Tiloka Ram Burdak

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लेखक:लक्ष्मण बुरड़क, IFS (Retd.), Jaipur

Tiloka Ram Burdak was a a freedom fighter and social worker from village Guleriya in Sujangarh tahsil of Churu district in Rajasthan.

जाट प्रजापति महायज्ञ सीकर सन 1934

जाट प्रजापति महायज्ञ सीकर सन 1934 ने किसानों में राजनैतिक चेतना का संचार किया। उस सम्मलेन में सुजानगढ़ तहसील से जिन किसानों ने भाग लिया उनमे आप भी मुख्य थे[1]

सीकर सम्मलेन में भाग लेने वाले आजादी के दीवाने शेखावाटी के गाँवों में चले गए और भूमिगत हो गए। भूमिगत रहते वे यदा कद ही घर आ पाते थे। इससे इनकी खेती उजड़ गयी और आर्थिक हालत ख़राब हो गयी। [2]

प्रजा परिषद् में भाग लिया

वर्ष 1942 में गांधीजी ने देश में करो या मरो का नारा दिया और अंग्रेजों को भारत छोड़ने का जय घोष किया। गांधीजी के सत्याग्रह से प्रोत्साहित होकर सुजानगढ़ में भी बीकानेर राज्य प्रजा परिषद् की स्थापना की। पंडित गिरीश चन्द्र मिश्र, सेठ सागरमल खेतान, बनवारीलाल बेदी, लालचंद जैन, फूलचंद जैन जैसे कार्यकर्त्ता शहरी तबके से थे।

ग्रामीण क्षेत्रों से जो कार्यकर्त्ता 1942 से 1945 तक बीकानेर राज्य प्रजा परिषद् सुजानगढ़ के सदस्य बनकर इस संघर्ष में सामिल हुए और अंग्रेजी साम्राज्य, बीकानेर की राजशाही एवं जागीरदारी प्रथा के विरुद्ध बिगुल बजाय तिलोकराम बुरड़क नि. गुलेरिया ने प्रजा परिषद् की गतिविधियों में सक्रीय भाग लिया.[3]

सुजानगढ़ में प्रजा परिषद् की स्थापना

वर्ष 1942 में गांधीजी ने देश में करो या मरो का नारा दिया और अंग्रेजों को भारत छोड़ने का जय घोष किया। गांधीजी के सत्याग्रह से प्रोत्साहित होकर सुजानगढ़ में भी बीकानेर राज्य प्रजा परिषद् की स्थापना की। पंडित गिरीश चन्द्र मिश्र, सेठ सागरमल खेतान, बनवारीलाल बेदी, लालचंद जैन, फूलचंद जैन जैसे कार्यकर्त्ता शहरी तबके से थे।

ग्रामीण क्षेत्रों से जो कार्यकर्त्ता 1942 से 1945 तक बीकानेर राज्य प्रजा परिषद् सुजानगढ़ के सदस्य बनकर इस संघर्ष में सामिल हुए और अंग्रेजी साम्राज्य, बीकानेर की राजशाही एवं जागीरदारी प्रथा के विरुद्ध बिगुल बजाया उनमे आप मुख्य थे। लादूराम खीचड़ ने प्रजा-परिषद् की गतिविधियों में सक्रीय भाग लिया।[4]

लादूरामजी खीचड़ के साथ प्रजा परिषद् का प्रचार-प्रसार करने वालों में मुख्य थे - रामूराम ढाका, चैनाराम बोला, जेसाराम राव, तिलोक राम बुरड़क, तिलोकराम जानू, बुधराम डूडी, आशाराम मंडा, गिरधारीराम मील आदि। [5]

जाट पंचायतों में चौधरी लादूराम खीचड़

चौधरी लादूराम जीखीचड़ जाट पंचायत के फैसलों में काफी न्याय प्रिय माने गए हैं। ढाका परिवार की एक लड़की को ससुराल पक्ष ने धन के नशे में धके देकर निकाल दिया। इसकी पंचायत नौरंगसर के ढाका जाटों ने सुजानगढ़ के जाट मंदिर के पास बुलाई जिसमे चौधरी लादू राम खीचड़ और चौधरी रामूराम ढाका आदि प्रमुख पञ्च चुने गए थे। चौधरी लादू राम खीचड़ ने उस परिवार पर आर्थिक दण्ड के बजाय कठोर सामाजिक दंड दिया गया।क्योंकि आर्थिक दंड से परिवार पर कोई फर्क नहीं पड़ता।

