहीं मिलेगी। लड़की आपकी देखी हुई है। मैं अपनी पुत्री का विवाह आपके साथ कर दूँगा। वे हजारीलाल भादू को दूधवा खारा ले गए और वहाँ उनका विवाह कर दिया। दूसरे दिन बड़ोपल के लिए गाड़ी में बैठा दिया। (पृ.63)

हजारीलाल भादू और तारावती स्टेशन पर आए तो उनके परिवार वालों ने गलियाँ दी तथा गाँव में प्रवेश नहीं दिया। तारावती को विशेषकर लज्जित किया गया और कहा कि तुमने एक नया उदाहरण पेश कर दिया कि लड़की भी लड़के को भगा ले जाती है। हजारीलाल भादू तो वापस संगरिया आ गए और तारावती को उनके पिताजी वापस अपने गाँव ले गए। तारावती का दाखिला बागला हाई स्कूल चुरू में करवा दिया जहां से उन्होने 1954 में हाई स्कूल पास की। (पृ.63)

सगाई करने वाले लोग उन्हें पीटने के लिए संगरिया पहुँच गए। स्वामी केशवानन्द ने उन्हें समझाया कि इन्होने कोई बुरा काम नहीं किया है, शादी की है इसलिए आप कृपया यहाँ से चले जाओ। अब तारावती श्रीमती तारावती भादू हो गई और संगरिया में ही महिला आश्रम में अध्यापिका हो गई। स्वामी केशवानन्द ने हजारी लाल को ग्रामोत्थान हाई स्कूल में अध्यापिका लगवा दिया। इस प्रकार पति-पत्नी साथ रहने लगे। (पृ.64)

तारावती भादू ने 1956 में प्रायवेट इंटर्मीडिएट पास कर लिया। संगरिया में रहते उसने 1958 में बी.ए. कर लिया और 1960 में बी.एड. भी। बाद में इनका चयन राजकीय सेवा में सेकंड ग्रेड शिक्षिका के रूप में हो गया। आपकी प्रथम नियुक्ति भीनासार (बीकानेर) में हुई। इसके बाद वे रिंगस चली गई। इन्होने 1968 में तीन बच्चों की माँ होने के बावजूद एम.ए. किया और सीकर के बालिका विद्यालय में प्रधानाध्यापिका हो गई। इस तरह एक राजपत्रित अधिकारी बनने का सफर तय किया। इनका ज़्यादातर कार्यक्षेत्र सीकर ही रहा। हजारीलाल भादू भी कई वर्षों बाद एस.टी.सी. स्कूल सीकर में नियुक्त हो गए। तारावती अपने कैरियर में सफल रही तथा 1983 में इन्हें राज्य स्तरीय शिक्षक पुरस्कार से सम्मानित किया गया। (पृ.64)

तारावती भादू ने शिक्षा विभाग में महिला उप निरीक्षक एवं जिला शिक्षा अधिकारी, परियोजना अधिकारी (प्रौढ़ शिक्षा) एवं जिला प्रौढ़ शिक्षा अधिकारी पद को सुशोभित किया। आपने शिक्षा एवं महिला विकास के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य कर राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई। आपने वार विडोज़ असोशिएशन, सीकर की अध्यक्ष रहते हुये संकटग्रस्त महिलाओं, विधवाओं, परित्यक्ताओं के लिए सीकर में अल्प आवास गृह संचालित किया। इस एसोशिएशन की राष्ट्रीय आध्यक्ष श्रीमती वी. मोहिनी गिरि ने सीकर का दौरा कर ग्राम सभाओं, महिला जाजमों, एवं जनजागरण के कार्य देखकर खूब प्रशंसा की। (पृ.64)

आपने सामाजिक बुराईयों, रूढ़ियों, कुरीतियों पर खूब प्रहार किया। किसानों के लिए कृषि मेलों का आयोजन कर आधुनिक कृषि एवं नवीन तकनीकों की जानकारी करवाई। इन्होंने जीव दया मंडलों का गठन किया तथा सीकर की जिलाध्यक्ष रही। आपने शिक्षा का अधिकार एवं मानवाधिकार के क्षेत्र में भी सराहनीय कार्य किया। (पृ.65)

तारावती भादू का व्यक्तित्व बहुआयामी है तथा शिक्षा के क्षेत्र में विशेषकर महिला शिक्षा के क्षेत्र में इनकी अहम भूमिका है। उन्होने प्रमाणित कर दिया कि वह एक बहादुर पिता की बहादुर बेटी है। (पृ.65)

इनके 4 पुत्र हुये और चारों राजपत्रित अधिकारी। ज्येष्ठ पुत्र जयप्रकाश का देहांत हो गया, वे इंजीनीयर थे। दूसरा, विजय डाक्टर है। तीसरा, संजय प्रकाश वन विभाग में डी.एफ.ओ. है तथा सबसे छोटा अजय आई.ए.एस. है। अभी राजकोट में कमिश्नर है। (पृ.65)

