William I

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William I (1066-1087), also known as William the Conqueror was the first King of England, reigning from 1066 until his death in 1087.

History

The descendant of Viking raiders, he had been the Duke of Normandy since 1035. After a long struggle to establish his power, by 1060, his hold on Normandy was secure, and he launched the Norman conquest of England in 1066. The rest of his life was marked by struggles to consolidate his hold over England and his continental lands and by difficulties with his eldest son.

William was the son of the unmarried Robert I, Duke of Normandy, by Robert's mistress Herleva. His illegitimate status and his youth caused some difficulties for him after he succeeded his father, as did the anarchy that plagued the first years of his rule. During his childhood and adolescence, members of the Norman aristocracy battled each other, both for control of the child duke and for their own ends. In 1047 William was able to quash a rebellion and begin to establish his authority over the duchy, a process that was not complete until about 1060. His marriage in the 1050s to Matilda of Flanders provided him with a powerful ally in the neighbouring county of Flanders. By the time of his marriage, William was able to arrange the appointments of his supporters as bishops and abbots in the Norman church. His consolidation of power allowed him to expand his horizons, and by 1062 William was able to secure control of the neighbouring county of Maine.

William I in Jat History

विलियम प्रथम (विजयी) (1066-1087 ई०):

दलीप सिंह अहलावत[1] ने लिखा है: 14 अक्तूबर 1066 ई० को सेनलेक अथवा हेस्टिंग्स की विजय से विलियम प्रथम को इंगलैंड का सिंहासन प्राप्त हो गया। इस विजय के पश्चात् वह लन्दन की ओर बढ़ा और बुद्धिमानों की सभा (Witar) ने उसका स्वागत किया और अपनी इच्छा से उसे राजा के रूप में चुन लिया। इस प्रकार सैद्धान्तिक दृष्टि से उसके अधिकार का आधार चुनाव हो गया।

सेनलेक की विजय से विलियम इंगलैंड के केवल एक भाग का ही स्वामी बना था। देश के दूसरे भागों में अभी तक स्वतन्त्रता के युद्ध का कार्य चल रहा था तथा इंगलैंड के कई भागों में विद्रोह हुए और उन सबको दबाकर अपनी विजय को पूर्ण करने के लिए विलियम को पांच वर्ष तक घोर युद्ध करना पड़ा।

विलियम की नीति यह थी कि राजा की स्थिति को दृढ़ बनाया जाय और सारे इंगलैंड में एक शक्तिशाली केन्द्रीय शासन स्थापित किया जाय। वह सारी शक्ति अपने आप में केन्द्रित करके देश का वास्तविक शासक बनना चाहता था।

अंग्रेजों को अपने अधीन करने के लिए उनसे उनकी भूमियां जब्त कर लीं और वह नॉरमनों को दे दीं। इससे अमीर अंग्रेजों की शक्ति भंग हो गई तथा उनकी ओर से विरोध या विद्रोह का भय


जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-406


न रहा। उसने देशभर में किले बनवा दिये जिनमें नॉरमन सैनिक रखे ताकि वे अंग्रेजों के किसी भी विद्रोह को दबा सकें।

नॉरमनों को अपने अधीन रखने के लिये उसने नवाबी प्रथा का लोप कर दिया। उसने नॉरमन सरदारों को एक स्थान पर भूमि न देकर भिन्न-भिन्न भागों में बिखेरकर भूमियां दीं ताकि उनकी शक्ति का संगठन न हो सके। उसने अंग्रेजों की मिलिशिया सेना संगठित की, जो नॉरमनों के विद्रोह को दबाने के लिए हर समय तैयार रहती थी। उसने मुख्य काश्तकारों और उप-काश्तकारों को सालिसबरी में इकट्ठा करके उनसे राजा के प्रति भक्त रहने की शपथ दिलवाई।

उसने अंग्रेजी चर्च को रोम की बजाय अपने अधीन कर लिया। उसने पादरियों को मजबूर किया कि वे उसकी अधीनता स्वीकार करें तथा उसी से पद प्राप्त करें। उसने पादरियों की सभा (Synod) को आज्ञा दी कि वह राजा की स्वीकृति के बिना कोई कानून न बनाये। इससे चर्च की शक्ति राज के हाथों में आ गई।

विलियम द्वारा पादरियों को ब्रह्मचारी रहने की आज्ञा दी गई। पुराने सैक्सन पादरियों के स्थान पर नए नॉरमन पादरी रखे गए और चर्च का रोम के साथ सम्बन्ध कम कर दिया।

विलियम एक चतुर और दूरदर्शी राजनीतिज्ञ था। उसने इंगलैंड की सम्पत्ति और आय के स्रोतों की जाँच करवाई। यह जाँच इतनी पूर्ण थी कि कोई भूमि, सड़क तथा पशु आदि ऐसा न था जिसे पुस्तक में दर्ज न किया गया हो। यह जाँच सन् 1086 ई० में सम्पूर्ण हो गई और इसे ‘डूम्स्डे’ नामक पुस्तक में दर्ज किया गया। इसी को “डूम्सडे पुस्तक” (Doomsday Book) कहते हैं। यह प्रत्येक भूपति के नाम और उसकी जायदाद का वर्णन करती है तथा 11वीं शताब्दी के इंगलैंड के हालात का बहुमूल्य अभिलेख (Record) है। इससे सरकार की आय भी निश्चित हो गई और सरदारों की शक्ति का भी ज्ञान हो गया। यह पुस्तक उस समय के इंगलैंड का सच्चा चित्र है।

विलियम ने स्काटलैंड पर आक्रमण किया और उससे अपना परमाधिकार मनवाया। उसने फ्रांस के राजा को, विलियम के विद्रोही भाई की सहायता करने पर, दंड देने के लिए फ्रांस पर आक्रमण किया। उस प्रकार उसने इंगलैंड की प्रतिष्ठा बढ़ाई।

विलियम की इंगलैंड के प्रति सबसे बड़ी सेवा यह थी कि उसने देश में एक दृढ़ और निश्चित राष्ट्रीय राजतन्त्र स्थापित किया। वह एक योग्य प्रशासक और सफल राजनीतिज्ञ था। वह विदेशी था, परन्तु उसने इंगलैंड पर बुद्धिमत्ता के साथ शासन किया और अपनी प्रजा का उपकार किया। वह एक कठोर और कड़ा शासक था। उसने देश में शान्ति स्थापित की। राज्यभर में कोई आदमी अपनी छाती पर सोना रखकर जा सकता था। यह कहना उचित ही है कि “नॉरमन विजय इंगलैंड के इतिहास में एक निर्णायक स्थिति अथवा स्थल चिह्न है और यह विजय एक गुप्त आशीर्वाद थी।”

सम्राट् विलियम की सितम्बर 9, 1087 ई० को अपने घोड़े पर से गिरकर मृत्यु हो गई।

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References