इसी प्रकार रामपुर के एक कालेर की लड़की आबसर के किलका परिवार में ब्याही थी जिसको लड़के के बाप ने जबरन खुमाराम डोटासरा के साथ भेज दी। आबसर वालों ने जाटों की पंचायत गुलेरिया गाँव में बुलाई। इसमें निम्न लिखित पञ्च चुने गए।

परिवार पर 1300 रु. का आर्थिक दंड आरोपित किया।, लड़की के द्वारा उसके बाप के सर पर 51 जूते मरवाए, खुमाराम डोटासारा के सर पर 21 जूते मरवाए। लड़की को वापस उसके घर भिजवाया जहाँ आज भी वह आनंदपूर्वक अपना जीवन यापन कर रही है। उसका परिवार भरा-पूरा है।

डकैती का झूटा मुकदमा

सन्दर्भ : भीमसिंह आर्य:जुल्म की कहानी किसान की जबानी (2006), p.55-56

इसी सिलसिले में तहसील के जागीरदारों व काँगड़ आन्दोलन के खलनायक रामसिंह DSP के उकसाने से जियाराम कालेर ने चौधरी लादूराम खीचड़, उमाराम खीचड़, दीपाराम खीचड़, तिलोकाराम गुलेरिया, ईशरराम गुलेरिया, उदाराम जानू, नेमाराम गोदारा नि. सुजानगढ़, तिलोकाराम बुरड़क नि. गुलेरिया, आशा राम मंडा नि. बालेरा, सुरजाराम पुनिया नि. पड़िहारा इन दस पंचों पर डकैती का झूटा मुकदमा किया जो पांच वर्ष चला। पंचायत में हजारों व्यक्तियों द्वारा पांच पञ्च चुने जाकर प्रचलित सामाजिक रिवाज के अनुक्रम में दोषी व्यक्तियों को अर्थ दण्ड से दण्डित किया और दण्ड की राशि शिक्षण संस्था 'विद्यार्थी भवन रतनगढ़' को दान में दे दिए। पञ्च उक्त पंचायत में पांच ही चुने गए थे। राम सिंह द्वारा गढ़ी गयी काल्पनिक कहानी निराधार थी किन्तु दसों व्यक्तियों को गिरफ्तार किया गया। तथाकथित अभियुक्तों को व उनके परिजनों को इस दौरान आतंकित किया गया। सम्पति जप्त करने की धमकियां दी गयी। जिन पाँचों को जज करार दिया गया वे सभी सत्तर वर्ष से अधिक उम्र के वयोवृद्ध समाज के प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। शेष पांच व्यक्ति भी शांतिप्रिय गांधीवादी विचारधारा के राजनैतिक प्रचारक थे। मुकदमे का चालान दसों तथाकथित डाकुओं को हथकड़ी डालकर सुजानगढ़ के मुख्य बाजार में एक प्रदर्शनी का आयोजन किया गया।

अंत में चूरू के सत्र न्यायाधीस ने इस प्रकरण में अभियोगी और पुलिस की साजिस माना और विद्वान् न्यायाधीश ने व्यवस्था दी कि सामाजिक अपराधों में जातीय पंचों को दोषी नहीं माना जा सकता, उनको दोषी को दंड आरोपित करने के अधिकार हैं।पंचों पंचों सहित सभी दसों व्यक्तियों को बाइज्जत बरी कर दिया गया। विद्वान न्यायाधीश ने इनको प्रतिष्ठित सामाजिक, न्यायप्रिय पञ्च घोषित किया तथा मुकदमे को बेबुनियाद एवं राजनीतिक प्रतिशोध की भावना से किया गया षड्यंत्र करार दिया गया।

References

  1. भीमसिंह आर्य:जुल्म की कहानी किसान की जबानी (2006),p.35
  2. भीमसिंह आर्य:जुल्म की कहानी किसान की जबानी (2006),p.36
  3. भीमसिंह आर्य:जुल्म की कहानी किसान की जबानी (2006),p.40
  4. भीमसिंह आर्य:जुल्म की कहानी किसान की जबानी (2006),p.40
  5. भीमसिंह आर्य:जुल्म की कहानी किसान की जबानी (2006),p.201

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