पुरस्कार और सम्मान

  • राजस्थान सरकार द्वारा 1983 में शिक्षा के उच्चतम सम्मान 'राज्य स्तरीय शिक्षक पुरस्कार' सहित शिक्षा विभाग, प्रौढ़ शिक्षा, साक्षरता अभियान की ओर से अनेकों बार पुरस्कृत और सम्मानित
  • राष्ट्रीय बचत योजना के लिए राज्य स्तरीय चल वैजयंती (संचयिका)
  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति एवं अन्य राष्ट्रीय स्तर के सम्मेलनों में भागीदारी
  • महिला एवं बाल विकास विभाग में परियोजना निदेशक रहते हुये विभिन्न योजनाओं के क्रियान्वयन हेतु पुरस्कृत
  • स्काउट/गाइड क्षेत्र में हैदराबाद में आयोजित राष्ट्रीय जंबुरी व्यवस्था तथा दसवीं एसिया पेशीफिक जंबुरी में भागीदारी निभाई
  • परिवार कल्याण के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्यों के लिए अनेक बार सम्मानित (पृ.488)

तारावती भादू का परिवार

  • पिता: चौधरी हनुमान सिंह
  • भाई: श्री रणवीर सिंह एडवोकेट, कर्नल सुरेन्द्र
  • पति:हजारीलाल भाादू
  • पुत्र: 1. ज्येष्ठ पुत्र जयप्रकाश का देहांत हो गया, वे इंजीनीयर थे। 2. विजय डाक्टर है, 3. संजय डी.एफ.ओ. है और 4. अजय आई.ए.एस.

संपर्क सूत्र

पता: श्रीमती तारावती भादू, ई-237 अंबाबाड़ी, जयपुर-302012, फोन: 0141-2335453

Literacy Wave in Rural Rajasthan

The following content is taken from an article "Literacy Wave in rural Rajasthan" by By Usha Rai, published in The Times of India News Service and reproduced in book 'Mati Ki Mahak', pp.307-311

[p.307]: At Khud and Danta Ramgarh Villages of Sikar district in Rajasthan there is a stigma attached to the thumb impression. It is a stamp of illiteracy a clear indication that when if you take a loan of just Rs. 100 you cannot get out of the debt trap of the bania's clutches.

The craving for basic literacy something partially from a deeply felt need and some what from a strong motivation fanned by the literacy mission and adult education department is sleeping through the villages of Rajasthan.

While the women seek education to the able to read letters and roadsigns, the men are keen on basic maths so that they can handle bank loans and stationary transactions.

Within two years 15 villages in 12 districts of the state have been declared fully literate. The only state to have taken on the challenge of imparting 'Sampooma Sakshrtha' (total literacy) village-wise Rajasthan which in the 1981 census was second lowest on the literacy ladder now bids fair to climb up to the top rungs.


Considering that Rajasthan has 29,124 villages and an adult population (15 to 35 age group) 107,02,000 of which 69,39,000 are illiterate the picture is not exactly rosy for the ambitious national literacy mission programme.

Cold hard statistics are necessary in any evaluation and


[p.308]: will put the final stamp of success or failure. But how do you evaluate a nacent movement for mass literacy like the rumblings of thunder heralding rain of the sheer courage and dedication of umpteen preraks (motivators) educational officer (who I have seen an action) of Sikar who through personal contact are blazing the most inspiring literacy trail?

Considering the paltry fees paid to the instructions - Rs. 100 a month if he is paid by the Rajasthan Functional Literacy Programme supported by the Centre and half that amount if supported by the state adult education programme - the enthusiasm of the functionaries is astounding. Further the promise to remove the disparity between the Central and state honorariums has remained only on paper with four consecutive years of drought leaving the state depleted of resources.

There are other hassles too which are symptomatic of our politician system. Good committed project officers in adult education programmes are a rarity. But there are instances when dedicated officials have been transferred on the whims of politicians resulting in a setbacks to the programme. Through Mr. Sam Pitroda has intervened an ensured that no education officials is transferred without the approval of the Rajasthan adult education department the damage does cannot be rectified that easily.

Visiting adult education centres and Jan Shikshan Nilyams (for post literacy education) in Khud, Danta Ramgarh, Manda and Singodra villages of Sikar district is an exhilaration experience. Catchy slogans advocation literacy are scrawled on walls. doors on huts and just at about every available vantage point.

Some 50 to 60 songs have been composed by the preraks and the instructors in the local dialect on literacy and social awareness. Many of them have been set to popular film tunes, wedding songs and even bhajans like 'jai jagadeesha har'. The


[p.309]: dynamic district education officer Mrs. Taravati Bhadu has taped the songs and cassettes are to 'thelawalas' shop keepers and cinema halls.

All the along with the 'jathas' and 'prabhat pherris' on literacy have build up a high degree of motivation in the villages panchyats of all political hues are providing land and even panchyat ghars for running the adult education centre and the Nilayams.


