वर्णोच्चारणशिक्षा

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दो शब्द

महर्षि दयानन्द सरस्वती ने सत्यार्थप्रकाश आदि वृहद् ग्रन्थ ही नहीं लिखे, अपितु कुछ लघुपुस्तिकायें आदि भी लिखी हैं जो हमारे लिए पथप्रदर्शन का कार्य करती हैं। आर्य्योद्देश्यरत्‍नमाला, व्यवहारभानु, गोकरुणानिधि, संस्कृतवाक्यप्रबोध आदि ऐसी ही लघुपुस्तिकायें हैं जिन्हें हिन्दी जानने वाला सामान्य जन भी आसानी से पढकर ज्ञानवर्द्धन कर सकता है।

ऐसी ही पुस्तिकाओं में एक है - वर्णोच्चारणशिक्षा। देवनागरी के स्वर और व्यंजनों का सही उच्चारण किस प्रकार से करना है, इसको सरल भाषा में समझाया गया है। आजकल के विद्यालयों में पढने वाले हिन्दी-भाषी छात्र श, ष, स के उच्चारण में भेद नहीं कर पाते। यह दोष उनका नहीं, बल्कि उन अध्यापकों का है जिन्होंने यह सब उन्हें बताया ही नहीं। केवल आर्ष गुरुकुलों में विद्याध्ययन करने वाले छात्र ही शुद्ध उच्चारण कर सकते हैं क्योंकि उनको महर्षि पाणिनि कृत अष्टाध्यायी और महाभाष्य पर आधारित व्याकरण का ज्ञान भी कराया जाता है।

इस लघु पुस्तिका को विजयकुमार गोविन्दराम हासानन्द, नई सड़क, दिल्ली-110006 ने प्रकाशित किया है, जिसके लिए यह संस्थान साधुवाद का पात्र है। आर्य साहित्य को छपवा कर और न्यूनतम मूल्य रखकर यह संस्थान अनेक दशकों से कृण्वन्तो विश्वमार्यम् की भावना का प्रचार-प्रसार कर रहा है।

मैंने इस पुस्तिका के सभी पृष्टों को कंप्यूटर पर स्कैन करके और jpg format में परिवर्तित करके नीचे प्रस्तुत किया है। प्रत्येक image को क्लिक करके पूरे स्क्रीन पर पढा जा सकता है। चाहें तो बेशक इन पृष्ठों को प्रिंट करके घर रखें। वैसे अच्छा यही है कि इस पुस्तक की कई प्रतियां प्रकाशक से सम्पर्क करके खरीद लें (क्योंकि नाममात्र मूल्य पर उपलब्ध है)। फिर स्कूल जाने वाले बच्चों को दान में देकर पुण्यलाभ प्राप्त करें ताकि हमारी भावी पीढ़ी इसे पढकर सही उच्चारण करना सीखे।

दयानन्द देसवाल
दिल्ली
5 दिसंबर 2021

वर्णोच्चारणशिक्षा

लेखक - महर्षि दयानन्दसरस्वती


पुस्तक के पृष्ठ

पुस्तक में २४ पृष्ठ हैं। यहाँ पर हर पृष्ठ की छोटी आकृति (thumbnail) दिखाई दे रही है। उसे क्लिक करके पूरे स्क्रीन पर पढ़ें।




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