Of the 80 adult education AEC centres in Sikar district, 450 are for women and have women instructors. Fifteen centres in the district are run by women who themselves required literacy at the AECs. The key to a successful programme are highly motivated preraks and instructors Kiran Kanwar 21 from a "dhani" (an isolated cluster of huts) of Bhikhanwasi is such an instructor and herself an AEC product. There was no school in her dhani and coming from a Rajput family practising purdah. She was not allowed to outside the dhani. After two years at the AEC today she can read newspapers write letters and do calculations involving three to four digits. The class she runs at dhani from 8pm to 10 pm is extremely popular and the attendance varies from 20 to 35 women.

At 11 pm on one of the coldest nights of Sikar last week, Suman's AEC at Singodara village was humming with activity. At was a full moon night and while the men were busy at the gaon sabha land, narrate stories and share experiences. Suman herself was a student at an AEC run by Gayatri Sharma for three years before becoming a teacher. There was only a boy's school in her village.

Gayatri Sharma a prerak at the Nilyam at Singodra is lively woman who relies on specially composed songs to motivate as well as educate woman. The extensive use of song and rythm to attract people to adult education to get them to articulate as well as create social awareness of the evils of dowry,


[p.310]:liquor, lavish feasts on the death of an elder and child marriages are common to the entire district.

Six years ago when 20 year old Gauri Devi Naik's husband died of an electric shock, the young widow who had to fend for an year old child was here it. It was Gayatri who approached Gauri's in-laws and begged them to allow her to attend the AEC. Today Gauri is not just literate but is a confident young woman handling a job of compiling water bills that fetches her Rs. 650 a month.

At Manda Village Ram Nivas Varma, Godavari and Meena a tribal girl provide the leadership for making the village literate by 1990. In the 35 tribal families of the village there are only two literate girls Godavari and her sister. There are 300 illiterate women in the village and responsibility for motivating and educating them falls on Godavari.

Noparam a 35 year old farmer of Khud, was illiterate till 1987 when he attended ad adult education centre. It was his younger sister who attended a regular school, who motivated him to join the classes and helped him at home. Noparam Says literacy has read the various circulars and government documents on farming and getting loans.

Himmat Singh of Kot village in Nagaur district had his own unique way of imparting education. It would sit at a vantage and hail the men and women for a friendly chat, then offer to teach them to write their name. Each day he would teach them one alphabet of their name. No slates or paper were used initially. With a stick he would teach them to write on the sand. A fair share of the credit for getting the 765 in the village literate goes to learn.

These young men and women signify the success of a village's literacy drive. How else can one account for Mettulal's refusal to accept dowry at his marriage is practised in the village of Khud and in the younger age group no one has more than two or three children?


[p.311]: In the sampoorna sakshrtha drive a village survey is conducted on the number of illiterates between the age of 6 to 35. Out of school children are motivated to attend school or a functional literacy class. Others attend an AEC. To ensure that the entire village is covered senior school children are given special educational kits and 'each one asked to teach one'. At least 150 hours to teaching are considering essential for making a person literate. The mass contact literate programme is monitored by school teachers and headmasters who also do the final evaluation of the literacy level of those taught.

A village is declared fully literate only after several evaluations by different teams including one by the state education secretary of whoever be appoints. A public function is held to mark the total literacy achievement where invited dignitaries do their own spot checking.

For continuing education in the literate villages. Jan shikshan nilayams are opened with library facilities 1200 to 3000 books, newspapers, magazines and a television. Discussions are held on .... subjects which vary from immunisation of the pregnant woman against tetanus to the government's latest circular on cooperatives and bank loans. Women are demanding that they be taught crafts, sowing and other skills which would benefit them economically.

But as Mrs. Sharda Jain of the Institute of Development Studies which is evaluating the literacy programme, says it would be unwise to expect miracles. You cannot have a time bound number oriented programme for literacy. Internal motivation is needed. Literacy is not capsule that can be distributed. So don't panic if targets are not achieved. The wave of enthusiasm sweeping the countryside is exciting and should be sustained.

The Iron Lady

Mr Gopikrishan Siddha 'Pragya', Director of Rashtriya Anuvrat Shikshak Sansad Rajasthan State, said following words of praise for Mrs Tarawati Bhadu in 'Mati Ki Mahak' p.306 :

"I feel exorbitant pleasure to reveal about an Iron Lady Smt. Taravati Bhadu devotee of Acharya Shri Tulsi and Acharya Shri Mahapragya. She has been the pioneer of Gramin Mahila Education in Rajasthan. She has boosted the illiterate Gramin Ladies. This is her glorious achievement in the field of Gramin Mahila Education. I see no words to speak high of this dedicated, devoted, firm determined high spirit lady. She is an unspoken inspiration for the Honorable teachers of Rajasthan Sekhawati."

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References